निशांत



प्रेम-और बेरोजगारी के कवि के रूप में काफी लोकप्रिय हुए थे। सत्ताईस साल की उम्र में कविता पर उन्हें प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनकी कविता की एक किताब जवान होते हुए लड़के का कुबुलनामा भारतीय ज्ञानपीठ से पिछले साल छप कर आयी है। निशांत की लंबी कविताओं का एक संग्रह  जी हां, लिख रहा हूं राजकमल प्रकाशन से  अभी-अभी छप कर आया है।


निशांत प्रेम के कवि हैं। वह प्रेम जो किसी की परवाह नहीं करता और जो सदा अपनी खूबसूरती बरकरार रखता है। यह कवि अपने होने के अस्तित्व को समर्पित करता  है – चाँद के दाग को।  उस चाँद को जिसके पास  सबसे खूबसूरत है उसके अपने गलत होने के निशान। यह कवि जीता है उस निशान के साथ ही जो उसके  दांतों और होठो के स्वप्न में धड़कते हैं। पहली बार पर प्रस्तुत है निशांत की कुछ नवीनतम कवितायें।   

घोड़ा और तांगेवाला

मेरे पास दुःख है
और मेरे पास क्या है?

पैरों में लग गए हैं चक्के
छोटी हो गयी है पृथ्वी

मेरा सुख
तुम्हारे पास दुःख बन पहुँचता है

मैं एक फूल छूता हूँ
वह बाजार में बदल जाता है.
फ़िर दुःख की नदी में

जानता हूँ
कुछ भी अजीब नहीं है
पर कहता हूँ- कितना अजीब है, यह जीवन
और जीवन का गणित 

घोड़ा दौड़ता है सड़क पर
तांगेवाले की पीठ पर पड़ती है चाबुक



एकदम ऊँचाई से

दो तल्ले से अपने जैसे ही दीखते हैं वे

चार तल्ले से
अपने ही जैसे पर
थोड़े दूर जैसे      थोड़े छोटे कदों के

फ़िर
चढ़ते जाईए तल्ले
दूरी और आक़ार का अन्तर दीखने लगता है

एकदम ऊँचे पर पहुँचकर
आप कीड़ों की शक्ल में देखते हैं उन्हें
जबकि वे इंसान हो कर
धरती पर चल-फिर रहे होते हैं
इंसान की तरह



 देह से लिपटी पार्क एवेन्यू की गंध

अनन्त महाकाश में
असंख्य सूर्यमुखी खिलते हैं
दिन में चाँद की शीतलता से भीग जाता है मेरा शरीर

चाँद की देह से
सूरज की गर्मी टपकती है
पसीने की शक्ल में

हमारा बिस्तर भीग जाता है
पसीने और देह की गंध से
देह में लिपटे ‘पार्क एवेन्यू’ की गंध से
खुशबूदार हो जाती है यह पृथ्वी

तुम नाखून से खोट-खोट कर जगाती हो
इस देह को
और धीरे-धीरे अपने दो जबड़ों के बीच
एक पके हुए नारियल की तरह रख लेती हो मुझे

मैं अपने होने के अस्तित्व को
समर्पित करता हूँ – चाँद के दाग को

चाँद के पास सबसे खूबसूरत है
उसके अपने गलत होने के निशान

तुम्हारे कंधे पर बनाए हुए मेरे खूबसूरत निशान
मेरे दांतों और होठो के स्वप्न में धड़कते हैं

मैं मरता हूँ
दिल धड़कता है एक मिनट में नब्बे बार
एक डाक्टरनी मुझे बतलाती है
चेहरा चूमती है धीरे से
मैं सो जाता हूँ.

 जीभ

मेरी त्वचा के रंग से
अलग है इसका रंग 

दुनिया के सारे स्वादों का रंग
पता है इसे

मेरे पुरखे
और मेरी जीभ के बीच
बहुत साम्यता है

हर बार
तुम्हारी जीभ का स्वाद मेरी जीभ को
एक नए रंग की तरह लगता है

एक नए दृश्य की तरह
एक नयी दुनिया की तरह

अभी-अभी
एक नए ग्रह की खोज की है हमने

अभी अभी
एक अद्भुत जीवन से गुजरे हैं हम



 कविता की एक पत्रिका को पढ़ते हुए
एक जिद!

मैं कैसे मान लूं
यह कविता कविता है
जबकि दिख रहा है
यह कविता कविता नहीं है

आग, आग की तरह दीखता है
कटहल, कटहल की तरह दिखता है
आदमी ही एक ऐसा वस्तु है
जो आदमी के साथ जानवर या मशीन
या कुछ और भी दिख सकता है

तय करना हमेशा हमारा काम होता है
जैसे हम तय करते हैं
यह आदमी अच्छा पिता है, असफल रोजगारी
यह औरत अच्छी बीवी है, असफल प्रेमिका

तो, मित्रों!
यह व्यक्तिगत रुचि का मामला है
और मैं तय करता हूँ
यह कविता, कविता नहीं है

कुछ शब्दों को मिला कर
एक वाक्य बनाना है
कुछ वाक्यों को जोड़-जाड कर
कवितानुमा शक्ल में
कागज़ की दीवार पर टांग देना है 

यह कविता,
कविता नहीं है
  
संपर्क-
द्वारा विजय कुमार साव
128, पेरियार, जे. एन. यू.
नयी दिल्ली, 110067
मोबाईल- 09239612662   
 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत मार्मिक और सम्वेदनशील रचनाएँ विशेषकर पहली और दूसरी कविता ने आकर्षित किया . निशांत जी को पहले भी पढ़ा हूँ ..और इन्हें पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है . इन कविताओं के लिए पहलीबार के प्रति आभार . कवि मित्र को बधाई .
    -नित्यानंद गायेन

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  2. तांगेवाले के सर पर चाबुक का पड़ना, जीभ से हर बार नया रंग चखना, ऊंचाई पर चढ़ते जाने का अहसास - आप वाकई बिम्बों एवं भंगिमाओं के प्रतिनिधि युवा कवि हैं । नए संग्रह के लिए बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. Nishaant bhai sach mein aap yuva Hindi kavita ke chamkte sitaare hain.Bahut acchi kavitain.yah kavita kavita hai... Abhaar Santosh jee. - kamal Jeet Choudhary, J&K.

    जवाब देंहटाएं
  4. यूँ निशांत को प्रेम का कवि आपने कहा है, जो सही है। लेकिन मैंने उनकी कई कवितायें ऐसी पाईं, जिनमें मैं निस्संकोच कह सकता हूँ, नेरुदा जैसा प्रेम है- धरती वाला प्रेम। मैं प्रेम के साथ निशांत को 'पृथ्वी' का कवि भी कहना पसंद करता हूँ। पृथ्वी का बिम्ब उनकी कविताओं में अलग अलग तरह से आता है और हर बार शायद एक नए अर्थ में। उनका प्रेम जितना ऐंद्रिक है , उतना ही सामाजिक। इन बेहतरीन कविताओं के लिए संतोष जी का शुक्रिया। निशांत को तो हमेशा बधाई है ही।

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