जीवनानंद दास की कविताएँ

जीवनानंद दास रवींद्र नाथ टैगोर के पश्चात बांग्ला कविता में जीवनानन्द दास जी का महत्त्वपूर्ण अवदान है। इनकी कविता ने बांग्ला समाज की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। उनकी कविता 'बनलता सेन' तो एक क्लासिकल कविता की तरह याद की जाती है। जीवनानंद दास ने बांग्ला भाषा में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया, जिसने एकरैखिक प्रगतिशील समय को उलट दिया। आज बँगला के अनूठे कवि जीवनानंद दास की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं जीवनानंद दास की कविताएँ। मूल बांग्ला से हिन्दी अनुवाद उत्पल बनर्जी ने किया है। जीवनानंद दास की कविताएँ अनुवाद : उत्पल बनर्जी रात-दिन एक दिन यह पृथ्वी ज्ञान और आकांक्षा से भरी हुई थी शायद — अहा! किसी एक उन्मुख पहाड़ पर, बादल और धूप के किनारे पेड़ की तरह डैने फैलाए मैं था — पड़ोस में तुम थीं... छाया! एक दिन सत्य था यह जीवन — तुषार की स्वच्छता में, किसी नीले नए सागर में था मैं, तुम भी थी सीप के घर में। मोतियों का वह जोड़ा झूठ के बन्दरगाह में बिक गया — हाय! समय को खो कर ही किसी पल मैं जान सका कि भले ही ...