गायत्री प्रियदर्शिनी की कविताएँ



चाँद हमेशा से कवियों के लिए आकर्षण का एक केन्द्र रहा है. नया से नया कवि भी इस चाँद पर अपनी कलम जरुर चलाता है. इसी चाँद और चाँदनी को ले कर गायत्री प्रियदर्शनी ने कुछ कविताएँ 

लिखी हैं जो हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. गायत्री की कविताएँ आप पहले भी इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. तो प्रस्तुत है गायत्री प्रियदर्शनी की कविताएँ
            
चाँद और चाँदनी

                
 गायत्री प्रियदर्शनी

(1)


शान्त नीले समुद्र पर

आलोक बरसाती हुई

पीतवर्णी चाँदनी

निश्शब्द झरती हुई

उजियाली रात

नभ में तैरता हुआ

आधा चाँद

होता है आभास

थम गए हों सभी

बाँटने के लिए

साथ-साथ बीतते

अहसासों के क्षण कोमल

हमारे तुम्हारे साथ

मौन मुखर भाव से



                        
(2)


आसमान के अछोर थाल में सजा है

कुछ कुछ लाल आवारा

रूपहला चाँद.

नीचे तक दूर तक

घेरे है

काले अँधियारों की चादर

दरख्तों को.

निकल पड़े हैं

साथ-साथ

सुनसान रात के सफर पर

ऊपर ऊपर

आवारा चाँद

नीचे नीचे 

यह जिप्सी मन

हारा थका

दिन की हलचल से.



 (3)


धीरे धीरे गहराती         

संध्या को

सिंगारता उग आया है

शनैः शनैः

भासमान आकाश की दिशा में

चाँदी के थाल सा

मनोरम चाँद पूनम का.

और फिर

नदियों  नालों

पोखरों तालाबों के

उजले मटियाले दर्पणों में

झाँकता उझकता

खुद को निहारता

झाड़ियों दरख्तों

कच्चे पक्के घरों के सायों में

लुकता छिपता

दौड़ रहा है

ट्रेन के साथ-साथ

चंचल मन के समान.

चाँद पूनम का.

                    

(4)


घुटन भरी खोह सा

पूरे वजूद पर

अकेलापन

उतर रहा है

दबे पाँव

जैसे, उतरता है अँधेरा

धीरे धीरे धीरे

पेड़ो की छितराई शाखों पर.

ठंडा भीगा-भीगा अँधियारा

खौफनाक अकेलापन

और इसे अर्थ देती

दूर-दूर तक पसरी खामोशी.

अचानक मधुर याद सा

किसी की

खिल कर उठा है

यूकिलिप्टस पर अटका हुआ

पूरा चाँद.

और अकेलेपन के सितार को

झंकारती हुई

बज उठी है सन्नाटे की सिम्फनी.

अकस्मात्

आना किसी का

और फिर चले जाना आकर.

सुख के दूरस्थ कूल आमने सामने होकर भी

मिल नहीं पाते हैं

बहती है उनके बीच

सिर्फ धारा अकेलेपन की

और सन्नाटे की सिम्फनी

लगातार बजती रहती है.




 (5)

आज खिला है फिर
कुछ कुछ सुनहरा

रूपहला चाँद

धीरे धीरे निखरा हुआ

श्वेत पुष्प

महक से भरा हुआ धुल रहा है

बोलती हुई

गहरी खमोशी में

हमारे साथ-साथ.

कल आँगन में

हमारे भी

तारों के संग-साथ

जागा था चाँद.

रात गए

जब आँख खुली

देखा

मुस्काया चाँद

बाँहों में.


(6)

                    
गुलाबी पंखुड़ियों पर

शबनम सी

थिरा गई चाँदनी.

सीपियों में

मोती सी

ढल गई चाँदनी.

मीठी मनुहारों से

रेशमी स्पर्शों ने

संस्पर्श किया

धीरे से

ख्वाबों में

घुल गई चाँदनी.

और जब-जब जागे

नीदों से सुबह सुबह 

सुनहरी धूप सी

पसर गई चाँदनी

आँगन में.




सम्पर्क - 
                                        

डा० गायत्री प्रियदर्शनी                            

द्वारा श्रीयुत् मनोज कुमार गुप्त,                       

रघुवीर नगर, बदायूँ 243601.                      

मो० 08923591758                                 

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