अनुपम परिहार की कविताएँ

 

अनुपम परिहार

 

मिथकों को ले कर कविताएँ लिखने की एक परंपरा रही है। आमतौर पर ये मिथक एक बने बनाए सांचे में दिखाई पड़ते हैं लेकिन रचनाकार अपने हुनर से अपने देश काल के परिप्रेक्ष्य में उस मिथक को फिर से अपने मुताबिक गढ़ने की कोशिश करता है। अनुपम परिहार ने अपनी कविताओं में इस तरह के कुछ सफल प्रयोग किये हैं। अनुपम ने रामायण के कुछ पात्रों को आधार बना कर उम्दा कविताएँ लिखी हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है अनुपम परिहार की कुछ कविताएँ।

 

 

अनुपम परिहार की कविताएँ

 

 

रावण
 

हे!
विसश्रवा के वंशज
पुलस्त्य पुत्र
सुना है तुम्हारी माँ
कैकसी थीं एक राक्षसी
पिता थे तुम्हारे एक कुलीन
सारस्वत ब्राह्मण
इस तरह वर्ण संकर हुए तुम
जैसे थे परशुराम
लेकिन तुमने पिता के कहने से
नहीं काटा कभी अपनी माँ का शीश
न ही वध किया अपने भाइयों का
विभीषण तुम्हरा लघु भ्राता
जो सपक्ष हो गया राम का
और बतला दिये वह सभी भेद
लंका के
जिससे राम जीत सके तुम्हें
तुमने उसे भी क्षमा कर दिया
तुम्हें उतना ही लगाव था
अपने सगे-सम्बन्धियों से
जितना राम को था भरत से
या अन्य अनुजों से...
तुम भी तो राम की ही भाँति
बड़े भक्त थे शंकर के
शायद उनसे भी बड़े
तुमने प्रतिकार लिया अपनी भगनी
शूपर्णखा का
राम से
सीता का हरण कर
तुमने यह समझ लिया था कि
राम कोई सामान्य नर नहीं
कोई साधारण पुरुष नहीं
साक्षात अवतार हैं
विष्णु के
फिर भी तुमने अपनी मातृभूमि को
अंतिम दम तक नहीं होने दिया अधीन
किसी विदेशी के
भगवान के भी अधीन!!
तुम्हें किसने कह दिया राक्षस?
इतिहास झूठा है!!

 


 

सुषेन

 

सुषेन!
सुना है
हनुमान तुम्हें
घर सहित
उठा लाये थे वहाँ
जहाँ मूर्छित पड़े थे
सौमित्र
तुम्हें पता था
राम थे तुम्हारे प्रतिपक्षी
तुम 'संजीवनी' की जगह
बता सकते थे
कोई वह बूटी/ घास /चकवड़ भी
जिसका नकारात्मक असर
पड़ता रामानुज पर
लेकिन
तुम कितने धर्मनिष्ठ थे!!
सच-सच बताया हनुमान को
वह स्थान और वह बूटी भी
जो सही थी उस व्रण की
दवा
जिसे इंद्रजीत ने
'
शक्तिबाण' के रूप में
मारा था लक्ष्मण को
तुमने जीवित कर दिया
प्रतिपक्षी को..
और दे गए एक सन्देश
'
धर्म'
धर्म है...
जो सीमाओं में
बंधा नहीं रहा
किसी धर्मनिष्ठ के लिए
कभी भी.....!

 

 

 

कैकेई

कैकेई!
तुम्हें लोग कोसते हैं अब तक
स्वार्थी कहते हैं लोग तुम्हें
यह भी कि तुम अपराधिन थी
पति की
कौशल्या की
राम की
और सीता की भी
भरत जो तुम्हारा ही पुत्र था
वह भी तुम्हें अपराधिन ही समझता रहा
जीवन भर
समाज लगाता रहा तोहमतें तुम पर
और सच में
तुम ग़लत थीं भी
मंथरा को आगे ला कर भी
तुम नहीं बच सकीं
तोहमतों से
इन्हीं तोहमतों के साथ तुम दफ़्न हो
इतिहास के पन्नों में
लेकिन तुम
अमर हो।
देखता हूँ तुम्हें
प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में
जहां तुम 
आज भी बैठी
चिल्ला रही हो
अयोध्या के भव्य प्रासाद में
'
मेरे बेटे को राजा बना दो..
   
मेरे भरत को राजा बना दो.... मेरे बेटे को राजा बना दो.....'

 


 

जटायु

जटायु!
सुना है
तुम थे एक गिद्ध
तुम अपने
क्षुधा के कारण
बड़े-बड़े डैनों के साथ
उड़ रहे थे
अंतहीन नभ में
अचानक तुम आवक रह गए
एक स्त्री के हरण को देख कर
क्रोधाग्नि से भर गए तुम
और टूट पड़े रावण के ऊपर
जो राम की तिय सीता को
लिए जा रहा था
पुष्पक विमान से
लंका की ओर
रावण ने बड़ी क्रूरता से काट दिए
तुम्हारे डैने
क्योंकि तुमने अवरोध किया था
उसके दुष्कृत्य पर
तुम गिर गए कराहते
और बाद में
सब कुछ सुनाया राम को
जब आये वह उस रास्ते
जहां तुम पड़े कराह रहे थे
बड़े-बड़े घावों के साथ!!
आज भी जब कोई रावण
हरण करता है किसी स्त्री का
स्थल पर चलने वाला
मनुष्य
उसके बगल से गुज़र जाता है चुपचाप
ताकि उसके डैने बचे रहें
उसके खुद की ख़ातिर!!

 

दादी


मेरी दादी एक
झिंगली चारपाई पर पड़ी
मेरी माँ को आवाज़ दे रहीं थीं
'
बहू ....पानी...पानी...पा...'
मेरी माँ अनसुनी हो कर
बार-बार बाहर झाँक आती मुझे
क्योंकि
मैंने पिछले हफ़्ते ही
माँ को बता दिया था कि
मैं आ रहा हूँ अमेरिका से
पूरे सात दिनों के लिए घर
माँ झूम उठीं थीं
इस समाचार से
माँ ने बनाये थे कई पकवान
और पिता से बोल कर
पुताई भी कराई थीं
घर की
जैसे ही मेरे क़दमों की आहट हुई
दादी ने करवट ली
उनकी आँखें चमक गईं
शायद माँ और पिता की फुसफुसाहट में
उन्होंने भी सुन लिया था
मेरे घर आने की सूचना
दादी ने मुझे आवाज़ दी
'
बेटा पानी...पानी..'
मैं भी दादी को अनसुना कर घुस गया
माँ के कमरे में
दादी की टूटती आवाज़
माँ के कमरों की दीवारों से
टकरा रही थी बार-बार
'
बहू पानी..पानी..पा...'
माँ बेफ़िक्र थीं
दादी की आवाज़ से
और मैं भी तो..
मेरी गर्भवती पत्नी
भी दादी को सुन रही थी
बार-बार
और
कुछ देर बाद दादी
खामोश!
हाँ, हमेशा के लिए ही
खामोश!!
मैंने अचंभित हो कर माँ को देखा
माँ भी अचंभित हो कर देख रहीं थीं
मेरी गर्भवती पत्नी का
सात माह का पेट!!

 

 

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं।)

 

सम्पर्क

 

मोबाईल - 9451124501

ई मेल anupamparihar.anu15@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. उत्कृष्ट व प्रभावोत्पादक सृजन..कैकेयी व जटायु..आहाहा.. दादी👌👍

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  2. उत्कृष्ट व प्रभावोत्पादक सृजन..कैकेयी व जटायु..आहाहा.. दादी👌👍

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  3. बहुत सुंदर कविताएं।बहुत बधाई।

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  4. बहुत सुंदर कविताएं।बहुत बधाई।

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  5. गुरुजी ! दादी कविता
    निशब्द

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