संतोष पटेल की कविताएं
संतोष पटेल |
परिचय
डॉ संतोष पटेल
जन्म - 4 मार्च, 1974, बेतिया, बिहार
पिता : डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना
माता: श्रीमती चिंता देवी
शिक्षा :
पीएच-डी (विषय: भोजपुरी साहित्य में दलित चेतना के स्वर, इग्नू नई दिल्ली)
अंग्रेजी, हिंदी, भोजपुरी, बुद्धिज्म और ट्रांसलेशन स्टडीज में एम. ए., अंग्रेजी में एम. फिल.
संपादक - भोजपुरी ज़िन्दगी,
साथ ही पूर्वांकुर (हिंदी - भोजपुरी), डिफेंडर (हिंदी- इंग्लिश- भोजपुरी), रियल वाच (हिंदी), उपासना समय (हिंदी) और झेलम न्यूज़ के सम्पादन से भी जुड़े हुए हैं।
भोजपुरी कविताएँ एम. ए. (भोजपुरी पाठ्यक्रम, जे पी विश्वविद्यालय) में चयनित " भोजपुरी गद्य-पद्य संग्रह-संपादन - प्रो शत्रुघ्न कुमार
सदस्य - भोजपुरी सर्टिफिकेट कोर्स निर्माण समिति, इग्नू, दिल्ली।
प्रकाशन -
भोजपुरी
भोर भिनुसार, अदहन, अछरंग (भोजपुरी कविता संग्रह)
और 'अपने देसवा निक बा' भोजपुरी कहानी संकलन
हिंदी काव्य संग्रह
शब्दों की छाँव में, जारी है लड़ाई, नो क्लीन चिट, कारक के चिन्ह, अमीबा
आलोचना
छायावाद के प्रवर्तक ( हिंदी आलोचना)
कई एक साझा संग्रहों में कविताएं शामिल। साथ ही कई कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद हो चुका है।
संपादक : भोजपुरी दलित कविताएं।
कई प्रतिष्ठित सम्मान एवम पुरस्कार प्राप्त।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भारत जन जत्था के प्रकाशित 13 हैंडबुक का अंग्रेजी हिंदी से भोजपुरी अनुवाद।
इस समय कई सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं एवम गतिविधियों से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। भोजपुरी जन जागरण अभियान, नई दिल्ली के अध्यक्ष हैं।
सदस्य, एडिटोरियल बोर्ड
1.INTERNATIONAL Literary Quest, An International Multidisciplinary Peer Reviewed Refereed Research Journal, ISSN: 2319-7137
2.World Translation An International, Multidisciplinary Peer Reviewed Refereed Research Journal, ISSN No: 2278-0408
3.Shodh, A Triannual Bilingual Peer Reviewed Refereed Research Journal of Arts & Humanities, ISSN: 0970-1745
सम्प्रति:
सहायक कुलसचिव (असिस्टेंट रजिस्ट्रार), दिल्ली कौशल व उद्यमिता विश्वविद्यालय, दिल्ली सरकार, नई दिल्ली।
सांची स्थित भगवान बुद्ध की खंडित मूर्ति |
दुनिया की क्रूरतम शक्तियां हमेशा ही अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में जुटी रहती हैं। अलग बात है कि उनकी यह चाहत हमेशा दिवास्वप्न साबित होती है। विजय हर बार शान्ति की ही होती है। गौतम बुद्ध इतिहास के ऐसे नायक हैं जिन्हें लोग सम्मान के साथ भगवान का दर्जा देते हैं। बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था 'अप्प दीपो भव'। यानी कि अपना प्रकाश खुद बनो। यह दुनिया के हरेक व्यक्ति को स्वावलंबी बनाने और व्यक्ति के तौर पर प्रतिष्ठित करने का पहला महत्त्वपूर्ण प्रयास था। ऐसी सोच दुनिया में दुर्लभ है। आगे चल कर पुनर्जागरण युग में आम आदमी को मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास मानववादी अवधारणा के विकास के क्रम में देखा जा सकता है। बुद्ध को मिटाने का प्रयास भी कई तानाशाहों के द्वारा किया गया। इस क्रम में उनकी मूर्तियों को खण्डित कर दिया गया। तालिबान ने विश्व में बुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमा को बामियान में विस्फोटक लगा कर चकनाचूर कर दिया। लेकिन इससे बुद्ध की छवि पर रंच मात्र भी असर नहीं पड़ा। सन्तोष पटेल हिन्दी और भोजपुरी के महत्त्वपूर्ण कवि हैं। कई एक क्षेत्रों में उनकी निरन्तर सक्रियता चकित करती है। भोजपुरी को एक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए भी सन्तोष लगातार हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं। सन्तोष बुद्ध से बहुत प्रभावित हैं। इसी क्रम में उन्होंने बुद्ध पर कई उम्दा कविताएं लिखी हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं संतोष पटेल की कविताएं।
संतोष पटेल की कविताएं
स्निग्ध चंद्रमा और बुद्ध
शीतलता से भरे स्निग्ध आभापूर्ण चंद्रमा को
निहारने भर से ऐसा अनुभव होता है कि
मानो अंतस में हो रहा है
प्रेम का उदय
संचारित हो रही है करुणा
दुःख की कालिमा दूर हो रही हो
प्रसन्नता खिलखिला रही हो
मन के उत्प्लावन बल से संवदेना
पुन: पुन: आंखों में तैरते
चित्त को ऐसी शांति प्रदान करती है
कि चित्त भी एकाग्रता को ही देता है प्रश्रय
प्रज्ञा स्वत: करुणा से आलिंगन के लिए होती है बैचैन
वैसे ही जैसे समुद्र को
प्रभावित करती है चांद की स्निग्धता
लेकिन
चांद की यह सौम्यता तो देखो
जबकि वह समुद्र में मचा देता है हलचल
उठते हैं ज्वार
असफल कोशिश करते हैं
मिलने की चांद से
परंतु चंद्रमा की यही कांति
मनुष्य के चित्त मानस में
भर देती है संवेदना, प्रेम और करुणा
और ले जाती है उसे बुद्धत्व की ओर।
आखिर तुम बौने साबित हुए
क्या लगता है तुम्हें
बुद्ध को मिटा दिया
या बुत को गोलियों से छलनी कर
बुद्ध का नामोनिशान खत्म कर दिया
तुम्हारी बंदूकों से बेशक मूर्तियां
टुकड़ों में खंडित हो जाएगी
लेकिन विचारों को कैसे मिटाओगे
किस किस के दिलोदिमाग से
बुद्ध को हटाओगे
कितनों के गर्दन उड़ा दोगे?
ना जाने कितने असलहों का प्रयोग किया
कितने ही बम लगाए
कितने ही डायनामाइट खर्च किए
कितनी कट्टरता पैदा किए होगे तुम
कितनी हिंसा की होगी तुमने
पर अहिंसा, करुणा और दया के समाने
आखिरकार बौने ही साबित हुए तुम
बुद्ध एक विचार हैं
मानवता के संदेशवाहक हैं
तुम्हारी अमनुष्यता में इतनी शक्ति नहीं
जो बुद्धत्व को ध्वस्त करे
बुद्ध और युद्ध दो ध्रुव हैं।
प्रतीक चिह्न
बुद्ध ने कहा
"सम्यक दृष्टि"
और हमने अपनी दृष्टि को कर दिया
भेदभाव से परिपूर्ण।
बुद्ध ने कहा
"सम्यक कर्म"
हमने यह कहते कि
जैसा कर्म करेगा
वैसा फल देगा भगवान
करते हैं हम सारे कुकर्म।
बुद्ध ने कहा
अत्त दीपो भव
हमने बुझा डालें दीपक
मन और मस्तिष्क के
संवेदना और मानवता के।
अब कहते हैं
तमसो मा ज्योतिर्गमय
अन्धकार से प्रकाश की ओर
मृत्यु से अमरता की ओर
इस तरह जारी है।
देसना और उपनिषद् में द्वंद।
बुद्ध बस हमारे लिए
नुमाइश भर रह गए
देसना उनकी पुस्तकों में
फांक रही हैं धूल
अब तो बुद्ध की वाणी को
जगह हर शिक्षालय में
उपनिषद की बातें ही बन रही हैं
प्रतीक चिह्न।
बुद्ध हैं कि ढकते नहीं
कितनी मेहनत की गई होगी
इसको ढकने में
केसरिया के महास्तूप को
मानो छुपाने की पूरी कोशिश हुई
एक जीवंत इतिहास को।
दरअसल ढका नहीं गया इसे
अपने कुकृत्य को छुपाया था
उन्होंने
विभिन्न मुद्राओं में बैठे बुद्ध के
मूर्तियों के सिर को
किया गया क्षत विक्षत
नफरत का अंदाजा लगा सकते हो!
तोड़ दी गई ऊंगलिया धर्म चक्र मुद्रा
बैठे बुद्ध की
ध्यान मुद्रा में बैठे बुद्ध के दोनों हाथ तोड़ कर अलग किया गया
भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठे बुद्ध के दाहिने हाथ को
बांहों से अलग कर दिया गया
वरद मुद्रा में बैठे बुद्ध के दाहिने हाथ को तोड़े गए
फिर करण मुद्रा में बैठे बुद्ध को अंगूठे को तोड़ा गया।
कितने डर गए थे वे लोग।
वज्र मुद्रा में बैठे बुद्ध के दाहिने हाथ की मुट्ठी को
बाएं हाथ से विलग किया गया
वितर्क मुद्रा की नहीं दिखी तर्जनी और अंगूठा बुद्ध की
तोड़ डाले गए उनके हाथों को।
अंजलि, उत्तर बोधि या अभय मुद्रा में बैठे बुद्ध को हाथों को तन से जुदा कर दिया गया
प्रत्येक मूर्ति के सिर को नहीं बख्शा गया
दिखती है घृणा तुम्हारी
बुद्ध की प्रतिमाओं से
फिर भी तुम अपनी संस्कृति को
सहिष्णु बताने में नहीं थकते।
दुनिया का सबसे ऊंचा
केसरिया का यह स्तूप
चीख चीख कर बता रहा है
इस हालत में किसने पहुंचाया इसे।
बुद्ध ने बिताये यहां मात्र एक दिन
अपने परिनिर्वाण से पहले
अशोक ने उनकी याद को जीवंत किया स्तूप में
पर किसने इसे नेस्तनाबूत किया इसे?
तब ना कोई मुगल था
ना कोई तालिबान था
ना जनरल डायर था
फिर ऐसा क्यों हुआ होगा?
कैसे और किसने बता दिया इसे
राजा बेन का किला?
देखो बुद्ध को ध्यान से यहां
कितने झंझावातों को सहा
आखिर कौन था रंगरेज
जिसने रंग दी थी उनकी मूर्ति को
जो अब तक वैसा का वैसा ही है।
कितना भी कर लो कोशिश
बुद्ध को ढकने की
बुद्ध को छिपाने की
पर
बुद्ध हैं कि ढकते नहीं।
बुद्ध उनके लिए
बुद्ध उनके लिए
करुणा के सागर करुणाकर नहीं
सम्यक सम्बुद्ध तथागत नहीं
पहले जानो फिर मानो के जनक भी नहीं
तर्क और तथ्य पर बात करने वाले
महामानव भी नहीं
शील, प्रज्ञा और परिमिता की बात करने वाले शास्ता भी नहीं
ना अष्टांग मार्ग के प्रतिपादक ।
बुद्ध उनके लिए
हैं मात्र एक वस्तु
जिनकी मूर्ति के सिर में उगाते हैं वे फूल और बोनसाई
बनाकर उसको फ्लावर पॉट
कार्यालय के एक कोने को सजाते हैं
उनकी तस्वीरों को लगाते हैं वे
मसाज पार्लर में और स्पा में
जहां क्या होता है शायद ही छुपा हो किसी से।
बुद्ध उनके लिए
एक बुत भर हैं
इसलिए उनके बुत को गोलियां से उड़ा देते हैं वे
यह समझ कर कि
इस तरह बुद्ध मिट जाएंगे उनके देश से
क्योंकि बुद्ध मौन हैं
आत्मा और परमात्मा के प्रश्न पर
स्वर्ग और नरक के सवाल पर
फिर उनको तो जन्नत में चाहिए बहत्तर हूरें।
बुद्ध उनके लिए
नास्तिकता के परिचायक हैं
इसलिए आग लगा दिया नालंदा के पुस्तकालय में
नेस्तनाबूत कर दिया तक्षशिला और विक्रमशिला
यज्ञ और वर्ण व्यवस्था को नकारने वाले भंते
कैसे पसंद आते उनको?
इसलिए कर दिया जमींदोज उनको
कर दिया तब्दील बौद्ध मठों को अपने हिसाब से
बुद्ध की मूर्तियों को बना लिया
अपना देवी देवता तोड़ मोड़ कर
ताकि बुद्ध सदा के लिए समाप्त हो जाएं।
बुद्ध उनके लिए
एक वैश्विक संदेश भर हैं ' युद्ध के विरुद्ध '
भले उनकी सारी ऊर्जा लगेअपने धर्म प्रचार में
सत्ता सुख भी धर्म को मजबूत कर के मिले
पर जब भी विदेश जाएं वें
या आए कोई विदेशी मेहमान
तो कहते नहीं थकते
बुद्ध की एक मूर्ति उन्हें पकड़ाते हुए
हमने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया।
बुद्ध उनके लिए
उनकी जाति के नायक हैं
इसलिए उनके ऊपर वे करने लगे हैं सेमिनार
कुछ काव्य गोष्ठी
कुछ गाना बजाना
और करा कर जातीय सम्मेलन
देते हैं संदेश कि बुद्ध की भांति
हम भी हैं शांतिप्रिय और अहिंसक
मानवता के पोषक,
अनय के उद्घोषक,
लेकिन सब जानते हैं कि सदियों से रहे हैं वे
समाज में सबसे बड़े शोषक।
बुद्ध से सरोकार
मानवता के प्रेरणा स्रोत को
कोशिश हुई बर्बरतापूर्वक मिटाने की
सुदूर ग्रीघकूट पर्वत से चट्टान गिरा कर
तो कभी नीलगिरी हाथी को ताड़ी पिलाकर
भरसक कोशिश तब भी की गई बुद्ध मिट जाएं
देवदत्त को क्या पता करुणा का अंत नहीं होता।
श्रमण शिरो दास्यति तस्याहं दीनार शत क्षस्यामि* जैसा दिया गया फतवा
किये भाँति-भाँति के अत्याचार
जलवा दिया उनके मठों और संघाराम को
भयानक उत्पीड़न किया बौद्धों का
हत्याएं कराई गईं बौद्ध साधुओं की तुड़वाए गए अनेक बौद्ध विहारों को
पुष्पमित्र शुंग को क्या पता
नहीं होती है विजय हिंसा की।
वैसे तो हूणों ने नहीं छोड़ी कोई कसर
ना ही तुर्की आक्रमणकारियों ने
कोशिश कम नहीं हुई अफ़गानियों की
तलवार के बल पर सब कुछ मिटा देने की
मिहिरकुल को क्या पता कि जला देने से
बौद्ध विहार और संघाराम
तोड़ देने से स्तूपों को और चैत्यों को
नहीं खत्म हो जाता है बुद्ध का असीम प्रेम।
बहुत नाश किया गया तब भी यहां
जब कटवा दिया गया बोधगया का बोधिवृक्ष
ताकि नहीं उग सके दुबारा उसपर रखे गए गर्म तावे
बदल दी बुद्ध की प्रतिमा
और तो और भयंकर आगजनी से
कुशीनारा को नक्शे से हटा देने की कोशिश
बेचारे शाशांक को क्या पता
घृणा और द्वेष की उम्र छोटी होती है।
ज्ञान के स्थल में आग किसने लगाई
किसने नालंदा और विक्रमशिला जलाई
तुर्की हों या हो खिलजी
हाथ तो तुम्हारा भी था
क्योंकि कट्टरता में तुम कम थे क्या?
बहुत प्रयत्न किया 'प्रछन्न बौद्ध' बनकर
लेकिन क्या पता तुमको संवेदना का बीज कभी मरता नहीं
यहां नहीं तो वहां उग आएगा।
क्या सोचते हो तुम
तोप और टैंकों से उड़ा देंगे बुद्ध के संदेशों को
बंदूक की गोलियों से बुद्ध की अहिंसा को
रॉकेट के हमले से बुद्ध की करुणा को
मिट्टी में विलीन कर दोगे बुद्ध की मानवता को
लगा कर बामियान की बुद्ध मूर्ति में विस्फोटक
मूर्ख हो तुम तालिबानियों
बुद्ध बूत नहीं बुद्धि हैं
प्रेम हैं
करुणा हैं
मानवता हैं
दया हैं
जब तक मानव है इस पृथ्वी पर
हमेशा रहेगा हमारा बुद्ध से सरोकार।
*जो व्यक्ति एक श्रमण का सिर काटकार लायेगा उसे मैं सौ दीनारें दूंगा
क्या यह बेअदबी नहीं है?
एक आता है और जुदा कर देता है
बुद्ध के सिर को उनकी धड़ से
और छोड़ देता है धड़ को यूहीं
यह मानकर कि काम तमाम हो गया
उसको धड़ से कोई डर नहीं
उसको पता है ज्ञान का नियंत्रक है बुद्धि।
दूसरा उस कटे सिर को उठा लेता है
बना देता है गमला उस सिर के ऊपरी हिस्से को काटकर
और फिर इस गमले को अभिवादन की वस्तु
मानो उसे पर्यावरण की बहुत चिंता है
लेकिन इसको भी बुद्धि से कोई लेना देना नहीं
बुद्ध के मस्तिष्क में मिट्टी भरना
बतलाता है कि ज्ञान की उसे जरूरत नहीं।
दोनों को बुद्ध के ज्ञान से नहीं लेना देना नहीं
तर्क या तथ्य से वास्ता नहीं
तरीका बेशक अलग अलग दिखे
पर दोनों के कृत्यों को क्या समझा जाए?
क्या माना जाए इसे
बुद्ध के प्रति घृणा और असम्मान ही न
प्रेम, करुणा, दया, शांति और समता
जिसकी सिख रही हो
' बुद्ध मुस्काये ' क्यों रखा नाम
हिंसक हथियार के परीक्षण का
क्या यह बेअदबी नहीं है?
बुद्ध विलुप्त हो गए लोक से?
बैचैन करता है यह प्रश्न
आखिर बुद्ध लोक से कैसे विलुप्त हो गए
प्रश्न तो बनता है यह
आखिर कैसे लोक से बुद्ध विलुप्त हो गए
पर बहुत विचारने के बाद मन में आता है
क्या यह सच है
कि वे विलुप्त हो गए
या उनको विलुप्त कर दिया गया?
सवाल बिल्कुल वाजिब है
क्या किसी को इस बात का भान ही नहीं
भोजपुरी की माटी में जन्में बुद्ध
महाभिनिष्क्रमण इसी मिट्टी में
फिर ऐसा क्या था
जो लोक से बाहर हो गए बुद्ध
जबकि धर्मचक्र प्रवर्तन भी इसी माटी में
फिर भी बुद्ध लोक में नहीं।
उसी माटी के कण कण में उनके कदम पड़े
जहां जहां कदम पड़े उनके
प्रमाण भी मौजूद है अब भी
कुछ स्तूप खड़े हैं वहीं आज भी
कुछ अशोक स्तंभ भी वही है खड़े
जिसको आज भी गांव की औरतें
लउर बाबा बता कर उसे पूजती हैं
फिर भी बुद्ध गायब हैं लोक से?
आखिर कौन थे वे लोग
जिन्हें भाया नहीं बुद्ध का वह संदेश
जिसमें है दया, करुणा, ममता, मानवता
प्रेम, शांति और समानता।
आखिर कौन थे वे लोग
जो चाहते नहीं थे अपनाना
बुद्ध का मध्यम मार्ग
परलोक की जगह इहलोक की बातें।
आखिर कौन थे वे जो
मानवता के थे दुश्मन
जिन्हें प्यार है अपनी जाति से
मतलब नहीं था उन्हें सहानुभूति से।
आखिर कौन थे वे लोग
जिन्होंने तर्क की जगह अंधविश्वास फैलाया
प्रतीत्यसमुत्पाद के बातें छोड़
लोगों को अज्ञानता में भरमाया
इतना छोटा सवाल नहीं है यह
सदियां लगा दी उन्होंने
बनकर प्रच्छन्न बौद्ध
जारी रखा एक युद्ध
बुद्ध के विरुद्ध
फिर बुद्ध विलुप्त कर दिए लोक से।
अब वही लोग रोना रोते हैं पीट पीट कर छाती
बुद्ध लोक से गायब हैं
पर मैं कहता हूं बुद्ध का लोक वैश्विक है
कुआं के मेढ़क की तरह
बुद्ध को यहां मत ढूंढो, यहां के लोक में
क्योंकि यदि बुद्ध यहां नहीं हैं
तो उसके कसूरवार भी तुम ही हो।
सम्पर्क
आर जेड एच 940
राजनगर -2 पालम कॉलोनी
नई दिल्ली-110077
संपर्क 9868152874
bhojpurijinigi@gmail.com
सादर आभार आदरणीय। बुद्ध से संबंधित मेरी रचनाओं का सम्यक स्थान दिया। आभारी
जवाब देंहटाएंअति उत्तम सर 👌🏻👌🏻आप ज्ञान का सागर है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर
हटाएंबुद्ध साहित्य के मुकुट में एक और हीरा
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद अच्छी कविताएँ पढ़ीं, मन को संतोष हुआ कि जब तक बुद्ध हैं, प्रेम और करुणा है, अहिंसा है, मनुष्यता बची रहेगी। आपने इतिहास, स्मृति, लोक और शास्त्र में बुद्ध की उपस्थिति को चिन्हित किया है । आज जबकि हमें शांति और अहिंसा की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, आपकी कविताएँ हमें संबल प्रदान करेंगी। इन कविताओं को पढ़ते हुए एक और बात जो मुझे सबसे ज़्यादा मार्मिक लगी वह बुद्ध का ज्ञान से मूर्ति बनना और महज़ मूर्ति से सजावटी का सामान, आपने इस मानसिकता पर कसकर प्रहार किया है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंवाह! लाजावाव कविताएं महोदय, बहुत सुंदर, अशेष बधाई एवं मंगल 💐🌿☘️🍀🌺🥰💕👏🏻
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