हेरम्ब चतुर्वेदी का आलेख 'इलाहाबाद में पत्रकारिता का विकास: एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण (१८६५-१९४७)'
प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी |
अकबर इलाहाबादी का यह शेर काफी मक़बूल है - 'खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो।' संयोगवश वे जिस इलाहाबाद के थे वहाँ की पत्रकारिता का न केवल प्रांतीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज़ादी के आन्दोलन में इलाहाबाद की पत्रकारिता ने आगे बढ़ कर स्वतन्त्रता संग्राम को एक नयी दिशा प्रदान की। यहाँ के पत्रकारिता की अपनी एक अत्यन्त समृद्ध परम्परा रही है। इस परम्परा पर एक विस्तृत नजर डाली है प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी ने। तो आइए पढ़ते हैं प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी का यह आलेख 'इलाहाबाद में पत्रकारिता का विकास : एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण।'
इलाहाबाद में पत्रकारिता का विकास: एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण (१८६५-१९४७)
प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी
यूँ तो इलाहाबाद
में पत्रकारिता की शुरुआत जनवरी २, १८६५ में उस समय हुयी थी, जब यहाँ से सरकारी
पत्र, “पायनियर” ने जूलियन
रोबिन्सन के सम्पादकत्व में जनवरी २, १८६५ से प्रकाशन प्रारम्भ किया. अपने
शैशव-काल में यह तीन सप्ताह में एक बार छपता था. रोबिन्सन के उपरान्त मैटलैंड
पार्क और फिर उनके बाद क्रमशः सर जॉर्ज चेस्ने, क्लाइव रेटिगन, जॉन वूलकाट, एडविन
हॉवर्ड तथा ऍफ़. डब्लू. विल्सन इसके सम्पादक रहे थे. यह १८६७ से ही “दैनिक’ हुआ। बाद में
राजनीतिक कारणों के चलते इसके तत्कालीन सम्पादक, डेसमंड यंग इसे अगस्त १, १९३३ को
लखनऊ ले गए और यह वहीं से प्रकाशित होने लगा।
चूंकि, यह अर्ध-साप्ताहिक
होने के चलते सीमित प्रभाव का ही रहा। ऊपर से यह सिर्फ सरकारी सूचनाएं और समाचार
ही प्रकाशित करता था अतः इसका प्रभाव शनैः-शनैः ही समाज में होना था. वैसे भी कम
प्रतियों की छपाई और राजकीय एकाधिकार के चलते इसका प्रारम्भिक मूल्य एक रूपया
प्रति संस्करण था. फिर १८६८ में दैनिक होकर ४ आने मूल्य का हो गया। किन्तु
गैर-सरकारी अख़बारों के आगे इसकी बिक्री बहुत कम थी अतः इसका मूल्य घटाकर १ आने कर दिया
गया था। जैसा ही इसका प्रभाव समकालीन समाज पर पड़ना शुरु हुआ, इस सरकारी पत्र की
प्रतिक्रिया में तुरंत ही पहले हिंदी पत्रकारिता का भी श्रीगणेश हुआ तब, बाद में
अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाएँ आयीं। इलाहाबाद की सरज़मीन के एक सुशिक्षित, उच्च पदस्थ
न्यायाधीश (जिला जज रहे) सुसंस्कारित व्यक्ति तथा बेहतरीन शायर अकबर इलाहाबादी लिख
गए हैं : “खींचों न कमान को,
न तलवार निकालो/ ’गर तोप हो मुकाबिल, तो अखबार निकालो”। ज़ाहिर है, ब्रिटिश सत्ता और औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के
विरुद्ध जन-जागरण और मानव-चेतना के विस्तार ने अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं का स्वरुप
ग्रहण किया।
अतः स्वतंत्रता-आन्दोलन
या औपनिवेशिक काल में इलाहाबाद से प्रकाशित समस्त पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी हेतु तार्किक,
बेहतर और सरल हो यदि इनके अध्ययन हेतु इन्हें हम कुछ प्रमुख वर्गों में विभक्त कर लें.
हम कुछ को मुख्य-धारा के राजनीतिक या समाचार-पत्र मान सकते हैं जो आमजन के
राजनीतिक एवं आर्थिक-सामाजिक सरोकारों को उठा रहे थे। दूसरे में हम आधी आबादी,
अर्थात महिलाओं से सम्बंधित प्रकरण उठाने और लक्षित करने वाली पत्रिकाओं को रख
सकते हैं. इसी के साथ बालकों-शिशुओं से सम्बंधित पत्रिकाओं को भी देख सकते हैं;
तीसरे में, जातीय-सामुदायिक पत्र-पत्रिकाएँ; चतुर्थ में शैक्षिक व चिकित्सा सहित
शोध आदि पत्र; पंचम में धार्मिक मुद्दों को समर्पित पत्र-पत्रिकाएँ और अन्य को
विविध में वर्गीकृत करके अध्ययन कर सकते हैं।
इलाहाबाद
की पत्रकारिता के इतिहास को समझने के लिए बेहतर हो हम मुख्यधारा के पत्र-पत्रिकाओं
को अंग्रेज़ी और हिंदी में विभक्त कर लें और फिर उनके उद्भव और विकास पर प्रकाश
डालें। इस क्रम में आगे १८७९ में “पायनियर” के प्रत्युत्तर में पंडित अयोध्या नाथ कुंजरू ने इस प्रांत
के प्रथम राष्ट्रिय एवं ब्रिटिश-विरोधी अंग्रेज़ी का समाचार-पत्र, “इंडियन हेराल्ड” का संपादन व
प्रकाशन शुरू किया। इसी के कुछ समय के
बाद आदित्यराम भट्टाचार्य ने भी एक साप्ताहिक, “द इंडियन यूनियन” की शुरुआत की. और उसके सम्पादन में अपने प्रिय शिष्य
मदनमोहन मालवीय को भी सम्बद्ध कर लिया। और फिर जब अयोध्या नाथ कुंजरू के पत्र “इंडियन हेराल्ड” का प्रकाशन १९९२
में बंद हो गया तब वे भी इसके प्रकाशन से जुड़ गए और यही पत्र निकालने लगे. पुनः जब
मदन मोहन मालवीय जी राजा रामपाल सिंह के “हिन्दोस्तान” के संपादन से मुक्त हो कर कालाकांकर से वापस इलाहाबाद आ गये
तब वे विधि की पढाई के साथ ही “द इंडियन यूनियन” के संपादन से पुनः सम्बद्ध हो गए। बदले परिवेश में अब
बलदेव नारायण दवे इसको प्रकाशित करने लगे थे। बाद में मालवीय जी के अधिवक्ता के रूप
में व्यस्त हो जाने के चलते नागेन्द्र नाथ गुप्ता इसके संपादक सहायक के रूप में कार्य
करने लगे। जब मालवीय जी ने “लीडर” के संपादन का दायित्व स्वीकार किया तब नागेन्द्र नाथ जी न
केवल उनके सहायक हुए अपितु इन दोनों “इंडियन पीपुल”” तथा “द इंडियन यूनियन” संचार-पत्रों- का
विलय भी “लीडर” में हो गया।
रामानंद चटर्जी अक्टूबर, १८९५ में इलाहाबाद के
कायस्थ पाठशाला के प्रिंसिपल होकर आ गये थे। इसी क्रम में इलाहाबाद छोड़ने (१९०६)
से पूर्व वे अप्रैल १९०१ में बांग्ला में “प्रवासी” एवं आधुनिक काल के अंग्रेजी पत्रकरिता के पथ-प्रदर्शक “मॉडर्न रिव्यु” का प्रकाशन यहीं
से शुरू कर चुके थे। बाद में वे उनके साथ बंगाल चले गए। वे “कायस्थ समाचार” का अंग्रेजी खंड
का भी संपादन देखते थे. यही पत्र बाद में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा (१९०२-३) के
संपादन में सामुदायिक के स्थान पर राष्ट्रिय पत्र “हिंदुस्तान रिव्यु” में परिवर्तित हो गया था। “हिंदुस्तान रिव्यु” जब शुरू में इस नाम से प्रकाशित होना शुरू हुआ तब “कायस्थ समाचार” भी साथ में छपा
रहता था किन्तु, यह सिलसिला १९०३ में बंद हुआ और अंततः १९०४ में कायस्थ पाठशाला ने
यह समाचार-पत्र सच्चिदानंद सिन्हा को ही बेंच दिया. तब वह उनके निवास से ही
प्रकाशित होने लगा. इतना ही नहीं, जनवरी १९०३ को सच्चिदानंद सिन्हा ने एक
साप्ताहिक “इंडियन पीपुल” का प्रकाशन शुरू कर दिया और अपनी व्यस्तता के चलते उसके संपादन के लिए वे
सी.वाई. चिंतामणि को इलाहबाद साग्रह इलाहाबाद बुलाने में सफल रहे और फिर तो
पत्रकारिता और पत्रकारों दोनों के स्वरुप में ही एक मूल भूत अंतर आ गया। सी.वाई.चिंतामणि
(बाद में सर) “विज़ाग स्पेक्टेटर” एवं “गुडविल” के संपादक-प्रकाशक के बाद लाहौर में “ट्रिब्यून” के संपादक भी रह चुके थे, जब डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने
उन्हें इलाहबाद आमंत्रित किया था।
मोती लाल नेहरू |
१९०९ में दो नए
पत्रों की शुरुआत इलाहाबाद में हुई. वस्तुतः १९०८ के “प्रेस अधिनियम” के विरुद्ध
मदनमोहन मालवीय ने एक आन्दोलन ही छेड़ दिया था. इसी सिलसिले में उन्होनें इलाहाबाद
में एक अखिल-भारतीय सम्मलेन भी आयोजित किया था. इसी सम्मलेन में उभरे निष्कर्षों
के चलते ‘वर्नाकुलर प्रेस’ के प्रावधानों से
बच कर पत्रकारिता के पैनेपन और तीखेपन को बरकरार रखने के लिए एक अंग्रेजी
समाचार-पत्र की आवश्यकता को रेखांकित किया गया था. अतः पंडित मोती लाल नेहरु के
सहयोग से अंग्रेजी दैनिक “लीडर” की शुरुआत, १९०९ में की गयी थी. इस पत्र का प्रकाशन
विजयदशमी या अक्टूबर २४, १९०९ को शुरू हुआ. पंडित मोती लाल नेहरु इसकी प्रबंध समिति
के अध्यक्ष तथा १९०९ से १९११ तक मालवीय जी इसके सम्पादक थे और १९११ से १९१९ तक इसकी
प्रबंधन समिति के अध्यक्ष. नगेन्द्रनाथ गुप्ता तथा सी.वाई. चिंतामणि उनके संपादकीय
सहायक थे. इससे पहले नागेन्द्र नाथ गुप्ता “इंडियन ओपिनियन” तथा चिंतामणि जी “इंडियन पीपल” का संपादन देख रहे थे। अब चूंकि इन दोनों पत्रों का विलय “लीडर” में हो गया था
अतः वे “लीडर” के संपादन से
सम्बद्ध हो गए। बाद में, एक वर्ष के भीतर ही नागेन्द्र नाथ गुप्ता के लाहौर जा कर “ट्रिब्यून” से सम्बद्ध होने
के कारण चिंतामणि ही “लीडर” के मुख्य-संपादक
हो गए थे।
“लीडर” भारत का द्वितीय
ऐसा समाचार-पत्र हो गया था जिसने विश्व समाचार एजेंसी ‘रायटर्स' से
निर्धारित ‘फीस’ जमकर के विश्व भर
के आधिकारिक समाचार प्राप्त करना शुरू किया था. इसे १९१० में ही सरकार से बिशन
नारायण दर से सम्बंधित एक नितांत राष्ट्रवादी लेख के प्रकाशन के लिए चेतावनी मिल
गयी थी. किन्तु यह सदैव सरकार के लिए एक चुनौती तथा अफसरशाही के लिए एक सरदर्द बना
रहा. इसीलिए आमजन में “लीडर” की लोकप्रियता बढ़ती ही रही और १९२९ तक इसने अपनी ज़मीन और
अपना भवन भी खरीद लिया था. इसी साल उसने एक ‘रोटरी प्रेस’ लगाने में सफलता प्राप्त की, जो प्रति घंटे ३०,००० प्रतियाँ
छाप सकती थी। अतः १९२९ आते-आते इसी प्रेस से हिंदी के अखबार “भारत” का प्रकाशन भी शुरू किया सका। इस समय तक पत्रकारिता में
प्रतियोगिता के चलते, सरकारी पत्र “पायनियर” अपना मूल्य चार आने करने को बाध्य हो चुका था और “इंडिपेंडेंट” का प्रकाशन १९२३
में बंद हो चुका था, अतः “लीडर” अपने नाम के अनुसार पत्रकारिता के क्षेत्र में वस्तुतः ‘लीडर’ ही हो गया।
मदन मोहन मालवीय |
महादेव देसाई |
सन १९४३ में तुषार
कान्ति घोष ने “अमृत बाज़ार पत्रिका” के इलाहाबाद संस्करण
का संपादन-प्रकाशन किया. असल में बंगाल के भीषण अकाल और १९४२ के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के साथ-साथ
साम्प्रदायिकता के बढ़ते प्रभाव और सबसे अधिक जापान के सैन्यवाद और साम्राजीय
महत्वाकांक्षा को देखते हुए बर्मा के मार्ग से बंगाल के ऊपर उसके संभावित हमले आदि
के चलते तुषार कान्ति घोष ने कलकत्ता छोड़ने का निर्णय लिया था। तब उन्होनें बंगाल
के अपने प्रसिद्द पत्र “अमृत बाज़ार पत्रिका” को यहाँ से निकालना शुरू किया. स्वतंत्रता के बाद में इस
समाचार-पत्र का नामकरण “नोदर्न इंडिया पत्रिका” हो गया। आज़ादी के बाद इसका हिंदी संस्करण, “अमृत प्रभात” के नाम से भी
निकला.
II
इलाहाबाद में
हिंदी पत्रकारिता अध्ययन का क्रम सन १८६८ में सदासुखलाल के सम्पादन में “वृत्तांत दर्पण” के प्रकाशन से
शुरू हुआ. किन्तु, अनेकानेक कारणों से यह पत्र अपना स्वरुप बदलकर, दो वर्ष बाद ही
मात्र विधि-सम्बन्धी विषयों का ही मुख-पत्र बन गया। मुख्य-धारा के पत्र-पत्रिकाओं
में सबसे प्रभावी पत्र और एक प्रकार से राष्ट्रिय एवं साहित्यिक दोनों ही विधा की
पत्रकारिता के पथ-प्रदर्शक के रूप में जिस पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ वह था
पंडित बालकृष्ण भट्ट का “हिंदी प्रदीप”। “हिंदी वर्धिनी सभा” के अंतर्गत ‘विक्टोरिया प्रेस’ (इलाहाबाद) से सितम्बर १८७७ से प्रकाशन शुरु करके यह
पत्रिका १९०९ तक पूरे ३३ वर्षों तक औपनिवेशिक सत्ता को निरंतर ललकारती रही और
राष्ट्रवाद की धारा को प्रवाहित किये रही। इसको १९०८ के दमनकारी ‘प्रेस एक्ट’ के तहत ही बंद
किया जा सका. यह गरम विचारों से प्रेरित एक तेजस्वी राष्ट्रवादी पत्र था. यह सदा
ब्रिटिश प्रतिबंधों के बावजूद प्रकाशित होता ही रहा. माधव शुक्ल की कविता “ज़रा सोचो तो यारों
बम क्या है?” जब अप्रैल १९०८ के अंक में प्रकाशित हुआ तब ब्रिटिश सरकार ने इसे देश-द्रोह
और षड्यंत्र घोषित करते हुए “वायलेंस एक्ट” या “हिंसात्मक अधिनयम” के तहत अक्टूबर १९०८ में ज़ब्त किया और इसी के साथ “प्रेस एक्ट” के अधिनियम के
प्रावधानों के संपृक्त प्रयोग द्वारा इसके प्रकाशन को सदैव के लिए बंद कर दिया। इस
पत्र ने एक साथ दो धाराओं को जन्म दिया – एक ओर राष्ट्रवाद से प्रेरित साहित्यिक लेखन और दूसरी ओर
शोषणयुक्त शासन के विरुद्ध ‘खोजी पत्रकारिता’ द्वारा समाचार देकर नयी तरह की चेतना को जन्म देना।
इसी तरह का एक
समाचार-पत्र, १८८०-८१ में “प्रयाग समाचार” देवकीनंदन त्रिपाठी (तिवारी) के संपादन में निकलना शुरू
हुआ. इसके संपादकों में हमें अमृतलाल चक्रवर्ती, जगान्नाथ प्रसाद शुक्ल जैसे नाम
सम्बद्ध दिखते हैं. देवकीनंदन स्वतंत्र अध्ययन, लेखन, चिंतन-मनन करके अपना पत्र
स्वयं प्रकाशित करके कंधे पर लाद कर उसे बेचने जाते थे. साधनहीनता वश ही अंततः इसका
प्रकाशन बंद हुआ. १९०० में “सरस्वती” का प्रकाशन भी एक क्रांतिकारी घटना थी, किन्तु इसका प्रभाव
साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में अधिक था. अतः इसने आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण के
प्रचार-प्रसार, विस्तार के साथ मानक हिंदी ‘खड़ी बोली’ को एक औपचारिक तथा आधिकारिक स्तर प्रदान किया।
१९०७ की बसंत
पंचमी के अवसर पर महामना मदन मोहन मालवीय ने “अभ्युदय” साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया. इसका नाम पंडित बालकृष्ण
भट्ट द्वारा सुझाया गया था. संशोधित भारतीय व्यवस्थापिका में सदस्य चुने जाने पर
मालवीयजी ने इसके संपादन का दायित्व त्याग दिया था. तदुपरांत १९१० से
पुरुषोत्तमदास टंडन, सत्यानन्द सिन्हा, कृष्णा कान्त मालवीय, गणेश शंकर
विद्यार्थी, वेंकटेश नारायण तिवारी क्रमशः इसके संपादक रहे. इसके बाद १९३६ के
आस-पास सम्पादन का भार कृष्णकान्त मालवीय के पुत्र पद्मकांत मालवीय ने सम्हाल
लिया. अपने दो दशकों के अस्तित्व में “अभ्युदय” शीर्ष पर पहुंचा गया था। १९१५ तथा १९२६-२७ की अवधि में यह
एक दैनिक की तरह छपा था। १९३० में कांग्रेस के एक निर्णय के उपरान्त इसका प्रकाशन
भी बंद कर दिया गया था. किन्तु पंडित मोतीलाल नेहरु को कांग्रेस के मुख-पत्र के
रूप में इसकी भूमिका का आभास इसके प्रकाशन के बंद होते ही महसूस हुआ। कांग्रेस ने
प्रकाशन बंद करने का निर्णय तो जोश में ले लिया था किन्तु अब वह अपना सन्देश व
समाचार कैसे आम-जन तक प्रेषित करे – यह समस्या अब उनके समक्ष सर बाए खड़ी थी? अतः कुछ माह
पश्चात ही मोतीलाल जी की सलाह मानते हुए इसका पुनर्प्रकाशन प्रारम्भ हुआ. मार्च
१९३१ को इसने अपना “भगत सिंह विशेषांक” निकला और इसी के बाद “किसान विशेषांक” निकला. अब तक यह एक अधिक निर्भीक, क्रांन्तिकारी एवं
राष्ट्रवादी पत्र हो चुका था. जब इसमें दिसम्बर २, १९३१ में मऊ (झांसी) के घासीराम
व्यास की ३ क्रन्तिकारी कवितायेँ प्रकाशित कीं तब ब्रिटिश सरकार ने इस पर भारतीय
दंड संहिता के प्रावधान/धारा १२४ ए के अंतर्गत मुक़दमा कायम किया. फरवरी १६, १९३२
में इसके निर्णय के अनुसार जुर्माना किया गया और जुर्माना न जमा किये जाने की स्तिथि
में उनका सामान कुर्क किया जाना था।
उस समय
राष्ट्रीयता की लहर और कृष्णकान्त मालवीय तथा उनके पत्र “अभ्युदय” की लोकप्रियता का
अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी ने भी इनके सामान के लिए बोली नहीं
लगायी। यानि समकालीन भारतीय अब हर प्रकार से जागृत होकर औपनिवेषिक सत्ता के साथ
असहयोग द्वारा विरोध दर्ज करा रहे थे और राष्ट्रवादियों के समर्थन में प्रत्यक्षतः एवं परोक्ष रूप से सक्रिय
भूमिका निभा रहे थे। इस प्रकरण के पश्चात १९३४ में इसका प्रकाशन पुनः प्रारम्भ हुआ
किन्तु, १९३६ आते-आते इसका प्रकाशन पुनः छह माह तक प्रतिबंधित कर दिया गया. १९३६
को ही विजय-दशमी के अवसर पर इसका प्रकाशन एक बार फिर पूरे उत्साह से हुआ। मई १९४०
को इसके संपादक पद्मकांत मालवीय को कारागार में बंदी बनाया गया. नवम्बर १९४० पर वे
‘पेरोल’ पर पिता के गिरते
स्वाथ्य के चलते मुक्त हुए, किन्तु उनके देहावसान के उपरान्त पुनः १९४१ की जनवरी
में जेल में निरुद्ध हुए. यह पत्र एवं इसके संपादक दोनों ही स्वतंत्रता-अन्दोलन के
पर्याय हो चुके थे। १९४० के दशक के प्रारम्भ में जैसे ही आन्दोलन उग्र हुआ इसका
स्वर भी उग्र होता गया।
१९०७ में ही उर्दू
के साप्ताहिक पत्र “स्वराज्य” का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। ये उग्र तेवर वाला अपनी तरह का साप्ताहिक था, जिसका
प्रकाशन ‘भारतमाता सोसाइटी’ के तत्वाधान में
होता था. १९०७ से १९१० के ढ़ाई वर्ष की अवधि में इसके कुल ७५ अंक प्रकाशित हुए थे.
इसके सभी संपादक जेल गए. इसके आठ संपादकों को कुल १२५ वर्ष की सजा मिली थी। इसका संपादन
सर्वप्रथम शान्ति नारायण भटनागर ने किया. वर्ष १९०९ में ही पाक्षिक “कर्मयोगी” का प्रकाशन भी
शुरू हुआ. इसके सम्पादक आंग्ल शासन की आँख में खटकने वाले पंडित सुन्दरलाल थे। वे
बाल गंगाधर तिलक तथा और्बिन्दो घोष के निकट सहयोगी थे. रौलेट समिति ने इस पत्र को
अपनी रिपोर्ट में ‘सरकार विरोधी’ घोषित किया था। यह अपनी बढती लोकप्रियता के चलते १९०९ में बसंत पंचमी को
साप्ताहिक हो गया। चूंकि, यह अँग्रेज़ सरकार की आँख की किरकिरी था अतः इसपर नए ‘प्रेस अधिनियम’ के तहत अर्थ-दंड
दिया गया और ज़मानत राशि जमा करने से इंकार करने पर इसका प्रकाशन अप्रैल १९१० में
बंद हुआ।
१९०८ में
इन्द्रनारायण द्विवेदी के संपादकत्व में १९१४ तक “भारतवासी” नामक एक अन्य समाचार पत्र भी प्रकाशित हुआ था. कुछ अवधि तक
दैनिक रहकर यह फिर साप्ताहिक हो गया था. १९१० में मदनमोहन मालवीय के भतीजे
कृष्णकांत मालवीय ने मासिक “मर्यादा” का संपादन व प्रकाशन शुरू किया. १० वर्ष बाद १९२० में इसका
प्रकाशन का भार ज्ञान मंडल बनारस को दे दिया गया। १९१६ में एक अन्य समाचारपत्र “सर्वशिक्षक” का प्रकाशन मुकुट
बिहारी लाल ने शुरू किया था. १९१८ में अल्प-अवधि तथा प्रथम वुश्व-युद्ध के ‘वॉर प्रोपेगंडा’ या प्रचार के लिए
और आंग्ल शक्ति के प्रदर्शन हेतु “लड़ाई का अखबार” नामक एक पत्र भी निकला था. यह दैनिक था. इसके अंग्रेजी
संस्करण में डॉ. गार्फील्ड विलियम्स तथा हिंदी में उनके साथ सत्यानन्द जोशी का भी
नाम सम्मिलित था. युद्ध के साथ यह दैनिक भी प्रकाशित होना समाप्त हुआ।
इस वातावरण में
पंडित सुन्दरलाल के संपादन में १९१७ में “भविष्य” का प्रकाशन शुरू हुआ. यह एक साप्ताहिक समाचार-पत्र था. चूंकि
इसके संपादक बाल गंगाधर तिलक एवं और्बिन्दो घोष अँग्रेज़ अफसरों की नज़र में पहले से
ही चढ़े हुए थे अतः छह महीने में ही इस पत्र की ज़मानत ज़ब्त कर ली गयी और यह पत्र भी
बंद हो गया. १००० प्रतियों के साथ इसका प्रकाशन शुरू हुआ था और ११वें अंक तक इसकी
मांग इतनी बढ़ चुकी थी कि इसकी १४,००० प्रतियां छपने लगीं थी. इसकी लोकप्रियता
सरकार को खलने लगी थी, अतः इसके विरुद्ध दमनात्मक कार्यवाही अवश्यसंभावी थी। किन्तु,
बाद में रामरिख सहगल ने इसी नाम (“भविष्य”) का सचित्र साप्ताहिक अक्टूबर १९३० से निकलना शुरू किया. इसी
क्रम में इलाहाबाद में सन १९२० में अन्य साप्ताहिक समाचार-पत्र “हिन्दुस्तानी
अखबार” का प्रकाशन शुरू
हुआ। यह १९२१ आते-आते बंद भी हो गया। १९२१ में अपने प्रिय समाचार पत्र “इंडिपेंडेंट” के बंद होने के
उपरान्त पंडित मोतीलाल नेहरु ने “देशबंधु दैनिक” नामक हिंदी के अखबार का प्रकाशन शुरू किया. इसके सम्पादन
का दायित्व ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने सम्हाला जो बाद में “सरस्वती” के भी संपादक
हुए।
१९२२ में रामरिख
सहगल ने मासिक “चाँद” पत्रिका का
प्रकाशन शुरू किया. इसके अनेक विशेषांक निकले थे। इसके ‘फाँसी’ (मई, १९३१), ‘मारवाड़ी’ तथा ‘राजपुताना’ विशेषांक ब्रिटिश
सरकार ने ज़ब्त कर लिए थे। “चाँद” का संपादन आचार्य चतुरसेन शास्त्री, मुंशी नवजादिक लाल
श्रीवास्तव, शंकर दयाल श्रीवास्तव, उमेश मिश्र, महादेवी वर्मा (विशेष रूप से ‘विदुषी’ विशेषांक) जैसे
बुद्धिजियों-साहित्यकारों ने किया था। इसका मुद्रण एडमौन्सटन रोड में होता था. मुंशी
कन्हैय्या लाल के संपादन में “चाँद” का उर्दू संस्करण भी १९३३ में निकला गया किन्तु वह कुछ
दिनों में ही बंद हो गया।
अगस्त ३०, १९२८ को
‘लीडर प्रेस’ से “भारत” नाम का एक
साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। इसके प्रथम संपादक वेंकटेश नारायण तिवारी थे.
नवम्बर ७, १९३० को यह अर्ध-साप्ताहिक हुआ और अंततः बढती लोकप्रियता के चलते, १९३३
की दिवाली के अवसर और अक्टूबर माह में यह दैनिक में परिवर्तित हो गया। इसके
संपादकों की सूची में हमें सी.वाई. चिंतामणि, नन्द दुलारे वाजपेयी, डॉ. मुकुंद देव
शास्त्री, शांतिप्रिय द्विवेदी, बलभद्र प्रसाद मिश्र, राधेश्याम शर्मा, एम.डी.
शर्मा, राजबल्लभ ओझा, केशव देव, विशम्भर नाथ जिजना, ज्योति प्रसाद मिश्र ‘निर्मल’ तथा ईला चन्द्र
जोशी आदि के नाम मिलते हैं। वे इसी क्रम में “भारत” के सम्पादक रहे थे।
III
जहां तक आधी आबादी
या महिलाओं-कन्याओं का प्रश्न है तो पहली पत्रिका जिसका उल्लेख हमें मिलता है वो
है, “भारत भगिनी” इसका प्रकाशन
१८८८ में शुरू हुआ. यह पत्रिका शुरू में मासिक फिर पाक्षिक हो गई. इसके संपादकों
में महीयसी महादेवी वर्मा का भी नाम उल्लेखनीय है। इसका प्रकाशन-काल १८८८-१९०६ है।
इसके बाद ही १९०९ में रामेश्वरी नेहरु के संपादन में “स्त्री दर्पण” नामक मासिक
पत्रिका निकली। रामेश्वरी नेहरु पंडित मोतीलाल नेहरु के भतीजे, ब्रजलाल की पत्नी
थीं. उन्होनें १९२४ तक इसका संपादन किया। यह संयुक्त प्रांत ही नहीं तत्कालीन भारत
में एक अनूठी पहल थी। इसका मुद्रण लॉ जर्नल प्रेस (प्रयाग स्ट्रीट, वर्तमान डी.पी.
गर्ल्स इंटर कॉलेज के लगभग सामने) से होता था और प्रबंधन का दायित्व श्रीमती कमला
नेहरु निभातीं थीं। इसमें बाल-विवाह, अशिक्षा, सतीप्रथा, अंध-विश्वास तथा
दहेजप्रथा के खिलाफ विचारोत्तेजक लेख व सम्पादकीय प्रकाशित होती थी। १९२४ के
उपरान्त यह पत्रिका कानपुर से प्रकाशित होने लगी और वहाँ ‘प्रताप प्रेस’ से छपने लगी। इसी
के प्रभाव में १९११ में शुरू हुई यशोदा देवी द्वारा सम्पादित “स्त्री धर्म
शिक्षक”, जो स्त्रियों के
विषय से ही सम्बंधित थी। इसी क्रम में १९१३-१४ में “कन्या सर्वस्व” मासिक पत्रिका का प्रकाशन यशोदा देवी के ही संपादन में
होने लगा. इसी वर्ष “कन्या मनोरंजन” का संपादन मासिक पत्रिका का संपादन ओंकारनाथ बाजपाई ने शुरू किया. १९२२ में “साध्वी सर्वस्व” नामक एक
साप्ताहिक पत्र भी इलाहबाद से रघुनन्दन झा ने निकाला. इस क्रम में आगे हम “मनोरमा” का उल्लेख कर
सकते हैं, जिसका प्रकाशन माया प्रेस से वर्ष १९२४ से प्रारम्भ हुआ। यह एक मासिक
पत्रिका थी. राष्ट्रवादी आन्दोलन के काल में इसके संपादकों में हमें ज्योति प्रसाद मिश्र ‘निर्मल’, गिरिजा दत्त
शुक्ल ‘गिरीश’, हीरा देवी
चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद मालवीय वैद्य आदि के नाम मिलते हैं। महिलाओं की
चिकित्सीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यशोदा देवी के ही संपादन में १९२९ से “कन्या चिकित्सा” नामक मासिक का
संपादन प्रारम्भ हुआ।
महादेवी वर्मा |
इसी क्रम में आगे
हमें महिलाओं को समर्पित एक अन्य महत्वपूर्ण पत्रिका दिखती है और वह है, “सहेली”. यह इलाहाबाद लॉ
जर्नल प्रेस (प्रयाग स्ट्रीट) से अप्रैल १९३० से १९३५ के मध्य नियमित मासिक के रूप
में प्रकाशित होती रही। इसके संपादन का दायित्व क्रमशः रूपकुमारी वांचू, विजय
वर्मा तथा रामेश्वरी देवी ने निभाया. अपने प्रारम्भिक काल में यह सिर्फ कश्मीरी
महिलाओं तक सीमित रही मगर शीघ्र यह सभी महिलाओं को संदर्भित करने लगी। १९३३-३४ के
म्ध्य एक महिलाओं की मासिक पत्रिका का हमें और उल्लेख मिलता है, जिसका शीर्षक, “कमिलिनी” था और जिसके
सम्पादन का दायित्व ज्योतिर्मयी ठाकुर ने निभाया था. इसके बाद जिस पत्रिका का
उल्लेख समीचीन है, वह लोकप्रिय मासिक “दीदी” है. इसका संपादन पहले श्रीनाथ सिंह तथा, बाद में यशोमती
देवी ने किया. यह ‘सजनी प्रेस’ से सन १९३९ में प्रकाशित होनी शुरू हुयी थी. इसी ‘सजनी प्रेस’ से ही नरसिंह राम
शुक्ल के संपादन में कथा और साहित्य को समर्पित “सजनी” पत्रिका १९४३ से प्रकाशित होने लगी इसका प्रकाशन १९५६ तक
जारी रहा। १९४५ में “भारत जननी” मासिक के रूप में शान्ति मेहरोत्रा के संपादन में हीवेट रोड से प्रकाशित होना
लगा, जो १९५६ तक हुआ। स्वतंत्रता से ठीक पूर्व अर्थात जून ५, १९४७ को “मोहिनी” नामक मासिक
महिलाओं की पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ. इस पत्रिका की संपादकों में रामदुलारे
शुक्ल के साथ हमें गायत्री देवी तथा भगवन देवी के उल्लेख मिलते हैं।
इसी के साथ हम
बाल-साहित्य से सम्बंधित पत्रकारिता को भी सम्मिलित कर सकते हैं। जहां तक
बाल-साहित्य का प्रश्न है हमें सबसे पहले जो पत्रिका इलाहाबाद के साहित्याकाश में
दृष्टिगोचर होती है वह “आर्य बाल हितैषी” जिसका प्रकाशन मुज़फ्फरनगर एवं इलाहाबाद दोनों जगहों से
१९०२ में प्रारम्भ हुआ था. इस विधा में लोकप्रियता के शिखर पर जो बाल-पत्रिका
पहुंची वह ‘इंडियन प्रेस’ से जनवरी ५, १९१७ को प्रकाशित होने वाली मासिक “बाल-सखा” थी. इसके संपादक
क्रमशः बद्रीनाथ भट्ट, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, कामताप्रसाद गुरु, श्रीनाथ सिंह,
देवीदत्त शुक्ल, लक्ष्मी प्रसाद पाण्डेय, देवीदयाल चतुर्वेदी ‘मस्त’, सोहनलाल
द्विवेदी, गिरिजदत्त शुक्ल ‘गिरीश’ तथा अनंत प्रसाद विद्यार्थी रहे. इस पत्रिका का प्रकाशन
काल १९१७ से १९६९ तक रहा और इसकी कुल १३,००० प्रतियां बिक जातीं थीं।
सोहन लाल द्विवेदी |
इसके बाद १९२७ में
“खिलौना” शीर्षक से एक
मासिक नया कटरा से राम जी लाल शर्मा के प्रकाशन और रघुनन्दन शर्मा के संपादन में
निकली। १९३१ से १९४१ की अवधि में “वानर” मासिक भी इलाहाबाद एवं कालाकांकर से एक साथ निकली। इसके
संपादक सुरेश सिंह एवं रामनरेश त्रिपाठी रहे. इसे अपने काल के बाल-साहित्य का
श्रेष्ठ पत्र माना जाता था. इसी क्रम में इलाहबाद के एक अन्य विख्यात मुद्रणालय
रामनारायण लाल प्रेस, कटरा ने १९३३ में “बाल-संसार” का प्रकाशन प्रारम्भ किया किन्तु वह उतना लोकप्रिय नहीं हो
सका. १९३४ से १९३८ के मध्य मासिक, “अक्षय भैय्या” का प्रकाशन रामकिशोर मनोज द्वारा हुआ। १९४० में “तितली” नामक एक
त्रैमासिक पत्रिका व्यथित ह्रदय के संपादन में कटरा से प्रकाशित होनी शुरू हुई.
इसका प्रकाशन १९४६ तक चला. अंत में श्रीनाथ सिंह जी के “बाल-सखा” संपादन-अनुभव एवं
उससे अर्जित सफलता को भुनाने के लिए एक मासिक “बाल-बोध” का प्रकाशन कटरा से १९४४ से १९५८ के मध्य हुआ तथा माया
प्रेस, मुट्ठीगंज से “मनमोहन” (१९४९-१९७०) मासिक पत्रिका स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद निकली।
सर्वप्रथम एक
सामुदायिक या जाति-विशेष की पत्रिका “कायस्थ समाचार” का प्रकाशन १८७८ में प्रारम्भ हुआ भले ही बाद में इसका
स्वरुप बदल गया हो किन्तु शुरुआत तो इसकी इसी रूप में हुई थी। इसी लिए इसे प्रथम
जातीय पत्रिका माना गया है। इसी के फलस्वरूप अन्य जातीय-सामुदायिक पत्रिकाएँ भी
प्रकाशित होने लगीं। उदाहरण के लिए “कान्यकुब्ज हितकारी”. यह एक पाक्षिक पत्रिका थी जो १८८९ से १९०२ तक प्रकाशित
हुयी. इसके सम्पादकों में हमें क्रमशः डॉ. रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ एवं पंडित
ब्रजलाल शुक्ल थे. इसके बाद १९०८ में “कलवार मित्र” नामक जैसवालों के भी एक जातीय पत्र का प्रकाशन कुछ अवधि के
लिए हुआ. इसी क्रम में हम सरयूपारी ब्राह्मणों की मासिक पत्रिका, “सरयूपारीण” को भी रख सकते
हैं, जिसका प्रकाशन १९११ से इन्द्रदेव प्रसाद चतुर्वेदी के संपादन में शुरू हुआ
था. संभवतः इसी के उपरान्त सरयूपारीण ब्राह्मणों का संगठन सुदृढ़ हुआ और अगले वर्ष
(१९१२) से “द्विजरात” मासिक पत्रिका इन्द्रदेव प्रसाद चतुर्वेदी के ही संपादन में आधिकारिक जातीय
पत्रिका के रूप में छपने लगी. इसी प्रकार, हमें १९२५ में मासिक “केसरवानी समाचार” के भी प्रकाशन का
उल्लेख प्राप्त है, जिसका संपादन केदारनाथ गुप्त ने किया था। बारी समाज का भी पत्र
“बारी मित्र” मासिक के रूप में
जे.एल बारी के संपादन में १९२९ में अलोपीबाग से छपना शुरू हुआ. १९४२ में इसी तरह “पाल क्षत्रीय
समाचार” मासिक पत्रिका के
रूप में जी, विद्यार्थी द्वारा सम्पादित व प्रकाशित होने लगा।
तृतीय वर्ग में हम
शिक्षा और साहित्य से सम्बंधित पत्र-पत्रिकाओं को रख सकते हैं. हमें सर्वप्रथम एक
पाक्षिक पत्रिका “प्रयाग-मित्र’ का उल्लेख मिलता है इसका संपादन साधुराम वैद्य ने किया। यह १८७५ से १८८७ तक
प्रकाशित हई थी. इसी प्रकार १८९४ में ‘विध्यावर्धिनी सभा’ द्वारा प्रकाशित दो मासिक पत्रिकाओं का उल्लेख मिलता है,
यथा “नाट्य-पत्र” एवं “न्याय”. फिर, १८९९ में
देवकी नन्दन के संपादन में मासिक, “नृत्य-पत्र” छपा था. अन्य पत्रिकाएँ भी छप रहीं थीं, उदाहरण के लिए १९०५
में “भारतेंदु” मासिक”, ज्योति प्रसाद
मिश्र ‘निर्मल’ के संपादन में
भारतेंदु कार्यालय, कटरा से निकला था। “१९११ में साप्ताहिक पत्रिका के रूप में “शुभ-चिन्तक” का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ. इसी तरह “देशदूत” भी एक महत्वपूर्ण
साप्ताहिक था। इसका प्रकाशन १९१५ में शुरू हुआ। इसके प्रारम्भिक संपादक ज्योति
प्रसाद मिश्र ‘निर्मल’ व अनंतप्रसाद विद्यार्थी थे। इसी प्रकार “किसान” नामक साप्ताहिक १९२१ से इन्द्रनारायण द्विवेदी के संपादन
में निकला था। एक अन्य लोकप्रिय मासिक पत्रिका थी, “भूगोल”, जिसमे भूगोल की महत्वपूर्ण और दिलचस्प सूचनाएं-समाचार
१९२४ से प्रकाशित होते थे। इसका संपादक थे रामनारायण मिश्र। इसका प्रकाशन १९४३ तक
हुआ था। इसके संपादक को ही समकालीन लोग “भूगोल” पुकारने लगे थे। १९३९
से श्रीनाथ सिंह इसके सम्पादक हो गये थे। इसका मुद्रण एवं प्रकाशन इंडियन प्रेस से
होता था।
इसी तरह “नवजीवन” नामक एक अन्य मासिक
का प्रकाशन १९१७ से १९१९ के मध्य हुआ। १९३० में “एजुकेशनल गैज़ेट” मासिक का प्रकाशन शुरू हुआ। इसके संपादक क्रमशः युसूफ अली,
आले अलीन, राम प्रसाद तिवारी थे. कला के लिए समर्पित मासिक पत्रिका “छाया” थी, जिसका
प्रकाशन १९४१ से १९५६ के मध्य हुआ था. यह जॉर्ज टाउन में मुद्रित होती थी. इसके
संपादक क्रमशः पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शम्भुरत्न मिश्र तथा नरसिंह राम थे। अन्य
उल्लेखनीय पत्रिकाओं थीं जैसे १९३९ में शुरू हुयी “देश-दर्शन” मासिक जिसके संपादक रामनारायण मिश्र थे. ‘सजनी प्रेस’ से ही नरसिंह राम
शुक्ल के संपादन में कथा और साहित्य को समर्पित “सजनी” पत्रिका १९४३ से प्रकाशित होने लगी इसका प्रकाशन १९५६ तक
जारी रहा (हालांकि, इस पत्रिका का उल्लेख हमने स्त्रियों से सम्बंधित पत्रिकाओं
में भी ऊपर किया ही है.)।
इसी क्रम में हम
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य से सम्बंधित कुछ पत्रिकाओं का भी उल्लेख कर सकते हैं. यह
भी जन-चेतना की द्योतक थीं क्योंकि इन्हीं से हमें समकालीन सलाज में जागरूकता के
विस्तार का अंदाज़ा मिल रहा था कि हमलोग स्वाथ्य-चिकित्सा और साफ़-सफाई के साथ-साथ
नागरिक जीवन, स्वच्छता आदि के प्रकरणों को कितनी गंभीरता से ले रहे थे। इस वर्ग
में सर्वप्रथम हमें पंडित जगन्नाथ शर्मा वैद्य द्वारा संपादित “आरोग्य दर्पण” नामक मासिक
पत्रिका का उल्लेख मिलता है, जिसका प्रकाशन १८८१ में प्रारम्भ हुआ था तथा यह १८९६
तक अनवरत प्रकाशित होति रही. इसी क्रम में १८९२ में शुरू हुए “गौसेवक” के बहाने इसके
संपादक पंडित जगत नारायण ने स्वास्थ्य के कई आयाम को छुआ है। सन १८९४ में वैद्य
शिवराम पाण्डेय के संपादन में “रत्नाकर” भी छपने लगा, जिसमें स्वास्थ्य और वैद्यकी से सम्बंधित
महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध होतीं थीं।
१९०९ के जून माह
से “सुधा-निधि” का प्रकाशन
प्रारम्भ हुआ यह समय-समय पर मासिक (१९०९ से १९४७) फिर पाक्षिक (१९४८ से १९५१) फिर
मासिक (१९५२ से १९६८) होती रही इसका केंद्र-बिंदु आयुर्वेदिक चिकित्सा थी। इसके
संपादक क्रमशः जगन्नाथ प्रसाद शुक्ल, बद्रीदत्त झा, शिवदत्त शुक्ल तथा योगेश
चन्द्र शुक्ल रहे। यह सम्मलेन मार्ग से प्रकाशित होता था. लक्ष्मी नारायण
श्रीवास्तव द्वारा संपादित मासिक स्वास्थ्य पत्रिका “इलाज” का प्रकाशन १९२३
में प्रारम्भ हुआ. इसी क्रम में हम यशोदा देवी सम्पादित “कन्या चिकित्सा” का भी ज़िक्र कर
सकते हैं क्योंकि यह इकलौती पत्रिका थी जो सिर्फ महिलाओं एवं कन्याओं के स्वास्थ्य
से सम्बंधित थी, जिसका प्रकशन १९२९ में प्रारम्भ हुआ था। यह अपने-आप में अनूठी तथा
प्रसंशनीय पहल थी, जिसका सर्वत्र स्वागत हुआ और पत्रकारिता के क्षेत्र में यह
पथ-प्रदर्शक और एक मील का पत्थर साबित हुई। चिकित्सा के ही क्षेत्र में एक अन्य
मासिक पत्रिका “जीवनसखा” का प्रकाशन १९३६ से १९३९ तक विह्वल दास मोदी के सम्पादन में हुआ. इसके
प्रकाशक चिकित्सक डॉ. बालेश्वर प्रसाद थे तथा यह लूकरगंज में मुद्रित होता था.
इसका मुख्य विषय ‘प्राकृतिक-चिकित्सा’ रहता और यह पर्याप्त लोकप्रिय पत्रिका थी।
विविध पत्रिकाओं
के सन्दर्भ में हमें सबसे पहले १८८४ में बलभद्र मिश्र के संपादन में शुरू हुए “रसिक पंच” नामक एक मासिक
पत्र के प्रकाशन का वर्णन मिलता है। यह काफी लोकप्रिय पत्रिका साबित हुई किन्तु
कुछ अवधि बाद ही इसका प्रकाशन बंद होकर पुनः १८८७ से १८८९ के मध्य शिवनारायण मिश्र
के संपादकत्व में हुआ. हास्य-व्यंग को उस काल की एक अन्य पत्रिका थी, “मदारी”, जो साप्ताहिक थी
तथा इसका प्रकाशन १९१७ में शुरू हुआ था. इसके प्रकाशक एम्.पी. श्रीवास्तव तथा
संपादिका मंजुला थीं। सितम्बर १९३२ के “मदारी” के अंक में एक कविता छपी थी जिसकी पंक्तियाँ इस प्रकार
थीं: “सोटा लेकर नए ठाठ
से सदा मदारी आवेगा/जो भारत में अहित करेंगे उनको पकड़ नचावेगा।” इस पर भी
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने घोर आपत्ति करते हुए इसके संपादक एवं प्रकाशक को गंभीर
चेतावनी और आर्थिक दंड दिया था। इस क्रम में मासिक पत्रिका “संसार मित्र” का प्रकाशन १९०६
से शुरू हुआ तथा “सचित्र संसार” मासिक का प्रकाशन इंडियन प्रेस से जून १९४१ से दिसम्बर १९४३ के मध्य एन.सी.
चतुर्वेदी के संपादकत्व में हुआ था. इसी प्रकार, भारत स्काउट-गाइड का मासिक
मुख-पत्र, “सेवा” रामप्रसाद
घिल्डियाल के संपादन में बालचर मंडल द्वारा मार्च १९२० से १९३५ के मध्य होता रहा.
बाद में, जानकी प्रसाद वर्मा, हरिदास माणिक, श्रीराम बाजपेई, ठाकुर छेदीलाल एवं
हरिकृष्ण प्रेमी क्रमशः इसके संपादक हुए. इसका प्रकाशन ‘हिंदुस्तान स्काउट
एसोसिएशन’ के लिए होता था।
इसी तरह एक अन्य
मासिक पत्रिका “चेतना” थी, जिसे ‘द्विवेदी युग’ की प्रमुख सामाजिक पत्रिका माना गया है. इसका संपादन शिवाधार पाण्डेय ने किया
था। १९३१ से “हिन्दुस्तानी” त्रैमासिक
पत्रिका का संपादन/प्रकाशन शुरू हुआ. यह १९२७ को स्थापित ‘हिन्दुस्तानी
अकादमी’ की शोध-पत्रिका
थी. रामचंद्र टंडन, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, हरदेव बाहरी, सत्यव्रत सिन्हा आदि इसके
सम्पादक रहे हैं. इसका प्रकाशन अब भी हो रहा है. साहित्य और कथा को समर्पित मासिक
पत्रिका “मनोहर कहानियाँ” का प्रकाशन १९३९
में प्रारम्भ हुआ। इसके संपादकों के रूप में राजेश्वर प्रसाद सिंह, भैरव प्रसाद
गुप्त, रामनाथ ‘सुमन’, क्षीतींद्र्मोहन
मित्र आदि सम्मिलित थे. १९४२ से नरोत्तम प्रसाद नागर के संपादन कथा-साहित्य को
समर्पित “अभ्युदय” का प्रकाशन शुरू
हुआ था और इसी वर्ष (१९४२) “नया साहित्य” सबसे पहले इलाहाबाद के नया कटरा से प्रकाशित हुआ था. इसके
प्रारम्भिक संपादक प्रकाश चन्द्र गुप्त (इलाहबाद विश्विद्यालय के अंग्रेजी विभाग
में अध्यापक) तथा कहानीकार रामप्रसाद घिल्डियाल थे. ये दोनों ही नए कटरा के निकट
वाले मोहल्ले ममफोर्डगंज के निवासी थे। बाद में संभवतः १९४५ में यह बम्बई चला गया।
भैरव प्रसाद गुप्त |
कुछ अन्य विविध
पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में शुरू हो गया, यथा,
मासिक “नाटक प्रकाश” (१८७४) जिसका
संपादन, मुद्रण व प्रकाशन हाई कोर्ट के अधिवक्ता रतन चंद करते थे तथा, “प्रयाग धर्म
प्रकाश” (१८७५) जिसका
संपादन-प्रकाशन पंडित शिवराखन शुक्ल करते थे। इसमें माह भर की हिन्दू तिथियाँ
व्रत-आदि का विवरण भर दिया जाता था. १८९२ में “गोसेवक” नामक मासिक पत्र पंडित जगत नारायण के संपादन में निकलने
लगा। सन १८९४ में वैद्य शिवराम पाण्डेय के संपादन में “रत्नाकर” भी छपने लगा।
इसी क्रम को हम
अगली सदी में भी आगे बढ़ाते हुए कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन की चर्चा कर लें तो
प्रासंगिक ही होगा। १९१३ में गिरिजा कुमार घोष के संपादन में हिंदी साहित्य
सम्मलेन की पत्रिका “सम्मलेन पत्रिका” का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। यह भी मासिक पत्रिका थी। १९१४ में रामजी लाल शर्मा
के संपादन में विद्यार्थी हितों की सूचनाएं प्रकाशित करने वाले पात्र “कलाकुशल” का प्रकाशन भी
प्रारम्भ हुआ। इसी वर्ष पंडित चंद्रशेखर ओझा शास्त्री के संपादन में संस्कृत की
प्रसिद्ध मासिक पत्रिका “शारदा” का प्रकाशन शुरू हुआ था। इसका प्रकाशन तीन वर्ष बाद ही बंद
हो गया. जबकि, पंडित (बाद में सर) गंगानाथ झा के संपादन में प्रयाग की विज्ञान
परिषद् की पत्रिका “विज्ञान” का प्रकाशन, जो १९१५ में प्रारम्भ होकर अब तक अनवरत जारी है। इसके अन्य
प्रमुख संपादक थे पंडित श्रीधर पाठक, प्रोफेसर गोपाल स्वरूप भार्गव, लाल सीताराम ‘भूप’, प्रोफेसर
बृजराज, रामदास गौड़, संत प्रसाद टंडन, डॉ. सत्य प्रकाश, युधिष्ठिर भार्गव, डॉ.
गोरख प्रसाद, डॉ. रामचरण मेहरोत्रा, डॉ. हीरालाल निगम आदि. यह विज्ञान सम्बन्धी
विषयों का प्रथम हिंदी पत्रिका थी जो आज भी अनवरत रूप से प्रकाशित हो रही है। वर्तमान (यानी २०१५) में इसके संपादक हैं
डॉ. शिवगोपाल मिश्र. इसी साल (१९१५ में) १९१७ में ही पंडित चंद्रशेखर शास्त्री के
संपादन में ‘प्रयाग सन्यस्त परिषद्’ द्वारा “सन्यासी” नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारम्भ हुआ. १९२० में
श्रीराम बाजपेई के संपादन में “सेवा” मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था. इसके बाद १९२२ में
ही “देवदर्शन” नामक मासिक पत्र
भी इलाहाबाद से प्रकाशित होने लगा और, “गोपाल” मासिक पत्र देवरत्न शुक्ल के संपादन में निकलने लगा था।
इसी क्रम में मासिक “तरुण” पत्रिका का
प्रकाशन कृष्णानंद प्रसाद के संपादकत्व में १९४० में प्रारम्भ हुआ था।
प्रयाग एक प्राचीन
हिन्दू तीर्थ-स्थान था अतः यहाँ से अनेक धार्मिक ग्रंथों के साथ सामायिक
पत्र-पत्रिकाओं का भी प्रकाशन होता था। इस तरह के कुछ प्रमुख प्रकाशनों में
शिवराखन द्वारा सम्पादित मासिक पत्र “प्रयाग धर्म प्रकाश” का उल्लेख मिलता है। बाद में यह पाक्षिक हो गया था. इसका
प्रकाशन १८७५ से १८८७ के मध्य की अवधि में हुआ था। इसी के बाद हमें “वर्तमान उपदेश” नामक पाक्षिक
पत्रिका दृष्टिगोचर होती है, जिसका स्वरुप पाक्षिक था. इसका प्रकाशन १८९० में शुरू
हुआ. इसके संपादक अवध बिहारीलाल थे। हमें जैन धर्मावलम्बियों की भी एक
मासिक-धार्मिक पत्र “जैन-पत्रिका” का वर्णन मिलता है जिसका प्रकाशन वर्ष १९०० में प्रारम्भ हुआ था। इसी क्रम
में हमें मासिक “राघवेन्द्र” मिलती है, जिसका संपादन क्रमशः द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी तथा लक्ष्मी नारायण
शर्मा ने १९०४ से १९१४ के मध्य किया. इसी प्रकार द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी के ही
संपादन में मासिक “यादवेन्द्र” का प्रकाशन १९०९ में शुरू हुआ। बाद में इसके संपादन का दायित्व राधाकृष्ण
मिश्र ने संभाला। इसके अतिरिक्त हमें “वेदोदय” मासिक धार्मिक पत्रिका का उल्लेख भी प्राप्त होता है,
जिसका प्रकाशन अप्रैल ५, १९३० से प्रारम्भ होकर १९३४ तक अनवरत जारी रहा. इसके
संपादक थे गंगा प्रसाद उपाध्याय तथा विश्व प्रकाश. यह वैदिक प्रचार का पत्र था एवं
इसका मुद्रण-प्रकाशन जीरो रोड से होता था. इसके उपरान्त १९३८ में “सतयुग” मासिक” का प्रकाशन शुरू
हुआ। इसका संपादन क्रमशः हेमचन्द्र जोशी एवं भोलानाथ दास ने किया. इसका प्रकाशन
सितम्बर १९३८ से १९४९ तक बहादुरगंज से हुआ। १९४४ में प्रकाशन यत्र शुरू करने वाली
मासिक पत्रिका, “आत्म-जाग्रति” स्वतंत्रता पूर्व के भारत की अंतिम धार्मिक पत्रिका के रूप में दृष्टिगोचर
होती है। यह स्टैनली रोड से १९७१ तक प्रक्सहित होती रही।
अलग-अलग विषयों और
तमाम विधाओं की इन तमाम पत्र-पत्रिकाओं के चलते एकदम से ज्ञान और विचारों के
प्रचार-प्रसार में अद्भुत क्रान्ति आई और सम्प्रेषण एवं जनचेतना के गतिशील होने का
उसका प्रभाव स्पष्टतः दृष्टिगोचर होने लगा। कोई भी समाज अपनी गतिशीलता को इसी
प्रकार से प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त भी करता है और उससे जन-जागृति को बढ़ाने में
अपना योगदान देते हुए उसका पैमाना भी होता है।
सम्पर्क -
प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी
इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय,
इलाहाबाद.
प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी
इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय,
इलाहाबाद.
निवास:
8/5 ए, बैंक रोड,
इलाहाबाद, उ. प्र. – 211002
8/5 ए, बैंक रोड,
इलाहाबाद, उ. प्र. – 211002
मोबाइल: 09452799008;
email: heramb.chaturvedi@gmail.com
email: heramb.chaturvedi@gmail.com
बेहद महत्वपूर्ण लेख .. जिसको पूरा समय देकर पढ़ने की आवश्यकता है ...हेरम्ब जी को यह सारगर्भित लेख पाठकों तक पहुंचाने के लिए हार्दिक बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसारगर्भित एवं गहन शोधोपरांत लिखित लेख। प्रयाग सदा से बुद्धिजीवियों, प्रकाशकों, मुद्रकों का शहर रहा है, परंतु साहित्य सृजन,और उसके मुद्रण प्रकाशन की इतनी विस्तृत व्याख्या पहली बार जानकारी में आया। साधुवाद!
जवाब देंहटाएंसारगर्भित एवं गहन शोधोपरांत लिखित लेख। प्रयाग सदा से बुद्धिजीवियों, प्रकाशकों, मुद्रकों का शहर रहा है, परंतु साहित्य सृजन,और उसके मुद्रण प्रकाशन की इतनी विस्तृत व्याख्या पहली बार जानकारी में आया। साधुवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा , शोधपरक , ज्ञानवर्धक आलेख ...... बधाई
जवाब देंहटाएं