प्रतुल जोशी
आज का जमाना बहुत बदल गया है. अभी तक हमारे दिलो-दिमाग में घरों की जो अवधारणा थी अब वह बदल रही है. अब घर का मतलब फ़्लैट से लिया जाने लगा है. पहले टेलीविजन और मोबाईल ने हमें एकाकी बनाया अब फ़्लैट हमें समेटने लगा है, बकौल नरेश सक्सेना, उस अवधारणा में ‘जिसकी कोई जमीन नहीं होती, ना ही जिसका कोई आसमान होता है.’ कवि प्रतुल जोशी ने इस तथ्य को बाल मानसिकता से देखने की कोशिश की है जिसमें उन्हें बहुत कुछ परम्परागत चीजें और तथ्य बताये-समझाये जाते हैं जिसमें घर भी एक है. आखिर बच्चों को बदलते समय के साथ बदलती चीजों के बारे में न बता कर उनके इर्द-गिर्द एक भ्रम का माहौल क्यों बनाया जाता है. इसी क्रम में जब वे बड़े होते हैं, वास्तविकता से साबका पड़ता है, तो उन्हें अब तक का सब पढ़ा-जाना बेमानी लगने लगता है. तो आईये पढ़ते हैं कुछ इसी भाव-भूमि की प्रतुल जोशी की यह कविता
बच्चों की ड्राइंग-कॉपी के घर
बच्चे आज भी बनाते हैं
अपनी कॉपियों में
वही पुराना घर
जो दो सीधी रेखाओं के ऊपर
एक तिकोन से बनता है।
फिर उस घर के ऊपर
डाल दी जाती हैं एक छत
उसके लिए भी
सीधी रेखाओं का ही इस्तेमाल होता है।
घर के सामने से
निकलता है एक रास्ता
कोई नहीं होता है मौजूद
उस रास्ते पर
घर के पीछे होते हैं बादल
कुछ पेड़
एक बाड़ भी
दिख जाती है कभी-कभी
बच्चों की दुनिया को
यही समझाया जाता है
कि ऐसे ही होते हैं घर
बच्चे
अपना वह घर नहीं बनाते
जिसमें रहते हैं वो
यह घर
झोपड़ी भी हो सकती है
हवेली भी
और हो सकता है कोई एक फ्लैट भी
बच्चों की दुनिया को
रखा जाता है
सीधा और सरल
जीवन की जटिलताओं का
नहीं होता है उसमें प्रवेश
बच्चे जब बडे़ होते हैं
तो उन्हें समझ में आता है
कि उन्होंने जो पढ़ा था अपनी कक्षाओं में
यह दुनिया है
उससे बहुत अलग
अब ऐसे घर
बहुत कम मिलते हैं
जो होते हैं सिर्फ एक मंज़िला
जिनके सामने से
निकलती है एक सड़क
जिनके पीछे होते हैं
कुछ पेड़ और बादल
संपर्क-
प्रतुल जोशी
मो0- 9452739500
ई-मेल: pratul.air@gmail.com
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
पाखी के इस अंक में यह कविता छपी है ...संवेदनशील ...
जवाब देंहटाएंachi kavita hai
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंyahi hai sach achhi kavita hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और मार्मिक है यह कविता ! बिल्कुल नई संभावनाएं लिए कवि के लिए शुभ कामनाएँ !
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