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जीवनानंद दास की कविताएँ

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  जीवनानंद दास रवींद्र नाथ टैगोर के पश्चात बांग्ला कविता में जीवनानन्द दास जी का महत्त्वपूर्ण अवदान है। इनकी कविता ने  बांग्ला समाज की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। उनकी कविता 'बनलता सेन' तो एक क्लासिकल कविता की तरह याद की जाती है। जीवनानंद दास ने बांग्ला भाषा में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया, जिसने एकरैखिक प्रगतिशील समय को उलट दिया। आज बँगला के अनूठे कवि जीवनानंद दास की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं जीवनानंद दास की कविताएँ। मूल बांग्ला से हिन्दी अनुवाद उत्पल बनर्जी ने किया है। जीवनानंद दास की कविताएँ  अनुवाद : उत्पल बनर्जी रात-दिन एक दिन यह पृथ्वी ज्ञान और आकांक्षा से भरी हुई थी शायद — अहा! किसी एक उन्मुख पहाड़ पर, बादल और धूप के किनारे पेड़ की तरह डैने फैलाए मैं था — पड़ोस में तुम थीं... छाया! एक दिन सत्य था यह जीवन — तुषार की स्वच्छता में, किसी नीले नए सागर में था मैं, तुम भी थी सीप के घर में। मोतियों का वह जोड़ा झूठ के बन्दरगाह में बिक गया — हाय! समय को खो कर ही किसी पल मैं जान सका कि भले ही ...

स्वप्निल श्रीवास्तव की कहानी 'बादल और बारिश'

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  स्वप्निल श्रीवास्तव  समय पंख लगा कर उड़ जाता है और हमें इसका आभास तक नहीं हो पाता। लेकिन प्रेम मनुष्य के मन को हमेशा तरोताजा या कह लें, नौजवान रखता है। अब यह जरूरी नहीं कि जिससे प्रेम किया जाए उससे वैवाहिक रिश्ता बना ही लिया जाए। एक प्रेम मित्रता का भी होता है। यह पवित्र और निश्छल होता है। अपनी कहानी  'बादल और बारिश' की पात्र सुहानी से  स्वप्निल श्रीवास्तव कहलवाते हैं : " मेरा और उनका संबंध किसी प्रेमी–प्रेमिका की तरह नहीं था। बस हम मित्र थे। शादी के सवाल पर जिस तरह का जबाब दिया उससे मैं न जाने कितने अपराधों से मुक्त हो गयी थी। प्रेम संबंध परिणय में परिवर्तित हो जाए, यह जरूरी तो मैंने। लेकिन आम अवधारणा तो यही है जो प्रेम करते है, वे विवाह की मंजिल तक पहुंचना चाहते हैं।"  स्वप्निल श्रीवास्तव एक उम्दा कवि तो हैं ही, वे एक बेहतर गद्यकार भी हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  स्वप्निल श्रीवास्तव की कहानी 'बादल और बारिश' । 'बादल और बारिश'         स्वप्निल श्रीवास्तव      प्रेमिल वर्मा की कविताओं की मैं मुरीद थी। म...

परांस-7 : शाश्विता की कविताएं

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  कमल जीत चौधरी  मनुष्य इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठ जीव है। लेकिन अपनी श्रेष्ठता के मद में वह तमाम ऐसे काम भी करता जा रहा है जिसमें अमानवीयता कहीं अधिक है। सामाजिक और नैतिक ही नहीं बल्कि पर्यावरणीय स्तर पर भी मनुष्य ने तमाम दिक्कतें पैदा की हैं। ऐसे में वाकई मनुष्य होने के नाते हमारी जिम्मेदारियां अलग किस्म की हैं। शाश्विता अपनी एक कविता में लिखती हैं "हमारे सम्मुख यह मौलिक ज़िम्मेदारी है/ प्रेत होती मानसिकता से/ समस्त वायुमंडल का शोधन करना/ प्रेत हो जाने की हर सम्भावना को/ मूलतः विरेचित करना/ प्रत्येक दिशा में भटकते दिशाहीन प्रेत को/ सम्पूर्ण विश्वास के साथ मानवीय सम्बोधन देना/ प्रेम की सच्ची सत्ता के साथ प्रेत-प्रतिकूलता को/ विजयी स्पर्श देना"। शाश्विता की इधर की कविताओं में दर्शन का प्रभाव बढ़ा है। दर्शन अनुभवों का एक ऐसा आईना हमारे सामने रख देता है जो हमें चिन्तन मनन करने के लिए प्रेरित करता है। अप्रैल 2025 से कवि कमल जीत चौधरी जम्मू कश्मीर के कवियों को सामने लाने का दायित्व संभाल रहे हैं। इस शृंखला को उन्होंने जम्मू अंचल का एक प्यारा सा नाम दिया है 'परांस'। परांस को ...