चार्ल्स बुकोवस्की की कविताएं :अनुवाद सरिता शर्मा






चार्ल्स बुकोवस्की की कविताएं बिलकुल सहज जीवन की कविताएँ हैं. इन कविताओं का हमारे लिए अनुवाद किया है सरिता शर्मा ने, जो खुद भी एक बेहतर रचनाकार हैं. तो आईये पढ़ते हैं ये कविताएँ। 
   
चार्ल्स बुकोवस्की

लेखक और कवि चार्ल्स बुकोवस्की का जन्म 16 अगस्त 1920 को जर्मनी में अन्देमाच में हुआ था. उनका बचपन बहुत दुखद था. उनके पिता उनकी बहुत पिटाई किया करते थे. कम उम्र में ही उन्होंने शराब पीनी शुरू कर दी थी. यह जीवन की अर्थहीनता से बचाव का उनका अपना तरीका था. उन्होंने अपना खर्च निकालने के लिए अमेरिका में लिखने के साथ साथ छोटे- मोटे काम किये. उनकी पहली कहानी 24 वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई थी. उन्होंने 35 वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था और उनका पहला कविता संकलन 1959 में प्रकाशित हुआ था. उन्होंने कुछ कवितायेँ शराब पर भी लिखी थी. चार्ल्स बुकोवस्की ने 45 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें से कविता संकलन ‘लव इज अ डॉग फ्रॉम हेल’ और दो उपन्यास ‘बारफ्लाई’ और ‘फेक्टोटम’ प्रमुख हैं जिनपर  फिल्में बन चुकी हैं. उनकी मृत्यु 9 मार्च, 1994 को कैलिफोर्निया में सैन पेड्रो में हुई.



मेरी खिड़की के बाहर मिनीस्कर्ट में बाइबिल पढ़ती एक लड़की

इतवार का दिन है, मैं खा रहा हूँ चकोतरा
रूस में चर्च खत्म हो गया है
पश्चिम जिसे रुढ़िवादी समझता है.

वह सांवली और
पूर्वी मूल की लड़की,
बड़ी भूरी आँखें बाइबिल से उठाती
फिर गिराती. एक छोटी लाल और काली
बाइबिल और जब वह पढ़ती है  
उसके पैर हिलते हैं, हिलते रहते हैं
धीमा लयबद्ध नृत्य कर रही हो जैसे
बाइबिल पढ़ते हुए.

सोने की लम्बी बालियां;
बाजुओं में सोने का एक- एक कंगन,
और मुझे लगता है मिनी सूट पहना  है
कपड़ा लिपटा है उसके शरीर से,
मुलायम चमड़े के उस लिबास को
वह घुमाती है इधर- उधर
सेंकती है लंबी गोरी टांगों को धूप में.

उससे बच कर भाग नहीं सकता हूं
मैं चाहता भी नहीं हूं ऐसा करना.

मेरे रेडियो में बज रहा है सिंफ़नी संगीत
सुन नहीं सकती जिसे वह
लेकिन उसकी हलचल एकदम मेल खाती है
सिम्फनी
की लय से

वह सांवली है, वह सांवली है
भगवान के बारे में पढ़ रही है वह.
मैं भगवान हूँ.



उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता है

दिल में एक ऐसी जगह है

कभी नहीं भर पायेगी

एक खालीपन

और सबसे सुन्दर पलों

और सुखी समय में

हमें इसका अहसास होगा.

हमें महसूस होगा

पहले से कहीं ज्यादा

कि दिल में है एक जगह

जिसे कभी भरा नहीं जा सकेगा

और

हम करेंगे

इंतजार

अनवरत

उस जगह के

खालीपन में. 





सुरक्षित


बगल वाला घर देख मैं

उदासी से घिर जाता हूँ.

मिया बीवी जल्दी उठ कर

काम पर निकल जाते हैं.

शाम को जल्दी घर लौट आते हैं .
उनका जवान बेटा और बेटी है.

रात नौ बजे तक बुझ जाती हैं

घर में सभी बत्तियां.

अगली सुबह फिर से जल्दी उठ कर

काम पर निकल जाते हैं.

पति -पत्नी दोनों.

वे शाम को जल्दी वापस आ जाते हैं .

सभी बत्तियां बुझा दी जाती हैं रात में

नौ बजे तक.



बगल वाला घर मुझे

उदास कर देता है

वे लोग अच्छे लोग हैं 
मैं

पसंद करता हूँ उन्हें.


मगर मुझे लगता है डूब रहे हैं वे

और मैं उन्हें नहीं बचा सकता.



वे जिन्दा हैं.

बेघर

नहीं हैं.



मगर इसकी

कीमत

भयावह है .



किसी रोज दिन के समय

मैं घर को देखूंगा

और घर भी देखेगा

मुझको

और घर के आंसू निकल पड़ेंगे

हाँ, वह रोता है, मुझे

ऐसा महसूस होता है.

 

महिला मित्र


मुझे आते रहते हैं फ़ोन

अतीत से जुडी महिलाओं के


एक का कल ही आया

दूसरे राज्य से.

मिलना चाहती थी

मुझसे .

मैंने कहा दिया

"नहीं."


मैं नहीं चाहता मिलना

उनसे,

मैं नहीं मिलूँगा.

ऐसा करना

अटपटा

क्रूर और

फिजूल होगा.



मैं जानता हूँ कुछ लोगों को

जो देख लेते हैं

एक ही फिल्म को

एक बार

से ज्यादा.


मैं नहीं.

जब मैं जान लेता हूँ

कहानी

जानता हूँ

अंत

वह सुखद है या

दुखद या

बस सीधी सी

बुद्धू,

तो



मेरे लिये

वह फिल्म

ख़त्म हो गयी

हमेशा के लिये

और इसी वजह से

मैं मना कर देता हूँ

अपनी किसी

पुरानी फिल्म को

चलाने देने से

बार- बार

बरसों

तक.


सरिता शर्मा का एक उपन्यास 'जीने के लिए' खासा चर्चित रहा है. इन दिनों विश्व साहित्य का अध्ययन और उसी के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण अनुवाद कार्य। दिल्ली में रहनवारी।
सम्पर्क -
मोबाईल- 09871948430

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स हमारे प्रिय कलाकार रामकिंकर बैज की हैं जिन्हें हमने गूगल से साभार लिया है.)         

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