कमलजीत चौधरी की कविताएँ


कमलजीत चौधरी 

परिचय -
जन्म : जम्मू कश्मीर के एक सीमावर्ती गाँव - काली बड़ीसाम्बा में एक विस्थापित जाट परिवार में
माँ : श्रीमती सुदेश - एक गृहस्थन 
पिता : श्री रतन - सेवानिवृत्त सेनाधिकारी 
शिक्षा : जम्मू विश्वविद्यालय से हिन्दी में प्रथम स्थान के साथ परास्नाएम. फिल.

लेखन : 2007 में कविता लिखनी शुरू की

प्रकाशित : अशोक कुमार द्वारा सम्पादित चर्चित काव्य संग्रह ‘तवी जहाँ से गुजरती है’ में कुछ रचनाएँ संकलित।   
अन्य :'नया ज्ञानोदय', 'अक्षर पर्व', 'अभिव्यक्ति', 'अभियान', 'सृजन सन्दर्भ', 'हिमाचल मित्र', 'दस्तक', 'परस्पर', 'दैनिक जागरण', 'लोकगंगा', 'उत्तर प्रदेश', 'शब्द सरोकार', 'शीराज़ा' आदि में कविताएँ प्रकाशित
       
समय-समय पर आकाशवाणी से कविताएँ प्रसारित। 

वरिष्ठ कवि सम्पादक प्रभात पाण्डेय द्वारा सम्पादित तथा प्रकाशनार्थ कविता संग्रह 'स्वर-एकादश' में अखिल भारत से ग्यारह कवियों में चयनित

सम्प्रति : उच्च शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर


कमलजीत चौधरी युवा कविता का नया स्वर है। यह स्वर विसंगतियों को भलीभांति पहचानता है। ज्यादा में कम होने को महसूस करता है। बहुत समय में कम होने को पहचानता है। प्रतिवर्ष रस्म की तरह होने वाले स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस आयोजनों की हकीकत भी समझता है। दरअसल जनता का अब हर दिन 13 अप्रैल होने के लिए अभिशप्त है जबकि वह 23 मार्च होने के लिए तैयार है। और इस तरह का जो 15 अगस्त होगा वही स्थायी स्वाधीनता दिवस होगा। आज पहली बार पर प्रस्तुत है कुछ अलग अंदाजे बयाँ वाली कमलजीत चौधरी की कविताएँ। 


कमलजीत चौधरी की कविताएँ 
                     

नमक में आटा  

हमने 
कम समय में
बहुत बातें की  
बहुत  बातों में 
कम समय लिया 
      
कम समय में 
लम्बी यात्राएं की 
लम्बी यात्राओं में 
कम समय लिया 

कम समय में 
बहुत समय लिया 
बहुत समय में 
कम समय लिया 

इस तरह हम 
कम में ज्यादा 
ज्यादा में कम होते गए  
हमें होना था 
आटे में नमक  
मगर हम नमक में आटा होते गए!


15 अगस्त 1947

तुम बरत रहे हो रोज 
जनसमूह पर 13 अप्रैल 1919
मैं पड़ोसियों का मुँह देखे बगैर 
23 मार्च 1931 हो जाने के लिए तैयार हूँ 

आएगा 
जरूर आएगा 
15 अगस्त 1947 भी आएगा 
       
आएगा 
और अब की कभी न जाएगा 
     
जनता जाने नहीं देगी


कवि के लिए 

तुम्हारे पैर भूत की तरह 
पीछे उलटे मोड़ दिए जाते हैं 
तुम चुप रहते हो

तुम्हारा चेहरा पीठ की तरफ दरेर दिया जाता है 
तुम चुप रहते हो 

तुम्हारे शब्दों को नपुंसकता के इंजेक्शन लगा कर 
अर्थ तक पहुँचने दिया जाता है 
तुम चुप रहते हो 

तुम्हारी ऑंखें और कान छीन लिए जाते हैं 
तुम चुप रहते हो

तुम्हारे दांतों की मेहनत के अखरोट 
दूसरा खा जाता है 
तुम चुप रहते हो

तुम्हारी कविता सुन कर  
मुख्य अतिथि का कुर्ता झक सफेद  हो जाता है 
तुम चुप रहते हो 

जब एक मीटर आसमान को तरसती
एक धरती के यौनांगों में 
पूरी दिल्ली नमक उड़ेल रही थी
उस रात भी तुम चुप ही थे 

तुम इससे भी बुरी रातों में चुप रहते हो


    
ज़रा थोड़ा सा ज्यादा नमक डल गया है तुम्हारी सब्जी में 
आज फिर तुमने आसमान  सिर पर उठा लिया है
   

दांत और ब्लेड -१

दांत सिर्फ शेर और भेड़िए के ही नहीं होते    
चूहे और गिलहरी के भी होते हैं
ब्लेड सिर्फ तुम्हारे पास ही नहीं हैं
      

मिस्त्री और नाई के पास भी हैं

दांत और ब्लेड - २

तुम्हारे रक्त सने दांतों को देख
मैंने नमक खाना छोड़ दिया है
मैं दांतों का मुकाबला दांतों से करूँगा
तुम्हारे हाथों में ब्लेड देख
मेरे खून का लोहा खुरदरापन छोड़ चुका
   
मैं धार का मुकाबला धार से करूँगा


दांत और ब्लेड -  ३  
   
बोलो तो सही
तुम्हारी दहाड़ ममिया जाएगी
मैं दांत के साथ दांत बन कर
तुम्हारे मुंह में निकल चुका हूँ
डालो तो सही अपनी जेब में हाथ                                                                                                                                                                                         
मैं अन्दर बैठा ब्लेड बन चुका हूँ 
     

साहित्यिक दोस्त                                                   
      
मेरे दोस्त अपनी
उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं
वे गले में काठ की घंटियाँ बाँधते हैं
उन्हें आर-पार देखने की आदत है
वे शीशे के घरों में रहते हैं
       
पत्थरों से डरते हैं
कांच की लड़कियों से प्रेम करते हैं
बम पर बैठ कर
वे फूल पर कविताएँ लिखते हैं
काव्य गोष्ठिओं में खूब हँसते हैं    
शराबखानों में गम्भीर हो जाते हैं
यह भी उनकी कला है
अपनी मोम की जेबों में
वे आग रखते हैं   

एम. एफ. हुसैन के लिए 

मेरे ईश्वर के पाँव में 
चप्पल नहीं है 
सिर पर मुकुट नहीं है 

वह सिर से ले कर पाँव तक 
शहर से ले कर गाँव तक नंगा है 
पल-प्रतिपल खूंखार जानवर द्वारा 
बलात्कृत है 
सोने की खिड़कियों के परदे 
उसे ढकने का बहुत प्रयास करते हैं 
पर शराबी कविताएँ 
उफनती सरिताएँ 
किलों को ढहाती 
खून से लथपथ मेरे ईश्वर को 
सामने ला देती है 
उसे देख कर कोई झंडा नीचा नहीं होता 
      
मेरे ईश्वर को नंगा बलात्कृत 
बनाने वाले 
मेरे देश के ईश्वर को 
कोई कठघरा नहीं घेरता ...

उधर जब पाँच सितारा होटल में 
सभ्य पोशाक वाली दूसरे की पत्नी 
तथाकथित ईश्वर की बाहों में गाती है 
इधर सड़क पर नग्नता 
रेप ऑफ गॉड से लेकर सलत वाक तक 
     
गौण मौलिकता दर्शाती है 

नग्न होने पर
सच निगला नहीं जा सकता -
     
वह तो और भी पैना हो जाता  है

    
तीन आदमी 

एक आदमी 
गाँव में है 
  
उसमें शहर है 
एक आदमी 
शहर में है 
    
उसमें गाँव है 

एक आदमी 
दिल्ली में है 

उसमें दिल्ली है 


एक सपना 

वहाँ 
सब जोर-जोर से कह रहे थे -
औरत खाली स्लेट होती है 
उस पर बहुत कुछ 
लिखा-मिटाया जा सकता है 
औरत ने चुपचाप अपनी स्याही उठाई 
और 
चल दी 

आगे मेरी नींद खुल गई



सम्पर्क :


गाँव व डाक -  काली बड़ी, साम्बा 
जम्मू व कश्मीर { 184121}

मोबाइल नंबर - 09419274403

टिप्पणियाँ

  1. कवितायें सभी अच्छी है ..बधाई नमक में आटा , और कवि के लिए खासकर पसंद आयीं ...

    जवाब देंहटाएं
  2. कवितायें पठनीय और विचारणीय हैं...

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut hi achchhi lagi aap ki kavitayein, bdhai ho kamal jeet ji , Dhanyavaad...-Virender Singh

    जवाब देंहटाएं
  4. Kamal ji badahi
    sari kavitiaen baar baar padne ko mejboor hua
    shubhkamnaye

    जवाब देंहटाएं
  5. चेतनापूर्ण कविताएँ ...कम समय में . बहुत -बहुत बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  6. चेतनापूर्ण कविताएँ ....कम समय में - बहुत बहुत बधाई -
    नित्यांनद गायेन

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. कमलजीत की कवितायेँ अपनी ताज़गी से,संवेदना और तेवर से सहज ही आकर्षित करती हैं। महानगरीय चकाचौंद से दूर वे अपनी तपी हुई ज़मीन पर खड़े दिखाई देते हैं।ये बड़ी बात है।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्‍छी कविताएं। संतोष भाई.... मैं कमलजीत को पहली बार पढ़ रहा हूं....पर ऐसा लग नहीं रहा कि यह पहली बार हो रहा है। कवि को बहुत बधाई और आपको शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  10. I have read all your poems. But I can't stop myself from reading the poem written about M .F Hussein. It gives the true picture of present world.
    From the level of poetry, it seems that the poet has experience of hundred years.
    But the poem "Teen Aadmi" seems incomplete to me.

    Can you please elaborate.

    जवाब देंहटाएं
  11. Dear pummy jee in teen aadmee third one is incomplete so this poem is. Sabka abhaar.

    जवाब देंहटाएं
  12. कमल की कविताओं की अलग ही छटा है, एक तरह की तल्‍खी और तेवर है, शब्‍दों की किफायत भी है. संभावनाशील स्‍वर. कवि और ब्‍लॉगर दोनों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. dear kamal, Sab se pehle to mein aapko bahut bahut mubarakbad dena chehti hoon ....meine aapki sari kavitaye padi ..bahut gahrii aur guddi huye lagii...sach mein bahut kam samey mein aapne bahut kuch mehsoos kiya hai aisa lagta hai....keep it up god bless you ..

    gutnoo k bal rangta vo rait ka teela chad gaya..dil zor se dhadkane laaga.rokko,pakad lo sambhalo...meri pareshan dekh k ..vo muskura k bola ..gareeb ka bacha hai mamsab kuch nahi hogga use.. aur vo bacha teele par bethkar rait khelne lagga.......
    neeru.bakshi..

    जवाब देंहटाएं
  14. सभी कविताओं में प्रगतिशील दृष्टिकोण!!!मध्य सत्र में अपने स्थानांतरण हमारे लिए दुर्भाग्य है!मुझे आशा है कि आप हमें समय - समय पर प्रेरित करोगे!धन्यवाद .. आपका
    आज्ञाकारी..रोहित शर्मा.

    जवाब देंहटाएं
  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  16. aap ki kabitayan logonko prerit karni bali hay jin ko pad kay logon may nai chetna ati hay aap ki kabita kay sabi paatar sachai ki trf hay.

    i am very thankful to you to give me opportunity to read these poems

    from mehak sharma

    जवाब देंहटाएं
  17. kamal ji aapko badhai ho. aapki sabhi kavitayen mujhe bahut achhi lagi hain. Aapki sabhi kavitaon ko baar baar parne ka man to karta hi he lekin agar in kavitaon ko aap khud sunate hain to or bhi anand aata he.

    जवाब देंहटाएं
  18. kamal ji ,aapki kavitaaon ko jancha parkha aur khara sonna paaya
    ek adhbhut sangreh kavita ke sansar mein

    जवाब देंहटाएं
  19. कमलजीत चौधरी कविता के साथ लोहार वाला व्यव्हार करते हैं/चोट पे चोट देकर शब्दों को आकार देते हैं /जब तक धार तेज़ न हो निकले /और फिर काव्यभूमि में वीरता से लड़ते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  20. Kamal Jeet Choudhary jee ,
    aapki kavitain aam aadmee kee abaaz hai jo dab chukee hai . yah abaaz us aadmee tak hi nahi baharee satta tak bhee pahunchani chahiye. shubhkaamnain. Abhaar Santosh jee.

    Prof. Yash Paul .

    जवाब देंहटाएं
  21. Kamal Jeet Choudhary Jee ,
    Aapki kavitain aam aadmee kee avaaz hai jo dab chukee hai. Aashvast kartee hain aapki kavitain . yah avaaz baharee satta tak zaroor pahunchegee. shubhkaamnain.Abhaar bloger jee. -
    Prof. YASH PAUL.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'।

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'