टॉम एलियट की कविता "हॉलो मेन" का आशीष बिहानी द्वारा किया गया अनुवाद


एलियट

आज पहली बार पर प्रस्तुत है टॉम एलियट की चर्चित कविता "हॉलो मेन". इसका अनुवाद किया है युवा कवि आशीष बिहानी ने. साथ में दी गयी टिप्पणी भी आशीष की ही है. तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं टॉम एलियट की चर्चित कविता "हॉलो मेन"   


टॉम एलियट दुनिया के सबसे ज़्यादा पूजे और हड़काए गए लेखकों में से एक है. उनके विशाल लेखन कर्म में कम से कम तीन-चार जगह यहूदी चरित्रों के खिलाफ सीधे सीधे जातिगत घृणा की भावना दिखाई दी थी. होलोकॉस्ट के बावजूद एलियट ने न कभी उन अभिव्यक्तियों को सुधारा, न ही कभी माफ़ी मांगी. कई बार यह अजीब लगता है कि यह वही कवि है जिसने भारतीय दर्शन को गहराई से समझा, एक ऐसे वक़्त में जब नस्ली उन्माद से भरा यूरोपीय अकादमिया उस दर्शन की महत्ता को नकार चुका था. (वही समझ जिसके तहत वेंडी डोनिजर इंडोलौजिस्ट कहलाती है)


अपने आदर्श नागार्जुन की तरह ही एलियट बहुत बड़े संदेहवादी पर मध्यममार्गी थे. एलियट का समस्त जीवन यूरोप की आदिम भयावहता और आधुनिकता के बीच का मार्ग ढूंढते हुए निकला. यही कारण था कि जिस एलियट ने बर्टरैंड रसेल को भी आस्थावान करार दिया, अंततः आध्यात्मिकता को ढूढ़ते हुए अंग्लिकन चर्च की शरण में पहुँच गए. चूंकि मैं अनीश्वरवाद का प्रबल समर्थक हूँ, मेरे लिए एलियट विरोधाभासों से भरा मिथकीय कवि है. पुरुष और प्रकृति का प्राचीन विभाजन आज भी कई बौद्धिक रूप से समर्थ लोगों को आध्यात्मिकता की खोज में लगा देता है. नतीज़तन, आज भी हमारे वैश्विक सरोकार मानव-केन्द्रित हैं, पारिस्थितिकी-तंत्र केन्द्रित नहीं.


ख़ैर, ये सब बस यही सिद्ध करता है कि एलियट आन्तरिक तकलीफों से जूझता मुखर और अभिव्यक्ति-धर्मी कवि था जिसके लिखे काव्य में उसकी अप्रतिम क्षमता साफ़ झलकती थी, जिसने कभी अपने लिखे में अपने अँधेरे, अनैतिक पक्ष को छुपाया नहीं; उसने अपने आप को विश्व के समक्ष अपराधी के तौर पर प्रस्तुत होने दिया.

यहाँ मैं एलियट की कविता "हॉलो मेन" का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ. यह एलियट की सबसे ज़्यादा ईश-निंदक कविता है. इस कविता में चित्रित खोखलापन किसी मिथकीय शुचिता को याद करते हुए आदर्शवादियों का हश्र है, सहस्त्राब्दियों पुराने सिद्धांतों पर अंधे अवलंबन का चुप्पी से लदा नतीज़ा है. क्योंकि वैचारिक जागृति और आध्यात्मिकता के बीच पड़ी खाई एलियट की वृहद् और मॉर्बिड कल्पना से भी बहुत अधिक मुर्दनी भरी और गहरी है. आज हमारी अपनी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में हमें इन चीज़ों को सोचने की ज़रूरत है जहाँ नए ज़माने की बनाई प्रथाएँ हमारे दिमागों में घर कर रहीं हैं और उनको प्रश्नांकित करने, ईमानदारी से सोचने की आदत मर रही है. यदि इस विश्व में हमें जीते रहना है तो हमें ह्यूमन कंडीशन से आगे झांकना होगा.

- आशीष बिहानी







टॉम एलियट की कविता "हॉलो मेन" 


(अनुवाद : आशीष बिहानी) 


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मिस्टा कुर्त्ज़ ... ही डेड
ए पैनी फॉर दि ओल्ड गाय

१.

हम खोखले हैं
हम स्थूल हैं
झुके हुए
भूसे से भरे सिर ---
हमारी बंजर आवाजें,
एकजुट फुसफुसाहटें,
निस्तब्ध और बेमतलब हैं
जैसे सूखी घास में हवा
या तहखाने में टूटे कांच पर चूहे के पैर


रूपहीन आकृतियाँ
बेरंग छायाएं
पंगु बल
बगैर हिले-डुले इशारे


तुम, जो हेडीज़ का दरिया पार कर पहुँच गए
मौत के दूसरे लोक, निर्निमेष ऑंखें लिए
हमें याद रखना, अगर हो सके,
बहकी-भटकी हिंसक रूहों की तरह नहीं, बस
खोखले लोगों की तरह
स्थूल लोगों की तरह.


२.


आँखें, जिनमें झाँकने की ज़ुर्रत मैं ख्व़ाब में भी नहीं करता,
मौत के उस ख़्वाबीदा लोक में
ये नहीं दिखतीं:
वहाँ आँखें हैं जैसे,
टूटे खम्भों पर सूरज की रोशनी
वहाँ, एक पेड़ है झूलता
और हवा के गीतों में हैं आवाज़ें
दूर और अकेलीं
किसी बुझते सितारे से भी ज़्यादा


और क़रीब नहीं जाना
मौत के ख़्वाबीदा लोक में
ओढ़ लेना है
ऐसा समझा-बूझा स्वांग
छछूंदर की खाल, कौवे का खोल, आर-पार लट्ठ
किसी खेत में
ठीक हवा की तरह
और क़रीब नहीं---


सांझ के धुंधले लोक में
वो आख़िरी मुलाक़ात नहीं


३.

ये वह निर्जीव धरती है
काँटों-लदी धरती है
यहाँ पथरीले बिम्ब खड़े हैं
जो यहाँ मरे हुओं की गिड़गिड़ाहटें गिनते हैं
बुझते सितारे की दमक तले


क्या ऐसा होता है
मौत के उस लोक में 
अकेले जागना
ऐसे वक़्त में
जब हम करुणा भरे कांप रहें हों
ओंठ, जो चुम्बन लेते हैं,
कहते हैं टूटे बुतों को प्रार्थनाएँ


४.

वो ऑंखें यहाँ नहीं हैं
कोई ऑंखें नहीं हैं यहाँ
मरते सितारों की इस घाटी में
इस खोखली घाटी में
हमारी खोई दुनियाओं का ये टूटा जबड़ा


मुलाकातों के इस आख़िरी पड़ाव में
एक साथ हम हाथ मारते हैं
चुपचाप
इस उफनती नदी के किनारे


दृष्टिहीन
जब तक वो ऑंखें लौट न आयें
जैसे कभी न बुझने वाला सितारा
मौत की धुंधली दुनिया का
बहुत सी पत्तियों वाला गुलाब
रिक्त मानवों की
अकेली उम्मीद


५.

यहाँ हम नागफनी के चारों ओर नाचते हैं
नागफनी, नागफनी
नागफनी के चारों ओर नाचते हैं
अल-सुबह पांच बजे


ख़याल और यथार्थ के बीच
चेष्टा और अमल के बीच
छाया पड़ी है
            
तुम्हीं हो माता, पिता....


संकल्पना और सृजन के बीच
भाव और उत्तर के बीच
छाया पड़ी है


जीवन बहुत लम्बा है


चाहत और आलोड़न के बीच
संभावना और अस्तित्व के बीच
सार और उत्पत्ति के बीच
छाया पड़ी है
            
तुम्हीं हो माता, पिता....

   
तुम्हीं हो
जीवन
तुम्हीं हो माता

  
विश्व ऐसे नष्ट होता है
विश्व ऐसे नष्ट होता है!
विश्व ऐसे नष्ट होता है!!
धमाके के साथ नहीं, एक ढुलमुल कराह के साथ.


आशीष बिहानी





सम्पर्क

आशीष बिहानी
मोबाईल : 07680885408 

(एलियट की तस्वीर गूगल से साभार)

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