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नवमीत नव का आलेख “सृष्टि से पहले क्या था?”

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  बिग बैंग की काल्पनिक तस्वीर मनुष्य स्वभाव से ही चिंतनशील प्राणी है। विकास की प्रारंभिक अवस्था से ही मनुष्य ने इस बात पर चिंतन करना शुरू कर दिया था कि सृष्टि से पहले क्या था? हरेक सभ्यता खासकर मिस्र, रोम, अरब, चीन और भारत के बुद्धिजीवियों ने इस मुद्दे पर चिंतन करते हुए अपने अपने तर्क गढ़े और मिथक निर्मित किए। वैज्ञानिकों ने जब इस मुद्दे पर वैज्ञानिक तरीके से इस पर काम करना शुरू किया, तो पाया कि इसके लिए कुछ कारक जिम्मेदार हैं। इस क्रम में उन्होंने कई सिद्धान्त प्रतिपादित किए। 'बिग बैंग सिद्धान्त' से हम आम तौर पर परिचित ही हैं। अब एक और सिद्धान्त सामने आया है 'क्वांटम फ्लक्चुएशंस'। इन सारे पहलू पर बात करते हुए नवमीत नव ने एक रोचक आलेख लिखा है।  नवमीत वैज्ञानिक विषयों पर सुविचारित और रोचक तरीके से लिखते रहे हैं।  आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  नवमीत नव का आलेख “सृष्टि से पहले क्या था?”  “सृष्टि से पहले क्या था?”  नवमीत नव यह सवाल लगभग हर सभ्यता और हर दौर के दार्शनिकों, ऋषियों और धर्मशास्त्रियों ने अपनी अपनी तरह से उठाया है।  ऋग्वेद का नासदीय सूक्त (10...

भरत प्रसाद का आलेख 'चेतना के रहस्यों का आशिक नृत्यकार'

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भारतीय साहित्यिक परंपरा में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर आज भी शीर्ष पर खड़े दिखाई पड़ते हैं। कवि होने के साथ साथ वे चिन्तक, दार्शनिक, चित्रकार, संगीतकार भी थे। ऐसी बहुमुखी प्रतिभा कम नजर आती है। भरत प्रसाद के अनुसार 'गुरुदेव ने "अनुभूति की रवींद्र शैली" को जन्म दिया। इस अनुभूति में आंसू हैं, अभाव का असंतोष है, सीमाओं में जीने की तड़प है, बेमिसाल व्याकुलता और अलहदा स्तर का सीमाहीन समर्पण है। रवींद्र नाथ का मूल व्यक्तित्व मानो भक्तिकालीन निर्गुण कवियों ने मिल कर गढ़ा हो। उनके गीतों में एक तरफ कबीर की फकीरी ध्वनित होती सुनाई देती है, तो दूसरी ओर सूफी भक्तों का अलौकिक प्रेमानुराग। टैगोर प्रकृति के दृश्यमय विस्तार के प्रति इस हद तक आसक्त थे कि अपना सम्पूर्ण वजूद ही उसकी माया-छाया, महिमा के आगे गला गला कर बहा दिया।' आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  भरत प्रसाद का आलेख 'चेतना के रहस्यों का आशिक नृत्यकार'। 'चेतना के रहस्यों का आशिक नृत्यकार' (टैगोर की नवोन्मेषी कलम का नवमूल्यांकन)         भरत प्रसाद               एक     ...

पीयूष कुमार का आलेख 'लोहे से बुनी तरल कामनाओं का कवि'

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  रजत कृष्ण  हमारे देश का किसान आज भी अपनी खेती के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति ने साथ दिया तो जीवन जैसे तैसे साल भर चल जाता है। लेकिन प्रकृति ने कभी अपनी त्यौरियाँ चढ़ा लीं तो उनका जीवन कष्टकारी हो जाता है। सीधे सादे किसान सत्ताओं के आसान शिकार होते हैं। सभी उसे नोचने खसोटने में लगे रहते हैं। इसीलिए बतौर पीयूष कुमार ' रजत कृष्ण की जनपदीय चेतना में कुव्यवस्था के विरुद्ध धीमी सुलगती आग हैं। इस आग में तप कर उनकी कविताएँ कुंदन होने की यात्रा करती हैं। वे बहुस्तरीय और बहुआयमी जीवन की जटिलता को देख पाने और जाहिर कर सकने वाले कवि हैं। रजत कृष्ण की विशेषता है कि वे छोटी संवेदना का एकत्रीकरण कर विराट संदर्भों को पकड़ते हैं। उनकी कविताएँ महानगरीय भावबोध और जीवन से इतर लोक की सुदीर्घ यात्रा का प्रतिफल हैं। उनकी सभी कविताओं में लोक, जंगल और आम आदमी की व्यथा सरल सहज रूप में व्यंजित हुई हैं।' आज रजत कृष्ण का जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं। आइए इस अवसर पर हम पहली बार पर पढ़ते हैं रजत कृष्ण पर केन्द्रित  पीयूष कुमार का आलेख 'लोहे ...