सीमा आजाद की कहानी 'मुआवजा'


सीमा आजाद

सीमा आजाद न केवल एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और 'दस्तक' पत्रिका की सम्पादक  हैं, बल्कि उन्होंने हिन्दी कहानी के क्षेत्र में सार्थक हस्तक्षेप करने की कोशिश भी की है। इसी क्रम में भोपाल गैस त्रासदी पर सीमा ने एक महत्वपूर्ण कहानी लिखी है 'मुआवजा'। यह कहानी जनवरी 2014 के 'हंस' में छपी थी। संयोगवश सीमा की कहीं भी प्रकाशित यह पहली कहानी है  लेकिन इस कहानी की त्रासदी यह है कि समीक्षकों तक ने इसे ध्यान से पढ़ने की जहमत नहीं उठायी। कहानी को उसके कथानक, शिल्प और ट्रीटमेंट के आधार पर खारिज करना एक तार्किक बात हो सकती है लेकिन बिना पढ़े ही उसकी बे सिर-पैर की समीक्षा कर देने को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।  अपने एक मेल में सीमा ने अपने दर्द को बयाँ किया है।  तुरत-फुरत और इफरात में लिखने वाले समीक्षकों को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए। सीमा आजाद के वक्तव्य के साथ हम उनकी कहानी भी 'पहली बार' के पाठकों के लिए यहाँ पर प्रस्तुत कर रहे हैं।      


मेरी कहानी मुआवजाहंस के 2014 के अंक में प्रकाशित हुई थी, इस कहानी को मैंने 2010 में जेल प्रवास के दौरान लिखा था, जब भोपाल गैस काण्ड से जुड़े  मुकदमें का फैसला आया था। मैंने जेल से ही इस कहानी को प्रकाशन के लिए  भेजना भी चाहा था पर जेल प्रशासन ने नहीं भेजा। जाहिर है कहानी का विषय भोपाल गैस काण्ड है। लेकिन लमही के ताजा अंक जनवरी 2015 में ओम प्रकाश मिश्र ने साल भर की स्त्री लेखिकाओं की कहानियों मूल्यांकन करते हुए अपने लेख में लिखा है- ‘‘बेमेल विवाह के कारण असंतुष्ट चाची की अपने भतीजे से काम-तृप्ति का बखान करती सीमा आजाद की कहानी मुआवजा........पाठक को केवल काम-कुंठाओं की दुनिया की सैर कराती है।’’ यानि विषय में जमीन-आसमान का फर्क। जब मैंने उनसे इस सन्दर्भ में फोन पर बात की तो उन्होंने हंस का वह  अंक निकाल कर मेरी कहानी 'मुआवजा' पढ़ी और काफी शर्मिंदा होते हुए वापस फोन कर माफी मांगी। लमही में भी लिखित माफी मांगने की बात कही, 'लमही' के ऑनलाइन संस्करण पर माफी आयी भी। पर इसे पढ़  कर साफ लगता है कि यह माफी कम, भूल सुधार ज्यादा है, ताकि लोग इस भूल के कारण उनकी आलोचनात्मक विद्वता पर उंगली न पाये, बस। 'लमही' के सम्पादक विजय राय जी इस गलती के साझीदार हैं। उन्होंने अपने सम्पादकीय में ओमप्रकाश जी की उक्त बात को जस का तस शामिल कर लिया है। जब मैंने उनसे इस सम्बन्ध में बातचीत की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने 'मुआवजा' पढ़ी नहीं है और ओम प्रकाश जी की बात को बिना जांचे अपने सम्पादकीय में लगा दिया। उनसे बात करके तो मुझे असंतुष्टि भी हुई क्योंकि उन्होंने इस गलती को कैजुअली लेते हुए कहा कि ठीक है आप लमही में एक पत्र भेज दीजिये अगली बार हम प्रकाशित कर देंगे।थोड़ी देर बाद मैंने एस.एम.एस. कर के ओमप्रकाश जी की तरह ही अपनी आलोचना लिखने को कहा। दोनों लोगों ने 'लमही' के ऑनलाइन संस्करण पर माफीनामा डाल भी दिया है, पर यह आलोचकों पर एक सवाल है कि कैसे वे कहानी को बिना पढ़े उस पर अपनी राय न सिर्फ बना लेते हैं बल्कि उसे प्रकाशित भी कर देते हैं।- सीमा आजाद 

मुआवजा

सीमा आजाद 

शराब का तीसरा पैग खत्म करने के बाद मि. शर्मा पर २६ साल पहले घटी वह घटना कुछ ज्यादा ही सर चढने लगी थी। उनकी मित्र मंडली शराब से भरा गिलास थामे मि. शर्मा की इस रोमांचक दास्तान को सुन रही थी। मि. शर्मा की कम्पनी ने एक बड़ी सफ़लता मिलने की खुशी मे यह शराब पार्टी अरेंज की थी और आज इस पार्टी में ही मि. शर्मा को पहली बार शराब चखने का किस्सा याद आ गया, जब वे १०वीं में थे। उन दिनों वे भोपाल में थे, जी हां उसी भोपाल में जहाँ जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। मि. शर्मा अपने मित्रों को बता रहे थे कि कैसे उनके मित्रों ने रोहित के यहाँ पढने के बहाने इकठ्ठा हो कर शराब को चखने और उसके नशे को जानने की योजना बनायी थी।

     रोहित का घर पुराने भोपाल मे था। बस यूनियन कार्बाइड फ़ैक्ट्री के पास वाली मज़दूर बस्ती और उससे थोड़ी ही दूरी पर बने अपार्टमेन्ट्‍स मे रोहित रहता था जहां मि. शर्मा को नये भोपाल के पाश इलाके से उनके पिता की कार छोड़ कर गयी थी।

"रोहित के मां-बाप किसी शादी मे शामिल होने के लिये दो दिन के लिये घर से बाहर गये हुए थे, रोहित पढ़ाई का बहाना करके रूक गया था।" यह बता कर मि. शर्मा जोर-जोर से हँसने लगे, जिससे उनकी शराब से भरी गिलास छलक गयी और इस पर उनकी पूरी मित्र मंडली ठहाका लगा कर हँस पड़ी।

"स्साला रोहित... अपने पड़ोसियों को तो हैण्डिल कर नही पाता था अब शेयर मार्केट मैनेज कर रहा है।" मि. शर्मा ने हँसी से निकले आंसुओं को पोछते हुए बोलना जारी रखा। "हमने शराब तो किसी तरह अरेंज कर ली थी, पूरी तैयारी कर ली, तभी स्साला रोहित के घर के सामने बुड्‍ढा उसका हाल-चाल लेने आ गया। किसी तरह हमने जल्दी-जल्दी बोतलें हटाईं और कमरा ठीक किया।" मि. शर्मा की मित्र मंडली फ़िर हँस पड़ी। कुछ के गिलास खाली हो गये तो उन्होने फ़िर से भर लिया। "स्साला बुड्‍ढा बैठ गया और धर्म-कर्म को लेकर जो लेक्चर देना शुरु किया तो चुप होने का नाम ही ना ले। वो तो स्साला वहीं सोने की तैयारी कर के आया था। हमने काफ़ी बहानेबाजी करके उसे वापस उसके घर जाने के लिये तैयार किया, पर तब तक हमारा आधा मज़ा तो स्साले ने खराब ही कर दिया था।"

"फ़िर तुम लोगो ने पी या नहीं"। मि. गुप्ता ने हो हो कर के हँसते हुए पूछा।
"उसके जाने तक रात के १२ बज गये थे, तब जा कर हमारी योजना पूरी हो सकी। जल्दी-जल्दी हमने मेज सजाई, गिलास भरा और गटक गये। उफ़ कितना कड़वा स्वाद था।" मि. शर्मा ने मुंह सिकोड़ कर कहा तो मित्र मंडली फ़िर ठहाका मार कर हँसने लगी।

"अब कैसा लगता है स्वाद?" मि. गुप्ता ने पूछा तो सब फ़िर से हंसने लगे, पर मि. शर्मा नही हँसे, वे सबके चेहरे देखते रहे, इतनी देर तक कि सब थोड़ा परेशान हो गये। बगल मे बैठे गुप्ता जी ने जब उन्हें झकझोरा तभी उनके मुँह से अगला वाक्य निकला - "यार मेरा शराब का पहला अनुभव बड़ा भयानक था, क्योंकि यह साधारण रात नही थी।"

"तो क्या यह फ़्राईडे द थर्टीन कि रात थी?" मि. भल्ला ने एक खास अन्दाज मे पूछा तो माहौल मे हँसी थोड़ी देर को तैर कर स्थिर हो गयी।
"नहीं, यह भोपाल की २ से ३ दिसम्बर वाली जहरीली रात थी।"
"क्या? और तू तो यूनियन कार्बाइड के पास के एरिया में था तो बच कैसे गया।" मि. भल्ला ने फ़िर मजा लिया। "शराब ने ही बचा लिया होगा" मि गुप्ता ने हँसते हुए कहा।
मि. अहलूवालिया ने इस मजाकिया माहौल में सीरियस होते हुए पूछा - "तू बता यार फ़िर क्या हुआ, तू कैसे बचा?"

मित्र मंडली पर शराब का नशा भले ही सर चढ़ कर बोलने लगा था, पर मि. शर्मा के सर से नशा अब उतरने लगा था। उनके चेहरे और आवाज से लग रहा था कि मानों वे वापस भोपाल की २ से ३ दिसम्बर वाली रात मे वापस पहुंच गये हों। मानों अब वे 'डाव केमिकल्स' के मैनेजिंग टीम के सदस्य नहीं, बल्की २६ साल पीछे वाले १६ वर्षीय रमन शर्मा हों। मानों वे 'डाव केमिकल्स' द्वारा दी जाने वाली दारू पार्टी मे नहीं बल्कि अपने हाईस्कूल के दोस्तों के बीच बैठे शराब पी रहे हों, जब एक-एक दो-दो घूंट लगाते ही सबकी आंखों मे जलन शुरू गयी थी। रोहित सबसे पहले उठ कर किचन की ओर भागा कि कहीं कुछ जल न रहा हो। वहाँ कुछ न पाकर वापस कमरे में आकर उसने शराब सूंघी कि कही उसके असर से तो यह नहीं हो रहा।
यह सुनते ही मि. शर्मा की मित्र मंडली फ़िर से हँस पड़ी। फ़िर भी मि. शर्मा बोलते गये-

"तभी अपार्ट्मेन्ट के अगल बगल वाले घरों से खिड़की-दरवाजे खुलने की आवाज आने लगी और रोहित ने घबराहट मे सबकी गिलास और शराब की बोतल टांयलेट मे ले जा कर उड़ेल दी और फ़्लश चला दिया।"


फ़िर हँसी का ठहाका गूंज गया। पर शर्मा नशे मे बोलते गये बगैर हँसी की परवाह किये - "इन सबके बीच आंख मे जलन और बेचैनी इतनी बढ़ने लगी कि मुदित ने उठ कर दरवाजा खोल दिया, हम सब बाहर निकल गये। वहाँ का दृश्य देख कर हम और घबरा गये। रोहित के सभी पड़ोसी सड़क पर उतर कर भागे जा रहे थे, हम भी सीढ़ी उतर कर सड़क पर आ गये।" यह बताते-बताते मि. शर्मा हांफ़ने लगे। जैसा २६ साल पहले गैस के असर से बचने के लिये वे भागते-भागते हांफ़ने लगे थे। तब से अब भी वे कभी-कभी वैसा ही हांफ़ने लगते हैं। अबकी बार सबने उन्हे सीरियसली लिया। सबने उन्हे चुप रहने के लिये कहा। मित्र मंडली को लग रहा था कि यह शराब ज्यादा पीने और ज्यादा नशा चढ़ जाने के कारण हो रहा है। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मि. गुप्ता ने मजा लेने के लिये फ़िर से पूछ लिया - "फ़िर आप मर गये या बच गये?"

इस डर से कि कहीं इस बात से मि. शर्मा भड़क न जाय मित्र मंडली ने सिर्फ़ व्यंग्य भरी हँसी से काम चला लिया, ठहाका नही लगाया। मि. शर्मा को इससे सचमुच राहत मिली और उन्होने फ़िर से बताना शुरु कर दिया - "मैं सड़क पर उतर कर तब तक दूसरों को धकियाता, गिराता हुआ दौड़ता रहा, जब तक कि मैं बेहोश नहीं हो गया।"

"फ़िर क्या हुआ" मि. गुप्ता ने बेहद नशीली आंखो से देखते हुए पूछा।

"फ़िल्मों मे जैसा हीरो के साथ होता है, वैसा ही मेरे साथ भी हुआ। जब मुझे होश आया तो मैं घर मे था। मेरे मम्मी डैडी और दो-दो डाक्टर मुझे घेर कर खड़े थे।"
"ऐसा कैसे हुआ शर्मा जी।" इस बार मि. भल्ला ने टेक दी। "क्योंकि मैं यूनियन कार्बाइड के मैनेजिंग टीम के सदस्य का बेटा था इसलिये ऐसा सम्भव हुआ यार, वरना मैं तो सचमुच तुम लोगों के बीच आज नहीं बैठा होता।" इस बात पर सब च्च.. च्च.. की आवाज निकाल उठे तो मि. शर्मा ने बिना रुके बात आगे बढ़ाई -
"पिता जी को गैस रिसाव के बारे मे तुरन्त पता चल गया था, माँ ने उन्हें बताया कि मैं रोहित के घर हूँ तो उन्होंने तुरन्त मेरे लिये गाड़ी भेज दी और ड्राइवर ने किसी तरह मुझे ढूढ़ निकाला, भले ही सुबह होते होते ड्राइवर की मौत हो गयी क्योकि दोनो डाक्टरों को मुझसे फ़ुर्सत ही नही मिली।"

"और बाकी दोस्तों का क्या हुआ" किसी ने पूछा - "मुझे नहीं पता क्योंकि अगले ही दिन मेरे मम्मी डैडी मुझे ले कर एरोप्लेन से दिल्ली आ गये और वहीं बस गये। सिर्फ़ रोहित से कुछ दिन पहले इन्टरनेट पर सम्पर्क हुआ तो बस इतना पता चला कि वो शेयर बाजार के काम में है।"

"पता कर यार हो सकता है तेरे दोस्त भी मुआवजा मांगने वालों की लाइन में खड़े हों और वे भी नारे लगा रहे हों - मुआवजा दो, मुआवजा दो, भोपाल गैस काण्ड के दोषियों को सजा दो, सजा दो।" मि. भल्ला ने जब हाथ ऊपर उठा कर नारे लगाने वाले अंदाज मे ही यह बात कही तो सब के सब हो-हो-हो करते हुए दोहरे हो गये। जब हँसी का यह दौर कुछ ठण्डा पड़ने लगा तो मि. अहलूवालिया ने इसे यह कह कर फिर से तेज कर दिया कि "उन्हें क्या पता कि भोपाल गैस काण्ड के एक दोषी का लड़का अपने पिता की तरह डाव केमिकल्स कम्पनीकी मैनेजिंग टीम का मेम्बर बन कर इण्डिया लौट आया है, उनके जख्मों पर प्यार से नमक छिड़कने के लिये।"

"सही बात है यार तेरे पुराने भोपाल के दोस्तों को मुआवजा मिला हो या नहीं पर तुझे तो भरपूर मुआवजा मिला साले गैस पीड़ित.." गुप्ता ने यह बात मि. शर्मा के पेट पर हाथ फ़ेरते हुए कही और फ़िर आवाज भारी कर इसमे जोड़ा - "दिल्ली से १०+२ करने के बाद लंदन, लंदन मे पांच साल की हायर एजुकेशन के बाद अमेरिका, अमेरिका मे १० साल तक कंपनी चलाने के दांव-पेंच सीखने के बाद दुनिया के मोस्ट वांटेड पूंजीपती एण्डरसन की मौसेरी जहरीली कम्पनी मे मैनेजिंग टीम के मेम्बर और कुछ दिन बाद वांटेड एम डी।" हंसी का ठहाका गूंजता रहा, शराब का दौर जारी रहा। सामने रखी टी.वी. पर खबर चलती रही - भोपाल गैस काण्ड के दोषियों को मात्र दो-दो वर्ष कैद की सजा और १-१ लाख रूपये का जुर्माना। दोषियों को सजा सुनाने के बाद ही २५-२५ हज़ार के निजी मुचलके पर छोड़ दिया गया‘, ‘भोपाल काण्ड पीड़ितों ने अदालत के फ़ैसले का विरोध फ़िर से सड़क पर उतर कर किया, पूरे देश से एण्डरसन को फ़ांसी देने की मांग तेज़ होने लगी है..।‘ ‘एण्डरसन को सुरक्षित देश से बाहर निकालने के मामले में सरकार कटघरे में..‘, ‘भाजपा ने कांग्रेस के इस कृत्य को गलत ठहराया‘, ‘भाजपा द्वारा 'डाव केमिकल्स' जो कि यूनियन कार्बाइड की सहयोगी कम्पनी है, से चंदा लेने के मामले ने तूल पकड़ा....
थोड़ी देर टी.वी. पर चलती इन खबरों को हो-हो करते हुए सुनने के बाद मि. भल्ला ने लड़खड़ाती जुबान से कहा - "स्साले बड़ा चंदा पेट में पचा भी नही सकते, बदबू फ़ैला ही दी.."। अहलूवालिया ने बीच में ही बोलते हुए कहा, छोड़ यार इन सब बातों को अभी... "पर यार शर्मा, एण्डरसन ने और सरकार ने तेरे पिता को उनकी वफ़ादारी का बदला अच्छी तरह चुका दिया, तुझे तो उसने अपनी मौसेरी कम्पनी में हायर पोजिशन दे ही दी, तेरे पिता को भी मात्र १ लाख २५ हजार मे छुड़वा लिया, अब तुझे भी अपनी वफ़ादारी दिखानी है।"

"यानी फ़िर से यदि कुछ जहरीला रिस जाय तो अपने मालिक को सबसे पहले बचाना है फ़िर ऊपर वाला मालिक तेरा बचाव आप ही कर देगा। २५-३० साल तक मुकदमा चलेगा, थोड़ी-मोड़ी सजा हुई भी तो मालिक‘ (मि. गुप्ता ने अपने दोनो हाथों से कोट्स बनाते हुए कहा) हमे छुड़ा ही लेगा। हमारी तो ऐश ही ऐश, इसी खुशी में तो हम आज यहां बैठे हैं।"

मि. भल्ला ने वाक्य को खूब खींच कर बोलते हुए कहा "न भोपाल में गैस लीक करती, न इतने लोग मरते, न कम्पनी पर मुकदमा होता, न हमारी जीत होती तो आज हमें ये दारू पार्टी भला कौन देता सालो..." इतना सुनते ही मि. गुप्ता हँसते-हँसते सोफ़े पर लोट-पोट हो गये, बाकी सभी का भी यही हाल था। जब हँसी का गुबार थोड़ा थमने लगा तब मि. शर्मा ने चहकते हुए कहा -

"आगे से ऐसी दुर्घटना हो भी गयी तो मुकदमें-उकदमें का झंझट ही नही होगा यारों.. भारत सरकार ने अब हमारे लिये ऐसी सुविधा बना दी है कि दुर्घटना करो थोड़ा सा मुआवजा दो.. और बस.. यानी आगे से मुकदमे की जीत की खुशी में मिलने वाली दारू पार्टी का कोई चांस नही, हा, हा, हा।"

मि. भल्ला ने दुखी सा मुँह बनाते हुए कहा - "हाँ यार, वो क्या नाम है उसका - न्यूक्लियर लाइबेलिटी बिलइसने इस तरह की दारू पार्टियों का स्कोप खत्म कर दिया समझो।"

पर दूसरी तरह की दारू पार्टियों का स्कोप तो बनाये रखा है। ये बिल मि. शर्मा के पिता की तरह हमें इधर-उधर भागने से बचा लेगा, बिचारे मि. शर्मा बचपन मे फ़िर दूसरी दारू पार्टी नहीं कर सके होंगे, सीधे जवानी मे ही पिया होगा...[हँसी का ठहाका].. पर ये बिल ऐसा नही होने देगा, हम सब को बचा लेगा। थोड़ा सा मुआवजा दो और ऐश करो, चीयर्स।"

मि. अहलूवालिया ने शराब का गिलास यह कहते हुए उठाया तो सबने मिल कर चीयर्स किया और मि. भल्ला ने इसमे जोड़ दिया -

"यानी मि. शर्मा के बचपन की दारू पार्टी का मजा भले ही किरकिरा हो गया है इनके बेटे का हरगिज नही होगा। जय हो, जय हो, चीयर्स।"

सबने ठहाका लगाकर चीयर्स किया, दारू पार्टी चलती रही। बैकग्राउण्ड मे टी.वी. पर भोपाल गैस त्रासदी की कई दर्दनाक खबरें, स्टोरीस तस्वीरों के साथ चलती रही। भोपाल मे वर्षों से अदालत से न्याय मिलने की आस मे बैठे लोग फिर से सड़क पर उतर रहे थे।

सम्पर्क-
मोबाईल- 09506207222

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है)

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