हरिशंकर परसाई जी की व्यंग्य रचना एक गो-भक्त से भेंट




इस समय गो रक्षा को ले कर पूरे देश में अचानक ही उबाल आ गया है. यह अचानक यूं ही नहीं है बल्कि चुनावों की वजह से है. गो रक्षा के नाम पर अन्य धर्मावलम्बियों को 'विधर्मी' घोषित कर मार डालना कहीं से भी उचित नहीं है. बंगाल के महाकवि चंडीदास ने कहा था 'साबार उपर मानुस सत्तो, तहार उपर किछु नाहीं' यानी सबसे उपर मानव धर्म है उसके उपर कुछ भी नहीं. गो-मांस रखने-खाने की आशंका मात्र को लेकर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर के दादरी के बिसाहड़ा गाँव में कुछ उन्मादियों ने ५० वर्षीय मोहम्मद अखलाक को 28 सितम्बर 2015 की शाम को पीट पीट कर मार डाला. इसे धर्मान्धता के अलावा और क्या कहा जा सकता है. ऐसे लोग देश और समाज को कहाँ और किस तरफ ले जाना चाहते हैं? यह हम सबके सामने एक यक्ष प्रश्न की तरह से है. कट्टरता मानवता की सबसे बड़ी दुश्मन होती है. इसकी पुष्टि इस घटना से ही हो जाती है. अरसा पहले विख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने अपनी व्यंग्य रचना 'एक गो-भक्त से भेंट' में इस मसले को ले कर चुटकी ली थी. आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं परसाई जी की यह प्रख्यात व्यंग्य रचना जो आज के समय में काफी प्रासंगिक है.              

एक गो-भक्त से भेंट 

रिशंकर परसाई 

एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामी जी के दर्शन हो गए. ऊँचे, गोरे और तगड़े साधु थे. चेहरा लाल. गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे. पाँवों में खड़ाऊँ. हाथ में सुनहरी मूठ की छड़ी. साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था. उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को रफ़ी के गाने के सुनवा रहा था.

मैंने पूछा- स्वामी जी, कहाँ जाना हो रहा है?

स्वामी जी बोले - दिल्ली जा रहे हैं, बच्चा!

मैने कहा- स्वामी जी, मेरी काफ़ी उम्र है. आप मुझे 'बच्चा' क्यों कहते हैं?

स्वामी जी हँसे. बोले - बच्चा, तुम संसारी लोग होस्टल में साठ साल के बूढ़े बैरे को 'छोकरा' कहते हो न! उसी तरह हम तुम संसारियों को बच्चा कहते हैं. यह विश्व एक विशाल भोजनालय है जिसमें हम खाने वाले हैं और तुम परोसने वाले हो. इसीलिए हम तुम्हें बच्चा कहते हैं. बुरा मत मानो. संबोधन मात्र है.

स्वामी जी बात से दिलचस्प लगे. मैं उनके पास बैठ गया. वे भी बेंच पर पालथी मारकर बैठ गए. सेवक को गाना बंद करने के लिए कहा.

कहने लगे- बच्चा, धर्म-युद्ध छिड़ गया. गोरक्षा-आंदोलन तीव्र हो गया है. दिल्ली में संसद के सामने सत्याग्रह करेंगे.

मैंने कहा- स्वामी जी, यह आंदोलन किस हेतु चलाया जा रहा है?

स्वामी जी ने कहा- तुम अज्ञानी मालूम होते हो, बच्चा! अरे गौ की रक्षा करना है. गौ हमारी माता है. उसका वध हो रहा है.

मैंने पूछा- वध कौन कर रहा है?

वे बोले- विधर्मी कसाई.

मैंने कहा- उन्हें वध के लिए गौ कौन बेचते हैं? वे आपके सधर्मी गोभक्त ही हैं न?

स्वामी जी ने कहा- सो तो हैं. पर वे क्या करें? एक तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे बेचने से पैसे मिल जाते हैं.

मैंने कहा- यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ!

स्वामी जी मेरी तरफ़ देखने लगे. बोले- तर्क तो अच्छा कर लेते हो, बच्चा! पर यह तर्क की नहीं, भावना की बात है. इस समय जो हज़ारों गो-भक्त आंदोलन कर रहे हैं, उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो. पर आंदोलन कर रहे हैं. यह भावना की बात है.

स्वामी जी से बातचीत का रास्ता खुल चुका था. उनसे जम कर बातें हुईं, जिसमें तत्व मंथन हुआ. जो तत्व प्रेमी हैं, उनके लाभार्थ वार्तालाप नीचे दे रहा हूँ.

स्वामी जी और बच्चा की बातचीत 

-स्वामी जी, आप तो गाय का दूध ही पीते होंगे?

-नहीं बच्चा, हम भैंस के दूध का सेवन करते हैं. गाय कम दूध देती है और वह पतला होता है. भैंस के दूध की बढ़िया गाढ़ी मलाई और रबड़ी बनती है.

तो क्या सभी गो भक्त भैंस का दूध पीते हैं?

हाँ, बच्चा, लगभग सभी.

तब तो भैंस की रक्षा हेतु आंदोलन करना चाहिए. भैंस का दूध पीते हैं, मगर माता गौ को कहते हैं. जिसका दूध पिया जाता है, वही तो माता कहलाएगी.

यानी भैंस को हम माता....नहीं बच्चा, तर्क ठीक है, पर भावना दूसरी है.

स्वामी जी, हर चुनाव के पहले गो-भक्ति क्यों ज़ोर पकड़ती है? इस मौसम में कोई ख़ास बात है क्या

बच्चा, जब चुनाव आता है, तम हमारे नेताओं को गोमाता सपने में दर्शन देती है. कहती है- बेटा चुनाव आ रहा है. अब मेरी रक्षा का आंदोलन करो. देश की जनता अभी मूर्ख है. मेरी रक्षा का आंदोलन करके वोट ले लो. बच्चा, कुछ राजनीतिक दलों को गो माता वोट दिलाती है, जैसे एक दल को बैल वोट दिलाते हैं. तो ये नेता एकदम आंदोलन छेड़ देते हैं और हम साधुओं को उसमें शामिल कर लेते हैं. हमें भी राजनीति में मज़ा आता है. बच्चा, तुम हमसे ही पूछ रहे हो. तुम तो कुछ बताओ, तुम कहाँ जा रहे हो?

स्वामी जी मैं 'मनुष्य-रक्षा आंदोलन' में जा रहा हूँ.

यह क्या होता है, बच्चा?

स्वामी जी, जैसे गाय के बारे में मैं अज्ञानी हूँ, वैसे ही मनुष्य के बारे में आप हैं.

पर मनुष्य को कौन मार रहा है?

इस देश के मनुष्य को सूखा मार रहा है, अकाल मार रहा है, महँगाई मार रही है. मनुष्य को मुनाफ़ाखोर मार रहा है, काला-बाज़ारी मार रहा है. भ्रष्ट शासन-तंत्र मार रहा है. सरकार भी पुलिस की गोली से चाहे जहाँ मनुष्य को मार रही है. बिहार के लोग भूखे मर रहे हैं.

-बिहार? बिहार शहर कहाँ है बच्चा?

-बिहार एक प्रदेश है, राज्य है.

- अपने जम्बूद्वीप में है न?

स्वामी जी, इसी देश में है, भारत में.

यानी आर्यावर्त में?

 जी हाँ, ऐसा ही समझ लीजिए. स्वामी जी, आप भी मनुष्य-रक्षा आंदोलन में शामिल हो जाइए न!

नहीं बच्चा, हम धर्मात्मा आदमी हैं. हमसे यह नहीं होगा. एक तो मनुष्य हमारी दृष्टि में बहुत तुच्छ है. वे लोग ही तो हैं, जो कहते हैं, मंदिरों और मठों में लगी जायदाद को सरकार ले लो. बच्चा, तुम मनुष्य को मरने दो. गौ की रक्षा करो. कोई भी जीवधारी मनुष्य से श्रेष्ठ है. तुम देख नहीं रहे हो, गोरक्षा के जुलूस में जब झगड़ा होता है, तब मनुष्य ही मारे जाते हैं. एक बात और है, बच्चा! तुम्हारी बात से प्रतीत होता है कि मनुष्य-रक्षा के लिए मुनाफ़ाख़ोर और काला-बाज़ारी से बुराई लेनी पड़ेगी. यह हमसे नहीं होगा. यही लोग तो गोरक्षा-आंदोलन के लिए धन देते हैं. हमारा मुँह धर्म ने बंद कर दिया है.

ख़ैर, छोड़िए मनुष्य को. गोरक्षा के बारे में मेरी ज्ञान-वृद्धि कीजिए. एक बात बताइए, मान लीजिए आपके बरामदे में गेहूँ सूख रहे हैं. तभी एक गो माता आकर गेहूँ खाने लगती है. आप क्या करेंगे?

बच्चा? हम उसे डंडा मार कर भगा देंगे.

पर स्वामी जी, वह गोमाता है न. पूज्य है. बेटे के गेहूँ खाने आई है. आप हाथ जोड़ कर स्वागत क्यों नहीं करते कि आ माता, मैं कृतार्थ हो गया. सब गेहूँ खा जा.
 
बच्चा, तुम हमें मूर्ख समझते हो?

नहीं, मैं आपको गोभक्त समझता था.

सो तो हम हैं, पर इतने मूर्ख भी नहीं हैं कि गाय को गेहूँ खा जाने दें.

पर स्वामी जी, यह कैसी पूजा है कि गाय हड्डी का ढाँचा लिए हुए मुहल्ले में काग़ज़ और कपड़े खाती फिरती है और जगह जगह पिटती है!



बच्चा, यह कोई अचरज की बात नहीं है. हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते हैं. यही सच्ची पूजा है. नारी को भी हमने पूज्य माना और उसकी जैसी दुर्दशा की सो तुम जानते ही हो.



स्वामी जी, दूसरे देशों में लोग गाय की पूजा नहीं करते, पर उसे अच्छी तरह रखते हैं और अब वह खूब देती है.



बच्चा, दूसरे देशों की बात छोड़ो. हम उनसे बहुत ऊँचे हैं. देवता इसीलिए सिर्फ़ हमारे यहाँ अवतार लेते हैं. दूसरे देशों में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ वह दंगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है. हमारी गाय और गायों से भिन्न है.

स्वामी जी, और सब समस्याएँ छोड़ कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए हैं?

इसी से सब हो जाएगा, बच्चा! अगर गो-रक्षा का क़ानून बन जाए, तो यह देश अपने-आप समृद्ध हो जाएगा. फिर बादल समय पर पानी बरसाएँगे, भूमि ख़ूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे. धर्म का प्रताप तुम नहीं जानते. अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर का परिणाम है

स्वामी जी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नहीं करते, फिर भी समृद्ध हैं?

उनका भगवान दूसरा है बच्चा. उनका भगवान इस बात का ख़्याल नहीं करता.

और रूस जैसे समाजवादी दश भी गाय को नहीं पूजते, पर समृद्ध हैं?

उनका तो भगवान ही नहीं बच्चा. उन्हें दोष नहीं लगता.

यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है. वह हर बात का दंड देने लगता है.

तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना ग़लत है.

स्वामी जी, जहाँ तक मैं जानता हूँ, जनता के मन में इस समय गोरक्षा नहीं है, महँगाई और आर्थिक शोषण है. जनता महँगाई के ख़िलाफ़ आंदोलन करती है. वह वेतन और महँगाई-भत्ता बढ़वाने के लिए हड़ताल करती है. जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है. और इधर आप गो रक्षा-आंदोलन लेकर बैठ गए हैं. इसमें तुक क्या है?



बच्चा, इसमें तुक है. देखो, जनता जब आर्थिक न्याय की माँग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज़ में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह ख़तरनाक हो जाती है. जनता कहती है - हमारी माँग है महँगाई बंद हो, मुनाफ़ाख़ोरी बंद हो, वेतन बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी माँग गोरक्षा है. बच्चा, आर्थिक क्रांति की तरफ़ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूँटे से बाँध देते हैं. यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है.

स्वामी जी, किसकी तरफ़ से आप जनता को इस तरह उलझाए रखते हैं?

जनता की माँग का जिन पर असर पड़ेगा, उसकी तरफ़ से. यही धर्म है. एक दृष्टांत देते हैं. एक दिन हज़ारों भूखे लोग व्यवसायी के गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़े. व्यवसायी हमारे पास आया. कहने लगा- स्वामीजी, कुछ करिए. ये लोग तो मेरी सारी जमा-पूँजी लूट लेंगे. आप ही बचा सकते हैं. आप जो कहेंगे, सेवा करेंगे. बस बच्चा, हम उठे, हाथ में एक हड्डी ली और मंदिर के चबूतरे पर खड़े हो गए. जब वे हज़ारों भूखे गोदाम लूटने का नारा लगाते आए, तो मैंने उन्हें हड्डी दिखायी और ज़ोर से कहा- किसी ने भगवान के मंदिर को भ्रष्ट कर दिया. वह हड्डी किसी पापी ने मंदिर में डाल दी. विधर्मी हमारे मंदिर को अपवित्र करते हैं., हमारे धर्म को नष्ट करते हैं. हमें शर्म आऩी चाहिए. मैं इसी क्षण से यहाँ उपवास करता हूँ. मेरा उपवास तभी टूटेगा, जब मंदिर की फिर से पुताई होगी और हवन करके उसे पुनः पवित्र किया जाएगा. बस बच्चा, वह जनता आपस में ही लड़ने लगी. मैंने उनका नारा बदल दिया. जव वे लड़ चुके, तब मैंने कहा- धन्य है इस देश की धर्म-प्राण जनता! धन्य है अनाज के व्यापारी सेठ अमुक जी! उन्होंने मंदिर की शुद्धि का सारा ख़र्च देने को कहा है. बच्चा जिसका गोदाम लूटने वे भूखे जा रहे थे, उसकी जय बोलने लगे. बच्चा, यह है धर्म का प्रताप. अगर इस जनता को गो रक्षा-आंदोलन में न लगाएँगे यह बैंकों के राष्ट्रीयकरण का आंदोलन करेगी, तनख़्वाह बढ़वाने का आंदोलन करेगी, मुनाफ़ाख़ोरी के ख़िलाफ़ आंदोलन करेगा. उसे बीच में उलझाए रखना धर्म है, बच्चा.

स्वामी जी, आपने मेरी बहुत ज्ञान-वृद्धि की. एक बात और बताइए. कई राज्यों में गो रक्षा के लिए क़ानून है. बाक़ी में लागू हो जाएगा. तब यह आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा. आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे.

अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय हैं. सिंह दुर्गा का वाहन है. उसे सरकसवाले पिंजरे में बंद करके रखते हैं और उससे खेल कराते हैं. यह अधर्म है. सब सरकस वालों के ख़िलाफ़ आंदोलन करके, देश के सारे सरकस बंद करवा देंगे. फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतार भी है. मछली भगवान का प्रतीक है. हम मछुओं के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ देंगे. सरकार का मछली-पालन विभाग बंद करवाएँगे.



-स्वामी जी, उल्लू लक्ष्मी का वाहन है. उसके लिए भी तो कुछ करना चाहिए.



-यह सब उसी के लिए तो कर रहे हैं, बच्चा! इस देश में उल्लू को कोई कष्ट नहीं है. वह मज़े में है

इतने में गाड़ी आ गई. स्वामी जी उसमें बैठ कर चले गए. बच्चा, वहीं रह गया.


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग BBC.CO.UK से साभार ली गयी है.) 

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-10-2015) को "तलाश शून्य की" (चर्चा अंक-2140) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. गाय से ज्यादा दूध प्राप्ति के लिए इंजेक्शन ठोकते हैं-तब गाय में माता दिखाई नहीं देती?
    जब चरने के लिये सड़को पर छोड़ देते हैं तब वह चाहे थैली खाये या गन्दगी-उस समय उसमें माँ का भाव कहाँ चला जाता है?
    स्लॉटर हाउसेस ज्यादातर तथाकथित गौ भक्तो के-उनके ऊपर कोई टिप्पणी नहीं,कोई विरोध नहीं?

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  3. गाय से ज्यादा दूध प्राप्ति के लिए इंजेक्शन ठोकते हैं-तब गाय में माता दिखाई नहीं देती?
    जब चरने के लिये सड़को पर छोड़ देते हैं तब वह चाहे थैली खाये या गन्दगी-उस समय उसमें माँ का भाव कहाँ चला जाता है?
    स्लॉटर हाउसेस ज्यादातर तथाकथित गौ भक्तो के-उनके ऊपर कोई टिप्पणी नहीं,कोई विरोध नहीं?

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  4. Bhai is post ke liye vishesh Dhanyavaad! Parsai Ji mere priy lekhkon mein se hain...Laajavaab kar deta hai unka lekhn.
    - Kamal Jeet Choudhary

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  5. बहुत-बहुत आभार आपका...आँखे खोलती रचना

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