शंभुनाथ का आलेख 'प्रेमचंद : भूलने से पहले'
प्रेमचंद का नाम आते ही हिन्दी साहित्य का एक नया पन्ना खुल जाता है। प्रेमचंद ने हिन्दी साहित्य को उसकी वह अर्थवत्ता प्रदान की, जो सीधे उसे किसानों और मजदूरों से जोड़ती थी। यह वह वर्ग था जो आर्थिक तौर पर महत्त्वपूर्ण होते हुए भी राजनीतिक तौर पर उपेक्षित था। हिन्दी साहित्य भी उसी राजनीतिक ढर्रे पर चल रहा था। लेकिन प्रेमचंद ने पुरानी परंपरा को तोड़ा और वह लकीर खींच दी जो हिन्दी के साहित्यकारों के लिए आधारभूमि बन गई। शंभूनाथ जी ने प्रेमचंद जयंती के अवसर पर ही ’वागर्थ’ के जुलाई-2023 अंक का संपादकीय लिखा है। आज प्रेमचंद की स्मृति को नमन करते हुए हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं शंभूनाथ का आलेख 'प्रेमचंद : भूलने से पहले'। 'प्रेमचंद : भूलने से पहले' शंभुनाथ हमारा समय प्रेमचंद को भूलने के दौर में है। 1960-70 के दशक में आधुनिकतावादी उभार के समय प्रेमचंद को बैलगाड़ी के जमाने का कथाकार कहा जा रहा था। वे सामान्यतः याद नहीं किए जाते, क्योंकि लोगों की चेतना पर प्राचीन-नए दबाव बढ़ गए हैं। बहुत कौशल से अंधेरे में समा चुकी चीजों पर उजाला चढ़ाया जा रहा है और पहले जो उजाले में ...