रामजी तिवारी का आलेख 'अब्बास किआरोस्तमी....'

किआरोस्तमी
रान को विश्व सिने पटल पर स्थापित करने वाले फिल्मकारों में अब्बास किआरोस्तमी का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। ईरान जैसे देश में उपलब्ध कमतर स्पेस में भी उन्होंने 'अपनी नई धारा' का विकास कर अपने को साबित तो किया ही साथ ही यह भी सिखाया कि अगर आप में हुनर है तो आप विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लिए राह बना सकते हैं विगत 4 जुलाई को पेरिस में किआरोस्तमी का निधन हो गया। रामजी तिवारी ने किआरोस्तमी को श्रद्धांजलि देते हुए यह आलेख लिखा है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं रामजी तिवारी का यह आलेख 'अब्बास किआरोस्तमी ....'   
        

अब्बास किआरोस्तमी .....

रामजी तिवारी

गत 4 जुलाई 2016 को महान ईरानी फिल्मकार अब्बास किआरोस्तमी का निधन हो गया। उन्होंने 76 वर्ष की अवस्था में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में अंतिम सांस ली, जहाँ वे पिछले कुछ समय से रह रहे थे। उनके निधन के साथ ही ईरानी सिनेमा के एक युग का अवसान हो गया। एक ऐसा युग, जिस पर न सिर्फ ईरान को, वरन दुनिया के सभी कला-प्रेमियों को गर्व रहता था। बेशक कि पिछले कुछ समय से वे लीवर के संक्रमण से जूझ रहे थे, लेकिन हाल-फिलहाल तक वे काफी सक्रिय जीवन भी जी रहे थे, इसलिए उनके दुनिया से जाने की खबर ने सभी सिने-प्रेमियों को अवसन्न कर दिया।

अब्बास किआरोस्तमी का जन्म 22 जून 1940 को तेहरान में हुआ था। वहीं से उन्होंने ‘फाइन आर्ट्स’ में स्नातक की पढाई की। आरम्भ से ही बेहद प्रतिभाशाली ‘अब्बास’ एक चित्रकार बनना चाहते थे, जिसमें उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत भी की। लेकिन जल्दी ही यह तय हो गया कि उनके लिए एक ऐसी विधा इन्तजार कर रही है, जिसमें कई कलाओं का मिश्रण हो। जाहिर है, फिल्म की विधा इस नाते सबसे मुफीद थी। उस समय ईरान में अमेरिका परस्त ‘शाह’ का शासन चल रहा था, जिसमें कला के लिए थोड़ी जगह दी गयी थी। बेशक कि वह जगह कई तरह से निगरानी की स्थिति में ही रहती थी। सन 1969 में इसी शाह शासन ने ईरान में ‘इंस्टीट्यूट आफ इंटेलेक्चुअल डेवलपमेंट आफ चिल्ड्रन्स एंड यंग’ की स्थापना की, जिसमें अब्बास किआरोस्तमी भी सक्रिय रूप से जुड़े। इस संस्थान ने वहाँ विभिन्न कलाओं को न सिर्फ प्रोत्साहित किया, वरन उन्हें दुनिया में अपना स्थान बनाने लायक बौद्धिक आधार भी प्रदान किया। 




किआरोस्तमी ने बतौर फिल्मकार 1970 में अपनी लघु फिल्म ‘ब्रेड एंड एलाय’ से शुरुआत की। और फिर वह सिलसिला अभी चला ही था, कि ईरान में सत्ता पलट हो गया। वहाँ पर शाह की सरकार के स्थान पर इस्लामी क्रान्ति वाली सरकार पदस्थापित हुई। इसी मध्य ‘किआरोस्तमी’ का सिने युग विधिवत रूप से आरम्भ हो रहा था । 1977 में अपनी पहली फीचर फिल्म ‘रिपोर्ट’ के कारण वे कुछ चर्चा में आये, लेकिन 1980 में बनी ‘कोकर-त्रयी’ की पहली फिल्म ‘व्हेयर इज द फ्रेंड्स होम’ ने उन्हें दुनिया भर में स्थापित कर दिया। बाद में इस त्रयी की दो अन्य फिल्मों ‘एंड लाइफ गोज आन’ और ‘थ्रू द ओलिव ट्रीज’ ने तो उन्हें दुनिया के महान सिनेकारो में स्थापित ही कर दिया। इन्हें ‘कोकर त्रयी’ के नाम से इस लिए जाना जाता है कि ये तीनों फिल्मे उत्तरी ईरान के एक गाँव ‘कोकर’ की तरफ जाती हैं, और उसे केंद्र में रख कर आगे बढती हैं। 
इससे पहले कि हम ‘किआरोस्तमी’ के सिनेमा की परख करें, हमें यह जरुर देख लेना चाहिए कि उस समय ईरान में सिनेमा बनाने के लिए कैसा वातावरण मौजूद था। सिनेमा जैसी स्वतन्त्र विधा के लिए ईरान में कितनी स्वतंत्रता हासिल थी? और फिर इस परिप्रेक्ष्य में दुनिया की नजर में, खासकर पश्चिम द्वारा बनायी गयी छवि में ईरान की क्या तस्वीर उभरती थी? जब इन आधारों पर हम अब्बास के सिनेमा को देखते हैं, तो शायद हम उनके प्रति न्याय भी कर सकते हैं और उनके वास्तविक योगदान को भी समझ सकते हैं।

The wind will carry us

मसलन शाह के शासन के भीतर भी और उसके बाद इस्लामी क्रान्ति के बाद भी ईरान में सिनेमा के लिए कोई बहुत मुफीद समय नहीं था। सेंसर बोर्ड राजनैतिक फिल्मों पर सख्त तो था ही, उसके यहाँ प्रेम संबंधों, सामाजिक कुरीतियों, नौकरशाही, सेना, धार्मिक आडम्बर और व्यवस्था की विद्रूपताओं को ले कर भी तमाम तरह के बंधन और दिशा-निर्देश होते थे। यानि कि आप पश्चिम लोकतंत्रों की सिने-स्वतंत्रता तो भूल ही जाईये, ईरान में भारतीय सिनेमा के मुकाबले भी काफी कमतर स्पेस उपलब्ध था। दूसरी तरफ इस्लामी क्रान्ति के बाद खासकर और फिर ईराक से उसके युद्ध को ले कर भी ईरान के बारे में पश्चिम ने दुनिया में ऎसी छवि गढ़ी थी, कि उसमे हमें ईरान का समाज एक दानव के जैसा ही दिखाई देता था। जो अतिशय रूप से कट्टर था, जो बहुत धर्मांध था, जो हर आधुनिकता से घृणा करता था, जो केवल लड़ना और मरना ही जानता था। और जो दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा भी था।
‘किआरोस्तमी’ ने इन परिस्थितियों के बीच से अपने सिनेमा के लिए जगह बनाई। उन्होंने कुछ तो यूरोपीयन ‘नई धारा’ से ग्रहण किया, जिसमें इटेलियन ‘नई धारा’ की बहुत ख़ास भूमिका थी। लेकिन उन सबसे प्रभाव ग्रहण करते हुए भी उन्होंने ईरान की अपनी ‘नई धारा’ को विकसित किया। यह धारा ‘डाक्यूमेंट्री तरीके’ से बनाई गयी थी, जिसमें विवरणों के आधार पर ईरान के आम जन जीवन को दर्शाया जाता था। जाहिर है कि जब सेंसर की तलवार इस कदर ऊपर लटक रही हो, तो ऐसे में कला को अपने लिए थोड़ा ‘संगठित’ होना अनिवार्य ही था। अब्बास ने इसके लिए अपनी फिल्मों में ईरानी कविता का उपयोग करना शुरू किया। वे पहले ही ‘डाक्यूमेंट्री तरीके’ को अपना कर अपनी फिल्मों को भव्यता और तामझाम से बचा ले गए थे। और एक चित्रकार के रूप में अपनी क्षमता का सार्थक उपयोग कर उन्होंने ऐसे ‘लांग शाट’ विकसित किये, जिसमें ईरान का भूगोल भी दुनिया के सामने नुमाया हुआ और दर्शकों ने चित्रकला के जरिये भी सिनेमा को देखा, पढ़ा।

Taste of cherry

अपने सिनेमा में ईरान के गाँवों की तरफ लौटने और आम आदमी से जुड़ाव की उनकी समझ ने उन्हें वे दोनों हथियार उपलब्ध करा दिए, जिससे वे अपने देश के सेंसर बोर्ड से भी मुकाबला कर सकते थे और दुनिया के सामने ईरान की वास्तविक छवि को भी प्रस्तुत कर सकते थे। मसलन वे अपनी फिल्मों में ईरान के सामान्य आदमी से बातचीत करते हुए किसानों और मजदूरों की समस्या से भी रूबरू हो रहे थे। बच्चों के जरिये वे उन तहों तक पहुँचे, जिसमें ईरानी वयस्क व्यक्ति नहीं खुलना चाहता था। चुकि उनकी अधिकतर फिल्मों में ‘मूविंग तकनीक’ का इस्तेमाल हुआ है, इसलिए जाहिर है कि उसमें बहुत कुछ चित्रों के माध्याम से भी देखा और समझा जा सकता है और बहुत कुछ राहगीरों की बातचीत से भी। मसलन अपनी प्रसिद्द फिल्म ‘टेस्ट आफ चेरी’ में किआरोस्तमी ने दिखाया है कि एक गरीब मजदूर जो पैसे के लिए बहुत जरूरतमंद है, और एक कुर्द सैनिक जो किसी के साथ लड़ने के लिए कुख्यात है, जब उसके सामने नैतिक सवाल खड़े होते हैं, तो वे दोनों ही पैसे और लड़ाई की जगह पर मानवीयता की पक्ष में मुड़ते हुए दिखाई देते हैं।

इस तरह से ‘किआरोस्तमी’ की फिल्मों में ईरान का वह चेहरा भी दिखाई देता है, जो ‘अयातुल्लाह खुमैनी’ के फतवों और तेहरान की चकाचौंध से अलग और वास्तविक है। और फिर वे दुनिया को ईरान का वह चेहरा भी दिखाने में कामयाब होते हैं, जिसमें ईरान की पश्चिम द्वारा गढ़ी गयी दानव की छवि भी टूटती है। अपनी फिल्मों में आम जनमानस से सीधे जुड़ाव और ईरानी गाँवों के भीतर जा कर कहानी कह सकने की सलाहियत ने उन्होंने दुनिया को यह समझने के लिए मजबूर किया कि ईरान के लोग भी दुनिया के अन्य लोगों की तरह ही एक साधारण इंसान हैं। जो अपनी तमाम समस्याओं से जूझते हुए भी शान्ति चाहते हैं, नैतिक बल रखते हैं और दुनिया के किसी भी हिस्से के इंसान की तरह विवेकशीलता और मनुष्यता से समृद्ध हैं। 

Ten
किआरोस्तमी की फिल्मों में सिर्फ एक फिल्मकार ही दिखाई नहीं देता है, वरन उसमें उनकी बहुमुखी प्रतिभा भी दिखाई देती है, जो कई रूपों में फैली हुई है। निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक, चित्रकार, कवि, पेंटर, कथावाचक और ग्राफिक डिजाइनर जैसे तमाम फन में माहिर ‘किआरोस्तमी’ ने अपनी फिल्मों में उन सबका प्रभाव छोड़ा है। और यह प्रभाव उन फिल्मों को किसी भी तरह से बोझिल नहीं बनाता। वरन इसके विपरीत उन्हें और अधिक समृद्ध करता है। 

चालीस से अधिक फिल्मों में अपने निर्देशन से लोहा मनवाने वाले अब्बास किआरोस्तमी को कोकर त्रयी की तीन फिल्मों ‘ह्वेयर इज फ्रेंड्स होम’, एंड लाइफ गोज आन’ और ‘थ्रू द ओलिव ट्रीज’ के लिए तो जाना ही जाता है। लेकिन ‘द टेस्ट आफ चेरी’, ‘क्लोज अप’, ‘सर्टिफाईड कापी’, ‘द विंड विल कैरी अस’, ‘टेन’ और ‘होमवर्क’ जैसी कालजयी फिल्मों के लिए भी जाना जाता है। और मजेदार तो यह भी कि जिस अब्बास किआरोस्तमी को हम ‘मूविंग सिनेमा’ के लिए जानते हैं, वही अब्बास किआरोस्तमी जब ‘शिरीन’ जैसी नारीवादी फिल्म बनाते हैं, तो उसमें उनका एक भी पात्र एक भी मूवमेंट नही दिखाता।

Where is my friends home

कहते है कि किसी कलाकार का मूल्यांकन इस बात से भी होना चाहिए कि वह अपने आसपास में कला के लिए कैसा माहौल विकसित करता है। या उसके प्रभाव से बनने वाले माहौल में कैसी कला विकसित होती है। इस आधार पर उनका महत्व और भी बढ़ जाता है। क्योंकि जब हम किआरोस्तमी साथ ईरान के सिनेमा को देखते हैं, तो वह गर्व करने के अनेकानेक अवसर उपलब्ध कराता है। माजिद मजीदी के ‘चिल्ड्रेन्स आफ हैवेन’, जफ़र पनाही के ‘आफ साइड’, मोहसिन मखलमबाफ के ‘कंधार’, बहमन गोबादी के ‘टर्टल कैन फ्लाई’ और असग़र फरहादी के ‘सेपरेशन’ जैसी फिल्मों से मिलकर जो ईरान का सिनेमा बनता है, उसमें अब्बास किआरोस्तमी भूमिका भी शामिल रहती है। इन फिल्मकारों के माध्यम से ईरान का सिनेमा दुनिया के सामने उस ईरान को प्रस्तुत करता है, जो शायद वहाँ के तमाम लेख, तमाम किताबें, तमाम कूटनीतिकार और तमाम राजनेता नहीं कर सके हैं। कहना न होगा कि अब्बास किआरोस्तमी ईरानी सिनेमा के इस बेटन को थामने वाले अग्रिम धावक थे।

अब्बास को दुनिया भर में कई महत्वपूर्ण पुरस्कार हासिल भी हुए है। विश्व सिनेमा में उन्हें कुरुसोवा, सत्यजीत राय और डे-सिका के साथ शामिल कर के देखा भी जाता है। खुद कभी कुरुसोवा ने उनके बारे कहा था कि “सत्यजीत राय के मरने पर मैं बहुत दुखी हुआ था। लेकिन जब मैंने अब्बास की फिल्मों को देखा, तो मुझे लगा कि यह सही आदमी है, जो उनकी जगह ले सकता है।” 



विडम्बना देखिए कि उसी अब्बास की कुछ फिल्मों को ईरान में प्रतिबन्ध भी झेलना पड़ा। और प्रतिबन्ध की सूची में उनके प्रिय सहयोगी फ़िल्मकार ‘जफ़र पनाही’ और मखलमबाफ की फ़िल्में भी शामिल रहीं। लेकिन उन्हें अपना मुल्क इतना प्यारा था कि इन प्रतिबंधों के बावजूद उन्होंने अपनी फिल्मों की तकनीक में बदलाव करके ईरान में बने रहने का विकल्प ही चुना। यह अनायास नहीं था कि वे अपनी फिल्मों में कई बार स्क्रीन को डार्क छोड़ दिया करते थे। शायद इसलिए भी, कि दर्शक उसे अपनी कल्पनाओं से भरें। बाद में कुछ समय के लिए उन्होंने बाहर रह कर भी फिल्मे बनायी। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि वे अपनी फिल्मों में कभी भी लिखी हुई स्क्रिप्ट पर ही नहीं बने रहते। वरन उसे फिल्म बनाते समय जीवन की तरह परिवर्तित भी करते रहते हैं।   

किआरोस्तमी की मृत्यु पेरिस में हुई, जहाँ से उन्हें दफनाने के लिए ईरान लाया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए तेहरान में जमा हुई भीड़ यहाँ गवाही दे रही थी कि वे सही मायनों में ईरानी जनता के दिलों पर राज करते थे। उनका योगदान इन अर्थों में बहुत ख़ास माना जाएगा कि उन्होंने न सिर्फ ईरान के सिनेमा को दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचाया। न सिर्फ अपने पीछे ईरान में फिल्म निर्माण की एक अत्यंत समृद्धशाली परंपरा छोड़ी। वरन दुनिया के सिने परिदृश्य पर यह स्थापना भी दी, कि हर देश और समाज का अपना विशिष्ट महत्व होता है, और कला का महत्व इस बात में है कि वह उसे उस देश और समाज की विशिष्टता के साथ दर्शाए। इस लिहाज से ‘अब्बास किआरोस्तमी’ सच्चे मायनों में एक जन-फिल्मकार थे, जिसने दुनिया के शास्वत मूल्यों की स्थापना के लिए अपनी कला का उपयोग किया। बेशक कि यह एक साधारण बात है। लेकिन इस दौर के लिए कोई कम असाधारण बात भी नहीं, जिसमें कला का उपयोग आम जनता के हितों के खिलाफ धड़ल्ले से किया जाने लगा है।
उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि ...... ।

रामजी तिवारी








सम्पर्क -

रामजी तिवारी
बलिया, उत्तर-प्रदेश
मो.न. 09450546312   

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