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सुप्रिया पाठक का आलेख 'उम्मीद की किरण : भारत में प्रमुख पर्यावरणीय आंदोलन'

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  सुप्रिया पाठक  आज पर्यावरण एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने है। इसे सुरक्षित संरक्षित बनाए रखने की तरकीबों के बारे में लगातार विमर्श आयोजित किए जा रहे हैं। इसी क्रम में पर्यावरणीय आंदोलन के ऐतिहासिक एवं समाजशास्त्रीय विश्लेषण की परंपरा हाल के वर्षों में विकसित हुई एक प्रवृत्ति है। पर्यावरण से जुड़े आंदोलनों में महिलाओं का योगदान विशिष्ट रहा है हालांकि उन्हें वह श्रेय नहीं दिया गया जिसकी वे हकदार रही हैं। इसे पर्यावरणीय नारीवाद की संज्ञा देते हुए अब इस पर गम्भीर विमर्श की शुरुआत की गई है। सुप्रिया पाठक के अनुसार 'वस्तुतः पर्यावरणीय नारीवाद इस अवधारणा को स्थापित करता है कि स्त्रियों और प्रकृति के बीच एक गहरा रिश्ता है क्योंकि दोनों की चारित्रिक विशेषताएं लगभग एक हैं परंतु दुर्भाग्यवश दोनों के लिए ही मानव समाज में न्यूनतम सम्मान की भावना है। साथ ही, उनको दिया गया स्थान समाज में किए गए उनके योगदान के अपेक्षा न्यूनतम है। उनकी उत्पादक तथा पुनरुत्पादक भूमिकाओं को हमेशा से ही कम करके अथवा उसे अदृश्य करके आंका गया है। उदाहरण के लिए एक गर्भवती स्त्री के साथ आधुनिक ...