होर्हे लुईस बोर्हेस


(चित्र: होर्हे लुईस बोर्हेस)

सरिता शर्मा आजकल कुछ विदेशी रचनाकारों को पढ़ रही हैं और उनकी रचनाओं के अनुवाद में जुटी हुई हैं. इसी क्रम में सरिता जी ने प्रख्यात अर्जेन्टीनी कवि बोर्हेस की कविताओं का अनुवाद भेजा है. सरिता ने यह अनुवाद अत्यन्त आत्मीयता से किया है, जिसे हम पढ़ते हुए स्वयं महसूस कर सकते हैं. तो आईये पढ़ते हैं बोर्हेज के एक संक्षिप्त परिचय के साथ उनकी ये कविताएँ.     


होर्हे लुईस बोर्हेस

अर्जेंटीना के लेखक और कवि होर्हे लुईस बोर्हेस का जन्म ब्यूनस आयर्स में 1899 में हुआ था. उनका परिवार 1914 में स्विट्जरलैंड चला गया जहां उनकी पढाई हुई और उन्होंने स्पेन की यात्रा की. 1921 में अर्जेंटीना में वापसी के बाद, बोर्हेस की कवितायें और निबंध अतियथार्थवादी साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं. उन्होंने एक लाइब्रेरियन और लेक्चरर के रूप में काम भी किया. वह कई भाषाओं में निपुण थे. पेरोन शासन के दौरान उनका राजनीतिक उत्पीड़न किया गया था क्योंकि उन्होंने सैन्य जुंटा का समर्थन किया था जिसने पेरोन शासन को उखाड़ फेंका था. एक वंशानुगत बीमारी के चलते, बोर्हेस 1950 में अन्धता के शिकार हो गए. उन्हें 1955 में नेशनल पब्लिक लाइब्रेरी के निदेशक और ब्यूनस आयर्स के विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया. उन्हें 1961 में अंतरराष्ट्रीय ख्याति तब मिली जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशकों का  प्रथम पुरस्कार प्रिक्स फोर्मेंटर प्राप्त हुआ. उनके लेखन को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में व्यापक रूप से अनुवाद और प्रकाशित किया गया. स्विट्जरलैंड में जिनेवा में 1986 में बोर्हेस  की मृत्यु हुई.



   ‘जीवन अपने आप में स्वयं एक उद्धरण है,’ कहने वाले बोर्हेस सम्मोहक जुमलों के लिए विख्यात हैं.  उनके अनेक कथा संग्रह और कविता-संग्रह प्रकाशित हैं. बोर्हेस  के बारे में जे. एम. कोएत्ज़ी ने कहा है, ‘उन्होंने उपन्यास की भाषा का सबसे अधिक नवीकरण किया और इस तरह स्पेनिश अमेरिकन उपन्यासकारों  की  विख्यात पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया.’
-सरिता शर्मा 


आत्महत्या

 रात में एक भी सितारा नहीं बचेगा
रात तक नहीं बचेगी.
मैं मरूंगा और मेरे साथ ख़त्म होगा
असहनीय ब्रह्मांड का सारांश  
मैं मिटा दूंगा पिरामिड, सिक्के,
महाद्वीप और तमाम चेहरे.
संचित अतीत को मिटा दूंगा
मिटटी में मिला दूंगा इतिहास को, मिट्टी को मिट्टी में
अब मैं देख रहा हूँ आखिरी सूर्यास्त
सुन रहा हूँ अंतिम पक्षी को
किसो को कुछ भी नहीं दूंगा मैं वसीयत में

चंद्रमा

वह सोना कितना अकेला है.
इन रातों का चाँद वह चाँद नहीं
जिसे देखा आदम ने पहली बार. 
लोगों के रतजगों की
लंबी सदियों ने भर दिया है उसे
पुरातन विलाप से. 
देखो. 
वह तुम्हारा दर्पण है.

पछतावा

मैंने किये जघन्य पाप
औरों से कहीं ज्यादा. 
मैं नहीं रहा प्रसन्न. 
गुमनामी के हिमनदों को
ले लेने दो मुझे उनकी चपेट में निर्दयता से.
माता पिता ने जन्म दिया मुझे 
जोखिम भरे सुंदर जीवन के खेल के लिए,
पृथ्वी, जल, वायु और आग के लिए.
मैंने उन्हें निराश किया, मैं खुश नहीं था.
मेरे लिए उनकी जोशीली उम्मीदें पूरी न हुई
मैंने दिमाग चलाया सममिति में
कला के तर्कों, नगण्यता के जाल में .
वे चाहते थे मुझसे बहादुरी. 
मैं वैसा नहीं था.
यह कभी मुझसे दूर नहीं होती. 
बगल में रहती है सदा,
उदास आदमी की परछाई.


न्यू इंग्लैंड 1967 

मेरे सपनों में आकृतियाँ बदल गयी हैं;
अब साथ लगे लाल घर हैं
और कांसे रंगी नाजुक पत्तियां
और अक्षत सर्दी और पावन लकड़ी.
सातवें दिन की तरह दुनिया
अच्छी है. सांझ में बनी हुई है
किंचित साहसी, उदास प्राचीन बुडबुडाहट,
बाईबिलों और युद्ध की.
जल्द ही पहली बर्फ गिर जाएगी (वे कहते हैं)
अमेरिका मेरा इंतजार कर रहा है हर सड़क पर,
मगर कल कुछ पल ऐसा लगा और आज बहुत देर तक
ढलती शाम में महसूस करता हूँ.
ब्यूनस आयर्स, मैं भटकता हूँ
तुम्हारी सड़कों पर बेवक्त या अकारण.







सम्पर्क-

मोबाईल- 09871948430

टिप्पणियाँ

  1. Anuvad ke dwara he hum videshi kaviyo ki kavitao ko samajh pate he. sunder anuwad. sukriya sarita ji aur santosh ji. Manisha jain

    जवाब देंहटाएं
  2. संतोषजी और सरिताजी के ज़रिये लुईस बोर्हेस पढ़ा। बढ़िया लगा
    ....
    इन रातों का चाँद वो चाँद नहीं
    जिसे देखा आदम ने पहली बार
    लोगों के रतजगों की
    लम्बी सदियों ने भर दिया है उसे
    पुरातन विलाप से ....

    जवाब देंहटाएं
  3. संतोष जी और सरिता जी का धन्यवाद :)
    आपके ज़रिये लुईस बोर्हेस कि कविताएं पढ़ने को मिलीं।
    शाहनाज़ इमरानी

    जवाब देंहटाएं
  4. लेखन यात्रा में कभी कभी ऐसा पड़ाव आता है जब हम दुनियाभर के महान लेखकों के साथ बतियाते हुए चलते हैं. जैसा कि एक लेखक मित्र ने कहा जब दायें हाथ से लिखते हुए थक जाते हैं तो बाएं हाथ से लिखने लगते हैं. इससे पढने लिखने और विचार करने का क्रम बना रहता है. प्रेरणा का यह सर्वोत्तम साधन है. बोर्हेस की इन कविताओं में हम सबके मन की बात है.

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  5. बेहतरीन अनुवाद , एक नवीन अनुभव . आभार के साथ
    -नित्यानंद गायेंन

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  6. बहुत बहुत अच्छी कवितायेँ ... सुन्दर सहज अनुवाद ... शुक्रिया पढवाने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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