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अमरकान्त की कहानी 'जि़न्‍दगी और जोंक'

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  अमरकांत अमरकान्त ऐसे कहानीकार हैं जिनके बिना हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण विधा कहानी की कोई भी बात पूरी नहीं होती। निम्नमध्यवर्गीय जीवन के अप्रतिम कथाकार अमरकान्त सीधी सरल भाषा में अपने कथानक को इस प्रकार गढ़ते हैं कि सहसा यह विश्वास ही नहीं होता कि हम गल्प की दुनिया में विचरण कर रहे हैं। रोंगटे खड़े कर देने वाले कथ्य को भी तटस्थ भाव से प्रस्तुत करने में अमरकान्त जी का कोई सानी नहीं है। अमरकान्त जी उन चुनिन्दा कहानीकारों में से एक हैं जिनके पास एक साथ एक से बढ़ कर एक कई बेहतरीन कहानियां हैं। 'दोपहर का भोजन', 'डिप्टी कलक्टरी', 'हत्यारे', 'जिंदगी और जोंक', 'बहादुर', 'फर्क', 'कबड्डी', 'मूस', 'छिपकली', 'मौत का नगर', 'पलास के फूल' से ले कर 'बउरैया कोदो' तक बेहतरीन कहानियों की एक असमाप्त और लम्बी फेहरिस्त है। अमरकांत का एक वक्तव्य कहानी लेखन के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण है - 'जो आपके सामने घटित हो रहा है सिर्फ वही रचना नहीं है बल्कि उसे देख कर, अपने चारों ओर देखने के बाद आपके भीतर जो घटित हो र