नित्यानंद गायेन की सात कविताएँ


नित्यानंद गायेन

युवा कवि नित्यानंद गायेन की कविता 'धूप पिघल रही है' पढ़ते हुए मुझे वरिष्ठ कवि वीरेन डंगवाल की एक कविता है 'कवि' की ये पंक्तियाँ याद आयीं - 'इच्छाएँ आती हैं तरह-तरह के बाने धरे/ उनके पास मेरी हर ज़रूरत दर्ज है/ एक फ़ेहरिस्त में मेरी हर कमज़ोरी/ उन्हें यह तक मालूम है/ कि कब मैं चुप हो कर गरदन लटका लूँगा/ मगर फिर भी मैं जाता रहूँगा ही/ हर बार भाषा को रस्से की तरह थामे/ साथियों के रास्ते पर/ एक कवि और कर ही क्या सकता है/ सही बने रहने की कोशिश के सिवा।' कवि आज जो भी कुछ घटित हो रहा है उसे देखने के लिए अभिशप्त है। लेकिन विचलन के इस समय में सही बने रहने की कोशिश भी कम अहम नहीं है। फासिस्ट शक्तियां आज अपने देश में वह सब कुछ कर रही हैं जो उनकी स्वाभाविक प्रकृति होती है इसी क्रम में वे प्रोपेगंडा फैलाने का काम भी करती हैं लेकिन कवि नित्यानन्द इस बात को ले कर आश्वस्त हैं कि 'झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती'। आइए आज पढ़ते हैं आक्रोश के स्वर के कवि नित्यानन्द की कुछ नयी कविताएँ
       

नित्यानंद गायेन की सात कविताएँ 



झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती

 
मुल्क टूटा,
घर टूटा, 
टूटे रिश्ते-नाते,

तुम रूठे,
मैं रूठा,
यूँ ही बिखर गये

उम्मीद की झूठी तसल्ली पर
खड़ा हूँ !
झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती.
जानता हूँ  



धूप पिघल रही है

 
धूप पिघल रही है 
और आदमी सूख रहा है जल कर ...
राजा लूट रहा 
मंत्री कर रहे तांडव नृत्य
वकील जाग रहे हैं 
विपक्ष व्यस्त है नाटक में
सड़क पर कुत्ते भौंक रहे हैं
"
मैं " नासमझ दर्शक की तरह 
सब कुछ खामोश देख रहा हूं!!


जब प्रेम सबसे बड़ा अपराध घोषित हो चुका है

यह हमारे दौर का 
सबसे खूंखार समय है
हत्या बहुत मामूली घटना है इन दिनों
ऐसे समय में
जब प्रेम सबसे बड़ा अपराध घोषित हो चुका है
मैं बेखौफ़ हो कर 
लिख रहा हूँ 
प्रेम कविताएँ 
तुम्हारे लिए



मुझे शिकायत तुमसे नहीं 

हाँ, मैं बदनाम होना चाहता हूँ 
बहुत ज्यादा,जितना अब तक हूँ 
उससे भी ज्यादा, 
उन गलियों से भी जियादा 
जहाँ गुजार देते हैं कई -कई रात 
सभ्य समाज के सभी ठेकेदार
जिनकी आधी रात बीतती हैं 
उन्हीं बदनाम गलियों में

और हाँ सुनो - 
मुझे शिकायत तुमसे नहीं 
खुद से है !


हम प्रतिबद्ध हैं 

हम बड़े नहीं हैं
लौटाने को नहीं है हमारे पास 
कोई पुरस्कार,
हमारे पास शब्द हैं 
और हम प्रतिबद्ध हैं 
अपने शब्दों से करेंगे हम
हर अन्याय का प्रतिरोध!

डरता हूँ कि टूट जाएगा ये ख्वाब सुबह के साथ

आँखे भर आती हैं मेरी 
जब कभी मैं ख़्वाबों में करता हूँ तुमसे प्यार 
सोचता हूँ तुम्हें ...
शब्द कम पड़ते हैं 
रात की गहराई के साथ होता जाता हूँ अकेला 
बहुत अकेला 
और तब याद आती हैं तुम्हारी बातें 
चेहरा तुम्हारा 
फिर डरता हूँ कि टूट जाएगा ये ख्वाब सुबह के साथ
हर सुबह के साथ 
मैं हो जाता हूँ अनाथ 
जिसके लिए नहीं बना कोई 

अनाथालय


उम्मीद ही तोड़ती है आदमी को हर बार

मिटा दिया जाऊंगा एक दिन 
तुम्हारी डायरी के उस पन्ने से
जिस पर लिखा था कभी 
तुमने मेरा नाम

इतिहास के किसी अध्याय में जिक्र भी नहीं होगा मेरा
यह जानते हुए भी 
कि सभी अपने छोड़ जाएंगे एक दिन 
जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होगी उनकी 
वे बंद कर लेंगे अपने द्वार 
फिर भी 
मैं उम्मीद भरी नज़रों से ताकता रहता हूँ 
तुम्हारे द्वार की ओर

उम्मीदों की सीमा कहाँ होती है
उम्मीद ही तोड़ती है आदमी को हर बार

सम्पर्क-

मोबाईल- 08860297071

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की है) 

टिप्पणियाँ

  1. বাবু আপনাকে বিভিন্ন খুব সুন্দর শুভেচ্ছা লিখেছেন এবং সুখী Houngi'll আপনার লেখা থেকে ধীরে ধীরে পড়তে চাই!
    আপনার অনুরক্ত বোন

    जवाब देंहटाएं

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