दीपेन्द्र सिवाच का आलेख लॉर्ड्स टेस्ट में भारत की विजय
लार्ड्स टेस्ट
में अट्ठाईस वर्षों बाद इंग्लैंड पर विजय हासिल कर भारतीय क्रिकेट टीम ने टेस्ट क्रिकेट में अपने को फिर से साबित किया है.
दीपेन्द्र सिवाच ने भारत के इस ऐतिहासिक विजय पर एक नजर डाली है. दीपेन्द्र
खेलों पर जब भी लिखते हैं वह अलग किस्म का होता है. उनके लेखन में केवल
खेल ही नहीं होता बल्कि अन्य सामयिक संदर्भ भी समाहित होते हैं. आईए पढ़ते
हैं दीपेन्द्र का यह आलेख
लॉर्ड्स टेस्ट में भारत की विजय
दीपेन्द्र सिवाच
भारत और
इंग्लैंड के बीच वर्तमान श्रृंखला के दूसरे टेस्ट मैच के अंतिम दिन जब जो रूट और मोईन अली
बैटिंग करने क्रीज़ पर आए थे उस समय कम ही लोग ये सोच रहे होंगे कि क्रिकेट
के मक्का "लॉर्ड्स" के मैदान पर क्रिकेट के जनक इंग्लैंड का इस तरह मान
मर्दन होगा। उनके ऐसा सोचने के पर्याप्त कारण भी थे। भारतीय टीम का रिकॉर्ड ये बता
रहा था कि भारत ने इससे पहले 81 साल के इतिहास में जो 16 मैच खेले हैं उनमें से
मात्र एक बार 1986 में
कपिलदेव के नेतृत्व में जीत हासिल की है। वरना तो बाकी 15 में से 4 ड्रा
किये और 11 में हार ही
खाई थी। फिर 2011 का दौरा
भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा था जिसमें भारत ने बुरी तरह मुँह की
खाई थी और चारों टेस्ट हार गई थी। फिर गेंदबाज़ी भारत की कमज़ोर
कड़ी है और इस बात पर यकीन कर पाना थोड़ा कठिन था कि भारतीय गेंदबाज 319 रनों से
पूर्व इंग्लैंड के 6
विकेट आउट कर पाएंगे। लंच से पूर्व की अंतिम गेंद से पहले तक कल के
नॉटआउट बैट्समैन अली और रुट ने अपनी विकेट बचा कर लोगों को ये सोचने के
लिए बाध्य भी कर दिया कि कोई नई इबारत नहीं लिखी जाने वाली है। लेकिन
ऐसा हुआ नहीं। युवा भारतीय
टीम ने नई इबारत
लिख ही डाली। दरअसल 95
रनों से इंग्लैंड की ये हार उसके उन जख्मों पर नमक छिड़के जाने जैसी
थी जो जख़्म ऑस्ट्रेलिया और उसके बाद श्रीलंका से हार कर मिले थे।
मैच जीतने के बाद
आदरणीय उदय प्रकाश जी ने फेसबुक पर एक पोस्ट लगाई 'एक लगान परदे के
बाहर"। लेकिन परदे के बाहर मैदान का ये लगान परदे पर के लगान से भिन्न था।
परदे की लगान में आमिर
और उनके साथी अंतिम पारी खेल रहे थे जिसमें उनका लगान ही नहीं बल्कि उनका मान
सम्मान, पूरा जीवन और उनके
इंसान होने का एहसास सभी कुछ दांव पर लगा था। वे कड़ा संघर्ष कर उस चुनौती से पार
पाते हैं। और वे ऐसा कर इसलिए पाते हैं कि भारतीय किसान सदियों से इतनी भीषण
परिस्थितियों से संघर्ष कर सरवाइव करता रहा है और अपने
जीवन को बचाने और अपने वज़ूद को मनवाने का वो संघर्ष, संघर्ष नहीं उसके जीवन में घटित होने वाली क्रिया थी
जिसे वो रोज़ ही अंजाम देता आया है। वहां अंग्रेज़ मुँह की खाते हैं। पर अब
परिस्थितियां बदल चुकी हैं। अपने मान सम्मान की रक्षा की ज़रुरत अंग्रेज़ों को है।
कम से कम क्रिकेट में तो निश्चित ही। पहले बात लॉर्ड्स मैदान की। आख़िरी पारी
अँगरेज़ खेल रहे थे। उन्हें लक्ष्य मिला था। सम्मान भी उन्हीं का दांव पर था।
होम ऑफ़ क्रिकेट कहे जाने वाले मैदान पर क्रिकेट के जन्मदाता की सम्पूर्ण साख दांव
पर थी। अपने मैदान पर अपने लोगों के बीच भारत जैसे देश की टीम जिस पर उसने कई सौ
साल राज किया हो वो उसे हरा दे। तो सम्मान किसका दांव पर लगा? एक और
फ़र्क़ था। आमिर की टीम अपना लक्ष्य हासिल करती करती है। पर वास्तविक मैदान पर
अंग्रेज़ ऐसा करने में असफल रहते हैं। बस एक ही समानता है अंग्रेज़ दोनों जगह हारते
है। घमंड दोनों जगह हारता है। संघर्ष दोनों जगह जीतता है।
बात
सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं है। भारत अब बड़ी आर्थिक ताक़त है। सिर्फ आर्थिक क्षेत्र
में ही नहीं क्रिकेट में भी। बीसीसीआई इस समय क्रिकेट जगत की सबसे बड़ी नियामक
संस्था है। क्योंकि भारत में क्रिकेट धर्म बन चुका है, क्रिकेट का भगवान भी भारत का ही है। भारत में इसकी लोकप्रियता का लाभ
उठा कर और कारपोरेट शैली में क्रिकेट का प्रबंधन कर बीसीसीआई सबसे धनवान और इसलिए
सबसे शक्तिशाली संस्था बन चुकी है। एक समय था जब क्रिकेट प्रबंधन में इंग्लैंड
और ऑस्ट्रेलिया की तूती बोलती थी। भारतीय खिलाड़ी हमेशा अपने साथ भेदभाव तथा अन्याय
की शिकायत करते थे। आज इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ये शिकायत करते हैं कि बीसीसीआई
अपने शक्तिशाली और अमीर होने का नाज़ायज़ फ़ायदा उठा रहा है।
इसी समय एक पोस्ट आदरणीय
रमेश उपाध्याय जी ने भी लगाई। उन्होंने ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना और उसके
सन्दर्भ में बराक
ओबामा की टिप्पणी को
उद्धृत किया है 'America
must always lead on the world stage. If we don't, no one
else will.' दरअसल
ये टिप्पणी विकसित देशों की बौखलाहट का नतीज़ा है।
विकासशील देश उन पर अब निर्भर नहीं रहे या उस हद तक नहीं रहे जिस
वे चाहते हैं। ये पश्चिमी प्रभुत्व के कम होने की आशंका का नतीज़ा
है। दरअसल ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना का निर्णय और भारत
की लॉर्ड्स के मैदान में ऐतिहासिक जीत को ऐसी घटनाओं के रूप में
देखा जाना चाहिए जो विकसित पच्छिम के घटते प्रभुत्व को और उन पर विकासशील
देशों की घटती निर्भरता को रेखांकित करती हैं।
सम्पर्क
मोबाईल- 09935616945
सुन्दर ,विवेचनापरक आलेख |मन प्रसन्न हो गया सर |
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति ,।हार्दिक शुभकामनाए सर
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