उपांशु की कविताएँ

उपांशु हम मनुष्य हैं, इस पृथिवी क्या इस ब्रह्माण्ड के सबसे समझदार और इसीलिए सबसे शक्तिशाली जीव। अपनी सुविधा के अनुसार ही इस दुनिया को देखते समझते ही नहीं, व्याख्यायित भी करते हैं। यह जानते हुए भी कि जीवन के लिए पेड़ पौधे जरूरी हैं, अंधाधुंध उन्हें काटते जा रहे हैं। यानी अपने पांवों पर कुल्हाड़ी चलाने में भी कोई संकोच नहीं करते। कई बार हम खुद को मनुष्य कहते हुए भी निर्ममता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। इस क्रम में मनुष्यता शर्मसार होती है। ऐसे में मनुष्य को मनुष्य कहने में भी संकोच होता है। युवा कवि उपांशु अपनी कविता में बेबाकी बल्कि तल्ख स्वर में लिखते हैं : 'कुछ लोग हैं जिन्हें किसी भी तरह का पशु कहना उस पशु का अपमान होगा/ कुछ लोग हैं जिन्हें लोग कहना लोक का तिरस्कार होगा/ मानव से बड़ा कुकर्मी शायद ही धरती पर जना गया हो/ और इतने कर्म कुकर्म धर्म अधर्म के पाठ भी शायद ही कोई पढ़ाता हो'। इस कवि की भाषा कुछ अलग तरह की यानी टटकी भाषा है। उपांशु की कविताएं हमें उनके कवि मित्र अंचित ने उपलब्ध कराई हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं उपांशु की कुछ...