विमल चन्द्र पाण्डेय की कहानी ‘मारण मन्त्र’



विमल चन्द्र पाण्डेय


आज के युवा कहानीकारों में विमल चन्द्र पाण्डेय अपने शिल्प और कहानी के कहन के अंदाज से अलग दिखाई पड़ते हैं। आकार में लम्बी होने के बावजूद उनकी कहानियाँ हमें कहीं भी एक पल के लिए नहीं उबातीं। विमल की कहानियों में एक प्रवाह निरन्तर कायम रहता है जो हमें लगातार बाँधे रहता है। ‘मारण मन्त्र’ विमल की नयी कहानी है जो ‘पल-प्रतिपल’  पत्रिका के हालिया अंक में प्रकाशित हुई है। विमल ने इस कहानी के माध्यम से बाबाओं के अन्धविश्वासी कर्मकांडों के पैकेज का रोचक खुलासा तो किया ही है साथ ही उस आम आदमी के जीवन की त्रासदी को सफलता के साथ रेखांकित भी किया है जो आज भी संवेदनशीलता के साथ जीते हुए सब कुछ भुगतने और जिन्दगी में असफल होने के लिए अभिशप्त है। विमल आज कल फिल्म लेखन और निर्माण के महत्वपूर्ण मिशन में एक जूनून के साथ लगे हुए हैं। यही वजह है कि वे चार वर्ष बाद कोई नयी कहानी लिख पाए हैं। हमें विश्वास है कि इस सिनेमाई दुनिया में भी वे अपने लेखन की तरह ही सफल होंगे। विमल को शुभकामनाएं देते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी बिल्कुल नयी कहानी ‘मारण मन्त्र’।  

मारण मन्त्र


विमल चन्द्र पाण्डेय


उम्र के अभिनय उम्र के साथ सीखे जाते हैं।

उम्र का दुनिया से कुछ ऐसा जटिल रिश्ता है कि इस सफ़र में भीतर कुछ बदले या न बदले, बाहर के बदलावों के हिसाब से भीतर भी बदल रहा है, ऐसा बराबर ज़ाहिर करना पड़ता है। सताइस से सैंतीस या फिर सैंतीस से पैंतालिस तक दुनिया के बनाये खाँचों में ख़ुद को डाल कर बताना पड़ता है कि मैं भी सबकी तरह बदलाव महसूस कर रहा हूँ। सारी कवायदें, सारी रस्में और सारे तामझाम इसी बात को मनवाने के लिए बनाये गये हैं वरना ये इतनी छोटी सी मामूली बात है जो एक वाक्य में कह कर समाप्त की जा सकती है कि मैं ये बताते हुए बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहा हूँ कि जो मैं अठाइस साल पहले तक सोचता था, आज भी कुछ अनुभव और सबक पाने के बावजूद कमोबेश वैसा ही सोचता हूँ। लेकिन ऐसा कहने वाले को उसके आसपास के लोग यह महसूस करवाने में कोई कमी नहीं छोड़ते कि उसने ज़िंदगी के फलां-फलां अनुभव नहीं लिए इसलिए वह इस तरह की बहकी-बहकी बातें कर रहा है, बदलाव ही प्रकृति का नियम है और जिस तरह बाल सफ़ेद होते हैं और त्वचा पर झुर्रियां पड़ती हैं, उस तरह मन की परतों पर भी ज़रूर झुर्रियां पड़ती होंगी। इसी तरह हर कोई होंगीवाले रथ पर सवार अपने जीवन के रास्तों को उसी तरह काटता है जैसा वह आस-पास के लोगों को देखता है। कोई बिरला ही ऐसा होता है जो किसी होगाया होंगीवाले क़यास पर ध्यान न दे कर किसी एक क्षण में अपने जीवन का कोई अलग फ़ैसला लेता है और पूरे संसार से अलग दिखने का ख़तरा उठाते हुए भी जीवन भर उस पर क़ायम रहता है। मानिक की उम्र में वह क्षण सत्रह की उम्र में आया था जो वैसे तो कई महीनों में विस्तारित था लेकिन किसी एक ख़ास क्षण को पकड़ने की कोशिश करें तो वह ऐसे समय आया था जब वह इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं कर सकता था।

मानिक अपने दोस्तों के साथ गिल्ली डंडा खेल रहा था। खेल के शहंशाह एक समवय दोस्त ने मारा तो गिल्ली बहुत दूर जा कर गिरी। वहाँ दूर तक घनी झाड़ियां और आम व कदम वग़ैरह के पेड़ थे। मानिक ही सबसे फुर्तीला था और झाड़ियों में गिल्ली खोजने की ज़िम्मेदारी उसी पर थी। वह तेज़ी से दौड़ता हुआ झाड़ियों में गुम हो गया था। दोस्त इंतजार में बीड़ी जलाने लगे जो उन्होंने अपने बुजु़र्गों से बतौर विरासत हासिल किया था।

मानिक जैसे ही झाड़ियों में दस कदम गया होगा, सामने शुभी खड़ी थी। शुभावती का शुभी उसने खुद कर लिया था और अपनी दुनिया में अपनी शुभी से खूब सारी बातें करता था। सिलसिला आगे बढ़ कर इतना आ गया था कि उसके जाने वाले रास्तों पर लगातार मुस्तैदी से खड़ा रह कर मानिक ने बिना कुछ बोले ये ज़ाहिर कर दिया था कि वह रास्ते में नहीं रास्ते से गुज़रने वाली में दिलचस्पी रखता है। इधर कुछ दिनों में आख़िरेक बार में तो उसे शुभी के मुस्कराने का भी भ्रम हुआ था। वह शुभी के पाठशाला से लौटने के समय नहर वाली सड़क पर साइकिल चला रहा था। वह चलती हुई आती तो उसके सामने से साइकिल निकालता और उसे जी भर करीब से देखता। उस दिन जब मोड़ पर उसे शुभी दिखायी थी, उसने उसकी तरफ साइकिल चलाना शुरू किया। जैसे ही वह शुभी के नज़दीक पहुंचने वाला था, उसकी साइकिल की चेन अजीब सी कर-कर की आवाज़ करती हुई पहले फंसी फिर कट्ट की आवाज़ के साथ टूट गयी। शुभी पलटी थी तो दोनों की आंखें अचानक एक दूसरे से टकरा गयी थीं। शुभी कुछ इस तरह सकुचायी जैसे दोनों की मचलती देहें एक दूसरे से छू गयी हों। उसके पूरे शरीर में एक मीठी सिहरन सी उठी थी और वह मुस्करा दी थी। एक पैर ज़मीन पर टिका कर बिगड़ी साइकिल पर खड़ा मानिक पत्थर हो गया था। अब उसे फिर से इंसान बनाने के लिए शुभी के स्पर्श की ज़रूरत थी।

मानिक को उसकी मुस्कराहट याद आयी जो पिछले दो तीन दिन से उसके साथ है। उसने गौर से शुभी को देखा। उसे लग रहा था कि वह कोई समय यात्री है जो एक समय से दूसरे समय में तैर रहा है। यह विचार पूरी ज़िंदगी में उसे पहली बार आया था और फिर अक्सर आने लगा। सिर्फ़ एक इस विचार को जी कर वह दूसरों से अलग हो गया। उसके दोस्त और उसका पूरा कस्बा एक तयशुदा तरह से बढ़ा लेकिन वह थोड़ा दूसरे तरीके से बड़ा होने लगा था। उसने अपने आप को कुछ इस तरह औरों से अलग मानना शुरू कर दिया था जिसका विश्वास उसे खुद ही कम हुआ करता था।

उसे लगा अपने प्यार को सामने पा कर प्रेमी का दिमाग अपने सबसे तीव्रतम आवेग के साथ काम करता है और क्या करना चाहिएजैसे सवालों का जवाब विचारों के उस भंवर से ढूंढ़ना बेहद मुश्किल होता है। उसने एक बार दो बार तीन बार अपनी नज़रें शुभी से हटाने की कोशिश की लेकिन उसकी नज़रें फिलवक्त उसके मन का हाल शारीरिक गतिविधियों के ज़रिये बताने की मुहिम पर थीं। वह सोचा कि पलटे और वापस चला जाये लेकिन यह विकल्प मौजूद सभी विकल्पों में सबसे कमज़ोर था। शुभी चुपचाप खड़ी थी और उसके कंधे के पीछे दूर झाड़ियों के बाहर उसके पक्के घर की पीली दीवार दिख रही थी। उसने मन कड़ा किया और आगे बढ़ कर शुभी का हाथ थाम लिया। शुभी ने झटके से हाथ छुड़ाया और दो कदम बढ़ कर उसकी ओर पीठ कर खड़ी हो गयी। वह एक दो पल इंतज़ार करने के बाद उसकी ओर बढ़ा और उसके कंधे सहलाने लगा।

‘‘हमारी....साइकिल....ठीक हो गयी।’’ उसने शुभी के कान में धीरे से कहा। उसके बोलने से शुभी के कान पर हल्की हवा उड़ी और शुभी ने एक लम्बी सांस ली। वह शुभी के कंधों को सहलाता हुआ उसकी बांहों को सहलाता हुआ नीचे उसकी हथेलियों तक आया और उसकी हथेलियां पकड़ लीं।

‘‘ऊं...?’’ शुभी ने बात नहीं सुनी क्योंकि वह बात से उड़ने वाली भाप में खो गयी थी।
‘‘हमारी साइकिल......वो ठीक हो गयी।’’

‘‘हूं......।’’ शुभी ने आंखें बंद कर खुद को थोड़ा पीछे धकेलते, खुद को मानिक से सटाते हुए नशीली आवाज़ में कहा।

‘‘यहां क्या....करने.....आयी ?’’ मानिक ने माहौल को सहज बनाने की अपनी कोशिश के ज़रिये यह सवाल पूछा और शुभी की गरदन के पीछे चूम लिया। शुभी सिहर गयी। वह भी उसकी कोशिश में साथ देना चाहती थी इसलिए उसने जवाब दिया।

‘‘हम कदम....तोड़ रहे थे। एक ढेला मारे....तो एक कदम.....टूट कर इधर ही गिरा।’’

शुभी ने छोटी सी बात कहने में ख़ासा वक्त लिया। मानिक ने जैसे ही उसकी पीठ पर कपड़े के ऊपर से चूमा, वह मचल कर पलट गयी और उससे लिपट गयी। सब कुछ इतनी तेज़ी से हो रहा था जिस गति से मानिक सपने में भी नहीं देख पाता था। पहले तो उसे लगा यह किसी और समय में घटित हुआ है और अभी वे दोनों सिर्फ़ किसी की बातों में इसे दोहरा रहे हैं लेकिन मानिक अब इसे जहाँ तक जा सके, पूरा करना चाहता था। यही हालत शुभी की भी थी। उसने खुद को उस क्षण की खुशनसीबी पर छोड़ दिया था। मानिक ने उसका चेहरा सामने किया और दोस्तों से अर्जित किये गये ज्ञान की पीठ पर सवार हो कर अपने होंठों को उसके होंठों की ओर ले चला। ये सफ़र वैसे तो कुछ क्षणों का था लेकिन मानिक के होंठों से इसकी मियाद पूछी जा सकती थी। एक-एक मिली-सेंटी-मीटर चलने में मानिक के होंठों को बहुत समय लग रहा था। शुभी उसे पसंद करती है या नहीं, इस बात को ले कर उसके भीतर बहुत उहापोह चलती रहती थी लेकिन उस क्षण में शुभी की बंद आँखों ने उसे बताया कि वह उसे ख़ुद से भी ज़्यादा प्यार करती है और उससे कहीं अधिक भरोसा करती है। कई सदियों का सफ़र तय कर के जब उसके होंठ शुभी के होंठों टकराये तो मानिक को एक साथ कई नदियों के समन्दर में गिरने की आवाज़ आयी। उसे उसी क्षण पता चला कि दुनिया में सभी स्वाद सिर्फ़ खट्टे मीठे या कड़वे नहीं होते, बहुत कुछ ऐसा है जिसे सिर्फ़ वही महसूस करेगा जिसके हिस्से में वो नेमत आती है। मानिक के होंठ शुभी के होंठां को चूम रहे थे और उसी पल शुभी ने मानिक के होंठों को अपने होंठों में भरने की कोशिश की। न तो मानिक को इस तरह होंठों को होंठ में भरने के बारे में कोई जानकारी थी और न ही शुभी ने पहले कभी ऐसी कोई कल्पना की थी लेकिन यह एक ऐसा क्षण था जिसमें प्रकृति भीतर समाहित हो कर स्वयं अपने कदम उठाती है। मानिक शुभी के इस कदम से जितना सिहर उठा था उससे कहीं अधिक तेज़ शुभी के कलेजे से धक-धक की आवाज़ आ रही थी। आगे क्या होगा, इसका अंदाज़ा दोनों में से किसी को नहीं था और दोनों ही अगले क्षण होने वाली घटना का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन तभी अचानक दो घटनाएं और हुईं, लगभग एक साथ। शुभी के घर से उसकी माँ की तेज़ पुकार आयी जिसमें गुस्सा और झुंझलाहट थी और दूसरी तरफ़ मानिक का सबसे घनिष्ठ दोस्त संपत उसके नाम में गालियों का विशेषण जोड़ता झाड़ियों में प्रकट हुआ। संपत के सामने उसके वयस्क जीवन का अब तक का सबसे हैरतअंगेज़ दृश्य मौजूद था। उसका सबसे अजीज़ दोस्त एक लड़की की बाँहों की गिरफ्त में फँसा उसके होंठ चूम रहा था। ठीक उसी पल ये तय हो गया था कि ये दृश्य ज़िंदगी भर उसकी यादों का हिस्सा होगा और जब वह पूरी उम्र काट कर दुनिया-ए-फ़ानी से रुखसत हो रहा होगा तो पूरी ज़िंदगी के जो दो चार ख़ास पल बंद होती आँखों से गुज़रेंगे, उनमें ये शीर्ष तीन में तो रहेगा ही रहेगा। इधर दो जोड़ी होंठ इस एहसास के साथ अलग हो गये थे कि अभी कुछ और ख़ास होना बचा था जो पूरा नहीं हो पाया। दोनों प्यासे होंठ अपनी-अपनी दिशाओं में घूम गये तो धीमी गति में चल रहा दृश्य गतिमान हुआ। मानिक तुरंत संपत का हाथ पकड़ कर झाड़ियों से बाहर हो गया और शुभी वहाँ से एक दो कदम बतौर सबूत बीन कर तेज़ कदमों से घर की ओर भागी।

संपत और मानिक बचपन के दोस्त थे और बचपन में उनकी दोस्ती की सबसे अहम कड़ी ये थी कि दोनों साथ में तालाब में मेढक मारा करते थे। गाँव में कोई सनकी बाबा था जो बच्चों को एक मेढक के पीछे चवन्नी दिया करता था। उस ज़माने में संपत और मानिक इस नये धंधे में ढेर सारा पैसा कमा कर सभी दोस्तों से आगे थे। इस उम्र में अब संपत और मानिक के बीच शराब बची है जो मानिक अकेला होने के कारण कभी भी पी सकता है और संपत को चौबीस से बहत्तर घंटे की बीवी की नाराज़गी झेलनी पड़ती है। संपत रोज़ नहीं पीता लेकिन उसको इतना अधिक पीने की आदत पड़ी हुई है कि जब भी पीता है, उस रात को अपनी याद्दाश्त से बाहर कर देना पहली शर्त मानता है। शराब रात के आनंद के बाद सुबह उसे बेहद कष्ट देती है जिसके इलाज के लिए वह दारू लाने के साथ तीन-चार नींबू ज़रूर लाता है। सुबह के लिए नींबू वह खुद बचा लेता है क्योंकि उसे पता है कि सुबह के भयानक सिरदर्द का इलाज या तो महँगी शराब है या फिर नींबू।

पहली बार मानिक ने अठारह की उम्र में तब पी थी जब शुभी की शादी हो रही थी और संपत दूर खेत में बनी एक अंधेरी मचान पर शराब की बोतल खोले बैठा उसे जाति बिरादरी और औकात जैसे शब्दों का अर्थ बता रहा था। पहले तो कुछ दिन उसके दिमाग में विध्वंसक और क्रूर विचार आये लेकिन एक दिन अचानक एक मामूली से दृश्य ने उसे रूमी बना दिया। उसके मन में एक ख़याल समय के मखमली पंख पर बैठ कर आया कि जिसे प्रेम करो, उसकी ख़ुशी से बड़ा कुछ नहीं। उसका मिल जाना भी एक बड़ा मसला है लेकिन अगर वो आपको नहीं मिली तो भी आप जो कर सकते हैं वो है उसकी खु़शी का ख़याल। मानिक ने फिर अपने घर वालों के सामने हमेशा के लिए बिना शादी रहने का ऐलान कर दिया। पहले इसे किसी आम किशोर का फितूर समझा गया लेकिन पैंतीस साल की उम्र हो जाने तक जब वह अपनी भीष्मनुमा प्रतिज्ञा पर डटा रहा तो उसके माता पिता ने अपनी ज़िद भूल जाने में भलाई समझी। वे उम्र के उस पड़ाव पर थे जहाँ बिना बहुत कुछ बोले कहे भी चीज़ें समझ में आ जाती हैं। बाप ने मरते हुए उसका हाथ पकड़ा था और कहा था, ‘‘बेटा, मैं नहीं जानता तेरा शादी नहीं करने का फैसला सही साबित होगा या गलत लेकिन मैं इतना ज़रूर कहूंगा कि अब तक अगर तूने शादी नहीं की है तो आगे तो मत ही करना।’’ उनके मरने के कुछ समय बाद माँ भी चली गयी और मानिक का संकल्प और दृढ़ हो गया। समय गुज़रने के साथ उसके दोस्तों के ओहदे में पति और फिर बाप नाम की तरक्की हुई लेकिन मानिक का चूल्हा चालू ढाबों और धूल उड़ती हलवाई की दुकानों पर ही निर्भर रहा।

इस अधूरे चुम्बन के अलावा उसकी पूरी उम्र में एक और बात याद रखने लायक थी वो ये कि बाबाओं के लिए पगलाये इस गाँव में उसकी दुनिया उजड़ने से कुछ ही समय बाद एक अनोखा बाबा आया था जो शुभी के बाद उसके जीवन की दूसरी महत्वपूर्ण घटना बना था। शुभी की शादी को कुछ ही महीने गुज़रे थे और मानिक की मानसिक हालत अजीब सी थी। उसका नाम खड़ेश्वरी बाबा था। वह खाता, हगता, नहाता, सोता सब खड़े-खड़े था। किशोर रातों को छिप कर उसके तम्बू में झांकने जाते, इस विश्वास के साथ कि अकेले में वह ज़रूर बिस्तर पर टिक जाया करता होगा। लेकिन हर बार लड़कों को निराशा हुई क्योंकि बाबा खड़े-खड़े नींद ले रहा होता था। गिरने से बचने के लिए वह अपनी लम्बी चोटी को पास की दीवार से बाँध दिया करता था। लड़के आख़िरकार गाँव वालों की तरह उसके भक्त हो गये। मानिक को संपत उस बाबा के पास ले गया था। बाबा ने मानिक को देखते ही गले लगा लिया था और उसके नितम्बों पर हल्की सी चूंटी काट ली थी। मानिक को लगा बाबा के अजीब व्यक्तित्व की तरह इनका आशीर्वाद देने का तरीका भी अलग है। फिर भी उसने बाबा का हाथ ज़ोर से झटक दिया। बाबा उससे बहुत निकटता जताते। उसने बाबा को बताया कि वह आजकल ऐसी मानसिक हालत में है कि पूरी दुनिया में आग लगा देना चाहता है। बाबा ने उसे आग लगाने के लिए एक अचूक मन्त्र देने की बात की तो मानिक को अँधेरे में एक खूशबू आयी। मानिक उस मन्त्र को सीखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था। बाबा ने उसे आधी रात को बुलाया और वह संपत को लेकर उनके तम्बू में पहुँचा। ठण्ड की उस रात में तम्बू के बाहर संपत ने खड़े हो कर पहरा दिया और मानिक ने नग्न होकर बाबा से मारण मन्त्र सीखा। उसे सारे कपड़े उतार कर जलती आग के सामने बाबा की गोद में बैठना था और इस दौरान मानिक को काफी परेशानियाँ हुईं लेकिन बाबा ने उसे पहले ही बता दिया था कि ये मन्त्र किसी का विनाश करने वाला है इसलिए इसको किसी गलीच तरीके से ही सिद्ध किया जा सकता है। रात भर चले हवन में मानिक की हालत ख़राब हो गयी लेकिन जब सुबह का उजाला हुआ तो वह एक ऐसा मन्त्र सीख चुका था जिसका पुराणों और धार्मिक कहानियों में खूब मिलता है लेकिन कोई जल्दी उसे सिद्ध नहीं कर पाता। वह मारण मन्त्र सीख चुका था जिसमें वह सिर्फ़ एक मन्त्र के सहारे एक नींबू के ज़रिये दूर बैठे किसी इंसान की हत्या कर सकता था। उसकी तबीयत तीन-चार दिनों तक ख़राब रही जिसके बारे में बाबा में ने उसे पहले ही बताया था कि साधारण इंसान में इस मन्त्र को संभालने की ताकत नहीं होती इसलिए कुछ दिनों शरीर खुद को समायोजित करता है।

इस मन्त्र का उपयोग मानिक ज़मीदार के छोटे भाई मनहर यानि शुभी के पति पर करना चाहता था। उसके मन में आग लगी थी कि शुभी ने जात-पात वाली बेवकूफी के ख़िलाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठायी। अगर वह भी चाहती तो दोनों गाँव छोड़ कर कहीं बाहर चले जाते और शादी कर लेते। उसने सोचा कि मन्त्र का उपयोग मनहर पर करने से पहले एक बार शुभी को देख लिया जाये। वह चुपके से हवेली की तरफ गया और दूर से सामने से गुज़रने लगा ताकि हवेली का बाग़ वाला हिस्सा दिखायी दे जाये। मनहर कुर्सी पर बैठे थे और शुभी ख़ूबसूरत सी लाल साड़ी में उनके लिए बड़े आदमियों वाली चाय बना रही थी जिसमें चीनी दूध सब अलग से मिलाया जाता है। ये चाय मानिक को भी एक बार पीने का मौका मिला था जब मनहर ने ये पता चलने पर कि शुभी और उसका कर्मचारी मानिक पहले से दोस्त हैं, उसे हवेली बुलवाया था और खूब सारी बातें की थीं। उस दिन की फँसी हुई फाँस मानिक के सामने थी लेकिन तभी उसकी नज़र शुभी के चेहरे पर गयी। वह बहुत ख़ुश दिख रही थी। मनहर ने कुछ कहा जिस पर शुभी ने हँसते हुए मनहर की चाय वाला कप ले कर एक घूँट लिया। उसके बाद वह चाय उसने मनहर के होंठों में लगा दिया और ज़ोर से खिलखिलाने लगी। ऐन उसी क्षण मानिक के भीतर से नफ़रत का लोप हो गया और उसके दिमाग में कुछ ऐसे ख़याल आने लगे जो बड़े-बड़े सूफ़ी संत अपनी शायरी और कविताओं में कहा करते हैं।

उसने बिना दिये ख़ुद को एक ज़िम्मेदारी दे दी कि उसे इस हँसी को हमेशा संजो कर रखना चाहिए। ये हँसी उसकी न हो कर भी अगर उसकी ज़िंदगी के बाहरी वलय तक में भी शामिल रही तो वह पूरी ज़िंदगी जी सकता है। उसे ज़िंदगी से उकताने की कोई ज़रूरत नहीं। वो मेरी नहीं कम से कम वह है तो सही। और मेरे क़रीब न सही ख़ुश तो है। उसने मारण मन्त्र का प्रयोग करना हमेशा के लिए टाल दिया लेकिन वह मन्त्र उसके दिमाग के सबसे भीतरी कोने में एकदम सुरक्षित था। कभी-कभी दोस्तों या पट्टीदारों के बीच झगड़ा होता या फिर गाँव के दबंगों से भिड़ंत हो जाती, मानिक के दिमाग में तुरंत मन्त्र के शब्द नाचने लगते। गुस्से में वो सोचता कि फलाँ आदमी से झगड़ा हुआ है उसको मार देता हूँ। लेकिन गुस्सा थोड़ा कम होने के बाद वह ख़ुद को उस आदमी की जगह रख कर सोचने लगता। ‘‘जाने दो यार, मार दूंगा तो उसकी दो बेटियाँ हैं जिनकी शादी करनी है। पत्नी है जो बीमार रहती है। उनका क्या होगा ?’’ थोड़ी देर सोचने के बाद उसे वह आदमी अपने से भी बुरी हालत में दिखायी देने लगता और उस पर तरस खा कर वह उसे माफ़ कर देता। बाबा ने उसे बताया था कि मन्त्र का प्रयोग सिर्फ़ एक बार किया जा सकता है। उस एक बार की कल्पना वह अपने दिमाग में नहीं कर पाता था लेकिन ये तय था कि उसी एक बार के प्रयोग के लिए वह इसे बचा रहा था। उसकी ज़िंदगी के वजूद से वह मन्त्र इस तरह जुड़ गया था कि उसके दोस्त इस बात के लिए उसका सम्मान करते। संपत को एक बार मंडी में अनाज माफ़ियाओं ने ख़ूब मारा था जब उसने उनके तय किये हुए रेट का विरोध किया था। मानिक गुस्से से पागल हो गया था और रात को शराब पीने के बाद नींबू हाथ में उठा लिया था और मारण मन्त्र पढ़ने ही वाला था कि संपत ने उसे रोक दिया। संपत ने कहा कि कोई बात नहीं, वह ख़ुद जा कर उस दबंग को सबक सिखायेगा, उसके लिए मन्त्र बरबाद करने की ज़रूरत नहीं। मानिक बहुत रोया और दोनों दोस्तों ने सुबह तक पी जिसकी सुबह उठते ही संपत ने तीन गिलास नींबू पानी पी कर चुभ रहे सर-दर्द पर काबू पाया था।

संपत ने उसे समझाया था कि ज़मींदारी की महान परम्परा में एक दूसरे की जायदाद छीनने का बहुत चलन है और मनहर की हवेली का केस उनके पट्टीदारों से चल ही रहा है। हो सकता है किसी दिन इस मन्त्र की ज़रूरत शुभी को पड़े, इसे उस दिन के लिए बचा के रखना चाहिए। संपत और मानिक अगले दिन मंडी गये और वहाँ जा कर उस दबंग किसान की अच्छी पिटाई की। इस ख़ुशी में वहीं मंडी में ही छक कर शराब भी पी गयी। देसी शराबखाने में उस दिन चुक्कड़ में शराब पीता मानिक बहुत ख़ुश था। उसके दिमाग में वही चुम्बन वाली बात फिर से कई लाखवीं बार गूँज रही थी और संपत सबसे अच्छे दोस्त की तरह उसकी बात सुन रहा था। ये बात सुनते सुनते संपत को बीस साल हो गये थे लेकिन वह हर बार पहली ही बार की तरह मुस्कराता था। मानिक और संपत की दोस्ती के इतने गहरे होने की एक वजह ये याद भी थी।

शराब के नशे में संपत की सूई उस दिन एक ही रिकॉर्ड पर अटक गयी कि मानिक सच्चा प्रेमी है और उसकी ख़ुद की बीवी मानिक को बहुत पसंद करती है। मानिक ने हँस के बात टालनी चाही कि वह चंद्रकला को भाभी नहीं बहन की नज़र से देखता है और उसका बहुत सम्मान करता है। संपत रोता रहा और कहता रहा कि मानिक तू ही असली प्रेमी है जो बीस साल से अपनी शादी हो चुकी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा है। मानिक ने बात काटनी चाही कि वह उसका इंतज़ार नहीं कर रहा। वह सिर्फ़ इतना चाहता है कि वह ख़ुश रहे। उसने सिर्फ़ इसीलिए शादी नहीं की कि शुभी की तरह न तो उस पर बड़ी जाति के परम्परागत परिवार में जन्म लेने का दबाव था और ना ही लड़की होने का। आज उसे ये फै़सला एकदम सही लगता है कि उसने शादी नहीं की, कम से कम उसकी यादों की तितलियाँ तो बेरोक-टोक पकड़ छोड़ सकता है। संपत ने रोते हुए कहा कि सभी दोस्तों की बीवियाँ मानिक के नाम के ताने मारती हैं और मानिक गाँव से कस्बा बनने को आतुर इस क्षेत्र का स्थानीय मजनूँ है। मानिक मजनूं के बारे में बहुत तो नहीं जानता था लेकिन फिर भी इसे अपनी तारीफ़ समझ शर्मा गया। उस रात के बाद से मानिक को अचानक ही कभी-कभी लगने लगता था कि एक दिन वह सुबह उठ कर घर से निकल कर कुंए के पास जायेगा और शुभी सामने खड़ी होगी। उस दिन बीच के पच्चीस पचास जो भी हैं, साल ग़ायब हो जाएंगे और उनके इर्द-गिर्द फिर से झाड़ियाँ उग आयेंगी। दोनों के शरीर फिर से उसी दिन जैसे हो जाएंगे जिस दिन बारिश के बाद धूप निकली थी और दूर कहीं मेढकों के टर्र-टर्र की आवाज़ ये दावा कर रही थी कि पानी वाले दिन क़रीब हैं। गिल्ली डंडे का खेल माहौल में शोर बन कर खिल रहा होगा और शुभी के घर में बन रही दाल में जीरे के छौंके की महक इतनी तेज़ होगी कि खेतों तक पहुँच रही होगी। दाल की वह महक बता रही होगी कि यही दुनिया रहने के लिए सबसे खू़बसूरत जगह है और उनकी उम्र जीने के लिए सबसे ख़ूबसूरत पड़ाव। उन दोनों के होंठ फिर से अपना अधूरा काम करने के लिए आगे बढ़ेंगे। संपत को भले वो चुम्बन वाला दिन किसी सपने की तरह याद आता हो, मानिक को वही दिन असली लगता है। उसके बाद बाकी की ज़िंदगी उसे ज़रूर किसी सपने की तरह लगती है। उसे लगता है जैसे ही वो आयेगी, सब कुछ बदल जायेगा और वे अपना अधूरा चुम्बन पूरा करेंगे। उस समय उन दोनों की शक्ल भी ज़रूर बदल जायेगी। उस समय में कितनी ख़ूबसूरती थी, उसे फिर से जीने का मौका ज़रूर मिलेगा। दुनिया का दस्तूर इतना एकरस नहीं हो सकता। ये दुनिया तो बहुत रंग रंगीली कही जाती है। ये भी कोई बात है कि एक उम्र निकल जाये तब उसके निकल जाने का पता चले। जब-जब जो-जो समय सामने हो, उसका एहसास उसके निकल जाने के बाद हो। ये क्या तरीका है कि किसी चीज़ को महसूस करने के लिए एक उम्र चाहिए। मानिक अपने ख़यालों को झटक कर ख़ुद को ये समझाता कि वो ऐसा कुछ नहीं चाहता जैसा उसका दिमाग उसे समझा रहा है। वह सिर्फ़ यही चाहता है कि शुभी, उसका प्यार, उसके जीवन की एकमात्र इच्छा शुभी हमेशा ख़ुश रहे।

वह हमेशा उसे अपने सामने ख़ुश देख सके, इसका रास्ता उसने निकाला नहीं था। वो मौका बन कर ख़ुद उसके पास आ गया था। ज़मींदार साहब का लकड़ियों का बड़ा काम था। आस-पास के जंगल के सभी अधिकारी उनके पालतू थे और वह बड़ी आसानी से शीशम, सागौन और साखू की लकड़ियों को अवैध तरीके से कटवा कर बाहर भिजवाते थे। ये काम सालों से चल रहा था और हर चरण पर योग्य आदमी फिट होने के कारण इसमें कभी कोई समस्या नहीं आयी थी। अचानक ज़मींदार साहब का मैनेजर मलूक हैजे से मर गया। पता नहीं कहाँ से मानिक की बात निकली और ये बात उछली कि गाँव के चुनिंदा मैट्रिक लड़कों में मानिक भी है जो कमाने के लिए शहर नहीं गया। गाँव के ज्यादातर लड़के पच्चीस की उम्र पार करते महानगरों में जीविका तलाशने चले गये थे और गाँव में गिनती के लड़के बचे थे। मानिक को शुभी की मौजूदगी और संपत को अपने गाँव से बहुत प्रेम था। उसने मानिक को कहा था, ‘‘देख भाई, ये तो तय है कि जो कमाने गये हैं वो भी करेंगे मिस्तरीगिरी या ड्राइवरगिरी, उससे वो हमसे वहाँ थोड़ा अधिक ज़रूर कमाएंगे लेकिन वहाँ उनका खर्चा भी होगा। हम लोग यहीं कुछ करते हैं और अपने गाँव के होकर रहते हैं।’’ इसके बाद ही मानिक एक दिन ज़मींदार साहब की लकड़ियों के काम का इंचार्ज हो गया और संपत उसका सहायक जैसी कोई चीज़ हो गया। अब मानिक को लगा कि उसकी जिंदगी में कोई साध बाकी नहीं बची। हर रोज़ उसकी सुबह पूजा करने से होती जिसमें वह शुभी के लिए और उसके पूरे परिवार के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता। अपने लिए उसने कभी ईश्वर से कुछ नहीं माँगा। उसे अपनी किस्मत पर कभी भरोसा नहीं रहा था और उसे जितना भी मिला था उसे ही अपनी औकात से ज़्यादा मानता था। वह अपने जीवन के लिए कभी-कभी तो इस कदर शुक्रगुज़ार हो जाता कि शराब के नशे में रो पड़ता था और ऊपर मुँह उठा कर कहता, ‘‘तू कितना दयालु है जो मेरी ज़िंदगी उजाड़ के भी उजड़ने नहीं दी। उसे हमेशा ख़ुश रखना।’’

लेकिन समय को किसी ने पट्टे पर नहीं ख़रीदा। समय ही इस दुनिया का ईश्वर है और ईश्वर समय के अलावा कुछ नहीं हो सकता क्योंकि यह कुछ न हो कर भी हमारे क्षण-क्षण में मौजूद है। यह आपको दिखायी भले न दे, आपके पैदा होने से आज तक का हिसाब किताब इसने ही रखा है और आप लाख सिर पटक कर मर जाएं, यह आपको आने वाले समय के बारे में कुछ नहीं बताएगा जैसे आपका ईश्वर आपको कुछ नहीं बताता। यह हर किसी का हिसाब किताब करता है और इसकी मार से कोई नहीं बच सकता। ताकतवर से ताकतवर और कमज़ोर से कमज़ोर जो भी हैं इसी की वजह से हैं और अगर आप पर इसकी कृपा है तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आप अगर धार्मिक इंसान हैं और बातों-बातों में कहते हैं कि समय बहुत क्रूर है तो सावधान हो जाइये, आप किसी और को नहीं, ईश्वर को ही गालियाँ दे रहे हैं। जिस दिन आप इस बात को समझ जायेंगे उस दिन किसी ईश्वर से नहीं सिर्फ़ समय से डरेंगे। मानिक ये बात नहीं समझता था इसलिए वह ईश्वर से बातें करता था, उनसे प्रार्थना करता था और उनसे डरता था।

सबके साल एक साथ ही गुज़रते थे लेकिन मानिक का समय बाकी दोस्तों से अलग था। संपत के तीन बेटियाँ हो गयी थीं और चौथे नम्बर पर आख़िरकार बेटे की उसकी तलाश पूरी हुई थी। सरकार बदलने के साथ कुछ नियम भी बदले थे और कुछ नीयतें भीं। एकाध कड़क अधिकारी आ जाते तो ज़मींदार साहब का ये धंधा काफी समय तक या तो बंद रहता या फिर मंदा रहता। बाकी धंधों में उन्हें पहले से घाटा हो रहा था और ये लकड़ी वाला धंधा ही उनकी समृद्धि के भ्रम के बचे रहने का बायस था। इसके प्रभावित होने से उनकी शाही हवेली की पुरानी दीवारों की दीमक सामने आने लगी थी। बड़े ज़मींदार जी शराब पीने से ही मरे थे। खू़ब पीने के बाद एक दिन उन्हें अचानक हार्ट अटैक आया और वह कूच कर गये। मनहर के बड़े भाई महेश भी पीने के लिए दूर-दूर तक विख्यात थे और नयी ख़बर थी कि पीने पिलाने में विश्वास न रखने वाले खेलों के शौकीन शरीर से फिट मनहर को इस खानदानी नशे ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। काम कई महीनों बंद रहता तो मानिक और संपत के साथ कई मज़दूरों की भी हालत ख़राब रहती। मानिक और संपत ने ऐसे दिनों के लिए एक आटा-चक्की डाल ली थी जिसे वैसे तो मानिक ही चलाता था लेकिन अब यही चक्की दोनों की बैठकी का अड्डा थी। इससे उनका काम आसानी से तो नहीं, खींचतान के चल जाता था।

Anthony Hopkins painting Common Man
 
जैसे बुरी बातें अपनी जगह हवाओं के जरिये बहुत तेज़ी से बना लेती हैं वैसे ही किसी के बारे में कुछ ऐसी बातें भी बहुत जल्दी लोगों के जे़हन में जगह पा जाती हैं जिन पर अपने मुफ़लिस दिनों में खुल कर हँसा जा सके। किसी की किसी बात को बेवकूफ़ी समझने पर अपने समझदार होने का एहसास पुख़्ता होता है। इंसान की फितरत ख़ुल कर हँसना यूं ही नहीं है। यही एक चीज़ है जो लोगों को मरने से बचाये रखती है। रोने और हँसने की जो नेमत इंसान ने पायी है, उसकी पूरी पीढ़ी का विकास इन्हीं दो बातों के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है। मानिक की बातों पर जहाँ उसके दोस्त और उनकी बीवियाँ उसका सम्मान करतीं, वहीं गाँव के कुछ लोग इसी बात पर पीठ पीछे उसका मज़ाक उड़ाते और हँसते कि मानिक को आज से सौ डेढ़ सौ साल पहले पैदा होना चाहिए था। कुछ लोग उसके व्यक्तित्व में सबसे मारक चीज़ मारण-मन्त्र को बताते तो कुछ थोड़ा पढ़ने सोचने वाले लोग इस मन्त्र को उसका मानसिक फितूर बताते। मानिक को इन सब बातों का पता था और जब धीरे-धीरे संपत को छोड़ उसके लगभग सभी दोस्त शहरों में कमाने निकल गये तो मानिक भी अपने काम में थोड़ा व्यस्त होने लगा। ज़मींदार साहब के काम को वह पूरी मेहनत और स्वामिभक्ति से करता था। जब उसने काम छोड़ कर संपत के साथ आटा-चक्की डाली तो महेश ने आधिकारिक तौर पर धंधा बंद होने की घोषणा कर डाली थी और लगे हाथों मानिक के बीस सालों की नौकरी के सम्मान में उसे एक बोतल शराब भी दी थी। काम छूट जाने की वजह से मानिक शुभी को रोज़ाना देखने से वंचित हो गया था। हवेली की बिगड़ती हालत की वजह से मानिक ने उस तरफ जाना भी कम कर दिया था। यह ज़रूर हुआ कि उसने चक्की पर भी एक तरफ भगवान की कुछ मूर्तियाँ रख कर एक कोना बना दिया था जहाँ वह अक्सर ईश्वर से प्रार्थना मांगा करता था कि हवेली के हालात सुधर जाएँ और मनहर बाबू शराब पीना बंद कर दें।

लेकिन हवेली के हालात सुधरने के लिए नहीं बिगड़े थे। बरसों की छिपाई समृद्धि और सौम्यता की परत जब उतरनी शुरू हुई तो उतरती ही गयी। हवेली पर बाहर शहर से आये कुछ नये मेहमानों की छाया पड़ी जो हवेली को ख़रीदने के तलबग़ार थे। गाँव में रेल पटरी बिछ जाने की वजह से इसका तथाकथित विकास नज़दीक था और बरसों से संभाली गयी भव्यता को अब ज़मींदार साहब का परिवार नहीं संभाल पा रहा था। हालाँकि हवेली पर नज़रें गड़ाए बैठे पुराने रिश्तेदारों को मनहर और महेश ने इस बार भगा दिया था लेकिन वे समझ चुके थे कि वे अपना अस्तित्व भले ही बचा लें लेकिन अब पुरानी बात कभी नहीं आ सकती। मनहर के लगातार शराब में डूबते चले जाने की वजह से शुभी के चेहरे की बुझती चमक पर भी उसकी छाया पड़ी थी। जितनी रातें मनहर अपनी पुरानी शौकत के चले जाने के ग़म में जाग कर शराब के साथ बिताते, वे सभी रातें शुभी की आँखों के नीचे इकट्ठा होती जातीं। गाँव में दबी आवाज़ में चर्चा होने लगी थी कि मनहर अपनी पत्नी पर हाथ भी उठाने लगे हैं। हालाँकि इस बात को मानिक ने अफवाह की तरह लिया था और एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया था। मनहर ने महेश के उलट अपने बटहिया पर दिये गये खेतों में काम करने वाले किसानों से भी दुर्व्यवहार किया था और एक दिन एक किसान को उसके ही जोते गये खेत में पटक-पटक कर मारा था। सुबह ही उन्होंने शराब खूब पी ली थी और अपने खेतों की तरफ से गुज़र रहे थे। उन्होंने देखा कि अधिया पर उनका खेत जोतने वाला एक किसान अपने दोस्तों के साथ बैठा ताश खेल रहा था और इसी बहाने खेतों की रखवाली भी कर रहा था। मनहर थोड़ी दूरी से गुज़रे तो दृष्टि से थोड़े कमज़ोर हो चुके किसान ने उन्हें आँखें मिचका कर देखा था और उनकी खस्ता हालत की वजह से उन्हें नहीं पहचान पाया था। जब वह उन्हें देख कर फिर से ताश खेलने में व्यस्त हो गया तो मनहर आग-बबूला हो गये। वह खेतों में गये और उस किसान को गिरा पर पीटने लगे कि उसने उन्हें देखने के बावजूद सलामी नहीं ठोकी। किसान के दोस्तों ने किसी तरह मनहर को काबू किया और प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो दोस्तों ने मनहर को बहाने से एक दो हाथ भी लगाये। उन्हें किसी तरह सहारा दे कर घर पहुँचाया गया। उस रात देर तक पति पत्नी के बीच बहसों और बाद में शुभी की चीखों ने गाँव की झींगुरों वाली रात में भी अपनी पहचान बनाये रखी।

मनहर का मिजाज़ एकदम अलग हो गया था। महेश और उनके नये नये ग्रेज्युएट हुए बेटे विकास ने बहुत कोशिश की कि मनहर को इलाज के लिए शहर के किसी बड़े अस्पताल ले जाया जाय लेकिन भतीजे के नम्बर लगवाने और डॉक्टर से समय लेने के बावजूद मनहर ने गाँव छोड़ने से इंकार कर दिया। वे समझ चुके थे कि ये बीमारी अब किसी डॉक्टर के बस की नहीं है। महेश और विकास दोनों मनहर को जानते समझते थे इसलिए उन्हें हँसाने और माहौल हल्का करने की बहुत कोशिशें करते रहे लेकिन बात अब हर किसी के हाथ से बाहर निकल गयी थी।

इसी कड़ी में भतीजे ने चाचा चाची की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह को कुछ ख़ास ढंग से मनाने का फैसला किया ताकि चाचा को जीवन से थोड़ा तो पहले जैसा मोह पैदा हो जाये। हर उस इंसान को न्योता दिया गया जिसका कभी भी हवेली से छोटा या बड़ा कोई भी नाता रहा हो। मानिक और संपत को आमंत्रित करने के लिए हवेली का सबसे ख़ास नौकर भीमसेन आया तो मानिक को बहुत अच्छा लगा। संपत ने इस घटना को भाव नहीं दिया और मानिक को भी समझाया कि हवेली एक डूबता हुआ जहाज़ है जिसका कौन सा हिस्सा कितना सड़ चुका है, पता नहीं चलता। कोई भी सड़ा हुआ हिस्सा कभी भी किसी के भी ऊपर गिर सकता है इसलिए जितने कम लोग हवेली में जाएं उतना अच्छा है। मानिक इधर लगातार प्रार्थनाएं करता हुआ हफ्ते में दो व्रत करने तक पहुँच चुका था। शुभी और उसके परिवार के लिए पूजा अर्चना कर रहे मानिक को अब लगने लगा था कि ज़रूर उसकी पूजा का ये असर हो रहा है कि माहौल कुछ-कुछ ठीक होने लगा है। वह ज़बरदस्ती संपत को भी खींच कर वहाँ ले गया।

हवेली ने इतनी सजावट मनहर और शुभी की शादी के बाद पहली बार देखी थी। यह बूढ़ी हवेली अपने पुरखों के ऐसे कितने ही उत्सव याद कर रही थी और बेहद भीगी पलकों से अपने झुक कर टेढे़ हो चुके वारिसों महेश और मनहर की ओर देख रही थी जिन्हें अचानक समझ में आया था कि रुतबा न किसी हवेली का होता है और न ही किसी रियासत का। रुतबा सिर्फ़ उम्र का होता है और एक उम्र में हर रुतबा अपने आकार से बेहद विशाल लगता है। महेश और मनहर अपने सुनहले दिनों की परछाइयों में खोये एकबारगी अपने फिलहाल के बुरे सपनों से काफी दूर चले आये थे। गाँव वाले ऐसा आयोजन पा कर प्रसन्न थे। लगभग आधा गाँव खाना खा कर जा चुका था जिसमें ज़्यादा संख्या बच्चों की थी जो एक बार पूरी सब्जी खीर पनीर खा कर फिर से दुबारा पंगत में बैठ जाते। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये ज़मींदार जी की दावत है जिसके बारे में कहा जाता था कि जितना चाहे उतना खा सकते हैं और जितनी बार चाहें, उतनी बार खा सकते हैं। अब गाँव के प्रौढ़ और प्रौढ़तर लोग आ रहे थे जो हवेली की सजावट और खाने के स्वाद की तारीफ कर रहे थे। मानिक जब संपत के साथ वहाँ पहुँचा तो मनहर और महेश दोनों शराब पी कर भीतर से बाहर आ कर बगीचे में बैठ चुके थे और गाँव वालों के अभिवादन का जवाब दे रहे थे। सब उन्हें जी भर कर आशीर्वाद दे रहे थे जिसमें मुख्य ये था कि उनकी और उनकी पत्नी की जोड़ी हमेशा सलामत रहे और दोनों शादी की सौंवीं वर्षगाँठ भी इसी तरह साथ मनाएँ।

मानिक जब पहुँचा तो महेश ने ऐसे ही शुभी को अवाज़ लगायी और हल्के मज़ाक वाले टोन में कहा कि उसके गाँव का दोस्त मानिक आया है। शुभी ने आवाज़ सुनी और मानिक और संपत के लिए प्लेट में कुछ मिठाइयां ले कर आयी। वह मिठाइयां लेकर मनहर की लकड़ी की कुर्सी के सामने से गुज़री तो अचानक मनहर को महसूस हुआ कि उनके सीने के भीतर जो ज्वार उठ रहा है, उसे उनकी पत्नी ज़रा भी नहीं समझती। उन्हें अचानक याद आया कि यह ज़मींदारी उनकी थी, शानो-शौकत उनकी थी और ये हवेली भी उनकी ही है, इसके जाने का ग़म उन्हें जितना है, उसका पासंग भी उनकी पत्नी को नहीं। वह गाँव के एक औसत परिवार की लड़की है जो उन्हें पहली नज़र में गाँव की नहर पर पसंद आ गयी थी और उन्होंने खुद उसके घर शादी का प्रस्ताव भिजवाया था। उन्हें अचानक महसूस हुआ कि उनकी पत्नी को उनका हर दुख उसी तरह महसूस करना चाहिए जिस तरह वह करते हैं नहीं तो फिर पति पत्नी के रिश्ते का क्या मतलब। उनके मन में अपनी पत्नी के लिए नफ़रत की एक लहर सी उठी। उन्होंने देखा उनकी पत्नी अपने बचपन के दोस्त को मिठाइयाँ दे रही है। मानिक ने प्लेट से एक मिठाई उठा कर बाकी के लिए विनम्रता से हाथ जोड़ कर मना किया था कि मनहर सामने खड़े थे। उनका एक हाथ घूमा और शुभी के हाथ से मिठाई की प्लेट दूर जा गिरी। दूसरा हाथ शुभी के गाल पर पड़ा था।

‘‘क्या ज़रूरत.... थी मिठाई ले कर..........खुद....आने की?’’ मनहर ने बेहद लड़खड़ाती आवाज़ में अपना सवाल फेंका था जिसमें नफ़रत से भरे होने की वजह से हिस्स जैसी ध्वनि आ रही थी।

शुभी चुपचाप एक पल खड़ी रही थी। पत्तलों पर चल रहे हाथ अचानक रुक गये थे और अनगिनत आँखें इस दृश्य की ओर उठ गयी थीं। महेश तेज़ी से उठ कर मामले को संभालना चाह रहे थे कि पीछे खड़े बेटे ने उन्हें वापस उनकी कुर्सी पर बिठा दिया था।

‘‘आप जा कर और बिगाड़ देंगे, बैठे रहिये।’’

मानिक की आंखें एक जैसे दृश्य देखने की इस कदर आदी हो गयी थीं कि इस दृश्य को इतने करीब से देखने के बाद भी उसे इस पर विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा जैसे वह एक समय यात्री है और गलती से किसी गलत समय में चला आया है। एक बार फिर से वह समय में पीछे जायेगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा। संपत वहीं खड़ा रह कर भी कहीं और चला गया था। उसकी आँखों में भयानक गुस्सा था और वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी यहाँ से कहीं चला जाये। उसकी नज़र शुभी के गाल पर थी जहाँ मनहर की तीन उँगलियों की छाप उखड़ गयी थी। सारे गाँव वाले अपना खाना छोड़ कर धीरे-धीरे वहाँ से उठ रहे थे। लड़के स्वादिष्ट पनीर और खीर में उलझे ये सोच रहे थे कि उनके बाबा और पिता के उठ जाने के बाद उनका बैठे रहना ठीक है या नहीं। कुछ लड़के बाप की आवाज़ सुन कर उठ कर उनके पीछे जा रहे थे और कुछ उठने से पहले जल्दी से एक बड़ा कौर पनीर पूरी या फिर खीर का डाल रहे थे।

शुभी जाने के लिए पलटी तो मनहर ने उसका हाथ पकड़ लिया।

‘‘तुझे अपनी औकात से ज्यादा.....मिल गया तो उसका.....महत्व भूल गयी? तू इस हवेली की.....बहू है, बाहर क्यूं......आयी?’’ मनहर के एक-एक शब्द में ढेर सारी नफ़रत और चिढ़ मिली हुई थी जिसमें पूरे ज़माने का तिरस्कार शामिल था। वह चाहते थे कि वह कुछ ऐसा बोलें और कर दें कि सब उन्हें ही देखते रह जाएं। अपनी जवानी का वैभव उनके सिर पर शराब की आड़ ले कर सवार हो चुका था।

शुभी ने जबरदस्ती अपना हाथ छुड़ाया और हवेली में भीतर जाने लगी। तेज़ी से हाथ छुड़ाने की वजह से मनहर का संतुलन बिगड़ गया और वह गिरने लगे। वह गिरने को हुए तो मानिक ने उन्हें सहारा दे कर थाम लिया। उसी पल उन्होंने मानिक का सहारा लिए लिए ही जाती हुई शुभी पर एक लात जड़ी जो उसकी कमर पर लगी और वह गिर गयी। गिरते ही शुभी की चीख निकली और संपत उसे संभालने के लिए आगे बढ़ा। संपत के आगे बढ़ने के साथ ही गुस्से से लाल मानिक ने मनहर को धकेला तो नहीं लेकिन अचानक छोड़ दिया और तेजी से जाने के लिए मुड़ गया। वहाँ का दृश्य अब बर्दाश्त करने लायक नहीं रह गया था। संपत जैसे ही शुभी के पास पहुँचा वैसे ही वहाँ विकास पहुँचा और उसने अपनी चाची को सहारा दे कर उठाया और अंदर ले गया। उसने संपत को इशारा किया कि आप यहाँ से जाइये। जितनी जल्दी जगह खाली होगी, उतनी जल्दी माहौल हल्का होगा।

संपत तेज़ी से बाहर की ओर निकला। मानिक तेज़ कदमों से न जाने कहाँ चलता जा रहा था। संपत उसके साथ चलने लगा। दोनों ने रास्ते भर कोई बात नहीं की। रास्ता देखा पहचाना था। जिसके लिए दोनों दोस्त दो दिन पहले से तैयारी करते थे वो प्रक्रिया तुरत फुरत में हो रही थी। मानिक ने ठेके से कई बड़ी बोतलें खरीदीं और वहीं पास के ठेले से संपत ने चार नींबू थाम लिए।

आटा-चक्की गाँव से थोड़ी दूर डीह के पास थी जिसका फायदा ये था कि हर आधे घंटे पर संपत की बेटियाँ उसे बुलाने नहीं आ पाती थीं। मानिक के घर पर जब भी दोनों बैठते थे, संपत की एक छोटी बेटी आ कर बोलती, ‘‘अम्मा बुला रही हैं बाबा, घर चलो।’’ यह बुलावा जहाँ दो या तीन बार हुआ, उस दिन संपत के घर कलह होना तय था। आटा-चक्की इस मामले में ठीक थी कि एक बार घर पर बता देने पर कि देर रात या सुबह आयेंगे, रात की कोई खिटखिट नहीं बचती थी।

आटा-चक्की पर बैठ पर भी दोनों में कोई बात नहीं हुई। अब संपत ज़्यादा हैरान नज़र आ रहा था और मानिक ज़्यादा नाराज़। ऐसा लग रहा था जैसे अभी कल की ही बात हो, एक कमसिन प्यारी सी लड़की फ्रॉक पहन कर गाँव में घूम रही थी और अचानक उसकी सौम्यता को सबसे सामने उसकी फ्रॉक को नोच कर नष्ट कर दिया गया हो। मानिक जल्दी में पी रहा था ताकि उसके कलेजे की आग को जल्दी एक दूसरी आग का साथ मिले नहीं तो वह आग उसे तेज़ी से जला रही थी। संपत लगातार कुछ सोच रहा था और लगता था ज़िंदगी ने उसे कभी नहीं भूलने वाला एक ऐसा दृश्य दे दिया है जो उसे कभी सामान्य नहीं रहने देगा। मानिक और शुभी के चुम्बन वाला दृश्य उसके ज़ेहन में बिल्कुल ताज़ा था और उसी पल उसके मन में मानिक के लिए थोड़ी सुहानुभूति हुई कि उसने पूरी जिंदगी एक ऐसी लड़की के लिए अकेले बिता दी जो किसी भी मार खाने वाली आम लड़की जैसी थी। उसे शुभी से कुछ और उम्मीद थी। जिस तरह पुराने उस दृश्य में शुभी एक निडर लड़की की तरह मानिक का सिर पकड़ कर उसे चूम रही थी, उस हिसाब से उसे अपने पति मनहर की झापड़ का जवाब देना चाहिए थे। उसे अचानक शुभी के बेहद कमज़ोर होने का एहसास हुआ और खुद के भी। उस पल में वह उसी तरह बेहद समझदार हो गया जैसे एक दिन कभी मानिक हुआ था।

धीरे-धीरे जब शराब का नशा नसों में घुला तो मानिक की आँखें नम हो गयीं। संपत डर-डर कर पी रहा था और लाये गये चार नींबू में से तीन खत्म कर चुका था। उसे लगने लगा था कि अब इतना पीने के बाद जितना आगे बढ़ेगा, सुबह का सिर-दर्द उतना ही ख़तरनाक होगा। बात का कोई सिरा न मिलने पर वह सुबह का जोखिम उठा कर फिर से अगला पेग पीने में व्यस्त हो गया। वह जल्दी से जल्दी इस दृश्य को भुलाने की कोशिश कर रहा था। उसे लगा मानिक भी इसे जल्द से जल्द भूलना चाहता होगा क्योंकि इसके अलावा और रास्ता ही क्या है। सबकी अपनी अपनी किस्मत होती है और हमारी ही कौन सी अच्छी है जो दूसरों के बारे में विलाप किया जाये। उसने देखा मानिक कुछ गहराई में सोच रहा था। उसने मानिक के कंधे पर हाथ फिराया और उससे पास पड़ी बीड़ी को देने का इशारा किया। बदले में मानिक की आँखें पहली बार संपत से मिलीं। मानिक ने संपत की आँखों में आँसू देखे। संपत ने मानिक की आँखों में गुस्सा देखा। सब कुछ जला कर नष्ट कर देने वाला गुस्सा जो उसने बरसों पहले देखा था जब शुभी उसकी जिं़दगी में बिना आये उससे निकल गयी थी।

मानिक ने अपने गुस्से को इकट्ठा करते हुए टूटी फूटी आवाज़ में मनहर पर मारण मन्त्र का उपयोग करने की बात कही। संपत ने बात को न सुनने का अभिनय किया और अपनी शराब पीता रहा। मानिक ने मनहर को गालियाँ दीं और कहा कि गाँव वालों की अफवाहों पर वह पहले ध्यान नहीं देता था लेकिन अब इस बात में कोई शक नहीं रहा कि मनहर शुभी के लायक नहीं है और उसे उसकी ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए मर जाना चाहिए। संपत ने फिर भी बात को अनसुना करने का अभिनय किया और अपनी आँखें पोंछ कर चुपचाप अपनी शराब पीता रहा। जब यही बात मानिक ने उसे पकड़ कर हिला कर उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा तो संपत ने उसे झटक दिया।

‘‘साले हिम्मत वहाँ दिखानी थी। दम था तो मारना था मनहर के पिछवाड़े पे एक लात। वहाँ से क्यों चला आया कायरों की तरह ? मन्त्र पढ़ेगा.....चूतिया।’’

मानिक और उग्र हो गया। उसकी आवाज बिखर रही थी लेकिन उसका गुस्सा उन आवाज़ों के टुकड़े समेट रहा था।

‘‘वहाँ वो थी....उसको दुख होता....।’’ मानिक ने कहा और गुस्से से भरा इधर उधर देखने लगा। आखिरी बचा हुआ नींबू संपत के सलाद की ओर देख रहा था। मानिक ने खुद को उसकी ओर घसीटा और नींबू अपने हाथ में ले लिया।

‘‘नींबू इधर दे। सलाद में डालना है।’’ संपत ने बात संभालने की कोशिश की लेकिन तब तक मानिक एक कदम घिसट पर ताखे पर रखा चाकू भी उठा चुका था।

‘‘मनहर को.... हम.... मार देंगे। उसने उसको.... मारा। मारण चलाएंगे..... साला दो दिन में.... खून की उल्टी कर के.... मर जायेगा।’’ मानिक बुदबुदाता हुआ नींबू काटने लगा। नशे की वजह से नींबू छिटक कर थोड़ी दूरी पर गिरा और डगरता हुआ एक कोने में टिक गया। मानिक की नज़र बराबर नींबू पर थी और संपत की नज़र मानिक पर। मानिक ज़मीन पर लेट कर घिसटता हुआ नींबू की तरफ जाने लगा। जैसे तैसे करके उसने नींबू को कब्जे़ में किया और फिर से सीधा हो कर नींबू काटने का उपक्रम करने लगा। उसे लगा कि हाथ से नींबू बार-बार फिसल रहा है तो उसने अपने एक घुटने को मोड़ लिया और उस पर रख कर नींबू काटने लगा। संपत बराबर नींबू को लेने की हल्की कोशिशें कर रहा था और अपने सलाद का वास्ता दे रहा था। मानिक लगातार मन्त्र के शब्द बुदबुदा रहा था। अचानक उसके चेहरे पर संपत का ज़ोर का तमाचा पड़ा। वह एक ओर गिर गया। संपत खुद को घसीटता हुआ उसके पास लाया और उसके कुर्ते का कॉलर पकड़ कर ज़ोर से चीखने लगा।

‘‘साले चूतिये, तुझे समझ में नहीं आता एक बार में। तू पागल है क्या ? तुझे आज तक लगता है कि किसी मन्त्र से कोई मर सकता है ? तुझे समझ में नहीं आया कि उस गांडू बाबा ने तेरी गांड़ मारी थी मन्त्र सिखाने के लालच में?’’ अपनी भड़ास निकालने के बाद संपत ने मानिक को एक ओर धकेल दिया। मानिक का सिर दीवार से टकरा गया। वह सिर पकड़ कर थोड़ी देर बैठा रहा फिर टूटी फूटी आवाज़ में उसने संपत को बताया कि उसे पता है कि उसके साथ क्या हुआ था। उसे बाबा ने ये पहले ही बता दिया था कि यह मानव-जाति की भलाई का कोई मन्त्र नहीं है जो अगरबत्ती और फूल माला से सिद्ध होगा। चूंकि यह मन्त्र हत्या करने वाला नकारात्मक मन्त्र है, इसलिए इसे ऐसे ही गलत तरीकों से सिद्ध किया जा सकता है। संपत ने ये बात सुन कर दया से भरी एक नज़र मानिक पर डाली और उसकी आँखें फिर से भर आयीं। वह चुपचाप थोड़ी दूरी पर जा कर अपनी बची हुई शराब खत्म करने लगा।

मानिक ने फिर से पूरी ताकत बटोरी और नींबू और चाकू फिर से उसके हाथ में था। संपत ने बिना किसी भाव की आँखों के साथ मानिक की ओर देखा और उबले चने खाने लगा। मानिक का मंत्रोच्चार पूरे ज़ोर पर था। थोड़ी देर में मानिक ने ताखे पर से ले कर एक कपूर जला दिया और आटा-चक्की वाली वह छोटी सी कोठरी धुंए से भर गयी। मानिक के मंत्रों की आवाज़ तेज होती जा रही थी और जैसे जैसे वह मन्त्र पढ़ता जा रहा था, उसे पूरा विश्वास होता जा रहा था कि मनहर के मरने के बाद शुभी हवेली में बेरोकटोक अपने हिस्से में अपने बेटे के साथ रहेगी और उसे किसी की धौंस नहीं सुननी पड़ेगी। उसे लग रहा था कि जैसे बरसों से बेकमकसद बीत रही उसकी ज़िंदगी का असली वक्त अब आया है और आज ही के दिन के लिए वह कई सालों से बिना किसी घटना की ज़िंदगी जी रहा था। मन्त्र के आख़िरी चरण में जब वह मन्त्र की लय पर झूमने लगा तक संपत ने उसे गंभीरता से लिया और उसकी ओर ध्यान से देखा। मानिक की आँखें ख़ूनी लाल थीं जैसे आम दिनों में शराब पीने में होती थीं, उससे बहुत ज़्यादा लाल। संपत को पहली बार यकीन आने लगा कि वह बड़ा होने के बाद जिस बात पर वह मानिक को बेवकूफ समझने लगा था वह चीज़ वाकई मानिक के पास है। थोड़ी देर ऐसा सोचने के बाद संपत को अचानक मानिक बहुत बड़ा सिद्ध-पुरुष लगने लगा था और उसे विश्वास होने लगा था कि वाकई अब मानिक के मन्त्र पढ़ने के बाद ज़मींदार की ज़िंदगी नहीं बचेगी। यह विश्वास किसी घूंट के साथ बिलकुल यकीन में बदल जाता और फिर अगली ही किसी घूंट के साथ मन्त्र पढ़ते मानिक उसे किसी हारे हुए जुआरी की तरह लगता जो बाज़ी हार जाने के बाद चिल्ला-चिल्ला कर रो रहा हो।

तेज़ आवाज़ में मन्त्र पढ़ने की वजह से मानिक हांफ रहा था और मात्रा से अधिक शराब पेट में जाने की वजह से संपत भी दीवार से थोड़ी दूरी पर पड़ी पुआल पर लेट चुका था। कपूर जल कर खत्म हो गया था। नींबू कब का कट चुका था। शरीर में पहुँची शराब अपने सारे लक्षण दिखाने लगी थी और मानिक भी जहाँ बैठा था, वहीं लेट गया। रात की हवा खिड़की से आ रही थी और दरवाज़ा खिड़की दोनों खुली होने की वजह से मैदान में सोने का सुख दोनों शरीरों को मिल रहा था। एक कोने में गेंहूँ की ढेर सारी बोरियाँ रखी थीं जिन्हें आज पीसा जाना था।

गाँव की हवा में फुसफुसाहट थी। ये रात गाँव के लोगों के लिए थोड़ी अलग थी। कुछ पेट भरे वही बातें कर रहे थे तो कुछ आधे पेट और कुछ खाली पेट। सब धीमी आवाज़ में यही फुसफुसा रहे थे कि मनहर को सबके सामने पत्नी पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था। ज़मींदार लोग अपनी पत्नियों को मारते ही हैं लेकिन ये सब पारिवारिक काम चारदीवारी के भीतर होने चाहिएं। गाँव की कुछ औरतें इस बात पर अपना ऐतराज़ जता कर एक दो झापड़ खा कर सो चुकी थीं और कुछ अपनी गुदड़ी पर लेटी हुई ये सोच रही थीं कि औरत झोपड़ी में रहे या हवेली में, उसकी तकदीर लिखने में उपयोग की गयी स्याही का रंग एक जैसा है। धीरे-धीरे गाँव जब नींद के सन्नाटे में डूब गया तो जैसे पेड़ों और खेतों ने भी यही बातें करनी शुरू कर दी। उस रात हवा गज़ब की तेज़ थी और रात में झींगुरों सियारों के बोलने की आवाज़ में पत्तों का झूमना गज़ब तरीके से शामिल था।

सुबह की किरण निकलने के साथ ही संपत की छोटी बेटी चक्की पर आ कर उसे जगा कर ले गयी। संपत ने सोते हुए मानिक को जगाना ठीक नहीं समझा और दरवाज़ा भिड़का कर चला गया।

मानिक की आँख जब खुली तब तक सुबह की धूप चुभने लायक हो गयी थी। वह उठा को उसे अपने शरीर में दो तीन जगहों से दर्द की लहरें उठती महसूस हुईं। वह धीरे से पूरी ताक़त बटोर कर उठा और रात का पूरा मंज़र उसकी आँखों के सामने किसी बुरे सपने की तरह झिलमिलाने लगा। थोड़ी दूरी पर एक कटा और निचुड़ा हुआ नींबू पड़ा था और उससे थोड़ी दूरी पर एक चाकू। मानिक के मन के अंदर मन्त्र को लेकर जो विश्वास था वह और गाढ़ा हो गया। उसे अचानक याद आया कि अपनी पैंतालिस साल की ज़िंदगी में पहली बार उसने कोई ऐसा काम किया है जिसकी वजह से डर महसूस हो रहा है। वह तेज़ी से उठा और बाहर कुंए पर जा कर नहाने लगा। देर तक नहाने के बाद उसका सिर कुछ हल्का हुआ। उसने कुछ फुटकर सामान बटोरे और अपनी चचेरी बहन से मिलने पास के गाँव के लिए निकल गया जो अक्सर उससे शिकायत करती थी कि उसका कोई सगा भाई नहीं है और ले दे एक जो एक भाई है वह कभी उसकी ख़बर नहीं लेता।

मानिक चुपचाप अपने गाँव से निकल गया। पूरा दिन बहन और उसके प्यारे बच्चों के साथ गुज़ारने के बाद शाम तक उसका मन कुछ हल्का हो गया। उसे बीच-बीच में ख़याल आता था कि उसने मनहर पर मारण-मन्त्र का प्रयोग कर दिया है और अब तक उस पर मन्त्र का असर होना शुरू हो गया होगा। इस डर के साथ यह राहत की बात उसे सुकून देती कि अब शुभी बिना किसी के दबाव के अपना जीवन उस हवेली में आराम से गुज़ार सकेगी। शाम को बहन बहुत रोकती रही लेकिन मानिक किसी ज़रूरी काम का हवाला दे कर वहाँ से निकल गया। निकलते हुए बहन ने बेहद विनम्रता से भाई से कहा कि वह फिर से एक बार शादी करने की संभावना पर विचार करे और अगर उसका मन बदले तो उसकी एक रिश्ते की विधवा भौजाई से वह बात चलवा सकती है। मानिक ने जल्दी ही फिर आने का वादा किया।

मानिक जब गाँव के मुहाने पर पहुँचा तो उसे गाँव में किसी अनहोनी का एहसास हुआ। नहर वाली चौक पर कुछ लोग दबी ज़बान में बातें कर रहे थे जिसमें उसने अपना नाम सुना। वह चुपचाप वहाँ से सिर झुका कर गुज़रने वाला था कि धुंधलके में भी लोगों ने उसे पहचान लिया। गाँव के एक बुज़ुर्ग ने उसका नाम पुकारा और वह जा कर उसके सामने खड़ा हो गया। सब उसके वहाँ पहुँचते ही चुप हो गये जैसे किसी इंसान के बारे में उन्हें अचानक पता चला हो कि अब तक हम जिसे अपने बीच का समझते थे वो हमारे बीच का नहीं हमसे अलग है। वो इतना विलक्षण है कि उसकी विलक्षणता पर एकबारगी विश्वास ही नहीं किया जा सकता। मानिक ने पेट्रोमेक्स की रोशनी में सबके चेहरे पढ़े। सब पर कुछ ऐसी अजीब इबारतें लिखी थीं जिन्हें वह न पढ़ पाया न समझ पाया। उसने इशारे से कुछेक अग्रजों का अभिवादन किया और बदले में थोड़ी देर अभिवादन के इंतज़ार में खड़ा रहा। लेकिन सब उसे ऐसी नज़रों से देखते रहे जैसे बहुत लम्बे समय बाद कोई अनोखी चीज़ उनकी आँखों को नसीब हुई हो। मानिक वहाँ से थके कदमों से चल पड़ा। उसके भीतर एक भय की लहर आयी और अचानक उसके कदम तेज़ हो गये। सामने वालों के दिमाग में चल रहा विचार कूद कर मानिक के भीतर आ गया। उसे लगा ये पूरा गाँव और इस गाँव के लोग, वह किसी को नहीं पहचानता। वह सिर्फ़ सबके नाम जानता है जैसे बाकी सब उसके नाम जानते हैं।


वह खेतों और मेढ़ों को पार करता हुआ अपने झोपड़े में पहुँचा तो उसके दिमाग में गाँव वालों की फुसफुसाहटें शोर मचा रही थीं। वह देर तक लेटा हुआ कल की रात के बारे में सोचता रहा। रात की बात से छलांग लगा कर वह कुछ पुराने दिनों में लौटा और फिर अपने पसंदीदा दिन पर पहुँच गया। उस दृश्य में जाने के बाद उसे अपना वजूद सिर्फ एक होंठ में तब्दील होता महसूस होता था। वह उन दिनों की तस्वीरों में तब तक खोया रहा जब तक सुबह के पंछी अपने काम पर नहीं जाने लगे। हवा में पर्याप्त ठंडक घुल गयी तो उसने सहला कर मानिक की पलकों को बंद कर दिया।

उसकी नींद बाहर हो रही हलचल से खुली। वह आँखें मलता हुआ बाहर आया तो वहाँ दूसरे गाँव से दो बूढ़े अपने जवान बेटों के साथ मौजूद थे।

‘‘बेटा हमारे भाई ने हमारे सारे खेत हड़प लिए हैं। कचहरी में मुकदमा भी किया है लेकिन उसे वकीलों को खरीद के हमारा केस एकदम कमजोर कर दिया। हम अपने खेत से हाथ धो चुके हैं लेकिन बेटा अब तुम्हारे भरोसे आये हैं कि उसको मार देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।’’

दूसरे बूढ़े ने उसकी बात काटते हुए अपनी आवाज़ तेज़ की, ‘‘बेटा मानिक, तुम्हारे पिता जी हमारे मित्र रहे। हमारा नाम सुने होगे उनके मुंह से। बेटा हम बहुत परेशान हैं, पता चला कि तुमने मन्त्र मारा है तो तुम्हारे गाँव के ज़मींदार खून उलट रहे हैं। हमारी भी मदद कर दो बेटा। हमारे इलाके का परधान है उसने हमारा जीवन नरक कर दिया है, उसको मार दो बेटा मन्त्र पढ़ के।’’

उनकी बातें सुन कर मानिक के सामने रात वाला दृश्य कौंध गया। उसे लगा कि जिस चीज़ से वह भाग रहा था उसने आ कर उसे अचानक दबोच लिया है। उसके पढ़े हुए मन्त्र की वजह से एक ज़िंदा इंसान खून की उल्टियां कर रहा है। उसने सभी लोगों को वहाँ से भगाया और दरवाज़ा बंद कर चुपचाप भीतर बैठ गया। न सुबह उसे कुछ खाने की इच्छा हुई न दोपहर और न शाम को रात में बदलते उसने आसमान में देखा। रात के अंधेरे में एक ही जगह पर चुपचाप लेटे बैठे उसका दिमाग शून्य हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने अच्छा किया है या बुरा। उसके ज़रिये ये जो हुआ है वो ठीक हुआ या नहीं। उसे ऐसा करना चाहिए था या नहीं। उसी पल उसे महसूस हुआ कि उसके पास सचमुच ये ताकत थी जिसका विश्वास किसी को नहीं था। उसके दिमाग में एक के बाद एक विचार दौड़ रहे थे और उसका दिमाग विचारों की वजह से फट रहा था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई।

संपत ने उसे बताया कि अलस्सुबह मनहर को ख़ून की उल्टियाँ शुरू हो गयी थीं। हैरान संपत ने इस बात को सिर्फ अपनी बीवी से बताया था क्योंकि वह ख़ुद को रोक नहीं पा रहा था। उसके मन में इस बात को लेकर तूफ़ान मचा था कि उसके साथ पूरी ज़िदगी साथ रहने वाला इंसान इतना चमत्कारी था और उसे कभी इस पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपनी पत्नी को ये बात बतायी और उससे कसम ली कि इसे किसी को नहीं बताना है। जैसा कसमों का दस्तूर होता है, उसकी पत्नी ने भी शायद सबसे कसम ले कर ये राज़ कुछ इस तरह बांटा था कि कुछ ही घंटो में सबकी ज़बान पर ये बात थी कि मानिक के पास कोई ऐसा मन्त्र है जो पढ़ कर वह नींबू काट दे तो दुश्मन खून की उल्टी करता हुआ मर जाता है।

संपत देर रात तक मानिक के पास बैठा रहा और दोनों ने बहुत कम बातें कीं। मानिक समझ गया कि बचपन से बाबाओं और चमत्कारों की शौकीन इस धरती पर अब सब उसे भी जल्दी ही बाबा बना देंगे। उसे एक पल के लिए चिंता हुई कि वह अब यहाँ पहले जैसी सामान्य ज़िंदगी कभी नहीं बिता पायेगा। संपत पहले से बिल्कुल अलग इंसान दिख रहा था और वह न चाहते हुए भी उसकी बातों में मानिक के प्रति सम्मान का भाव झलक रहा था। वह बेहद सहज होने की कोशिश में भी मानिक से पहले जैसी बातें नहीं कर पा रहा था। मानिक भी हाँ हूँ में जवाब दे रहा था। आख़िरकार काफी रात हो जाने के बाद संपत चुपचाप उठा और जाने लगा। मानिक हमेशा की तरह उसे छोड़ने के लिए नहीं उठा। संपत जा कर दरवाजे़ पर थोड़ी देर खड़ा मानिक को देखता रहा। मानिक उस समय भी शून्य में देख रहा था और उसे पता भी नहीं चला कि संपत सीधा उठ कर जाने की बजाय दरवाज़े पर खड़ा अजीब नज़रों से उसे देख रहा है। अचानक संपत तेज़ी से मानिक के पास आया तो वह चौंक गया। संपत ने मानिक की दोनों हथेलियां अपनी हथेलियों में पकड़ीं और आँखों में आँसू भरे हुए बोला, ‘‘मुझे माफ कर देना दोस्त, मैं वाकई तुझे चूतिया समझता था।’’

मानिक को उसकी इस हरकत से हैरानी हुई। यह संपत की न तो देह-भाषा थी और न भाषा। मानिक एक मुर्दा मुस्कराहट मुस्कराया जो लालटेन की रोशनी में बेहद डरावनी लगी। मानिक ने अचानक फिर से माफ़ी शब्द का प्रयोग करते हुए एक वाक्य कहा और अपने हाथ मानिक के पाँव पर ले गया।

मानिक को अचानक लगा जैसे वह एक आम इंसान से एक बाबा में बदल रहा है। उसने संपत का हाथ झटक दिया, ‘‘अब साले तुम चूतिया लग रहे हो।’’ मानिक ने आवाज़ को सामान्य बनाते हुए कहा। संपत को लगा जैसे इस एक घटना से वह अपने दोस्त से काफी दूर हो गया। वह उठा और तेज़ कदमों से बाहर के अँधेरे में विलुप्त हो गया।

मानिक को अचानक बिल्कुल अकेले हो जाने का एहसास हुआ। उसे लगा जैसे वह पूरी दुनिया में बिल्कुल अकेला है। बचपन से सिर्फ़ एक इंसान उसके साथ परछाईं की तरह रहा है और आज वह भी उसे अपने से अलग मानने लगा है। संपत की हरकत को याद कर मानिक की आँखें बुरी तरह डबडबा गयीं जिसे उसने ये कह कर सांत्वना दी कि जो भी हुआ है अच्छा हुआ है क्योंकि यह उसके प्रेम के हक में है। उसकी पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ उसके प्रेम के नाम है और बदले में उसे कुछ नहीं चाहिए।

वह फिर पिछली रात की तरह भोर तक जागा विचारों और दृश्यों में उलझता रहा। भोर के साथ उसे कुछ देर के लिए नींद आयी।

उसकी नींद किसी सुगंध से खुली। उसे अपनी झोंपड़ी में अधीनींदे लेटे ही एहसास हुआ कि उसकी ओर कोई रोशनी से भरी दिव्य आकृति आ रही है। दरवाजे़ से दूर एक आकृति दिख रही थी और मानिक को पूरा विश्वास हो गया है कि ये या तो प्रेम का देवता होगा या फिर मृत्यु का। उसके हाथों जो हो गया है, उसके लिए या तो प्रेम का देवता उस पर ख़ुश हो कर उसे वरदान देने आ रहा होगा या फिर जो हुआ है, उसके लिए सज़ा देने। उसे लगा आज अगर उसकी जिंदगी का आख़िरी दिन हो तो कितना अच्छा हो। अब आगे जीना और ज़्यादा कष्ट होगा, ये बात न जाने क्यों उसके दिमाग में लगातार नींद में भी कौंध रही थी। जब आकृति काफ़ी करीब आ गयी तो मानिक ने गौर किया ये किसी औरत की आकृति थी। उसने हल्के फिरोजी रंग की साड़ी पहन रखी थी और तेज़ कदमों से मानिक की झोपड़ी की ही तरफ आ रही थी। थोड़ा और पास आने पर मानिक ने देखा कि औरत की इस आकृति ने खुद को शॉल से कुछ सायास तरीके से लपेट रखा था। मानिक को अचानक लगा फिर आसपास के गाँव से आने वाली ये कोई ऐसी औरत न हो जो उसे अपने दुश्मन को मन्त्र से मारने की लालसा लेकर आयी हो। मानिक पास पड़ी बंडी देह पर डालता बाहर निकल आया।

बाहर ठीक-ठाक धूप थी। दिशा उल्टी होने के कारण मानिक जैसे ही बाहर निकला, चटक सूरज से उसकी आँखें चुँधिया गयीं। उसे आँखों के सामने हथेली लगा कर सामने खड़ी औरत का चेहरा पहचानना पड़ा। औरत ने अपने चेहरे को शॉल के नकाब से आज़ाद कर दिया। मानिक को लगा जैसे यह वाकई उसकी ज़िंदगी का आखिरी दिन है। उसकी आँखें चंचल पक्षी की तरह यहाँ वहाँ नाचने लगीं। कभी वह सामने खड़ी औरत के चेहरे पर जाती तो कभी उसके आसपास जहां उसके बचपन और किशोरावस्था के चेहरे छिपे हुए थे। मानिक के चेहरे पर पहले एक मुस्कान आयी जो बिल्कुल ऐन 28 साल बाद आयी थी। उसे फिर से महसूस हुआ कि वह एक समय यात्री है और जीवन सिर्फ़ एक समय से दूसरे समय में चले जाने का नाम है। उसके कदम वहीं बँध गये थे और सूरज की किरणों के बीच उसे जो चेहरा दमकता हुआ दिख रहा था, वह उसे विश्वास दिला रहा था कि वह दुनिया का सबसे बड़ा प्रेमी है और सबसे ताकतवर इंसान। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे ले कर अंदर जाये या फिर वहीं खाट निकाल कर बैठने के लिए कहे। उसे महसूस हुआ कि जो उसका था वह उसका ही था। समय का एक चक्कर काट कर वह आमने सामने फिर से उसी स्थिति में खड़े हैं। बीच के 28 साल जैसे किसी एकरसता से भरे नाटक की रिहर्सल थे जो आज ख़त्म हो गये। उसकी नज़र यहाँ वहाँ से भागती हुई पहली बार उसके होंठों पर रुकी। होंठ लाली से रहित और सूखे हुए थे और उन पर पपड़ी जमी हुई थी जो बता रही थी कि इनमें बहुत देर से पानी की बूँद नहीं पड़ी। मानिक अब उस दुनिया के सबसे अपने लगने वाले चेहरे की ओर बढ़ा।

वह जैसे ही एक कदम बढ़ा, वह दो कदम पीछे हट गयी।

‘‘गाँव में हल्ला है कि तुमने उन पर कोई मन्त्र चलाया है। उनकी तबियत बिगड़ती जा रही है। मन्नू, अगर वो नहीं रहे तो मैं भी नहीं रहूंगी। तुम अपना मन्त्र वापस ले जो।’’

इतना बोल कर वह जाने के लिए पलट गयी। मानिक उसे जाता देखता रहा। उसे लगा पिछले जन्म में उसका नाम मन्नू था और पिछले ही जन्म में वह एक छोटा बच्चा था जिसे उसके माँ बाप बहुत प्यार करते थे। उसे बेतरह अपनी माँ की याद आयी और वह धम से वहीं पर बैठ गया। बैठने पर उसे लगा कि उसके आस-पास की धरती तेज़ी से घूम रही है। उसने सिर ऊपर उठाया तो उसे आसमान भी तेज़ी से घूमता हुआ नज़र आया। दूर उसे आटा.चक्की के चलने की आवाज़ सुनायी दी जिससे पता चला कि आज संपत ने देरी होता देख चक्की खुद चालू कर दी है।

संपत का नाम मन में आने पर उसे किसी अजनबीयत का एहसास हुआ और वह फिर से आ कर उसी अवस्था में लेट गया जैसे पहले लेटा था। थोड़ी देर उसी तरह लेटे रहने के बाद उसे अचानक लगने लगा कि अभी जो कुछ उसके साथ हुआ है वह सिर्फ़ उसके मन का फितूर था। वह न तो कुछ देर पहले उठ कर बाहर गया था और न ही किसी ने उससे कुछ कहा है। उसने इस बात को पूरी तरह झुठला दिया और आँखें बंद कर लीं। आँखें बंद करते ही उसके सामने वे होंठ सूखे हुए दिखे जिन पर मुस्कराहट देखने के लिए उसने कभी गाँव नहीं छोड़ा। वह बेचैन हो कर बैठ गया। आटाचक्की की दूर से आती आवाज़ पहले बहुत धीमी सुनायी दे रही थी लेकिन अब उसकी आवाज़ तेज़ हो रही थी। थोड़ी देर में ये आवाज़ बहुत तेज़ हो गयी। मानिक को अचानक महसूस हुआ कि यह आवाज़ उसके कलेजे से आ रही है। उसने किसी का चेहरा याद करना चाहा जिसके पास जाने पर इस वक़्त राहत मिलती। उसे कोई चेहरा याद नहीं आया। एक क्षण ऐसा आता है जिसका दर्द नितांत अपना होता है। दुनिया की आबादी चाहे जितनी बढ़ जाये, उस अकेलेपन को काटने वाला कोई दूसरा नहीं होता। ज़्यादातर बार ये अकेलापन उस सबसे क़रीबी का दिया होता है जिसके सहारे कभी सोचते थे कि वो वाला अकेलापन भी दूर हो सकेगा। उस अकेलेपन ने मानिक को बेचैन कर दिया। वह उठ कर टहलने लगा। उसे अचानक महसूस हुआ कि उसने कितना बड़ा कदम उठा दिया है।

मन्त्र को ले कर मानिक को मन के सबसे भीतरी कोने तक विश्वास था कि इसका एक बार प्रयोग होगा और जिस पर होगा वह नहीं बचेगा। उन सूखे होंठों को देखने के बाद मानिक का बरसों से सजा कर रखी गयी एक खुशनुमा याद खण्डित हो गयी थी। वह जब भी ख़याल में वह उन कली से ताज़े होंठों को लाना चाहता, यही सूखे होंठ उस आकृति पर आरोपित हो जाते। उसे लगा उसने अपने हाथों से वह काम कर दिया है जिससे बचाने के लिए पूरी ज़िंदगी यत्न करता रहा। जिसके चेहरे पर ख़ुशी देखने की उम्मीद पर वह अपनी मृत्यु को टाले हुए है, उसके चेहरे पर भय की छाया ने उसे डरा दिया था। उस चेहरे को विधवा के शरीर पर देखने की कल्पना से वह एक बार फिर कांप गया। उसकी यह छवि मन्त्र पढ़ने के बाद एक बार भी मन में नहीं आयी थी लेकिन एक बार दिमाग में कौंधने के बाद बराबर आने लगी। उसे लगा उसने अपनी ज़िंदगी की ऐसी सबसे बड़ी गलती कर दी है जिसका कर्ज़ शायद उसकी मौत से भी न चुक सके।

मन्त्र को वापस कैसे लिया जाता है, यह न कभी उसके दिमाग में आया था और न ही उसने सोचने की कोशिश की थी। बाबा का भी पूरा फोकस सिखाते हुए सिखाने की प्रक्रिया पर ही रहा था और मानिक भी जल्दी से जल्दी मन्त्र सीखने के चक्कर में था तो इसके आगे का कुछ और पूछने का उसे ध्यान ही नहीं रहा था। उसके दिमाग में खड़ेश्वरी बाबा के मेजबान का चेहरा आया जो पास के गाँव का रहने वाला था। उसके पास गाँव में सबसे ज़्यादा गायें थीं और वह धरम करम के कार्यों में इतनी रुचि रखता था कि उसने अपने बेटों के नाम भी धर्मराज, धर्मशील और धर्मदेव रखे थे। खड़ेश्वरी बाबा ने गाँव में सिर्फ़ उसी का आतिथ्य स्वीकार किया था क्योंकि वो जानते थे कि कोई अंधविश्वासी और अमीर आदमी ही उनके सारे नखरे उठा सकता है। उनका कहना था कि उनके महीने भर के अनुष्ठान के आयोजक यानि मेजबान को इतना फल मिलता है कि दूसरे लोक में किसी अतिरिक्त व्यवस्था की ज़रूरत नहीं होगी। इस कथा, व्रत, जागरण और हवन सभी क्रियाओं को समेटे महीने भर के कार्यक्रम में इतना पुण्य मिलता है कि छिड़क देने पर राह चलते लोगों को भी हासिल हो सकता है। खड़ेश्वरी बाबा ने पहली बार अंधविश्वास फैलाने वाले तरीकों को व्यवस्थित किया और एक पैकेज का रूप दिया था। एक महीने के आयोजन के बदले वह पूरे जीवन का पुण्य दिलाने का वादा करते और दो-चार गाँवों को मिलाकर सिर्फ़ एक मेजबान चुनते जिसके बारे में उनके लौण्डे यानि युवा भगत महीने भर से पता लगा रहे होते। खड़ेश्वरी बाबा का मेजबान दोनों हाथों से पैसे कमाने वाले दिनों में था और उसे ये सौदा सस्ता ही लगता था कि सिर्फ कुछ हज़ार रुपये ख़र्च कर देने से जीवन भर का पुण्य उसके खाते में जमा हो जायेगा। ऐसे ही उत्साह में उसने खड़ेश्वरी बाबा के बजट में बेहतरी के लिए बदलाव किया था और फँस गया था। खड़ेश्वरी बाबा ने बजट में बताया कि इतने इतने खर्चों के बाद महीने पश्चात जब वे और उनकी भक्त मंडली रवाना हो तो सबको दक्षिणा में पचास पचास रुपये दिये जाएंँ। मेजबान अतिरिक्त जोश में था और उसने खड़ेश्वरी बाबा से कहा कि वह सबको पचास की जगह सौ रुपये देगा। ये बात खड़ेश्वरी बाबा को चुभ गयी। उन्हें लगा उनका मेजबान उनकी सिद्धि और सालों की तपस्या को पैसों से तौलना चाहता है। उन्होंने इस बात की चुभन को कम करने के लिए आसपास नज़र दौड़ायी तो उन्हें महसूस हुआ कि वह पैसे बढ़ा कर या किसी और तरीके से मेजबान की दी हुई इस चुभन को नहीं लौटा सकते। बाबा ने अपना तुरुप का पत्ता निकाला। उन्होंने मेजबान से कहा कि शुरू के तीन हफ्ते तो आपके हलवाई भोजन पकायें या आपके घर की औरतें, कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन आख़िरी एक हफ्ते में घर के स्वामी और उसकी स्वामिनी यानि पत्नी को अपने हाथों से पूरे गाँव का भोजन बनाना होगा। पत्नी की मेहनत से मेजबान को बहुत मतलब नहीं था लेकिन एक हफ्ते तक पूरे गाँव के लिए खुद भोजन बनाने वाली बात से वह दहशत में आ गया। उसके चेहरे पर दहशत देख कर खड़ेश्वरी बाबा की चुभन कुछ कम हुई थी और वह अपने सामान्य पूजा पाठ में खड़े-खड़े लग गये थे।

मानिक को जैसे ही मेजबान का ख़याल आया, उसकी बेचैनी की दिशा दूसरी तरफ हो गयी। वह तुरंत बगल वाले गाँव के लिए निकल पड़ा। इतने सालों में कभी-कभी वह मेजबान उसे गाँव की साप्ताहिक हाट में गुज़रता हुआ दिखा था और मानिक, उसे नमस्कार न करना पड़े, इसलिए चुपके से निकल जाता था। उसके बाल पूरे सफ़ेद हो चुके थे और अगर वह मुँह न खोले तो काफी जानकार, शांत और स्थितप्रज्ञ मालूम पड़ता था। मानिक ने सुना था कि उसने बाद में व्यवसाय में नुकसान होने के बाद बहुत संयत और समझदार तरीके से अपने गिरते व्यवसाय को फिर से खड़ा किया था और इस बात के लिए कई गाँवों तक उसका सम्मान किया जाता था।

मानिक को देख कर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। उसने शांत स्वर में कहा, ‘‘ऊपर वाला सब को करनी का दण्ड देता है। हम केवल उसके माध्यम बनते हैं जैसे मनहर के लिए माध्यम बने तुम।’’

मानिक ने उससे कहा कि उसने पहली बार मारण मन्त्र का प्रयोग किया है और उसे बिल्कुल भी इल्म नहीं कि यह मन्त्र उतारा कैसे जाता है। वह शांत रहा। उसने कहा कि वह अब धार्मिक नहीं रहा और समझ चुका है कि सारे अंधविश्वास लोगों को उल्लू बनाने के लिए हैं। किसी एक ईश्वर जैसी सत्ता में उसका विश्वास नहीं रहा और अब वह अपने जीवन के अर्थ को लेकर चिंतित रहता है।

जैसे धार्मिक भीरू इंसान थोड़ा पढ़ लिख जाने या अनुभव से परिपक्व हो जाने पर आध्यात्मिक हो जाता है और अक्सर विरोधाभासी बातें करता है, मेजबान भी उसी स्थिति को प्राप्त हो गया था। उसका कहना था कि उसे नहीं पता कि जितने बाबाओं और साधुओं की उसने ज़िंदगी भर सेवा की, उसका कोई फल उसे प्राप्त हुआ या नहीं लेकिन ये ज़रूर तय है कि जीवन इतना सरल नहीं है। मानिक को उसके फलसफ़े में ज़रा भी रुचि पैदा नहीं हुई और वह लगातार खड़ेश्वरी बाबा और मारण मन्त्र के बारे में जानकारियां लेता रहा तो आख़िरकार मेजबान ने उसकी बात समझी। उसकी बात का पता नहीं कौन सा हिस्सा उसने किस तरह समझा लेकिन बाद में जो बताया उसमें मानिक के काम का यही था कि यहां से बीस कोस दूर बेधक में, जहाँ पहाड़ों की सीमा है, वहाँ दुनिया की हलचल से छिप कर कुछ तांत्रिक और अघोरपंथ के संन्यासी रहते हैं। उन्हें इससे संबंधित सभी चीज़ों की जानकारी है लेकिन किसी आम मनुष्य का वहाँ जाना और उनसे संवाद करना बेहद कठिन बात है। ये तो तय है कि जितना सुना गया है उससे यही पता चलता है कि मारण-मन्त्र को एक बार चलाने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता। फिर भी वह अगर कोशिश करना चाहता है तो उसकी जानकारी के हिसाब से वही एक जगह है जहाँ कोशिश की जा सकती है।

मानिक बेधक के जंगल की ओर चल पड़ा। दसियों कोस तक फैले इस घने जंगल में इलाके के कई वांछित डकैत छिपते थे। कई किलोमीटर तक फैले इस जंगल के बाद दुर्गम पहाड़ों का क्षेत्र शुरू हो जाता था।

जंगल का शुरुआती हिस्सा मानिक का परिचित था क्योंकि इसके आसपास वह बीस साल तक भटका था। यहाँ के पेड़ उसे पहचानते थे और यहाँ की हवा से वह परिचित था। शुरुआती कुछ किलो मीटर तक वही क्षेत्र मानिक को पुरानी यादों में खींचता रहा जहाँ बतौर ज़मींदार साहब के मुलाज़िम वह लकड़ियों के कटने और उनके बँधवाने भिजवाने का प्रमुख हुआ करता था। वहाँ से निकलने के बाद जब घने जंगल वाला क्षेत्र शुरू हुआ तो मानिक को एहसास हुआ कि बेधक के जंगल की बीहड़ता के बारे में जो कहानियाँ उसने अपने बाबा और पुरखों से सुनी थी, वे सच थीं। कुछ कोस चलने के बाद जंगल इतना घना हो जाता था कि वहाँ सूरज की रोशनी छन-छन कर पहुंचती थी और जंगल को एक अनोखा रहस्यमयी चेहरा प्रदान करती थीं।

जंगल एक होने के बावजूद एक नहीं था। वह कुछ घंटे लगातार चलने के बाद जब एक जंगल पार करता तो उसके बाद अचानक उसे गोल पत्थरों वाला कोई इलाका मिलता जहां थोड़ी देर चलने के बाद उसके पाँव फूल जाते। फिर कोई इलाका ऐसा मिलता जहां काफी दूर तक पानी ही पानी होता। ये पानी उसके घुटने से नीचे ही रहता जिससे उसकी थकान को थोड़ी राहत मिलती। बारह कोस से अधिक का सफ़र काट कर मानिक ऐसे इलाके में पहुँच गया जहाँ से आगे नहीं सिर्फ़ ऊपर जाया जा सकता था। उसे लगा यहाँ तक का दुर्गम सफ़र कर पहुँचने वाला वह पहला इंसान है लेकिन वहाँ की पहाड़ियों पर चढ़ने के लिए रस्सियों और बरगद की जटाओं से मिल कर बनी पहाड़ी से लटकती सीढ़ी ने उसके इस अंदाज़े को गलत साबित किया। ये सीढ़ी हेलीकॉप्टर और जहाज़ से लटकायी जाने वाली सीढ़ी जैसी थी। पहली और आखिरी बार मानिक ने ऐसी सीढ़ी तब देखी थी जब पहली और आखिरी ही बार एक मंत्री का आगमन उसके गाँव में हुआ था जो धौंस जमाने या फिर कोई पुराना अरमान पूरा करने के लिए अपनी जनता के बीच हेलीकॉप्टर से ऐसी ही सीढ़ी लगा कर उतरा था। पहाड़ी से जो झरना अनियमित धार के साथ गिर रहा था उसे एक लोहे की पाइप लगा कर मोटी धार का रूप दे दिया गया था। मानिक ने सीढ़ी पर आधा चढ़ने के बाद नीचे की ओर देखा तो उसे चक्कर आ गया। सैकड़ों मील गहरी खाई और दूर तक फैला जंगल उसके भीतर जीत का हल्का एहसास भर रहा था। मानिक को लगा उसकी तलाश अब ख़त्म हो जायेगी। किसी इंसानी शरीर को देखने की उसकी आँखों की अड़तालीस घंटों की भूख यहां शांत होगी। सीढ़ी का सहारा लेकर जैसे ही वह सबसे ऊंची पहाड़ी पर पहुँचा, उसकी नज़र पहाड़ी में बनी एक गुफा पर पड़ी। गुफा के बाहर एक चटाई पड़ी थी जिसके रेशे उधड़ने लगे थे। मानिक थक कर चूर हो गया था। लम्बी लम्बी सांसें भरने के साथ वह वहीं एक चट्टान पर लेट गया। थकान से उसका शरीर गीला कपड़ा हो गया था जिससे पसीना टप-टप चू रहा था। उसकी इच्छा हो रही थी कि कोई उसके पूरे शरीर को उठा कर ज़ोर से निचोड़ देता और कहीं ठण्डी हवा में सूखने के लिए फैला देता। वह सांसों को संयत करने की कोशिश करता-करता सो गया।

वह उठा तो उसे याद आया कि आज की शाम घर से बाहर उसकी तीसरी शाम है। पिछली दो रातें उसने जंगल में कहीं-कहीं रुक कर काटी हैं और आज वह अपनी मंज़िल पर पहुँचा है। लेकिन उसका मन उसे पूरी तरह आश्वस्त नहीं कर पा रहा था कि यह उसकी मंज़िल है या नहीं। उसने गुफा की ओर नज़र घुमायी तो उसके मन ने इस बाबत निमिष भर में उसे आश्वस्त कर दिया। लम्बी काली दाढ़ी और गेरुए कपड़े में वह कोई पहुँचा हुआ सिद्ध लग रहा था। अचानक एक तेज़ हवा चली और मानिक को लगा उसकी सारी थकान को उस सिद्ध पुरुष ने हर लिया है। वह एक झटके से उठा और जा कर उस बाबा के चरणों में गिर गया। बाबा ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और उसे गौर से देखने लगा। उसके चेहरे पर तेज और आँखों में गहराई देख कर मानिक की आँखों से आँसू गिरने लगे। मानिक ने उसके सामने अपनी पूरी जिंदगी की तहें बिखरा दीं। बाबा इस कदर ख़ामोश था कि उसकी ज़िंदगी में इससे बड़ी बड़ी मानीखेज़ कहानियाँ हर मोड़ पर मिलती रही हैं और ऐसी कहानियाँ उसकी ज़िंदगी में कोई मायने नहीं रखती। मानिक ने पूरी कहानी सुनायी तो उसकी आँखें भर कर बहने लगी थीं। बाबा के माथे पर ऊब की सिकुड़न आ गयी थी और जब मानिक के कई बार पूछने पर उसने न समझ में आने वाले इशारे किये तो मानिक समझ गया कि वो मौनी बाबा है जिसने बिना बोले तपस्या करने का व्रत लिया होगा। जब मानिक ने कई बार मारण-मन्त्र को वापस लेने का तरीका पूछा तो बाबा ने इनकार में सिर हिलाया। मानिक समझ गया कि उसने सही सुना है कि मारण मन्त्र को वापस नहीं लिया जा सकता। उसने मौनी बाबा के पाँव पकड़ लिए तो बाबा ने उसे पाँव झटक कर एक ओर धकेल दिया। मानिक की आवाज भर्रायी हुई थी।

‘‘मैं जानता हूँ कि मन्त्र को वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन मैंने ये भी सुना है कि मन्त्र को जिसने चलाया है वो वापस अपने ऊपर ले सकता है। मैं मन्त्र अपने ऊपर लेना चाहता हूं, उसका कहा मेरी जान से अधिक कीमती है।’’

बाबा ने उसे त्रस्त हो जाने वाली नज़र से देखा और अपनी हथेली को अपनी गरदन पर क्षैतिज रूप से रखते हुए आरी की तरह हिलाया। मानिक पहली बार बाबा को संवाद करता देख उत्साह से भर गया।

‘‘हाँ, मैं समझ सकता हूँ कि मन्त्र वापस अपने पर लेने पर मेरी मौत निश्चित है लेकिन फिर भी मैं लेना चाहता हूँ। मुझे बताइये मैं क्या करूँ ?’’

बाबा ने एक लम्बी साँस ली और वही गरदन कटने का इशारा करते हुए दो सौ मीटर दूर दिखते झरने की ओर हाथ किया जिससे यह समझा जा सकता था कि जिस रास्ते से आया है उसी से वापस चला जा वरना मारा जायेगा। मानिक उत्साह में भर गया और उसके दिमाग ने जितना उसे समझाया, वह पानी ही उसे अपनी मुक्ति का रास्ता लगा। अगर मन्त्र का अनुष्ठान अग्नि के सामने हुआ है तो उतारने का तरीका निश्चित ही पानी के ज़रिये होगा। वह अपनी बिखरी हुई ताकत बटोरता उठा और नीचे की ओर उतरने लगा। कुछ पहाड़ियों को पार करने के बाद बेहद ठण्डे और साफ़ पानी का चश्मा सामने था।

मानिक के पहले छह-सात घण्टे पानी में सामान्य बीते लेकिन उसके बाद उसे ठण्ड लगनी शुरू हो गयी। वह गले तक पानी में पालथी मार कर बैठा हुआ मन ही मन मन्त्र को वापस लेने की प्रार्थना कर रहा था। उसके सामने उसकी बीती हुई ज़िंदगी के कुछ अच्छे बुरे मगर यादगार क्षण लगातार गुज़र रहे थे। उसे लगा उसके भीतर पिछले अठाइस सालों में कुछ भी नहीं बदला। वह जिस तरह सत्रह की उम्र में सोचता था, कमोबेश ऐसा ही सोचता है जबकि उसके सभी दोस्तों का नज़रिया धीरे-धीरे चीज़ों को लेकर कैसे आश्चर्यजनक रूप से बदलता गया था। दोस्तों की याद आने पर उसे संपत की याद सबसे ज़्यादा आयी और उसी के कुछ समय बाद उसके शरीर में ठण्डे पानी का कम्पन शुरू हुआ। कुछ समय बाद उसके दाँत हल्के-हल्के किटकिटाने लगे और फिर वह कम्पन उसके पूरे शरीर में पसरने लगा। उसके अंदाज़े से जितना समय यानि पूरी रात की अवधि मन्त्र को सिद्ध करने में लगी थी, कम से कम उतनी या उससे अधिक उसे वापस लेने के लिए भी चाहिए थी।

मानिक पानी के बीचोंबीच बैठा था और अब दूर से देखने पर उसका शरीर एक लय में कांपता हुआ दिखायी दे रहा था। उसके हल्के-हल्के काँपने से जो लहर उठ रही थी, वही लहर पानी को गतिमान बनाये हुए थी। ऐसा लगता था जैसे यह हल्के से बहता हुआ पानी मानिक का इंतज़ार कर रहा था जो आज उसके काँपने पर एक लय के साथ दूर तक वलय बना रहा था। मानिक की आँखों पर बेहोशी हावी हो रही थी और रात का आख़िरी पहर बीतने वाला था। उसने भोर की पहली किरण के साथ पहाड़ियों में रोशनी उतरती देखी और उसी रोशनी में विपरीत दिशा से संपत को आता हुआ देखा। इसके बाद उसकी बार-बार खोलने की कोशिश में मुंद रही आँखें अपने आप मुंद गयीं और वह पालथी मारे हुए ही उस पानी में गिर गया। पानी में उसकी खुली आँखों ने जो नज़ारा देखा वो इस दुनिया के अनुभवों से कुछ अलग था। पानी के ऊपर उसे शुभी का चेहरा धुंधला सा दिखायी दे रहा था। वह उस दिन की ही तरह खिलखिला कर हंस रही थी जब मानिक ने उसे अपने पति को पहली बार अपनी जूठी चाय पिला कर हंसते हुए देखा था। उसकी हँसी की आवाज़ पानी में से छन कर मानिक के कानों तक पहुंच रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे उस हँसी में उसकी ख़ुद की भी हँसी शामिल थी। पीछे से आती एक हल्की लहर ने उसे एक ओर फेंक दिया और पहले से मुंद रही उसकी आँखें कुछ देर के लिए बंद हो गयीं।

उसकी आँख खुली तो संपत उसके ऊपर झुका हुआ था। उसने पाया कि उस़का काँपता हुआ शरीर बाबा की चटाई पर पड़ा हुआ है और उसके ऊपर कई बोरे रख कर उसे ढका गया है जो शायद बाबा की गुफा से आये होंगे। उसने सिर धीमे से घुमा कर बाबा की गुफा की ओर देखना चाहा। संपत ने उस दिशा में देखा।

‘‘कोई था क्या यहाँ जब तुम आये ? मैंने तो बहुत देखा, कोई नहीं दूर दूर तक ।’’

मानिक की झपकती आँखों में सवाल थे जिसे संपत ने अपने अनुसार पढ़ने की कोशिश की।

‘‘तुम जहाँ इतने दिन की मेहनत से जान हथेली पे रख के आये, वहाँ पीछे से आने का भी एक रास्ता है। मैं तो साइकिल से आया हूं। उधर जहाँ पहाड़ियां खत्म होती है वहाँ दूसरे राज्य की सीमा शुरू होती है और वहाँ अच्छी खासी तारकोल वाली सड़क है। वहीं मैंने साइकिल खड़ी की है। चलो घर चलते हैं।’’

मानिक को कुछ स्पष्ट सुनायी नहीं दिया। संपत ने मानिक का हाथ थामा हुआ था। सूरज कहीं भी होगा लेकिन चमक मानिक की आँखों के ठीक ऊपर रहा था जिसकी वजह से मानिक को संपत की आवाज़ भी बादलों से आती सुनायी दे रही थी। उसे बादलों से अपनी ओर झांकता धुंधला चेहरा भी स्पष्ट दिखायी देने लगा था जो अभी थोड़ी देर पहले उसे पानी से ऊपर दिखा था। उसके हाथ पाँव सुन्न हो गये थे और बिल्कुल महसूस नहीं हो रहे थे। उनकी कंपकंपाहट बंद हो चुकी थी और मानिक को महसूस हुआ जैसे वह धीरे-धीरे अपने प्राण अपने अंगों से वापस बटोर रहा है। हाथ पाँव सुन्न हो जाने के बाद अब वह अपने धड़ से भी अपने प्राण वापस समेट रहा था। संपत जो भी बोल रहा था, मानिक को कुछ सुनायी नहीं दे रहा था। उसे सिर्फ़ महसूस हो रहा था कि कोई उसके ऊपर झुका हुआ है और कोई आवाज़ दूर बादलों से उस तक पहुंचना चाहती है लेकिन वह उसे स्पष्ट सुन नहीं पा रहा। उसने अपनी चुंधियाती आँखें पूरी ताकत से खोलने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ।

‘‘यार कल से तुझे यहाँ वहाँ खोज रहा हूँ। मनहर की तबियत अब ठीक है। वो शहर जाने को तैयार नहीं हो रहा था तो भतीजा शहर से एक बड़े डॉक्टर को ले आया था। डॉक्टर ने दारू एकदम से छोड़ने को कहा है उसको....।’’

मानिक को जो हल्की गूंजती हुई आवाज़ अब तक आ रही थी, वो भी आनी बंद हो गयी और अब तक बादलों में जो चेहरा अस्पष्ट सी आकृति लिए नज़र आ रहा था, वो बिल्कुल स्पष्ट हो गया। वह सत्रह साल की शुभी थी जिसने नाक में वही कील पहनी थी जो उसने मानिक के कहने पर पसंद की थी। पहले उसे गाँव की बाकी लड़कियों के उलट नाक कान छिदवाने में बिल्कुल रुचि नहीं थी लेकिन एक हल्की धूप वाले छरहरे दिन में जब मानिक ने उससे कहा था कि उसकी नाक में नथनी बहुत अच्छी लगेगी तो उसने ज़बरदस्ती सोलह साल की उम्र में अपनी माँ और चाची से ज़िद कर के नाक कान छिदवाये थे। मानिक ने ऐसे ही एक दिन रास्ते में रोज़ होने वाली पाँच मिनट की संक्षिप्त मुलाकात में कहा था कि शादी के बाद वह उसके लिए सोने की लौंग बनवायेगा और वह मुस्कराती हुई साइकिल पर तेज़ पैडल मारती निकल गयी थी।

मानिक ने देखा शुभी का चेहरा धीरे-धीरे उसके पास आ रहा है। उसकी नाक की लौंग पर जो सूरज की किरण पड़ रही है वह उसके चेहरे पर एक ऐसी चुंधियाती रोशनी डाल रही है कि मानिक देर तक उसकी ओर लगातार नहीं देख सकता। मानिक मुस्कराता है क्योंकि शुभी भी मुस्करायी है। मानिक उसके चेहरे से उठ रही रोशनी की वजह से आँखें झपकाता है। वह शुभी को लगातार देखना चाहता है लेकिन उसकी आँखें बंद होती जा रही हैं। उसे महसूस होता है कि कोई उसके पास बैठा है जो लगातार उससे कुछ कह रहा है और उसे झकझोर रहा है। उसे कुछ सुनायी नहीं दे रहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा। वह सिर्फ़ महसूस कर पा रहा है कि उसका पूरा शरीर फूल जैसा हल्का हो गया है और पलकें बहुत वजनी हो गयी हैं। उसे लगता है कि वह अपने निश्चल पड़े शरीर को थोड़ा भी हिला पाया तो वह उड़ने लगेगा लेकिन पलकें हैं कि गिरती ही जा रही हैं। शुभी का चेहरा उसके चेहरे के पास आ रहा है और जैसे जैसे दोनों के चेहरे पास आ रहे हैं उसकी आँखें यूं बंद हो रही हैं जैसे अब यही उनकी आख़िरी मंज़िल है। उसी पल उसे अपना नाम सुनायी देता है और उसे महसूस होता है जैसे उसके शरीर को ज़ोर ज़ोर से हिलाया जा रहा है। इससे उसे और अच्छा महसूस होता है और उसके हांठों पर एक मुस्कराहट आ जाती है क्योंकि शुभी के हांठ उसके होंठों के पास आ चुके होते हैं। वह पहल नहीं करना चाहता और थोड़ा शर्मा कर अपनी आंखें बंद कर लेता है। जैसे ही वह अपनी आँखें बंद करता है, उसे पता चलता है कि शुभी के होंठ उसके होंठों पर हैं और वह उसके होंठों को अपने होंठों में भर रही है। मानिक को लगता है उसके पूरे शरीर से हल्की भाप उठ रही है और सब कुछ राख हो रहा है। ओह! कितना सुख है इस तरह अपने सबसे ख़ूबसूरत क्षण में बीतते हुए राख होना! जो मुस्कान मानिक के होंठों पर थी, धीरे-धीरे उसे अपने पूरे शरीर में महसूस होती है। फिर वही मुस्कान उसे आसपास की पहाड़ियों और जंगल तक फैलती हुई महसूस होती है। फिर उसे लगता है कि सारा संसार उसकी इस मंद और मीठी मुस्कराहट में समाता जा रहा है।

अचानक मानिक को याद आता है कि वह बहुत देर से झाड़ियों में है और अगर थोड़ी देर में वह गिल्ली ले कर बाहर नहीं गया तो उसके दोस्त उसे खोजते हुए आ जाएंगे। उसके निश्चल पड़े शरीर में फिर से एक आख़िरी जुम्बिश होती है और उसके होंठों पर फिर से वही पूरे संसार में फैल चुकी मुस्कराहट तैर जाती है। जो-जो जिंदगी के सबसे ख़ूबसूरत एहसास हैं, वे बताये नहीं जा सकते। वे सिर्फ़ इसी तरह हल्की मुस्कराहट और नम आँखों के साथ महसूस किये जा सकते हैं। समय ही सारे एहसास देता है और समय गुज़रने पर वही बताता है कि उन एहसासों की कद्र इतनी ही नहीं बहुत बहुत ज़्यादा की जानी चाहिए थी। जब आँखें समय की आखि़री नींद से भारी होने लगती हैं तो सिर्फ़ यही क्षण सामने आते हैं और ज़िंदगी भर जिन चीज़ों के लिए कदम दौड़ते रहते हैं, वे इन क्षणों के सामने सिर उठाने की ज़रा भी कोशिश नहीं करते। सिर्फ़ एक क्षण को यह अनुभव होता है कि जीवन जैसा बीता है, उससे अच्छा बीत सकता था या उससे बुरा। मानिक को लगता है कि वह इस एहसास को लपेटे हमेशा से इसी तरह मुस्कराता रहा है। इस बात पर उसकी मुस्कराहट थोड़ी और बड़ी हो जाती है जिसे वह देख नहीं सकता।

उसे संपत के साथ बाकी दोस्तों की भी पास आती आवाज़ें सुनायी देती हैं और तभी कहीं दूर कुकर की सीटी बजती है। मानिक अपने होंठों को गोल कर शुभी के होंठों को अपने होंठों में भरने की फिर से एक हल्की कोशिश करता है।

दोस्तों की आवाज़ उतनी ही पास आ जाती है जितनी दूर कुकर की सीटी की आवाज़ होती है। मानिक की नाक में अचानक एक क्षण के लिए छौंकी जा रही दाल की तीव्र गंध आती है।


सम्पर्क.
विमल चन्द्र पाण्डेय
प्लॉट नम्बर 130-131
मिसिरपुरा, लहरतारा
वाराणसी - 221002 (उ0 प्र0)

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इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स गूगल से साभार ली गयी हैं

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