इशिकावा ताकुबोकु के कुछ चुनिन्दा ताँका



इशिकावा ताकुबोकु

ताँका" जापान का बहुत ही प्राचीन काव्य रूप है। यह क्रमशः 05,07,05,07,07 वर्णानुशासन में रची गयी पंचपदी रचना है, जिसमें कुल 31 वर्ण होते हैं। व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है। "हाइकु" विधा के परिवार की इस "ताँका" रचना को "वाका" भी कहा जाता है। "ताँका" का शाब्दिक अर्थ "लघुगीत" माना गया है। "ताँका" शैली से ही 05,07,05 वर्णक्रम के "हाइकु" स्वरूप का विन्यास स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त किया है। 

ताँका" अतुकांत वर्णिक छंद है। लय इसमें अनिवार्य नहीं, परंतु यदि हो तो छान्दसिक सौंदर्य बढ़ जाता है। एक महत्वपूर्ण भाव पर आश्रित "ताँका" की प्रत्येक पंक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं ।


कम शब्दों में अपनी बात कह देना हमेशा मुश्किल भरा होता है। जापान की हाइकू परम्परा के कवि यह काम मात्र तीन पंक्तियों में कर डालते हैं। हाइकु विधा के परिवार की एक चर्चित विधा है - "ताँका"। इशिकावा ताकुबोकु के हाइकू जापान में काफी ख्यात हैं। इनकी कुछ हाइकू का अनुवाद किया है उज्ज्वल भट्टाचार्य ने। आज पहली बार पर प्रस्तुत है इशिकावा ताकुबोकु के कुछ चुनिन्दा ताँका



इशिकावा ताकुबोकु के हाइकू


(अनुवाद और प्रस्तुति : उज्ज्वल भट्टाचार्या)



1

परेशानी यह है 
कभी पूरा नहीं हो पाता 
ख़ुद को पाना 


2

इस उदासी से उबर नहीं पाता हूँ 
मानो कि इसे पता हो 
मेरी किस्मत 


3

कभी-कभी 
जीवन इतना शान्त होता है 
घड़ी की टिकटिक भी घटना होती है 


4

मैं मुँह बनाता रहा 
शीशे के सामने. 
रोने से तंग आ चुका था. 





5

डोर कटे पतंग की तरह 
मेरा बिंदास नौजवान दिल 
नीले आसमान में खो गया 


6

पहाड़ के ऊपर से लुढ़कते
एक चट्टान की तरह 
मैं आज के दिन तक आया


7

चुपचाप जाड़े के दिन आये 
जैसे परदेसी घर लौटता है 
सोने की ख़ातिर 


8

काम किये जाता हूँ
सिर्फ़ काम तब भी ज़िन्दगी आसान नहीं 
अपनी हथेलियां देखता रहता हूँ




9

जिन किताबों को चाव से पढ़ता था 
काफ़ी अरसा पहले 
अब उनका दस्तूर नहीं रह गया 


10

मैं लिखना चाहता था, क्या पता कुछ भी 
मैंने कलम उठाई : 
सुबह की घड़ी में ताज़े-ताज़े फूल 



11

मुझे डर है 
अपने एक हिस्से से 
जिसे मेरी अब कोई परवाह नहीं 


12

बेजान बालू में एक उदासी 
उंगलियों के बीच से सरकती है 
जब मुट्ठी बांध लेता हूँ 


13

जंभाई का बहाना, सोने का भान
आख़िर क्योंकर ऐसा करता हूँ
ताकि पता न चले मैं सोच क्या रहा हूँ


(साभार : कविता कोश) 
  
(चित्र साभार : गूगल इमेज)

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