हरिशंकर परसाई का व्यंग्य 'वह जो आदमी है न'
हरिशंकर परसाई व्यंग्य को हिन्दी साहित्य की एक अहम विधा के तौर पर स्थापित करने में हरिशंकर परसाई का योगदान अहम है। परसाई जी आम आदमी की सोच और मानसिकता से भलीभांति परिचित थे और आम आदमी के नब्ज पर अच्छी खासी पकड़ थी। निन्दा रस एक ऐसा रस है जिसमें अधिकांश लोग रुचि लेते हैं। किसी की निन्दा किए बिना जैसे चैन ही नहीं पड़ता। आजकल नेहरू जी लोगों की जुबान पर हैं। उनकी निन्दा पानी पी पी कर की जा रही है। इससे निंदकों को खासा सुकून मिलता है और रात को अच्छी नींद आती है। परसाई जी लिखते हैं "निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। निंदा पायरिया का तो शर्तिया इलाज है। संतों को परनिंदा की मनाही होती है, इसलिए वे स्वनिंदा करके स्वास्थ्य अच्छा रखते हैं। ‘मौसम कौन कुटिल खल कामी’- यह संत की विनय और आत्मग्लानि नहीं है, टॉनिक है। संत बड़ा कांइयाँ होता है। हम समझते हैं, वह आत्मस्वीकृति कर रहा है, पर वास्तव में वह विटामिन और प्रोटीन खा रहा है।" आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं हरिशंकर परसाई का व्...