प्रदीप त्रिपाठी की कविताएँ
शैक्षणिक योग्यता- एम.ए. हिन्दी (तुलनात्मक सा.), एम.फिल. हिन्दी (तु.सा.), लोक-साहित्य, एवं कविता-लेखन में विशेष रुचि
संप्रति- साहित्य विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, पी-एच. डी. में शोधरत/
डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट में साप्ताहिक लेखन
प्रकाशित रचनाएँ- विभिन्न चर्चित पत्र-पत्रिकाओं (दस्तावेज़, अंतिम जन, परिकथा, कल के लिए, वर्तमान साहित्य, अलाव, नवभारत टाइम्स, डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट आदि) में शोध-आलेख एवं कविताएं प्रकाशित और 15 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तरीय सेमिनारों में प्रपत्र-वाचन एवं सहभागिता।
आज का परिदृश्य कुछ इस तरह का है कि लगता है जैसे सब कुछ हकीकत में
हो रहा है जबकि परदे के पीछे की सच्चाई कुछ और होती है। लेकिन सजग कवि की नजरों से
यह परिदृश्य ओझल नहीं रह पाता और कवि उस नाटक को देखता है जिसके
भीतर ठीक उसी समय एक नाटक खेला जा रहा होता है । युवा कवि प्रदीप त्रिपाठी इसे
महसूसते हैं और आडम्बरों को पहचानते हैं । क्योंकि बकौल प्रदीप के ही कहें तो "मेरे
'सच'
के भीतर भी एक और 'अदना
सा सच' है"।
आज भारत में जो परिस्थितियां दिखाई पड़ रही हैं वह कुछ ऐसे ही सूरमाओं के चलते हैं जिन्होंने
वाम को अपने समय में सीढ़ी की तरह भरपूर इस्तेमाल किया और
आजीवन अपना हित साधने में लगे रहे। यही नहीं आज वे अपने कार्यों से
प्रतिक्रियावादी शक्तियों के लक्ष्य को ही आगे बढाने का काम कर रहे हैं। इस छद्म पर नजर रखने वाले कवि प्रदीप की कविताएँ हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे
हैं जिनके अन्दर साफगोई से अपनी बातें कहने का साहस है। यह जानते हुए भी कि आज के
माहौल में सच बोलना कितना खतरनाक या यूँ कहें तो अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारना
है। लेकिन कवि इसीलिए तो सबसे अलग होता है क्योंकि वह सच बोलने के जोखिम को जानते
हुए भी जोखिम उठाता है। तो आज कुछ इसी तरह के तेवर वाले युवा कवि प्रदीप त्रिपाठी की
कविताएँ आप सबके लिए प्रस्तुत है।
प्रदीप त्रिपाठी की कविताएँ
आत्महत्या
करने से पहले
1.
जब यह पता चला
कि ईश्वर तो पहले ही मर चुका है
मैंने अनुमान लगाया
वह जरूर तंग आ चुका रहा होगा
ईश्वर ने आत्महत्या कर ली।
2
मरना तो था ही...
ईश्वर का मरना अकारण नहीं रहा होगा
वह तो अपनी मौत से भी मर सकता था
गोया
वह समझ गया हो कि
उसे मार दिया जाएगा
ईश्वर ने आत्महत्या कर ली।
3
ईश्वर धनवान था
ईश्वर बलवान था
ईश्वर विवेकवान था
ईश्वर धैर्यवान था
बस
ईश्वर के पास एक चीज की कमी थी
ईश्वर प्रतिरोध नहीं कर सकता था
ईश्वर पश्चाताप भी नहीं कर सकता था
ईश्वर ने आत्महत्या कर ली।
4
उसे बता दिया गया था
ईश्वर अजर-अमर है
ईश्वर पहली और अंतिम सत्ता है
जब उसे यह पता चला कि
यह महज प्रोपोगैंडा है
उसकी भी मृत्यु निश्चित है
ईश्वर ने आत्महत्या कर ली।
5
ईश्वर का कोई धर्म नहीं था
ईश्वर की कोई जाति भी नहीं थी
ईश्वर की कोई भाषा भी नहीं थी
ईश्वर समझ गया था
उसके साथ भी साजिश हो सकती है
उसे भी युद्ध करना पड़ सकता है
ईश्वर ताकतवर था
ईश्वर साहसी नहीं था
पर
ईश्वर समझदार था
किसी का न मिलना
मिलने की खुशी में
किसी का न मिलना
उतरते हुए ट्रेन से
किसी चीज के छूटने के डर जैसा लगता है
इस तरह का मिलना
विचारों का मिलना नहीं
बल्कि
बंद दरवाजे की खोई हुई चाभी के
अचानक मिलने जैसा है
यह मिलना
किसी अदब का मिलना नहीं
बल्कि
गणित के किसी भूले हुए फार्मूले के
अचानक याद आने जैसा है
इस तरह के मिलने की खुशी
किसी के मिलने की खुशी
में न मिलने जैसा है
या
भीड़ में किसी नन्हें बच्चे के
खो जाने जैसा
या
सबका एक साथ मिलना
कोई बड़ा हादसा टल जाने जैसा
खुरदुरे पांव
की जमीन
सदियों से देख रहा हूँ मैं
इन्हीं खुरदुरे पैरों को
हाँफता
झुझलाता
कांपता
बौखलाता हुआ
पर...
कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ
इन फटेहाल पैरों का
जिनकी दरारें धीरे-धीरे
अब और बढ़ती जा रही हैं
तुम्हारे नाम को ले कर
आँगन
के पार
पल
भर के संगीत के लिए
ढूँढ़
लेना चाहता हूँ, तुमको
सिर्फ तिनके की नोंक भर।
न
जाने कैसा होगा
अब,
तुम्हारा भविष्य।
तुमसे
उतनी घृणा तो पहले भी नहीं थी
न
ही कभी अच्छी दोस्ती ही
फिर
भी...
प्रायश्चित
करूंगा
तुम्हारे
नाम को लेकर
नि:शब्द,
हमेशा-हमेशा
एक
इतिहास के खातिर
नहीं
करना चाहता हूँ! संवाद
अब नहीं करना चाहता
हूँ..
मैं
तुम्हारी कविताओं
से किसी भी तरह का संवाद...
एक लंबे अरसे से
सुनते-सुनते
तंग आ चुका हूँ..
मैं
तुम्हारे इन अजनबी
बीमार
बूढ़े शब्दों को
मुझे अच्छी नहीं
लगती
तुम्हारी किसी
एक उदास शाम की कल्पना
बार-बार सोचता हूँ
आखिर क्यों नहीं
बनता है
तुम्हारी कविताओं
में प्रेम का कोई एक चित्र
या कोई जिज्ञासा
जिसे मैं थोड़ी
देर तक गुन-गुनाकर चुप हो सकूँ
क्यों नहीं झलकती
है कविताओं में तुम्हारी उम्र
तुम्हारी इच्छाएँ ,वासनाएँ
नहीं बजता है गीत-संगीत या कल-कल की कोई एक धुन
कभी नहीं दिखते
हैं इस तरह के
कोई भी प्रयास
या कोशिशें।
मुझे दिखते हैं
तुम्हारी कविताओं में
सिर्फ और सिर्फ
ढेर सारे ... अल्पविराम, कामा, प्रश्नवाचक चिह्न
या फिर सदियों
से चले आ रहे कुछ लंबे अंतराल
जिसे देखकर मुझे
हो जाना पड़ता है
प्रेम में कविता का वसंत होना
कविता लिखना मेरे लिए
प्रेम-पत्र लिखना है...
शायद पहली बार लिख रहा था एक कविता
‘तुम्हारे’ लिए
यकीनन पूरी तरह काँप गया था...
जैसे रेलगाड़ी के गुजरने से
काँप जाते हैं रेलवे के पुल
प्रेम-पत्र लिखना है...
शायद पहली बार लिख रहा था एक कविता
‘तुम्हारे’ लिए
यकीनन पूरी तरह काँप गया था...
जैसे रेलगाड़ी के गुजरने से
काँप जाते हैं रेलवे के पुल
सोचा था इस बार खींच लाऊँगा
कविता में
तुम्हारे अलसाए और गदराए यौवन को
जिससे मुख़ातिब होने के बाद
लाज से झुका लेता है अपनी नज़र
कभी-कभी तुम्हारा खुद का आईना भी
कविता में
तुम्हारे अलसाए और गदराए यौवन को
जिससे मुख़ातिब होने के बाद
लाज से झुका लेता है अपनी नज़र
कभी-कभी तुम्हारा खुद का आईना भी
कविता मे तस्वीरों का खींचना
मेरे लिए प्रेम का प्रस्थान बिंदु था
एक ऐसा प्रेम
मेरे लिए प्रेम का प्रस्थान बिंदु था
एक ऐसा प्रेम
जो
कविता में आने के पहले ही
कविता में होने के साथ-साथ
बंजर
हो चुका था
मुझे नहीं पता
मुझे नहीं पता
कविता
में प्रेम का बसंत होना
मेरे
लिए ‘बंजर’ होना है
जैसे कि दिन होना
एक नदी...
जैसे कि दिन होना
एक नदी...
और रात होना
एक समुद्र...
सच कहूँ तो चुप हूँ !
सब
के सब...
मिले हुए हैं ।
नाटक के भी भीतर
एक और नाटक खेला जा रहा है।
हम, सब ...
एक साथ छले जा रहे हैं
'क्रान्ति' और 'बहिष्कार'
के इन छद्मी आडंबरों के तलवों तले।
अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाते हुए भी
मैं आज
'नि:शब्द' हूँ
सच कहूँ तो
चुप हूँ
कारण यह.
कि मेरे 'सच' के भीतर भी एक और 'अदना सा सच' है
कि
'मैं' बहुत 'कायर' हूँ।
मिले हुए हैं ।
नाटक के भी भीतर
एक और नाटक खेला जा रहा है।
हम, सब ...
एक साथ छले जा रहे हैं
'क्रान्ति' और 'बहिष्कार'
के इन छद्मी आडंबरों के तलवों तले।
अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाते हुए भी
मैं आज
'नि:शब्द' हूँ
सच कहूँ तो
चुप हूँ
कारण यह.
कि मेरे 'सच' के भीतर भी एक और 'अदना सा सच' है
कि
'मैं' बहुत 'कायर' हूँ।
संपर्क-
हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग,
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी
विश्वविद्यालय, वर्धा
स्थायी पता-
महेशपुर, आजमगढ़,
उ.प्र., 276137
महेशपुर, आजमगढ़,
उ.प्र., 276137
संपर्क-सूत्र- 08928110451
Email- tripathiexpress@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
बहुत-बहुत शुक्रिया सर, सुव्यवस्थित प्रकाशन एवं प्रोत्साहन हेतु। उम्मीद है आपका स्नेह एवं सानिध्य इसी रूप में सदैव बना रहेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविताये.आभार पहली बार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, नवनीत जी
हटाएंif the world had more people like you it would be a better place you do make a difference, very well written, feel is awesome congratulations pradeep ji i am speechless after reading this all.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, परिधि जी
हटाएंबेहतरीन और सार्थक कविता के लिए बधाई...!!
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंbahut hi achhi aur sarthak kavitaen
जवाब देंहटाएंशुक्रिया vasu
हटाएंधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंbahut hi achi kavitaye ,,pardeep ji ko bahut bahut bdaiiii
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंबेहतरीन और सार्थक कविता के लिए बधाई ,अति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंdhanywad amrit ji
हटाएंबहुत अच्छा अंदाज-ए-बयां...बहुत अच्छी कविताएं।
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंबहुत ही सुंदर और भाव पूर्ण कविताएँ हैं।आपको शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आनंद जी
हटाएं'सच कहूँ तो चुप हूँ' बहुत ही सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति है। मन को मोह एवं सारगर्भित विवेचन को प्रस्तुत करती कविता। नवकवि को हार्दिक बधाई, आशा करता हूँ समाज पर आधारित कविता गुच्छ आता रहेगा ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत उम्दा लिख रहे हैं ....'सच कहूं तो चुप हूँ'शब्द नहीं मिल रहे तारीफ़ के लिए ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंक्या सिर्फ इतना कहना ठीक है - ' अनुज मेरे पठन-पाठन की सीमा में प्यार भरा स्वागत!! 'बधाई आैर शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएं- कमल जीत चाैधरी.
shukriya zanab
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