राहुल सांकृत्यायन का आलेख 'साहित्यकार का दायित्व'
किसी भी भाषा का साहित्य उस क्षेत्र विशेष की सामाजिक, सांस्कृतिक स्थिति को रेखांकित करने का कार्य करता है। इस साहित्य का लोगों के मन मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में साहित्यकारों का दायित्व कहीं और बढ़ जाता है। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने अपने एक आलेख में इस मुद्दे पर विचार करते हुए लिखते हैं : ' साहित्य में संकीर्ण धार्मिक या राजनीतिक सम्प्रदायवाद नहीं आने देना चाहिए। ऐसी संकीर्णता अपना प्रभाव बहुत दिनों तक रख भी नहीं सकती।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं राहुल सांकृत्यायन का आलेख 'साहित्यकार का दायित्व'। 'साहित्यकार का दायित्व' राहुल सांकृत्यायन अंग्रेज पत्रकारों ने बड़े आश्चर्य और खेद के साथ इसी दिल्ली में देखा था कि रूसी नेताओं के स्वागत करने के समय पोस्टरों और तोरणों-लेखों में अंग्रेजी का पूरी तौर से बायकाट किया गया है, और हिन्दी तथा मेहमानों की भाषा रूसी को ही वहां स्थान दिया गया था। अंग्रेजों ने तो अपने इन भावों को अपने अखबारों में व्यक्त किया, किन्तु अंग्रेजी के हिमायती काले साहबों की छाती पर सचमुच ही उस समय सांप लोट रहा था। यदि आज दिल...