विनोद शाही का आलेख 'मिथक से इतिहास तक'

डी. डी. कोसांबी इतिहास साक्ष्यों के आधार पर ही आगे बढ़ता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि उस समय के इतिहास के बारे में कैसे जाना जाए, जिसके लिए कोई आधारभूत स्रोत ही उपलब्ध नहीं हैं। डी. डी. कोसांबी ने इसके लिए एक नई युक्ति निकाली और उन मिथकों के पास गए जिसकी हमारी भारतीय धार्मिक परम्परा में बहुतायत है। मिथकों का इतिहास की निर्मित के लिए इस्तेमाल करना खतरे से भरे राह पर चलने जैसा था लेकिन कोसांबी ने तार्किक व्याख्याओं के आधार पर इनका विश्लेषण करते हुए ऐतिहासिक स्रोत बना लिया। भारतीय इतिहास के क्षेत्र में यह सर्वथा नवीन प्रयोग था। वैसे भी मानव जाति के ज्ञात इतिहास से और पीछे की ओर झांकने के लिए मिथक से बेहतर कोई उपकरण नहीं। अपने इस विश्लेषण के आधार पर उन्होंने 'मिथक और यथार्थ' जैसी महत्त्वपूर्ण किताब लिखी। इस किताब को लिखने के लिए उन्हें एक लंबा वैचारिक सफर तय करना पड़ा। इतिहास लेखन के इस पक्ष को हम उनकी मृत्यु से 4 वर्ष पूर्व प्रकाशित जिस महत्वपूर्ण किताब में सर्वाधिक मुखर होता पाते हैं, वह यही किताब है। आज 31 जुलाई को डी. डी. कोसांबी के जन...