बाँदा में जलेस का जिला सम्मेलन



(चित्र: गोष्ठी को संबोधित करते हुए चंचल चौहान) 

कवि केदार नाथ अग्रवाल के जनपद बाँदा में 6 अक्टूबर 2013 को जनवादी लेखक संघ का जनपदीय सम्मलेन आयोजित किया गया इस सम्मलेन के पहले सत्र में साम्प्रदायिकता के बढ़ते हुए खतरे पर रचनाकारों ने गंभीर विमर्श किया जबकि दूसरे सत्र में एक कविता पाठ का आयोजन भी किया गया जिसमें अनेक प्रख्यात कवियों ने भाग लिया। इस आयोजन की रपट पहली बार के लिए भेजी है बाँदा की ज.ले.स. इकाई के सचिव उमाशंकर सिंह परिहार ने। तो आईये पढ़ते हैं यह रपट     
उमाशंकर सिंह परमार

      हमारे देश और समाज में इज़ारेदार पूँजीपतियों और बड़े भू-स्वामियों के ऐसे गठजोड़ का शासन चल रहा है जो अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी से समझौता करके उसकी बताई गयी रीति नीति पर चल रहा है। यह विचार 6 अक्टूबर 2013 को बाँदा के डी.सी.डी.एफ. सभागार में सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो0 चंचल चौहान (दिल्ली) ने जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित जिला सम्मेलन के अवसर पर  सेमिनार में व्यक्त किए। जलेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रो0 चौहान ने आगे कहा कि मौजूदा दौर में साम्प्रदायिक फासीवाद की विचारधारा का उभार भारत की आजादी के दौर से विकसित मानवीय मूल्यों के विनाश का कारण बन सकता है। उन्होंने विकास के नाम पर गुजरात की कहानी को झूठ पर आधारित बताते हुए कहा कि शुरू से विकसित राज्य होने के बावजूद वह अब पीछे जा रहा है और जी.डी.पी. के आधार पर पाँचवे नम्बर पर चला गया है। 

(चित्र: गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए अनिल सिंह) 


      साम्प्रदायिकता का प्रक्षेपक्ष और जनवाद को खतराविषयक इस सेमिनार में आगे बोलते हुए प्रख्यात कवि डॉ0 अनिल कुमार सिंह (फैजाबाद) ने कहा कि साम्प्रदायिकता का प्रसार लोकतन्त्र की हत्या करके गरीबी को बढ़ाने वाला है, क्योंकि उससे हमेशा गरीब तबका ही प्रभावित होता है। इलाहाबाद से आये डॉ0 विवेक निराला ने कहा कि साम्प्रदायिकता के साथ यह आश्चर्यजनक सत्य है कि यह खुद को भी साम्प्रदायिक कहलाना पसन्द नहीं करती। आज भी साम्प्रदायिक ताकतें हिन्दू राष्ट्रकी कोई परिभाषा तय नहीं कर सकीं और हिन्दू राष्ट्र के ढांचे में दलित, आदिवासी, पिछड़े समूह एवम् स्त्रियों के लिए कोई जगह नहीं बन सकी। सेमिनार में वरिष्ठ पत्रकार बी.डी. गुप्त, एडवोकेट रणवीर सिंह चौहान, प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह एवम् गोपाल गोयल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा (उरई) ने कहा कि जनवाद का सांगठित विकास ही मनुष्य की तकलीफों से निजात दिला सकता है। उन्होंने डी.सी.डी.एफ. परिसर में कवि केदारनाथ अग्रवाल की स्मृति में एक बड़ा सभागार एवम् कवि कृष्ण मुरारी पहारिया की मूर्ति लगाने का प्रस्ताव रखा जिस पर उपस्थित लोगों ने उत्साह व्यक्त किया। 


      प्रारम्भ में सुधीर सिंह ने विषय का प्रवर्तन किया तथा डी.सी.डी.एफ. के संचालक लाल खाँ ने चंचल चौहान को शाल ओढा कर सम्मान किया। भारतीय दर्शन की विद्वान श्रीमती शान्ति खरे को भी चंचल चौहान व अनिल शर्मा द्वारा शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। संचालन उमाशंकर परमार ने किया। 


      गोपाल गोयल, केशव तिवारी, जयकांत शर्मा की अध्यक्षता में हुए सांगठनिक सत्र में संयोजक आचार्य उमाशंकर सिंह परमार ने रिपोर्ट रखी जिसे सभी ने स्वीकृत किया। इसके बाद सर्वसम्मति से जिला समिति का चुनाव हुआ जिसमें केशव तिवारी अध्यक्ष, जयकांत शर्मा एवं गोपाल गोयल उपाध्यक्ष, उमाशंकर सिंह परमार सचिव, प्रद्युम्न सिंह को कोषाध्यक्ष व कालीचरन सिंह को संयुक्त सचिव चुना गया।


      अपरान्ह कविता सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ0 अनिल कुमार सिंह ने अपनी कविता में कहा कि,



 सड़ी हुई लाशों पर जश्न कुत्ते और गिद्ध मनाते हैं

जिन्दगी शतरंज का खेल नहीं है

जिन्दगी हमारी शह देकर

जीत लेना चाहते हैं आप.....।



महाकवि निराला के प्रपौत्र विवेक निराला ने अपनी संकटग्रस्तकविता में कहा कि,



किसानों के पास कर्ज था/ उद्योगपतियों के पास मर्ज

मगर सरकार को किसी से

कोई हर्ज नहीं था

खुदगर्ज सिर्फ हिन्दी का कवि था.....।




इलाहाबाद से आये हुए कवि डॉ0 संतोष चतुर्वेदी (इलाहाबाद) ने कविता में पढ़ा कि,



वैसे आदमी किसी पत्थर की तरह नहीं गिरता

वह जब भी गिरता है

एक बीज की तरह गिरता है

और वृक्ष की तरह उठ खड़ा होता है हमेशा....।



इलाहाबाद के रतीनाथ योगेश्वर ने रोटीकविता में कहा कि,


हमारे बौने हाथ

रोटी तक नहीं पहुँच रहे हैं

पर मुझे मालूम है

रोटी कैसे मिलेगी

मैं तवे पर चढ़कर

रोटी पा लूँगा....।



कवि श्रीरंग ने कहा कि,



वे लोग

जिन्हें भूखे रहने की आदत नहीं थी

करने लगे उपवास/ जाने लगे हैं मंदिर

करने लगे हैं सजदे

जबकि शैतान ठहाके लगा रहा है

फिर एक बार कामयाब हुई उसकी चाल।



फतेहपुर के प्रेमनंदन का दुःख था,


 गोभी, आलू, प्याज, लहसुन, टमाटर

दूध, दही, मक्खन, मलाई

भागे जा रहे हैं शहर की ओर

देख रहे हैं किसानों के बच्चे

ललचाई हुई नजरों से गाँव में....।



कवि केशव तिवारी, रणवीर चौहान, अनिल शर्मा, सुनील द्विवेदी, सुनील चित्रकूटी, कालीचरन सिंह आदि स्थानीय कवियों ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया। उपस्थित लोगों में आनन्द सिन्हा, राम विशाल सिंह, यावर खान, रामचन्द्र सरस, चन्द्रपाल कश्यप, अशोक त्रिपाठी आदि प्रमुख स्थानीय गणमान्य व्यक्ति शामिल थे। 



संपर्क-

मोबाईल- 09838610776

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'