'दिगंत में दस दस्तख़त', हिन्दी अनुवाद सिद्धेश्वर सिंह
आमतौर पर हम दुनिया भर में होने वाले उस लेखन से परिचित नहीं होते जिसके केन्द्र में प्रायः उपेक्षित लोगों की उपस्थिति होती है। लेकिन यह सुखद है कि इधर हिन्दी के कुछ रचनाकारों ने वैश्विक साहित्य से परिचित कराने का काम उम्दा तरीके से किया है। स्वाभाविक रूप से इनके द्वारा किया गया अनुवाद भी बेहतरीन यानी कि मूल रचना के करीब होता है। ऐसे रचनाकारों में सिद्धेश्वर सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।
सिद्धेश्वर सिंह खुद कवि हैं और बिना किसी शोरोगुल के अपना लेखन कार्य करते हैं। वे अनुवाद भी चुनिंदा करते हैं। दुनिया के दस रचनाकारों की एक एक कविताओं का अनुवाद उन्होंने पहली बार को उपलब्ध कराया है। इनमें से कुछ कवि तो ऐसे हैं जिनसे हम पहली बार रु ब रु होंगे। अलग अलग बोली भाषा वाले इन कवियों की कविताओं में अलग अलग रंग सहज ही देखे जा सकते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं दुनिया के दस रचनाकारों की कविताएं, जिसे 'दिगंत में दस दस्तख़त' नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। इन कविताओं को परिंदे के हालिया प्रकाशित विश्व साहित्य पर केन्द्रित अंक में पढ़ा जा सकता है।
'दिगंत में दस दस्तख़त'
विश्व कविता के पटल से चयनित कविताएं
अनुवादक : सिद्धेश्वर सिंह
निजार कब्बानी |
निज़ार कब्बानी (सीरिया)
जब मैं लिखता हूँ
क्यों चाहती हो कि तुम्हारे बारे में लिखूँ
क्यों चाहती हो
कि मैं निर्वसन हो जाऊं तुम्हारे सम्मुख
एक आदिम मनुष्य की तरह।
केवल लिखना ही
मुझे निर्वसन करता है।
जब मैं कुछ बोलता हूँ
तो धारण किए रहता हूँ वस्त्र
जब मैं लिखता हूँ
तो हो जाता हूँ हल्का और मुक्त
एक निर्भार मिथकीय पक्षी की तरह।
जब मैं लिखता हूँ
तो विलग हो जाता हूँ -
इतिहास से
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से
और एक ग्रह की तरह यात्रा करने लगता हूँ
तुम्हारी आँखों के अंतरिक्ष में।
Fatiha Morchid |
फातिहा मोर्शिद (मोरक्को)
एक अंतराल
एक अंतराल
गहराता जाता है लगातार
कोई नहीं भरता इसे
कोई नहीं!
यह छटपटाता है
पर हार जाता है
चलो, इस जगह रख दूँ
अपने आँसुओं की एक नन्हीं बूँद!
वार्सन साएर |
वार्सन शाएर (यू.के. - सोमालिया)
क्या घटित हुआ था कल दोपहर बाद?
उन्होंने मेरी ताई का घर जला कर कर दिया राख़
मैं चिल्लाई टीवी पर कलपती उन स्त्रियों की तरह
जो कि अपने दुःख के भार से
हो जाती हैं दुहरी मुड़े- तुड़े नोट की मानिंद।
मैंने फोन लगाया उस लड़के को
जो बताया जाता है मेरे प्रेम में मुब्तिला
भरसक कोशिश की कि संयत रहे स्वर
कहा - हलो
उधर से पूछा उसने - क्या हुआ वार्सन
कोई तकलीफ़, कोई दिक्कत, कोई कष्ट?
मैं प्रार्थना में रत हुई
और कुछ इस तरह निकली दुआ -
हे ईश्वर
दो दुनियाओं से गुजर कर मैं आई हूँ तुम्हारे द्वार -
एक को लगी हुई है प्यास
और दूसरी घिरी हुई है आग की लपटों से
दोनों की प्राथमिक आवश्यकता के शीर्ष पर है पानी।
देर रात गए
मैंने अपनी गोद में रखा ऐटलस को
उंगलियों की छुवन से सहलाया सारा संसार
और धीरे से पूछा -
कहो, कहाँ दुख रहा है घाव?
उसने उत्तर दिया-
सब जगह
सब जगह
सब जगह।
हालीना पोस्वियातोव्सका |
हालीना पोस्वियातोव्सका (पोलैंड)
तुम्हारी खोज में
गर्द-गुबार भरे रास्तों पर
मैं ढूढती हूँ तुम्हारे अधरों को
झुक झुक कर देखती हूँ
काई से ढँके हर एक पत्थर को
जिनकी नम ओट में
कुंडली मारे सोए हुए है घोंघे
उन्हें जगाती हूँ और पूछती हूँ कि कहाँ हो तुम
वे कुनमुना कर उठते हैं
अपने कवच के भीतर से
अधखुली आंखों से झांकते हैं सूरज की ओर
और अदृश्य हो जाते हैं बिना कुछ कहे
मैं चिकने हो चुके पत्थर से पूछती हूँ
उस पर फिराती हूँ
अपने खुरदरे उष्ण क्षुधातुर हाथ
कुछ नहीं कहा उसने भी
मैंने सूरज से पूछा तुम्हारे बारे में
उसने कुछ नहीं कहा
और पश्चिम की ओर झुका दिया अपना शीश
और मैं..
पश्चिमाभिमुख हो चल पड़ी
सूरज के पीछे-पीछे
अनवरत तुम्हारी खोज में
माया एंजेलो |
माया एंजेलो (यू.एस.ए.)
एक स्त्री की कर्मकथा
मुझे करनी है बच्चों की देखभाल
अभी कपड़ों को तहैय्या करना है करीने से
फर्श पर झाड़ू-पोंछा लगाना है
और बाज़ार से खरीद कर ले आना है खाने पीने का सामान।
अभी तलने को रखा पड़ा है चिकन
छुटके को नहलाना धुलाना पोंछना भी है
खाने के वक्त
देना ही होगा सबको संग-साथ।
अभी बाकी है
बगीचे की निराई-गुड़ाई
कमीजों पर करनी है इस्त्री
और बच्चों को पहनाना है स्कूली ड्रेस।
काटना भी तो है इस मुए कैन को
और एक बार फिर से
बुहारना ही होगा यह झोंपड़ा
अरे! बीमार की तीमारदारी तो रह ही गई
अभी बीनना-बटोरना है इधर उधर बिखरे रूई के टुकड़ों को।
धूप! तुम मुझमें चमक भर जाओ
बारिश! बरस जाओ मुझ पर
ओस की बूँदों! मुझ पर हौले-हौले गिरो
और भौंहों में भर दो थोड़ी ठंडक।
आँधियों! मुझे यहाँ से दूर उड़ा ले जाओ
तेज हवाओं के जोर से धकेल दो दूर
करने दो अनंत आकाश में तैराकी तब तक
जब तक कि आ न जाए मेरे जी को आराम।
बर्फ़ के फाहों! मुझ पर आहिस्ता-आहिस्ता गिरो
अपनी उजली धवल चादरें उढ़ा कर
मुझे बर्फीले चुंबन दे जाओ
और सुला दो आज रात चैन से भरी नींद।
सूरज, बारिश, झुके हुए आसमान
पर्वतों, समुद्रों, पत्तियों, पत्थरों
चमकते सितारों और दिप-दिप करते चाँद
तुम्हीं सब तो हो मेरे अपने
तुम्हीं सब तो हो मेरे हमराज़।
नाज़ीह अबू अफ़ा |
नाज़ीह अबू अफ़ा (सीरिया)
इक्कीसवीं सदी के ईश्वर से एक प्रार्थना
ले जाओ झुंड को - रेवड़ को
ले जाओ चरवाहों और गड़रियों को
ले जाओ -
दार्शनिकों को
लड़ाकों को
सैन्य दलनायकों को
पर दूर ही रहो किसी बच्चे से
बख्शो उसे।
ले जाओ किलों और प्रासादों को
ले जाओ -
मठों को
वेश्यालयों और देवालयों के स्तम्भों को
ले जाओ हर उस चीज को
जिससे क्षरित होती है पृथ्वी की महत्ता
ले जाओ पृथ्वी को
और मुक्त कर दो बच्चों को ताकि वे देख सकें स्वप्न।
यदि वे आरोहण करे पर्वतों का
तो मत भेजो उनके तल में भूकम्प
यदि वे प्रविष्ट हों उपत्यकाओं में
तो मत भेजो उनके उर्ध्व पर बाढ़ और बहाव।
बच्चे हमारे है और तुम्हारे भी
मुहैया कराओ उन्हें ठोस और पुख्ता जमीन।
कैरोल ऐन डफ़ी |
कैरोल ऐन डफ़ी (यू. के.)
वेलेन्टाइन
नहीं, कोई लाल गुलाब नहीं
अथवा न ही नाजुक मखमली हृदय
मैं तुम्हें दूँगी एक प्याज
यह एक चन्द्रमा है भूरे कागज में लिपटा हुआ
इससे फूटता है उजास
जैसे कि वह दमकता है प्यार की सतर्क निर्वसनता में।
अब
यह तुम्हें अंधा कर देगा आँसुओं से
एक प्रेमी की तरह
यह तुम्हारी परछाईं को
बदल देगा दु:ख की एक डोलती हुई तस्वीर में।
मैं कोशिश में हूँ सचमुच सच्ची होने की
नहीं चाहती मैं
एक सुन्दर कार्ड या चुंबन से पगी चिठ्ठी होना।
मैं तुम्हें दूँगी एक प्याज
इसका दग्ध चुंबन टिका रहेगा तुम्हारे अधरों पर
आत्मबोधत्व और वफ़ादार की तरह
जैसे कि हम हैं
जैसे कि हम हैं लम्बे समय से
जैसे कि हम होंगे लम्बे समय तक।।
इसे स्वीकारो
इसके प्लेटिनमी छल्ले सिकुड़ बन जायेंगे वैवाहिक - अंगूठियाँ
अगर तुम चाहो।
घातक ...
इसकी गंध चिपकी रहेगी तुम्हारी उंगलियों से
चिपकी रहेगी तुम्हारी छुरी से।
ब्यूक्तू सेयुम |
ब्यूक्तू सेयुम (इथोपिया)
सड़क जो कहीं नहीं जाती
कोई है
जो दीखना चाहता है बहुत जल्दबाजी में
कोई है
जो दीखना चाहता है बहुत तेजी में
कोई है
जो ड्राइव करता है बढ़िया तरीके से कार
कोई है
जो पहनता है डिजाइनर जूते
और कोई है, जो है बिल्कुल नंगे पांव।
ये सारे बुद्धिजीवी और अंगूठा छाप
सड़क पर यात्रा कर रहे हैं अनवरत
ऊपर से नीचे
इस छोर से उस छोर तक
हो गया है जबरदस्त भीड़-भड़क्का
देखो तो
वे कैसे डोल रहे हैं आगे-पीछे, पीछे-आगे
और किसी को भी दरकार नहीं कि मिले गंतव्य।
येहूदा आमिखाई |
येहूदा आमिखाई (इजराइल)
मेरे पिता
काम पर ले जाने वाले
कलेवे के सैंडविचों की तरह
सफेद कागज़ में लिपटी हुई है मेरे पिता की स्मृति।
जिस तरह कोई जादूगर
अपने हैट से निकालता है फूलछड़ियाँ और खरगोश
ठीक वैसे ही
पिता की दरम्यानी देह से प्रकट होता था प्रेम।
और उनके हाथों की नदियाँ
उफना रही होती थीं अच्छे कामों से।
लीना टिब्बी |
लीना टिब्बी (सीरिया)
अगर मैं मर जाऊँ
अगर मैं मर जाऊँ
कौन भेजेगा मेरे लिए शुभकामनाओं के संदेश
कौन पोंछेगा मेरे माथे से बोझ की लकीरें
कौन मूँदेगा मेरी आँखें।
अगर मैं मर जाऊँ
कौन बुदबुदाएगा मेरे कान में अपनी प्राथनायें
कौन रखेगा मेरा सिर अपने तकिए पर
अगर मैं मर जाऊँ
कौन दिलासा देगा मेरी माँ को
और छिप-छिप कर रोएगा।
अगर मैं मर जाऊँ
अगर मैं जल्दी से मर जाऊँ
तो कौन निकालेगा तुम्हारे हृदय से मेरा हृदय?
सम्पर्क
सिद्धेश्वर सिंह
मोबाइल : 9412905632
लाजवाब कविताऐ | सुन्दर अनुवाद |
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविताएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएँ, उतना ही सुंदर अनुवाद। लेकिन सिर्फ़ दस कविताएँ ही क्यों? ज़्यादा होनी चाहिये थी ।
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