नित्यानन्द गायेन
बोधि प्रकाशन जयपुर से कवि राज्यवर्द्धन के सम्पादन में ग्यारह कवियों की कविताओं का एक संकलन 'स्वर एकादश' नाम से आया है। इस संग्रह पर युवा कवि नित्यानन्द गायेन ने एक समीक्षा लिखी है जो पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत है।
एक रंग ग्यारह सुर
'स्वर-एकादश' में ग्यारह कवियों की कविताएँ एक साथ, कुछ नए और कुछ चर्चित नाम। अग्निशेखर, केशव तिवारी, महेशचन्द्र पुनेठा, संतोष चतुर्वेदी, शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन, सुरेश सेन निशांत, भरत प्रसाद जैसे चर्चित कविओं के साथ हैं राज्यवर्धन, ऋषिकेशराय और कमलजीत चौधरी जैसे युवा कवि।
इस संग्रह में सबसे पहले हैं अग्निशेखर की कविताएँ, इनकी कविताओं को पढ़ते हुए कवि के मन में पल रही विस्थापन की पीड़ा को आसानी से महसूस किया जा सकता है।.साथ ही मातृभूमि के लिए उनके प्रेम को भी। पहली कविता ‘पुल पर गाय’ में कवि लिखते हैं-
सब तरफ बर्फ है खामोश
जले हुए हमारे घरों से ऊँचे हैं
निपते पेड़
एक राह-भटकी गाय
पुल से देख रही है
खून की नदी
रंभाकर करती है
आकाश में सुराख़
छींकती है जब भी मेरी माँ
यहाँ विस्थापन में
उसे याद कर रही होती है गाय
इस कविता में कवि विस्थापित हुए लाखों माँओं की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। माँ आज भी असहाय है एक गाय की तरह ..जो पीड़ा होने पर केवल रंभाती है। माँ की वेदना का वर्णन बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है कवि ने यहाँ। माँ सहमी हुई है खून की नदी देख कर। अपने ही देश में विस्थापितों की तरह रहना कितना कष्टकर है और शासन द्वारा उनके साथ किस तरह का सुलूक किया जाता है इसका वर्णन कवि अपनी दूसरी कविता में किया है।
“भाड़ा न देने के इल्जाम में
इन दिनों पुश्किन जेल में है”
'विरसे में गांव' एक और मार्मिक रचना है। ठीक इसी तरह की एक रचना है ‘मेरी डायरियां’ संग्रह की श्रेष्ठ रचनाओं में इनकी गणना होनी चाहिए। ‘विरसे में गांव’ में कवि कहता है-
पिता मैं साँस –साँस जी रहा हूँ
गांव अपना
तुम स्वीकार करो मेरा तर्पण”
कवि मातृभूमि को न भूलने का पिता को दिया हुआ वचन निभा रहा है। एक शानदार रचना है यह। कवि अपनी सभी रचनाओं में अपने नाम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुए हैं।
इस संग्रह में सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कवियों में हैं - हिमाचल के कवि सुरेश सेन निशांत। इनकी केवल चार कविताएँ हैं इस संकलन में। चारों रचनाओं में ‘गुजरात’ बहुत ही मजबूत रचना है। गुजरात दंगो के बाद से पूरे देश की तरह कवि भी सहमा हुआ है। वह पहाड़ी राज्य हिमाचल से गुजरात के हालातों का विश्लेषण करते हैं क्योंकि कवि अपने पुत्र को गुजरात भेज रहा है और उसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं जैसे कई और माँ-बाप होते हैं। किन्तु कवि को उम्मीद है कि गुजरात की उर्वर मिट्टी उनके पुत्र का ख्याल रखेगी। कवि अपने पुत्र को खाली हाथ नही भेज रहे हैं वे उसके साथ भेज रहे हैं पहाड़ की तमाम वस्तुएं।
“गुजरात
मैं अपने बेटे को
इन पहाड़ों से दूर, इन दुखों से दूर
इन जर्जर पुलों और
इन उबड़खाबड़ रास्तों से दूर
तुम्हारे पास भेज रहा हूँ
तुम इसका ख्याल रखना”
इन पंक्तियों में कवि ने साफ़ संकेत दिया कि कवि सुख से अपने बेटे को अपने से अलग नही कर रहे हैं।
“गुजरात, मैं इसे यहाँ से कभी नही भेजता
अगर सेब के ये पौधे
किसी बीमारी से सूखने न लगते
मैं इसे यहाँ रखता
अगर नदियों का जल स्तर
अपनी जगह रहता स्थिर
हमारे कुछ अपने लोग
हमारे सपने कर रहे हैं
तहस-नहस”
कवि किस तरह विचलित हैं पहाड़ के वर्तमान हालात से इन पंक्तियों में महसूस किया जा सकता है।
“गुजरात
मैं इन पहाड़ों से
भेज रहा हूँ
सुगन्धित फूलों के कुछ बीज
मैं भेज रहा हूँ
पहाड़ से हर –हराती एक नदी
मैं उस नदी के सीने में भेज रहा हूँ
हजारों स्वपनिली रंगीन मछलियाँ”
भाषा और शिल्प की दृष्टि से बहुत ही मजबूत रचनाओं में से एक और निसंदेह संकलन की सबसे चर्चित कविताओं में से भी एक रचना है गुजरात। ‘पिता की छड़ी’ और बाकी रचनाओं में भी कवि की यह खूबी पाठक बखूबी देख सकते हैं।
संकलन के सबसे चर्चित कविओं में हैं केशव तिवारी। कवि केशव तिवारी समकालीन कविता जगत में ‘लोक’ के लिए जाने जाते हैं। और अपनी इस पहचान को वे बखूबी बनाएँ रखते हैं अपनी रचनाओं में। यहाँ उनकी कुल चार कविताएँ हैं। कवि अपनी मिट्टी की गंध, उसके दर्द से खुद को अलग नही कर पाता। उसे चिंता है हमारे समाज में हो रहे परिवर्तन की। उसे चिंता है एक दिहाड़ी मजदूर की। कवि उसके दर्द से आहत है। ‘बिसेसर’ उनकी सबसे लंबी रचना है इस संकलन में। यह एक गंभीर रचना है। इस रचना में हम नागार्जुन की शैली को देख सकते हैं। ठीक इसी तरह की एक रचना है ‘रातों में कभी –कभी रोती थी मरचिरैया’।
कल रात कविता में कवि एक मजदूर की व्यथा को बहुत ही मार्मिक रूप में प्रस्तुत करते हैं।
“शराब के नशे में शिथिल
उदास आँखों को इस तरह रोते मैंने
देखा पहली बार।
यह एक सम्वेदनशील कवि की ऑंखें ही है जो एक मजदूर के आंसूओं की भाषा पढ़ लेती हैं। ‘दिल्ली में एक दिल्ली यह भी’ कविता में कवि जहाँ पूंजीवादी इस दौर में स्वार्थी रिश्तों का खुलासा करते हैं वहीं एक बूढ़े कवि की उदारता को भी बहुत सम्वेदनशीलता के साथ बयान करते हैं-
“यह जानते हुए कि दिल्ली से बोल रहा हूँ
बदल गई कुछ आवाजें
कुछ ने कहला दिया दिल्ली से बाहर हैं
कुछ ने गिनाई दूरी
कुछ ने कल शाम को
बुलाया चाय पर
यह जानते हुए भी कि
शाम की ट्रेन से जाना है वापस”
कहते हैं न सच्चे मित्रों की पहचान कठिन समय पर ही होती है यही हुआ कवि के साथ भी।
वहीं एक बूढ़ा कवि जब यह सुनता है कि एक कवि उनके ही शहर में हैं और होटल में ठहरे हुए हैं तो वे नाराज हो जाते हैं और कवि को अपने घर पर आने का स्नेहपूर्ण आदेश देते हैं। अकेला वृद्ध कवि एक युवा कवि के लिए भोजन के साथ के लिए इंतजार करते हैं। उस बूढ़े कवि में इस युवा कवि को एक देवदूत दिखाई पड़ता है। मानवीय सम्बंधों का एक नायाब उदाहरण है यह रचना।
इस संकलन में हमारे समय के एक और चर्चित कवि हैं महेश चन्द्र पुनेठा। इनकी आठ रचनाएँ हैं इस संग्रह में। महेश जी की पहचान एक लोकधर्मी कवि की है। संग्रह की अपनी पहली रचना में ही वे अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। बहुत ही छोटी रचना है ‘प्रार्थना’
‘विपत्तियों से घिरे आदमी का
जब
नही रहा होगा नियंत्रण
परिस्थितियों पर
फूटी होगी /उसके कंठ से पहली प्रार्थना
विपत्तियों से उसे
बचा पायी हो या नही प्रार्थना
पर विपत्तियों ने
अवश्य बचा लिया प्रार्थना को।
कितनी सटीक प्रस्तुति है। कविता छोटी होते हुए भी सार्थक है यही एक सामर्थ कवि की खूबी भी है। ठीक इसी तरह उनकी बाकी रचनाएँ भी हैं। ‘कैसा अदभुत समय है’ भी एक शानदार कविता है महेश जी की।
“कैसा अदभुत समय है
हत्यारा बाँट रहा है पुरस्कार
उन्हें हत्या के खिलाफ़ हैं जो
शर्म होनी चाहिए थी जहाँ
गर्व झलक रहा है वहाँ।”
समाज और राजनीति में हो रहे बदलाव पर कवि की पैनी नजर है और यही कवि का कर्तव्य भी है।
युवा कवि और आलोचक संतोष चतुर्वेदी की कविताएँ हैं ‘स्वर-एकादश’ में। संतोष मूलतः लंबी कविताएँ लिखते हैं। उनकी कुल पांच कविताएँ हैं इन संकलन में। पांच इसलिए शायद कि उनकी कविताएँ लंबी हैं। मैं यहाँ सिर्फ उनकी एक कविता का उल्लेख करूँगा।
“पानी का रंग” संकलन की सबसे अलग कृति है . वैसे तो पानी पर अनेकों कविताएँ लिखी /रची गई हैं किन्तु पानी का रंग सच में एक अनूठे रंग की कविता है इस पानी में जीवन का रंग है
पाठक इस कविता को बार पढ़ना चाहेगा –
गौर से देखा एक दिन
तो पाया कि
पानी का भी एक रंग हुआ करता है
अलग बात है यह कि
नही मिल पाया इस रंग को आज तक
कोई मुनासिब नाम
एक और छंद देखिये :-
‘अनोखा रंग है पानी का
सुख में सुख की तरह उल्लसित होते हुए
दुख में दुख के विषाद से गुजरते हुए
कहीं कोई अलगा नहीं पाता
पानी से रंग को
रंग से पानी को
कोई छननी छान नहीं पाती
कोई सूप फटक नहीं पाता
और अगर ओसाने की कोशिश की किसी ने
तो खुद ही भीग गया आपादमस्तक.....’
बहुत कठिन है पानी में छिपे रंग को परिभाषित कर पाना
इसलिए तो कवि लिखते हैं –
अपनी बेनामी में भी जैसे जी लेते हैं तमाम लोग
आँखों से ओझल रह कर भी अपने मौसम में
जैसे खिल उठते हैं तमाम फूल
गुमनाम रह कर भी
जैसे अपना बजूद बनाये रखते हैं तमाम जीव
पानी भी अपने समस्त तरल गुणों के साथ
बहता आ रहा है अलमस्त
निरंतर इस दुनिया में
हरियाली की जोत जलाते हुए
जीवन के फुलवारी में लुकाछिपी खेलते हुए
अनोखा रंग है पानी का
सुख में सुख की तरह उल्लसित होते हुए
दुःख में दुःख के विषाद से गुजरते हुए
कहीं कोई अलग नही पाता .......
संग्रह में एक और कवि हैं डा. भरत प्रसाद, जो इन दिनों पूर्वोत्तर के मेघालय राज्य में रहते हैं। भरत जी अच्छे कवि के साथ –साथ उभरते हुए आलोचक एवं स्तंभ लेखक भी हैं। उनकी कविता ‘सर उठाओ बन्धु’ एक क्रांतिकारी रचना है। अपनी इस रचना में वे किसान, मजदूर, शोषित–पीड़ित आम जन को अन्याय के विरुद्ध सर उठाने का आह्वान करते हैं। कवि वांछित लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागृत करते हैं –
"मौके पर सटीक उत्तर न देने की चालाकी
हाथ–पैर, जुबान से ही नही
दिलोदिमाग से भी तुम्हें नपुंसक बना देती है।”
कवि मरे हुए चेतना पर आघात करते हैं ताकि समय रहते हम जाग जायें।
इस संग्रह के बारे में जैसा कि आदरणीय गणेश पाण्डेय जी ने लिखा है “कवि की उम्र का कविता के अच्छे होने या यादगार होने का कोई संबंध नहीं है। मुझे अच्छा यह लगा कि हिंदी की पारंपरिक शिक्षा न लेने वाले कई कवि जिन्होंने इतर विषयों में डिग्री ली है, उनकी कविताएँ पानी की तरह तरल, सहज और सरल हैं। इतनी पारदर्शी और इतनी कोमल कि पूछिए मत। सीधे हृदय को छू जाती है।" मैं गणेश जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ।
अब बात करते हैं संकलन के सम्पादक राज्यवर्धन जी के बारे में। इस संकलन में इनकी भी छह कविताएँ हैं। कविताओं की भाषा सरल है और यही राज्यवर्धन की खासियत भी है। हिंदी कविता के क्षेत्र में राज्यवर्धन एक तेजी से उभरता हुआ नाम भी हैं। किन्तु इस संकलन में उनकी पहली कविता ‘कबीर अब रात में नही रोता’ से मैं निराश हूँ। “कबीर” की क्या छवि है हिंदी साहित्य में वे किस बात के प्रतीक हैं? क्या कवि इस बात से परिचित नही हैं? कबीर चेतना के प्रतीक हैं और वे किसी भी युग में जहाँ अज्ञान, पाखंड, शोषण मौजूद हैं वहाँ उन्हें नींद कभी आ ही नही सकती। हालाँकि कवि शायद आज के कुछ कवियों पर चुटकी ले रहे हों अपनी इस रचना के माध्यम से तो भी कबीर को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करना मुझे व्यक्तिगत तौर पर उचित नही लगा। संग्रह में शहंशाह आलम, राज किशोर राजन, ऋषिकेश राय के साथ-साथ कमलजीत चौधरी जैसे युवतर कवि की भी कवितायें शामिल हैं, जो काफी कुछ उम्मीद जगाती हैं।
अब बात इस किताब के चयनकर्ता वरिष्ठ कवि –लेखक प्रभात पाण्डेय जी के बारे में। इस पुस्तक में उनका क्या योगदान है? यदि उन्होंने कवि और कविताओं का चयन किया है तो फिर सम्पादक ने क्या किया? जिन्होंने कविताओं का चयन किया सम्पादन का काम भी उन्हें ही दिया जाना चाहिए था क्योंकि सम्पादक खुद बतौर कवि इस संकलन में हैं। क्या सम्पादक ने उन्हें काबिल नही पाया? इस संकलन में प्रभात पाण्डेय के नाम का बस उपयोग भर किया गया है। सम्पादक ने ‘प्रस्तावना’ में संकलन को अखिल भारतीय स्वरूप देने की जो बात लिखी है वह सही नही है क्योंकि इस संकलन में दो कवि जम्मू-कश्मीर से हैं, दो कवि कोलकाता से, एक कवि मेघालय से, दो कवि बिहार से और दो कवि उत्तर प्रदेश से और एक–एक कवि हिमाचल और उत्तराखण्ड से हैं। इस संकलन में न तो कोई मध्य प्रदेश से हैं न महाराष्ट्र से न दक्षिण भारत से। जब सम्पादक मध्य भारत की सीमा तक को पार नहीं कर पाया तब वह इस संग्रह को अखिल भारतीय स्वरुप वाला कैसे कह सकता है? इस सीमा के बावजूद हमारे समय के कवियों का यह एक महत्वपूर्ण संकलन बन पडा है इसमें कोई दो-राय नहीं।
पुस्तक- ‘स्वर-एकादश’, बोधि प्रकाशन, जयपुर, मूल्य -७०/-रूपये
संपर्क -
नित्यानंद गायेन
4-38/2/बी., आर. पी, दुबे कालोनी,
लिंगमपल्ली,
हैदराबाद -500019
मोबाईल -09642249030
सटीक , अच्छा विश्लेषण ,"हमारे समय के कवियों का यह एक महत्वपूर्ण संकलन बन पड़ा है "
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi prastuti..vishleshan padh kar pustak dekhne ki utsukta jagi.
जवाब देंहटाएंsangrah padhane ki echchha balwati ho gayi hai.....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है। http://nirjhar-times.blogspot.in पर आपका स्वागत है,कृपया अवलोकन करें।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
सूचनार्थ
अच्छी समीक्षा ...बधाई
जवाब देंहटाएंआपने केवल कवियों एवं कविताओं की तारीफ़ ही नहीं की है, बल्कि आखरी की कुछ पंक्तियों में आपने कुछ गूढ़ प्रश्न उठाये हैं । ये महत्वपूर्ण है । एक अच्छे समीक्षक की सबसे बड़ी ताकत होती है इमानदारी । आपकी समीक्षा में ये दिखलाई पड़ती है । समीक्षक के अलावा सभी ११ कवियों को बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंachha laga padhkar.. jo kavitayen aapne rekhankit kii hain vah vaastav me yaad rah jaane laayak hain
जवाब देंहटाएंकट टू कट. वन पीस. :). कवियों से दरख्वास्त कि रचनात्मकता और संघर्ष को ही शिरोधार्य मानें.
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