नवारुण भट्टाचार्य की कविताएँ (अनुवाद - मीता दास)


नवारुण भट्टाचार्य

दुनिया का कोई भी रचनाकार जीवन के पक्ष में ही खड़ा होता है. इस पक्ष में खड़े होना आसान नहीं होता. इस क्रम में उसे अपने समय की शोषक शक्तियों के खिलाफ खड़ा होना होता है. उसे प्रायः उस सत्ता के खिलाफ खड़ा होना होता है जिसका चरित्र आम तौर पर जन विरोधी होता है. बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य  अपनी रचनाओं ही नहीं अपने जीवन में भी 'जीवन के पक्ष में' लगातार खड़े रहे. नवारुण की बांग्ला कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया है चर्चित कवयित्री मीता दास ने.  तो आइए आज पढ़ते हैं नवारुण भट्टाचार्य की कविताएँ.    

नवारुण भट्टाचार्य की अनुदित कविताएँ


                            
अनुवाद  - मीता दास 


तितली  


बरनी के भीतर तितलियाँ हैं 
एक मुट्ठी तितलियां मुझे देना खरीद 

हथेलियों में चिपके रहेंगे रेणु की तरह 
और देह रंगा रहेगा रंगों से 

म्यूजियम में देखा था मरी हुई तितलियाँ और याद करता हूँ 
ऐसा मालूम होता है जैसे जा रहे हों तितलियों का दल देश-विदेश 

तितलियों को पकड़ने का एक जाल था मेरे पास 
मच्छरदानी के भीतर घुसते ही याद आ जाती है। 



वध भूमि की ओर

कोई कहता है 
हर आदमी की मृत्यु 
तुम्हारी ही मृत्यु है 
तुम्हे ही एनी की मृत्यु खींच कर ले जाती है 
वध भूमि की ओर
तुम्हे भी नापा जाता है 
शव के ठन्डे देह की तरह 

जब मैं छात्र था 
पर उस वक़्त तितेनियम के चौक में मौजूद नहीं था 
अगर मौजूद होता भी तो भी फ़िक्र नही करता 
टैंक, मशीन गन और पता नही क्या-क्या 
रायफल भी आ रहा हो 
बाकियों को देख अवाक् होता हूँ मैं 
इनमे से कोई भी नही जायेगा तितेनियम चौक 
बिलकुल भी नही जायेंगे
मैंने भी अब सीख लिया है  
और यह जो मैं लिख रहा हूँ 
वह एक किंकर्तव्यविमूढ़ उस छात्र की तरह 
जो बढ़ चला है वध भूमि की ओर  

                   
जीवनानंद


जीवनानंद दास के दो पैट्रोल पंप थे 
एक स्पीड बोट भी था 
जिस पर सवार होकर वे धान सीढ़ी नदी में डाक बदलते थे 
जीवनानंद को अंग्रेजी नहीं आती थी 
जीवनानंद वर्धमान में ही बस जाना चाहते हैं क्योकि वहां ट्रामें नहीं चलतीं 
जीवनानंद बड़े ही तिकड़म बाज थे 
टिड्डे खाते थे, सलमान खान से भी दुगने 
हिरण उन्होंने मारे थे पत्थर मार कर 
जीवनानंद ने आखिर जान ही लिया कि 
बेवकूफों को माँ की गाली देने का चलन 
शुरू होने वाला है 
जीवनानंद सी. पी. एम. के मेंबर थे 
वे पार्टी में रह कर कविताएँ लिखने के अपराध में हुए दण्डित 

इसलिए आइए 
एक बार कविता उत्सव में 
हम उनके एकांत और व्यक्तिगत 
सेरिब्रल हैमरेज को 
सेलिब्रेट करें   .......चियर्स! 


बिल्ली

अपने शायद ध्यान दिया हो कि इन दिनों 
कानी, लंगड़ी बिल्लियों की संख्या 
बढ़ती ही जा रही हैं 
और यह भी आपकी आँखों से छुपा नहीं होगा  
कि उनकी चिकित्सा की कोई व्यवस्थाएँ भी नहीं हैं 
लाल दवा लगे रुई और अनायास दब गए 
बिल्लियों के बच्चे, उबड़-खाबड़ रास्तों में पड़े हुए 
जरूर आप लोगों की सजग आँखों ने देखे होंगे 

रोम और कायरा में कैसी दशा है बिल्लियों की 
सही तौर पर पता न हो फिर भी यह तो पता ही है 
कलकत्ते की बिल्लियां एक बेहद मुश्किल दौर के सम्मुख हैं 

बिल्लियों की हालत अच्छी नहीं है 
ख़बरों को अगर मीडिया ने जगह नहीं भी दी हो फिर भी 
वे इतिहास में बने रहेंगे और भूगोल में भी 

दिन में वे अंधी आँखों के सामने ही करते रहते आवाजाही 
रात भर चलता लंगड़ा-लंगड़ा कर आहत या घायल करने की प्रक्रिया 
और शाम ढले बादल डाब जाते बिल्लियों की देखा-देखी लाल दवा मल कर 
सांझ की और बढ़ जाते  

             

आखिरी कविता 

                          
जा रहा हूँ मैं बुद्ध 
इस दलहीन बौद्ध मठ से 
जा रहा हूँ आनंद या दुःख में 
पता नहीं 
चला जा रहा हूँ मैं 
चला जा रहा हूँ मुंबई, दिल्ली और कलकत्ते से भी 
 प्रेम से प्रेम न कर पाने से दूर चला जा रहा हूँ 
जा रहा हूँ गौरैया, मुरमुरा, बस के टिकिट 
जा रहा हूँ मैं ओ धुएं 
जा रहा हूँ 
चला जा रहा हूँ 
क्या रह जायेगा नहीं सोच रहा हूँ,
नहीं सोच रहा हूँ क्या छोड़े जा रहा हूँ 
पुत्र 
चला जा रहा हूँ 
नींद आएगी की नहीं पता नहीं 
चला जा रहा हूँ 
रुदन को ठेल कर उठ आ रहे हैं पत्थर 
रोक रहे हैं पहाड़ 
सब लांघ कर चला जा रहा हूँ  

{ नोट : --- अप्रकाशित पाण्डुलिपि से }



  
तुम्हारा भाग्य


तुम्हारा भाग्य बेहद सुसम्पन्न है 

क्रॉस का निर्माण पूरा किया बढ़ई ने 
लोहार ने बना ली हैं बड़ी कीलें 
माली ने भी बना लिया है कांटे का मुकुट 
इन सभी कामों के बदले वे मजदूरी पा कर खुश हैं 

अंतिम यात्रा में जो लोग तुम्हे धिक्कारेंगे 
उन लोगों ने भी अपने गले साध लिए हैं 
जबरदस्त 
सैनिकों ने भी पहन लिए हैं जिरहबख्तर, लोहे के जूते,
उठा ली हैं बर्छियाँ 
जय ध्वनियाँ उठ रही हैं शासन की 
कम्बल में लिपटे कुछ कुष्ठ रोगियों को छोड़ 
कोई भी तुम्हारे पक्ष में नहीं 
घोड़ों के नथुनों से निकल रही है गर्म भाप 
सूर्य भी प्रखर हो रहा है 
तुम्हारी छाया को भी पत्थर में चुनवा देने के लिए,

तुम्हारा भाग्य सच बेहद संपन्न है 

आसमान की ओर ताको देखो 
कोई बादल भी नहीं है जो भिगो दे तुम्हारे होंठ 
पहाड़ों के स्खलित रूखी हवा के संग  
डायनो की भयावह आवाज़ें आ रही हैं 
सांचे में ढाल कर रखा हुआ कंकाल मुंड
जिसके आँखों के कोटरों में सिर्फ तप्त 
गर्म बालू भरा है 
कहीं नहीं है कोई विलाप के चिन्ह 

इन सब के बावजूद भी क्या तुम कहोगे 
तुम्हारा भाग्य सुसम्पन्न नहीं
          

राक्षस


रोटी के लिए गूंथे हुए आटे से 
एक बच्चे ने सांप बनाया 
उसके बाद रोटी, सब्जी और दाल खा कर 
बच्चा सो गया 

सांप सूख रहा है रात की हवा में 
बच्चा सपना देख रहा है कि 
कल वह एक हंस बनाएगा 

उसके पिता और माता भी सोये हैं 
आकाश, तारा, गैलेक्सी सभी हैं निर्वाक 
एक दिन यही बच्चा 
एक भरा पूरा इंसान बनेगा 
कुछ बनाना चाहेगा 
उसे बनाने के लिए आटा, रोटी की जरूरत पड़ेगी 

इन्ही सहज बातों से 
रूप-कथाओं की शुरुआत हुई थी 
अचानक ही उसी के बीच एक राक्षस आ धमकता है 
                

मंगल ग्रह का मनुष्य


मैं लाल मेघों का मनुष्य हूँ 
लाल धूल उड़ा कर 
घोड़े पर हो सवार 
मैं युद्ध में जाता हूँ 

मेरा ग्रह मंगल है 
जिसकी आँखें लाल हैं 
युद्ध से लौटनाइस बात पर मेरा विश्वास नहीं
मेरे घावों को मरहम की भी जरूरत नहीं 
झरने दो रक्त 
हर झरते रक्त की बूँद में है 
मेरी युद्ध करने की इच्छा 

मैं लाल मेघों का मनुष्य हूँ 
सूर्य के उदय होने या डूबते समय वक़्त 
मैं विदा लेना चाहता हूँ 

मूंगे के द्वीप पर पड़ा रहेगा मेरा मृत देह  
मेरी आत्मा लौट जाएगी मंगल ग्रह में 
जिसे घेर घूम रहे हैं फोबोस और डीमोस

नोट : --- फोबोस, डीमोस {उपग्रह हैं}
  

                 

जीवन के लिए शुभकामनाएँ


मृत्यु घटित हो मृत्यु के व्यापारियों का 
मृत्यु घटित हो सजे हुए असभ्यता का 
मृत्यु घटित हो समरवाद का 

मृत्यु घटित हो युद्ध विमानों का 
मृत्यु घटित हो युद्ध पोतों का 
मृत्यु घटित हो तीर-कमान और गोलों का 
मृत्यु घटित हो ग्रेनेडों का 
मृत्यु घटित हो टैंकों का, मृत्यु घटित हो बमों का 

प्रक्षेपण अस्त्रों की भी मृत्यु घटित हो 
रासायनिक अस्त्रों , जीवाणु अस्त्रों की मृत्यु घटित हो 
मृत्यु घटित हो मृत्यु तैयार करने वाले विज्ञान की
और मृत्यु तैयार करने के दासत्व से वैज्ञानिकों की मुक्ति घटित हो 

मृत्यु हो अत्याचारों का, अत्याचारियों की मृत्यु हो 
हो मृत्यु घटित बंदी शिविरों की भी 
फायरिंग स्कवार्ड की भी हो मृत्यु 
मृत्यु घटित हो जेलों की 
मृत्यु घटित हो जेल व्यवस्था की 
घातक और गुप्त घातकों की मृत्यु घटित हो 
निष्ठुरता एवं युद्ध जिस राक्षस का भोज है 
उस समाज व्यवस्था की मृत्यु घटित हो 
मृत्यु हो बुलेट का 
मृत्यु हो बन्दूक का 
मृत्यु हो पिस्तौल का 
मृत्यु हो रिवाल्वर का 
ज्यादा अच्छा हो कि खिलौने वाला बन्दूक पर भी हो पाबन्दी 

मृत्यु घटित हो सामरिक 
मृत्यु घटित हो युद्धों का 
मृत्यु घटित हो दफ्तरों का 
मृत्यु घटित हो व्यापारियों का  



उजाले का खेल

अनेक मृत सिगरेटों की आग 
इकट्ठी की है मैंने 

असंख्य लकड़बग्घों की आँखें भी जल उठी हैं 
और कभी-कभी आईने में झलक उठती हैं 
ठन्डे मोमबत्तियों का उजाला 

जुगनू, नक्षत्र, गैलेक्सी के रफ़्तार के सामने 
यह एक आश्चर्य जनित तन्मयता का है समारोह 

और उड़ रहा है दो भारहीन लालटेन बन कर मेरी आँखें


मीता दास

सम्पर्क-

ई-मेल : mita.dasroy@gmail.com


 (इस पोस्ट में प्रयुक्त तस्वीरें गूगल से साभार ली गयी हैं.)

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