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उपेन्द्र नाथ अश्क की कहानी 'चारा काटने की मशीन'

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  उपेन्द्र नाथ अश्क  भारत का विभाजन बीसवीं सदी की त्रासद घटनाओं में से एक मानी जाती है। यह विभाजन तमाम लोगों के लिए विस्थापन ले कर आया। यह विभाजन उस धार्मिक उन्माद की कहानी है जिसने लोगों को हिंसक जानवर में तब्दील कर दिया था। जान माल की बेहिसाब क्षति तो हुई ही, महिलाओं के साथ व्यभिचार की अनगिनत घटनाएं हुईं। इस घटना को इतिहासकारों ने अपनी तरह से दर्ज किया। लेकिन रचनाकारों ने भी इसे अपने उस अनुभव की लेखनी से दर्ज किया जिसका इतिहास में कहीं उल्लेख तलक नहीं मिलता। अगस्त में हमने विभाजन पर दो कहानियों को प्रस्तुत किया था : सआदत हसन मंटो की कहानी 'टोबा टेक सिंह' और भीष्म साहनी की कहानी 'अमृतसर आ गया है'।  हमारी योजना है कि विभाजन से जुड़ी उन कहानियों को पहली बार पर सिलसिलेवार प्रस्तुत किया जाए। अगर आपके पास भी विभाजन की त्रासदी से जुड़ी कोई कहानी हो तो हमें प्रकाशन के लिए भेजिए। इस क्रम में आज हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं उपेन्द्र नाथ अश्क की कहानी 'चारा काटने की मशीन'। 'चारा काटने की मशीन' उपेन्द्र नाथ अश्क   रेल की लाइनों के पार, इस्लामाबाद की नई आबादी...

जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'

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  मुक्तिबोध प्रेम जीवन का मूल भाव है। रूखे दिखने वाले व्यक्ति के अन्दर भी कहीं न कहीं प्रेम छुपा होता है। कुछ आलोचक  मुक्तिबोध पर कठिन कवि होने का आवरण चस्पा करते हैं लेकिन जब हम उनकी रचनाओं से हो कर गुजरते हैं तो पाते हैं कि मुक्तिबोध कितने सहज थे और उन का मन प्यार से भरा हुआ था। वे अपने प्रेम को छुपाने का यत्न भी नहीं करते और बड़े सहज तरीके से इसे अभिव्यक्त करते हैं।  गजानन्द माधव मुक्तिबोध की कल पुण्यतिथि थी। कल हमने पीयूष कुमार का आलेख प्रस्तुत किया था।  इस क्रम में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं  जगदीश्वर चतुर्वेदी का आलेख 'मुक्तिबोध का प्रेम'।        'मुक्तिबोध का प्रेम'    जगदीश्वर चतुर्वेदी  हि‍न्‍दी का लेखक अभी भी नि‍जी प्रेम के बारे में बताने से भागता है। लेकि‍न मुक्‍ति‍बोध पहले हि‍न्‍दी लेखक हैं जो अपने प्रेम का अपने ही शब्‍दों में बयान करते हैं। मुक्‍ति‍बोध का अपनी प्रेमि‍का, जो बाद में पत्‍नी बनी, के साथ बड़ा ही गाढ़ा प्‍यार था, इस प्‍यार की हि‍न्‍दी में मि‍साल नहीं मि‍लती। यह प्रेम उनका तब हुआ जब वे इंदौ...

पीयूष कुमार का आलेख 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य'

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  मुक्तिबोध एक जमाना हुआ करता था जब लोग एक दूसरे को पत्र लिखा करते थे। इन पत्रों में अपनत्व की खुशबू होती थी। अक्षरों का सान्निध्य रोमांचित करता था। मोबाइल कल्चर ने पत्र लेखन की इस विधा को लगभग समाप्त कर दिया। रचनाकार भी तब इस पत्र लेखन के जरिए ही अपनी अभिव्यक्ति कर पाते थे। हिन्दी के कालजई कवि रचनाकार मुक्तिबोध के पत्रों का संसार व्यापक है। आई पत्रों से कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। उनके पत्रों में साहित्य के अलावा कला, संस्कृति, समाज, शिक्षा, राजनीति, आंदोलन और वैश्विक मुद्दों पर विमर्श के तमाम विषय विस्तार से मिलते हैं। आज मुक्तिबोध के जन्मदिन पर  उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं पीयूष कुमार का आलेख 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य'। 'मुक्तिबोध के पत्रों में जीवन और साहित्य' पीयूष कुमार गजानन माधव मुक्तिबोध को समझने में उनका पत्र साहित्य उतना ही उपयोगी है जितना उनका रचनात्मक साहित्य। मुक्तिबोध के पत्रों का संसार बड़ा था। उनके पत्रों में साहित्य के अलावा कला, संस्कृति, समाज, शिक्षा, राजनीति, आंदोलन और वैश्विक मुद्दों पर विमर्श क...

महादेवी वर्मा का संस्मरण 'चीनी यात्री'

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  महादेवी वर्मा  हिन्दी की कई विधाएं आज गुमनाम सी हो गई हैं। ऐसी ही एक विधा रेखाचित्र है। मुझे नहीं मालूम कि आज इस विधा में लिखने वाले प्रमुख रचनाकार कौन हैं?  ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र जिस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है, ठीक उसी तरह शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता रही हो। महादेवी वर्मा ऐसी लेखिका हैं जिन्होंने कई बेजोड़ रेखाचित्र लिखे हैं।  'चीनी यात्री' उनका ऐसा ही रेखाचित्र है जिसे पढ़ते हुए हमारे मन में उस चीनी यात्री के प्रति करुणा उपजती है जो संघर्ष की ठोकरें खाते हुए इलाहाबाद आ गया और फेरी लगाते हुए एक दिन महादेवी वर्मा के घर अचानक ही पहुंच गया। इसके बाद चीनी यात्री के महादेवी जी के घर निर्बाध आने का सिलसिला आरम्भ हो गया। बाकी की कहानी खुद महादेवी जी के रेखाचित्र से गुजरते हुए खुद ब खुद आपके सामने आ जाएगी। कवि संपादक विनोद द...

प्रतुल जोशी का आलेख 'पिता के बारे में पढ़ते हुये'

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  शेखर जोशी  जिन बातों को हम अपने घर परिवार में साझा नहीं कर पाते, उन्हें हम अपने दोस्त मित्रों से बेहिचक साझा कर लेते हैं। अप्रतिम कथाकार शेखर जोशी ने नवीन जोशी से अपने जीवन और लेखन की उन बातों को साझा किया जो उनके परिवार जनों को भी नहीं पता। नवीन जोशी ने अपनी किताब    "शेखर जोशी : कुछ जीवन की, कुछ लेखन की" में इन महत्त्वपूर्ण स्मृतियों को सहेज रखा है। इस किताब को पढ़ते हुए शेखर जी के पुत्र प्रतुल जोशी ने एक उम्दा आलेख लिखा है जो परिकथा के जनवरी-अप्रैल 2025 अंक में प्रकाशित हो चुका है। आज शेखर जी का जन्मदिन है। हम उनकी स्मृति को नमन करते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  प्रतुल जोशी का आलेख 'पिता के बारे में पढ़ते हुए'। पिता के बारे में पढ़ते हुए प्रतुल जोशी कोई भी पुत्र अपने पिता को जन्म से ही जानता है। पिता यदि एक साधारण गृहस्थ हो तो उन्हें जानना भी आसान हो सकता है। लेकिन पिता ने यदि अपने जीवन में कुछ असाधारण किया हो, तो कई बार पिता के व्यक्तित्व के सभी पक्षों को जानना पुत्र के लिये भी सम्भव नहीं होता। ऐसे में किसी अन्य स्रोत से अपने पिता के बारे में जानन...