रचना






रचना वाराणसी के सेन्ट्रल हिन्दू गर्ल्स स्कूल की बारहवीं की छात्रा हैं. रचना की इस कविता को वर्ष २०१२ का विद्यानिवास मिश्र प्रथम युवा प्रतिभा सम्मान प्रदान किया गया. निर्णायक मंडल में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर श्रद्धानंद थे.


इस छोटी सी कविता में रचना ने अपने घर की दो बूढ़ी दादियों के माध्यम से स्त्री जीवन की उद्यमशीलता को बयान किया है. इस कविता की खास बात यह है कि रचना ने जिस अंदाज में लय को साधा है वह सुखद है और हमें बहुत आश्वस्त करता है. यह कविता मधुकर सिंह के संपादन में छापने वाली पत्रिका ‘इस बार’ में युवा आलोचक सुधीर सुमन की टिप्पणी के साथ प्रकाशित हुई है.









दो बूढ़ी



मेरे घर में दो बूढ़ी
दोनों बूढ़ी काम से जुडी


हर समय करती हैं काम
सुबह, दोपहर या हो शाम


दिन भर करती रहतीं काम
रात नहीं तो नहीं आराम

सुबह जगीं तो लगीं काम में
सिरहाने हो  जैसे  काम

टिप्पणियाँ

  1. सिरहाने रखे तकिये सी या घर की किसी भी गैरजरूरी उपेक्षित चीज की तरह से पड़ी दो बूढ़ी स्त्रियों पर पड़ी एक युवा की सजग और सहज दृष्टि की गहनता और आज के दौर में बहुत आवश्यक जुड़ाव बेहद आश्वस्तिदायक है... बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ...

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  2. पुष्पेन्द्र फाल्गुन- Achchhi Rachna hai RACHNA, tumhare sirahne bhi kavita ke bade kaam hain bitiya...

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  3. आज "पहली बार" आपके इस ब्लॉग पर आना हुआ ....."अनहद" पत्रिका में आपका ब्लॉग पता देखा था ..लेकिन आते - आते आना ही आज हुआ ...अनहद हिंदी साहित्य के विभिन्न आयामों को रेखांकित करने वाली पत्रिका है ....आज तक जो भी अंक मैंने देखे हैं निश्चित रूप से ज्ञानवर्धक रहे हैं ...आप अनहद के माध्यम से निश्चित रूप से एक महान कार्य कर रहे हैं ....आने वाले वर्षों में यह पत्रिका एक महत्वपूर्ण अंग होगी हिंदी साहित्य जगत में ऐसी आशा है ...!

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  4. बहुत अच्छी रचना ...आगे भी तुम्हारी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी ...फिलहाल बधाई

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  5. छोटी किन्तु मार्मिक!
    कविता में बूढ़ी के लिए रिश्ता युक्त संबोधन का अभाव उनकी पारिवारिक हैसियत का भी सूचक है जिसकी वजह से उनके सिरहाने काम रख दिए जाने का अभिशाप व्यंजक हो गया है.रात नहीं तो नहीं आराम में न सिर्फ तुक है बल्कि कम शब्दों में पूरी वस्तुस्थिति रख दी गयी है.
    रचना की यह छोटी सी कविता काबिल-ए-तारीफ है.
    हमारी बधाई!

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  6. " रचना जी की ये कविता सचमुच बड़ी सटीक कविता है. सबसे बड़ी बात जो इनके लेखन में उभर कर आती है, वो है सहजता और सरलता जो उन भावों को बड़ी शालीनता के साथ प्रस्तुत करती हैं! कहते हैं कविता ह्रदय से निकलती है...ये कविता इस बात का शशक्त उधाहरण है!

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