राकेश मिश्र की कविताएं
राकेश मिश्र राजा अपने आप में ही एक निर्मम शब्द है। राज पद को पाने से ले कर इसे बचाए रखने की जुगत में राजा कुछ भी कर सकता है। पहले इस राज पद को देवत्व प्रदान कर लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास किया जाता था आजकल इसकी जगह 'लाभ' ने ले ली है। इस लाभ का जाल जंजाल कुछ इस तरह का होता है कि इससे पार पाना आसान नहीं। अब राजा शब्द ने भी समय को देखते हुए अपना शाब्दिक चेहरा बदल लिया है और आजकल यह कहीं राष्ट्रपति तो कहीं प्रधानमंत्री के चेहरे में तब्दील हो गया है। इनके इर्द गिर्द सरंजाम वही हैं जो पहले कभी हुआ करते थे। राजा की हुकूमत उसके समर्थकों और लाभार्थियों से पूरी हो जाती है। इसके बावजूद जो दायरे में नहीं आते उन्हें राजा दायरे में समेटने के लिए सारे जोर जुगत लगा डालता है। कवि राकेश मिश्र की नजर इस राजा पर रही है। वे खुद भी एक प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते इससे बखूबी वाकिफ हैं। आज पहली बार पर हम राकेश मिश्र की कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। कवि की कविताओं पर टिप्पणी की है चर्चित आलोचक अजय तिवारी ने। इस पोस्ट का संयोजन कवि केशव तिवारी का है। विडम्बना की दृष्टि राकेश मिश्र की कविताएँ टि