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तादेउस्ज़ बोरोवस्की की कहानी 'गैस के लिए इधर जाएँ, देवियों और सज्जनों'

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  Tadeusz Borowski तादेउस्ज़ बोरोवस्की लेखक परिचय  तादेउस्ज़ बोरोवस्की का जन्म 12 नवम्बर, 1922 को झिटोमीर, यूक्रेन में एक पोलिश परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 3 जुलाई, 1951 को वारसा, पोलैंड में हुई। वे पोलिश भाषा के कवि और कहानीकार थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें 1943 में हिटलर की नाज़ी सरकार द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया और वे कुख्यात ऑशविच कंसनट्रेशन कैंप में भेज दिये गए। युद्ध की समाप्ति के पश्चात मुक्त होने पर उन्होंने इन कैंपों में जीवन और उसकी विद्रूपताओं और उन अमानवीय परिस्थितियों में जीवन और नैतिकता के प्रश्नों को ले कर अनेक कहानियाँ लिखी। इन कहानियों के अतियथार्थ को ले कर कई बार उनकी आलोचना भी होती है किंतु जीवित रहने की लालसा और अतिशय क्रूरता के बीच नैतिकता के प्रश्न किस प्रकार हमारी सामान्य समझ से परे चले जाते हैं, यह उनकी कहानियों में देखा जा सकता है। पोलैंड वापस लौटने पर उनके दो कहानी संग्रह “Farewell to Maria”  और “The World of Stone” प्रकाशित हुए। इन दोनों का अंग्रेज़ी अनुवाद 1967 में “This Way for the Gas, Ladies and Gentlemen, and other stories” के नाम से प्रका

कँवल भारती का आलेख 'भारतीय चिंतन परम्परा में निर्गुणवाद : बौद्ध क्रान्ति के बाद की सबसे बड़ी क्रांति'

  कबीर जयंती पर विशेष  'भारतीय चिंतन परम्परा में निर्गुणवाद :  बौद्ध क्रान्ति के बाद की सबसे बड़ी क्रांति' कँवल भारती   निर्गुणवाद न वेदों से आया और न वेदान्त से। वेदों में बहुदेववाद है और वेदांत में ब्रह्मवाद; और दोनों का कोई सम्बन्ध निर्गुणवाद से नहीं है। वेदान्त में एक ईश्वर की धारणा हो सकती है, पर उसका सम्बन्ध भी ब्राह्मण-भक्ति से होने के कारण उसे ब्रह्म माना गया है। वेदान्त का ब्रह्मवाद शास्त्रवाद में विश्वास करता है और जगत को मिथ्या मानता है। ‘ब्रह्म सत्यम जगन्मिथ्या’ शंकराचार्य ने भी कहा है और उनके दादा गुरु गौडपाद ने भी। ईशावास्योपनिषद कहता है, यह जगत ब्रह्म से बना है और वही इस जगत का पोषक है। (1,15) श्वेताश्वर उपनिषद में एक वाक्य है—‘तमेवं विदित्वाति मृत्युमेति नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाम’ (3/18), अर्थात, परमेश्वर को जानकार लोग मृत्यु के बंधन से छूट जाते हैं। किन्तु ऐसी कोई अवधारणा निर्गुणवाद में नहीं है। हालाँकि वेदान्त वेदों के ज्ञान के विरुद्ध और ब्राह्मण-दर्शन के खंडन में क्षत्रियों का दर्शन था। लेकिन बाद में ब्राह्मणों ने इसमें घुसकर उसे भी अपने दर्शन के अनुकूल बना