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राहुल सांकृत्यायन का आलेख 'साहित्यकार का दायित्व'

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  किसी भी भाषा का साहित्य उस क्षेत्र विशेष की सामाजिक, सांस्कृतिक स्थिति को रेखांकित करने का कार्य करता है। इस साहित्य का लोगों के मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में साहित्यकारों का दायित्व कहीं और बढ़ जाता है। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अपने एक आलेख में इस मुद्दे पर विचार करते हुए लिखते हैं : ' साहित्य में संकीर्ण धार्मिक या राजनीतिक सम्प्रदायवाद नहीं आने देना चाहिए। ऐसी संकीर्णता अपना प्रभाव बहुत दिनों तक रख भी नहीं सकती।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  राहुल सांकृत्यायन का आलेख 'साहित्यकार का दायित्व'। 'साहित्यकार का दायित्व' राहुल सांकृत्यायन अंग्रेज पत्रकारों ने बड़े आश्चर्य और खेद के साथ इसी दिल्ली में देखा था कि रूसी नेताओं के स्वागत करने के समय पोस्टरों और तोरणों-लेखों में अंग्रेजी का पूरी तौर से बायकाट किया गया है, और हिन्दी तथा मेहमानों की भाषा रूसी को ही वहां स्थान दिया गया था। अंग्रेजों ने तो अपने इन भावों को अपने अखबारों में व्यक्त किया, किन्तु अंग्रेजी के हिमायती काले साहबों की छाती पर सचमुच ही उस समय सांप लोट रहा था। यदि आज दिल...

वीरेन डंगवाल की कविताएँ

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  वीरेन डंगवाल  वीरेन डंगवाल  ( जन्म: 5 अगस्त 1947; निधन: 28 सितंबर 2015) कवि कर्म महज कागजों को काला करने वाला धंधा नहीं अपितु अत्यधिक कठिन कर्म है। कवि एक सामाजिक जिम्मेदारी के तहत कविताएं लिखता है। यह जिम्मेदारी उसे कोई सौंपता नहीं बल्कि वह खुद ब खुद उठाता है। ऐसे में कवि से जनता को एक सहज उम्मीद होती है। कविता चाटुकारिता नहीं बल्कि उसके खिलाफ खड़े हो कर बात करने की कला है। वीरेन डंगवाल अपनी कविताओं में उस मनुष्यता के पक्ष में निर्विवाद रूप से खड़े नजर आते हैं जो आज सबके निशाने पर है। भीड़ से अलग खड़े होकर कहने का दुर्लभ साहस वीरेन में दिखाई पड़ता है। हां में हुंकारी तो सभी भरते हैं। नकार का साहस इक्का दुक्का ही दिखाई पड़ता है। अपनी एक कविता में वे लिखते हैं : "बेईमान सजे-बजे हैं/ तो क्‍या हम मान लें कि/ बेईमानी भी एक सजावट है?/ कातिल मजे में हैं/ तो क्‍या हम मान लें कि कत्‍ल करना मजेदार काम है?" कल यानी 28 सितंबर को प्रिय कवि वीरेन डंगवाल जी की पुण्यतिथि थी। उनकी पुण्य स्मृति को हार्दिक नमन करते हुए हैं उन्हें पहली बार की तरफ से...

कनक तिवारी का आलेख 'भगत सिंह के प्रयोग'

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   जिस समय भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन पर गांधी जी का वर्चस्व था। जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस समाजवादी मूल्यों के साथ जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, उस समय भगत सिंह ने अपने विचारों और कृत्यों से पूरे भारत का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट कर लिया। भगत सिंह का जीवन लगभग साढ़े तेइस वर्षों का था। (28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह को ब्रितानी हुकूमत ने 23 मार्च 1931 को उनके साथी  शिवराम, राजगुरु और सुखदेव सिंह के साथ फांसी दे दी थी।) लेकिन उनके विचार सुचिन्तित और परिपक्व थे। ऐसे युवा पर कोई भी देश फख्र कर सकता है। भगत सिंह के फांसी के मुद्दे पर स्वयं गांधी जी भारतीय जनता की आलोचना के केन्द्र में आ गए। यद्यपि भगत सिंह का रास्ता गांधी जी से अलग था तथापि उनके मन में गांधी जी के लिए पर्याप्त आदर और सम्मान था। आज भगत सिंह का जन्मदिन है। आज का दिन इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि हम अपना मूल्यांकन खुद कर सकें कि जिस भारत का सपना हमारे पुरखे के तौर पर भगत सिंह ने देखा था, क्या हम उस तरफ कुछ कदम भी बढ़ पाए हैं। जयंतियाँ ढोंग रचने के लिए नहीं मनाई जानी चाहिए। जयंतियाँ इसलिए मनाई जानी चाह...

बुद्धिलाल पाल की कविताएं

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  बुद्धिलाल पाल  बुद्धिलाल पाल  परिचय जन्म -13.01.1958, ग्राम भमाड़ा, जिला छिंदवाड़ा (एम पी) प्रकाशित कृतियां - 1 द्वैभाव्य (काव्य पुस्तिका) 2 चांद जमीन पर (काव्य संग्रह) 3 एक आकाश छोटा सा (काव्य संग्रह) 4 राजा की दुनिया (काव्य संग्रह) 5 बुद्धिलाल पाल की चयनित कविताएं (हिंदी एवम पंजाबी भाषा में ) अन्य - देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में एवम प्रमुख समाचार पत्रों में रचनाओं का प्रकाशन। कुछ कविताओं का अंग्रेजी, मराठी, बंगला, गुजराती भाषा में अनुवाद। बहुत सी कविताओं में साथियों द्वारा कविता पोस्टर।आकाशवाणी एवम सीमित रूप में साहित्यिक मंचों पर आकाशवाणी में कविता पाठ। सम्मान -  1 सृजन गाथा सम्मान 2 सव्यसाची सम्मान यह दुनिया समूची काव्यमय है। जीवन अपने आप में एक कविता है। इसे महसूस करने वाला संवेदनशील मन होना चाहिए। मनुष्य के मनुष्य बनने में कला की बड़ी भूमिका है। जब आदिम मनुष्य ने रोजमर्रा की व्यस्तताओं से कुछ समय निकाल कर गुफाओं की दीवारों पर चित्रात्मक अंकन करना शुरू किया तो इस परिघटना ने उसके कल्पनात्मक आयाम को पंख प्रदान किया। मनुष्य के विकास में इस कल्पना...