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परांस-4 : अदिति शर्मा की कविताएँ

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  कमल जीत चौधरी  प्रेम बराबरी का एक भाव जागृत करता है। इसमें न तो कोई उच्च होता है न ही निम्न। प्रेम में पुरुष आसक्त होता है। स्त्री खुद के अस्तित्व को प्रेमी के हाथों समर्पित कर देती है। इस क्रम में स्त्री पुरुष से भी प्रतिबद्धता चाहती है। लेकिन जब स्त्री को लगता है कि इस प्रतिबद्धता में खोट है तब वह अड़ कर खड़ी हो जाती है। खुद का ही नहीं बल्कि प्रेम का स्वाभिमान बचाने के लिए। अदिति शर्मा अपनी कविता में लिखती हैं : 'सुनो, आना हो तो निशान छोड़ने के लिए आना/ मेरे चिन्ह मिटाने के लिए नहीं/ अन्यथा मुझे माफ कर देना/ तुम्हारे लिए किवाड़ नहीं खुलेगा।' परांस-4 के अन्तर्गत अदिति शर्मा की कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। पिछले अप्रैल से कवि कमल जीत चौधरी जम्मू कश्मीर के कवियों को सामने लाने का दायित्व संभाल रहे हैं। इस शृंखला को उन्होंने जम्मू अंचल का एक प्यारा सा नाम दिया है 'परांस'। परांस को हम हर महीने के तीसरे रविवार को प्रस्तुत कर रहे हैं। इस कॉलम के अन्तर्गत अभी तक हम अमिता मेहता, कुमार कृष्ण शर्मा और विकास डोगरा की कविताएं प्रस्तुत कर चुके हैं। इस क्रम में आज हम चौथे कवि अदिति...

ठाकुर प्रसाद सिंह का निबन्ध 'वाराणसी : एक बहुत पुराना नया शहर'

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  ठाकुर प्रसाद सिंह  वाराणसी भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक अलबेला और अलमस्त शहर है। इसकी पुरातनता पर प्रकाश डालते हुए अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।” इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहा जाता है। यह हिन्दू धर्म के सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है जो ऐसी मान्यता है कि शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ है। इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है। साथ साथ इसे आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य, एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है। इस शिव की नगरी माना जाता है। यही नहीं बौद्ध एवं जैन परम्परा में भी इसे पवित्र शहर माना जाता है। बौद्ध साहित्य में ही इसके अनेक नाम मिलते हैं। उदय जातक में सुर्रूंधन (अर्थात सुरक्षित), सुतसोम जातक में सुदर्शन (अर्थात दर्शनीय), सोमदंड जातक में ब्रह्मवर्द्धन, खंडहाल जातक में पुष्पवती, युवंजय जातक में रम्म नगर (यानि सुन्दर नगर), शंख जातक...

ग़ज़ा के कवियों की कविताएँ

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  लुबना अहमद कविता क्या कर सकती है? केवल कवि के ही नहीं बल्कि पाठक के मन मस्तिष्क में भी  यह सवाल  बार बार उठता रहता है। दुनिया के तमाम कवियों ने भी कविता को ही शीर्षक बना कर तमाम कविताएं लिखी हैं जिसमें अक्सर कविता की प्रासंगिकता पर बातें होती रहती हैं। कविता क्या, क्यों, और किसलिए? यह आज भी एक प्रासंगिक सवाल है। और यह सवाल जब तक बने रहेंगे तब तक कविता की प्रासंगिकता बनी बची रहेगी। युद्ध चाहें जिन भी देशों के बीच हो बेहिसाब बर्बादी ले कर सामने आता है। इससे तमाम निर्दोष लोग भी प्रभावित होते हैं। खासकर वे मासूम बच्चे जिनकी एक मुस्कराहट भर से प्रकृति भी अनायास ही मुस्कुराने लगती है। गज़ा पर इजरायली कहर से दुनिया भलीभांति वाकिफ है। गज़ा के कवियों ने इसे ले कर कई महत्त्वपूर्ण कविताएं लिखी हैं जिसका उम्दा अनुवाद भास्कर चौधरी ने किया है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ग़ज़ा के कवियों खासकर लुबना अहमद, मरियम मुश्ताहा और मोहम्मद मौसा की कविताएँ। ग़ज़ा के कवियों की कविताएँ  अनुवाद : भास्कर चौधरी लुबना अहमद की कविताएँ  1  ग़ज़ा के बच्चों को जीने दो  ओह! दुनिया,...

कल्पना मनोरमा की कविताएं

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  कल्पना मनोरमा कल्पना मनोरमा का जन्म चार जून, 1972 को इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ। कानपुर विश्वविद्यालय से एम. ए, (संस्कृत-हिंदी) बी. एड. (हिंदी) से किया। माध्यमिक विद्यालय में बीस वर्षों तक हिंदी और संस्कृत विषय की अध्यापक रहीं। कुछ वर्षों तक अकादमिक पब्लिकेशन हाउस में बतौर सीनियर एडिटर  और हिन्दी हिन्दी काउंसलर का पद भार सम्हाला। फिलहाल पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन में संलग्न । 'कब तक सूरजमुखी बनें हम' नवगीत संग्रह, 'बाँस भर टोकरी', 'नदी सपने में थी' और 'अब लौटने दो' कविता संग्रह, कहानी संग्रह "एक दिन का सफ़र", साक्षात्कार "संवाद अनवरत" प्रकाशित। एक बालकथा संग्रह और दो कविता संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। कल्पना मनोरमा ने पुरुष-पीड़ा जैसे विशेष संदर्भों पर आधारित दो कहानी संग्रह भी संपादित किए हैं। जिनके नाम हैं-'काँपती हुईं लकीरें' और 'सहमी हुईं धड़कनें' उनकी कहानियों का अनुवाद पंजाबी, उर्दू और उड़िया भाषा में प्रकाशित हुए हैं। संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय के बी. कॉम प्रथम वर्ष में नयी शिक्षा नीति (NEP) के तहत उनका...