नव वर्ष पर हिन्दी कविताएं
नव वर्ष पर हिन्दी कविताएं
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय की सुई लगातार टिक टिक करते हुए हमेशा आगे ही बढ़ती रहती है। समय कभी पीछे नहीं लौटता। हालात चाहें जैसे भी हों, एक कदम भी पीछे जाना उसे गंवारा नहीं। हां, वह अपने पीछे छोड़ जाता है ढेर सारी यादें। उन यादों के वितान पर हम अपने अतीत की भूली बिसरी यादों को पुनर्निर्मित करने की कोशिश करते हैं। वर्ष 2024 भी दिसम्बर बीतने के साथ अपनी खट्टी मीठी यादों के साथ अब अतीत हो गया। आज से बाकायदा वर्ष 2025 की शुरुआत हो गई। यह मौका होता है खुद को आंकलित करने का। गलतियों को सुधार कर कुछ बेहतर करने का। पहली बार से जुड़े सभी रचनाकारों और पाठकों को नव वर्ष की बधाई एवम शुभकामनाएं। इस अवसर पर हम हिन्दी के पुराने नए कुछ चर्चित कवियों की कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं नव वर्ष पर केन्द्रित हिन्दी की कुछ कविताएं।
हरिवंश राय बच्चन |
हरिवंशराय बच्चन की दो कविताएं
आओ, नूतन वर्ष मना लें
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
गृह-विहीन बन वन-प्रयास का
तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का,
एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
उठो, मिटा दें आशाओं को,
दबी छिपी अभिलाषाओं को,
आओ, निर्ममता से उर में यह अंतिम संघर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
हुई बहुत दिन खेल मिचौनी,
बात यही थी निश्चित होनी,
आओ, सदा दुखी रहने का जीवन में आदर्श बना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
वर्ष नव हर्ष नव
वर्ष नव, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल, प्रीत नवल, जीवन की रीत नवल, जीवन की नीत नवल,
जीवन की जीत नवल!
राधा वल्लभ त्रिपाठी |
राधावल्लभ त्रिपाठी
नव वर्ष मंगल
लज्जा से नीचा मुँह किए हुए गुज़रते हुए साल ने
अपना दाय सौंपते हुए आगंतुक वर्ष को कहा—
मनुष्य के पापों की गठरी में लिथड़ा यह दुर्वह भार
मैं ढोता रहा हूँ जो अब तक
वत्स, तेरे कंधों पर अब मैं लाद रहा हूँ।
वज्र से कठोर क्रूर दारुण हिंस्र नरपशु
प्रतिदिन अबलाओं पर करते रहे बलात्कार
कच्चा मांस खाने के आतुर जो माताओं के देह तक को नोचते रहे
धरती जिनसे बनती जा रही पशुओं से संकुल
इसे बचाना और लाज अपने माता के दूध की रखना
जो शील हरते आ रहे स्त्रियों का उन्हें सूली पर चढ़ाना
इस तरह बुज़ुर्ग के द्वारा सखेद सीख दी गई
जिस शिशु नववर्ष को
वह यहाँ की स्त्रियों के मंगलमय बने।
अदम गोंडवी |
अदम गोंडवी
वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग
वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग
हमसाए1पड़ोसी प्रतिवासी के लहू में नहाए हुए हैं लोग
ये तिश्नगी2प्यास तृष्णा गवाह है घायल है इनकी रूह
चेहरे ही तबस्सुम3मुस्कान से सजाए हुए हैं लोग
ग़ैरत4शर्म लज्जा मरी तो वाक़ई इंसान मर गया
जीने की सिर्फ़ रस्म निभाए हुए हैं लोग
कहने को कह रहे हैं मुबारक हो नया साल
खंज़र भी आस्तीं में छुपाए हुए हैं लोग
दिनेश कुशवाह |
दिनेश कुशवाह
नए साल की सुबह
(रमाकांत श्रीवास्तव के लिए)
अगर सिर्फ़ शुभकामनाओं से
मिल जाता मनचाहा
तो हर आदमी के पास होती
एक ख़ूबसूरत दुनिया।
आज नए साल की सुबह
मन नहीं किया कि शुभकामनाएँ दूँ
उन तमाम लोगों को
यानी कहूँ उनसे कि आप
इस साल और सफलतापूर्वक करें
वही सब वाहियात
जो करते रहे पिछले साल।
जबकि देश को दुहने की होड़
लगी है कसाइयों में
ज़िबह करने की युगलबंदी
गा रहे हैं पक्ष-विपक्ष।
स्तब्ध हूँ मैं
इस बात से कि
अपनी बेचैनी की लाज
बचाने के लिए भी
मेरे पास रास्ता नहीं है।
विनोद दास |
विनोद दास
नए साल पर
क्या यह साल भी गुज़र गया
पिछले साल की तरह
क्या इस साल भी
नहीं मिला पाऊँगा बनिए से आँख
काट दूँगा जाड़ा
सिकोड़े हुए पखौरे
क्या इस साल भी
नहीं हो पाएँगे मेरी बहन के पीले हाथ
गर्दन झुकाए अफ़सर की फटकार
क्या इस साल भी सुनता रहूँगा
क्या इस साल भी
खाँसी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी
पूरा कर पाऊँगा क्या वे काम
जो पिछले साल नहीं कर पाया
क्या इस साल
पृथ्वी पर बहता रहेगा रक्त
क्या इस साल भी जीवित रहूँगा
पिछले साल की तरह
बहुत अच्छा चयन। यथार्थवादी।
जवाब देंहटाएंवाह | नव वर्ष मंगलमय हो |
जवाब देंहटाएं