रविशंकर उपाध्याय के लिए श्रद्धांजलिस्वरूप अच्युतानन्द मिश्र की दो कविताएँ
युवा कवि साथी रविशंकर हमारे बीच नहीं हैं, (हमारे लिए सबसे पहले हमारे अनुज.) ये मानने को आज भी मन नहीं कर रहा. ऐसा लग रहा है कि हमेशा की तरह रविशंकर की विनम्र आवाज मेरे मोबाईल पर सुनाई पड़ेगी. वह आवाज जो आज लगातार दुर्लभ होती जा रही है. लेकिन मानने-न मानने का नियति से कोई सम्बन्ध नहीं. हकीकत तो यही है कि हमारा यह अनुज जिसने अपनी मौत से दो दिन पहले अपना शोध-प्रबंध जमा किया था और एक दिन पहले मुझे आश्वस्त किया था 'पहली बार' के लिए कविताएँ भेजने के लिए, हमसे बहुत दूर चला गया है. उस दूरी पर जिसे हम पार नहीं कर सकते. आज भी मन बोझिल है. हम यहाँ श्रद्धांजलिस्वरुप भाई अच्युतानन्द मिश्र की हालिया लिखित कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ जो रविशंकर उपाध्याय को ही समर्पित हैं.
अच्युतानन्द मिश्र
यह दिल्लगी का वक्त नहीं
(रविशंकर की स्मृति के लिए)
तुम्हारी चुप्पी
मेरे भीतर के पत्थर को
पिघला रही है ऐसी भी क्या निराशा
कि चुप्पी के भीतर की चुप्पी
अख्तियार कर ली जाये
अभी तो दिल्ली का मौसम बदलना है
अभी तो खिलने हैं उन टहनियों पर भी फूल
जिनके कांटे देख कर
बिफर गये थे तुम
और शब्दों के सौदागरों की
मरम्मत का वह रोचक
किस्सा भी सुनाना था तुम्हें
कमबख्त मिस- काल मिस -काल ही
खेलते रह गये तुम
मैं जनता हूँ अभी बजेगी
मेरे फोन की घंटी
फोन के चेहरे पर उभरेगा
एक लम्बा नाम
और मेरे हलो कहते ही तुम कहोगे-
और बताइये भैय्या
क्या चल रहा है दिल्ली में
जानते हो एक दिन मैं
कहने वाला था तुम्हें -
क्या मैं कोई खबरनवीस हूँ
या दरबारीलाल कि देता रहूँ
तुम्हे सूचना
लेकिन भाई
यह कहा तो नहीं था मैंने तुमसे
और बगैर कहे तुम नाराज़ हो गये
सुनो,
कुछ योजनायें है
मेरे दिमाग में चक्कर लगाती हुई
यह जो दिल्ली है
यह उतनी दुश्वार भी नही
और तुम जानते ही हो
बार- बार बसती और उजडती रही है
तुम आओ फिर बनायेंगे
अपनी दिल्ली
हाँ! वह वादा भी करना है पूरा
अगले बनारस के आयोजन के लिए
इधर कई दिनों से बज नही रही है
मेरे फोन की घंटी
कई आशंकाओं ने
घेर लिया है मुझे
वैसे तुम नही भी आओगे
तो कुछ नहीं होगा
किस कमबख्त के रुकने से
रूकती है दुनिया
जाने क्यों पिछले दिनों
मैं गुनगुनाता रहा
उसी बनारसी की पंक्तियाँ
“हम न मरिहै
मरिहै सब संसारा”
लेकिन अब तुम्हे लौट आना चाहिए
न ही यह दिल्लगी का वक्त है .
दिमाग को रखना काबू में
प्रिय भाई, रविशंकर
इधर कई दिनों से बात नही हुई
बेवजह ही उचटा रहा मन
मौसम भी किस कदर
बदल गया है इन दिनों
पहले तो दिल्ली की ही हवा खिलाफ थी
लेकिन इधर तो बनारस की मार भी बहुत है
भाई होशियारी से रहना
कई बार मुश्किल हो जाता है
मौसम की मार से बचना
सर्दी जुकाम से बचे रहना
और दिमाग को रखना काबू में
इन दिनों अक्सर
वही धोखा दे जाता है
सम्पर्क-
मोबाईल- 09213166256
Ravi ka yun chale jana....kuchh samjh nahi pa raha hun main...
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाय! अच्युतानंद जी ने अल्पसंख्यक होते जा रहे 'प्रगतिशील' समुदाय में बन गयी एक अपूर्णनीय रिक्ति को शिद्दत से रेखांकित किया है. रविशंकर भैया को श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंकभी मिल नहीं पाया रविशंकर भाई से और अब कभी भी नहीं मिल पाऊंगा, उनकी कवितायें यहाँ वहां तब पढ़ी थी जब बोध भी नहीं था की उनका मतलब क्या है, और जब हुआ तो वही नहीं रहे की पूछ सकूँ "कैसे, बताओ कैसे जी लेते हो इतना कुछ बस इन कुछ शब्दों में और उड़ेल देते हो एक पूरा का पूरा गायब होता समाज, जो कहीं एंटिक ना बन जाए आने वाले समय में" अच्युतानंद भाई की कविता ने बहुत कुछ कह डाला, एक आंसूं छलक कर बह गया और उसकी नमकीनी पनीली धार अब सदा बनी ही रहेगी ........श्रद्धांजली .
जवाब देंहटाएंMai ravi shankar ji ko nh janti lekin is kurup khabr ne mujhe rula dia. Jaise mera apna koi chala gya. Vinarm naman...manisha jain
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएं-नित्यानंद
कितना मुश्किल है उसे श्रद्धांजलि लिखना जिसे नेह लिखना था...
जवाब देंहटाएंसाहित्य में तय करनी थी लंबी दूरियाँ ।चले गए तुम दूर। छा गई खामोशी ।बचा केवल यादों का कारवाँ। विनम्र श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे होने जितनी जगह इस दुनिया में हमेशा खाली रहेगी ...रवि | ...............श्रद्धांजलि ..|
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