लीना मल्होत्रा रॉव





जन्म तिथि स्थान   अक्तूबर, गुडगाँव 

हँस, वसुधा,  समकालीन भारतीय साहित्यप्रतिलिपि, पाखी, परिकथा, शिखर, हरियाणा साहित्य अकेडमी की पत्रिका हरिगंधा,पब्लिक एजेंडा,  कल के लिए, स्त्रीकाल, पर्वत रागअलाव, अपनी माटीजनसंदेश, दैनिक जागरण, नवभारत, जनवाणी अनेक पत्र पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित.

कविता  संग्रह- ' मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान' बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित 
संग्रह की समीक्षाएं राष्ट्रीय स्तर के  पत्र पत्रिकाओं में छपी है
सम्मान- युवा कविता सम्मान, २०११ अचलेश्वर महादेव संस्था, सोनभद्र.
हेमंत स्मृति कविता सम्मान २०
सम्प्रति - सरकारी नौकरी स्वाध्याय 


लीना की कविताओं में स्त्री जीवन की मुश्किलें अपने सहज रूप में प्रतिबिंबित हुई हैं। जैसे कि स्त्री अभिशप्त हो आजीवन दुखों को झेलने के लिए। लीना जब यह कहती हैं कि 'मैं वह हर लड़की हूँ जो आजकल आईना नही देखती/ क्योंकि उसे वहां अपने चेहरे के बदले दिखती है/ एक क्षत विक्षत रौंदी हुई आँत' तो वह उस भयावह यथार्थ को उजागर कर रही होती हैं जो हमारी दिनचर्या में न चाहते हुए भी, जैसे शामिल हो चुका है। तमाम आन्दोलनों, जागरूकता अभियानों, धरना-प्रदर्शनों के बावजूद स्त्री आज कहीं भी भयमुक्त नहीं है। लीना इसे अपना स्वर देते हुए कहती हैं -' मैं वो स्वप्न हूँ/ जो आँख खुलते ही टूट जाएगा/ बेशक!/ धुल पुंछ जायेंगे उसके दृश्य।' 

पहली बार पर प्रस्तुत है लीना की इसी स्वर की कुछ कविताएँ    




 
कहाँ है लक्ष्मी?

बापू 
तुम्हारे आश्रम में आकर ही जान पाई 
किसी दूदा भाई  और दानी बहन की बेटी लक्ष्मी को 
तुमने गोद लिया था 

इस देश की जनता की तरह हमें तो बस यही पता था 
कि  एक राजकुमारी को तुमने अपना  नाम दिया था 
तो क्या 
अतीत की  तकली से लेकर 
भविष्य के घूमते चक्र के बीच 
तने हुए सत्याग्रह के कच्चे सूत से 
बापू बुना  गया तुम्हारे चरखे से  भी एक राजसी कपड़ा 
जिसे रानी और उसकी संताने सिंहासन  पर बैठने से पहले पहन लेते हैं 

कहाँ है लक्ष्मी और उसकी संताने 
क्या वह तुम्हारे सामूहिक सफाई अभियान में लगे 
अभी तक देश का मैला ढो रहे हैं 
या सामूहिक प्रार्थना यज्ञ में  
पतित पावन सीताराम गाते हुए 
ईश्वर से अपने लिए दो रोटी के जुगाड़ की प्रार्थना कर रहे हैं 
बापू क्या तुम भी अपने चश्मे के पार नही देख पाए 
कि 
तुम्हारे सत्य की  प्रयोगशाला में 
दादू और लक्ष्मी जैसे लोग अहिंसा और समानता के के उपकरण मात्र बनकर रह गये 
और वह जिसके नाम पर अपने नाम की चेपी लगा दी थी तुमने सहर्ष 
क्या तुम्हे अहसास था कभी 
कि उस नाम की चेपी के नीचे एक धर्म का दम घुट गया और वह बेमौत मारा  गया 
उसकी लावारिस लाश तुम्हारे नाम के ठीक नीचे दबी पड़ी है 
जिस पर लोकतंत्र की कुर्सी बिछी है 


मेरा नाम जानना चाहते हो 

तुम मेरा नाम जानना चाहते हो मेरा चेहरा देखना चाहते हो 
यह ज़रूरी नही है दोस्त 
क्योंकि मैं वह भय हूँ 
जो हर लड़की पर रात के अँधेरे की तरह उतरता है 
और जेब में रखी मिर्ची की पुडिया की तरह दुबका रहता है 
वह हर लड़की जिसके पांवो के नीचे अकेली सड़क की धुकधुकी बढ़ जाती है 
और दिल देह से निकल कर दो फुट आगे दौड़ने लगता है अँधेरे के खतरों पर कुत्ते की तरह भौंकते हुए  

मैं वह हर लड़की हूँ जो आजकल आईना नही देखती 
क्योंकि उसे वहां अपने चेहरे के बदले दिखती है 
एक क्षत विक्षत रौंदी हुई आँत 

मैं कोशिश हूँ 
साहस दिखाने  की कोशिश 
साहस जो वेंटिलेटर की कृत्रिम साँसों के बीच बचा रहा 
जिसे रामसिंह की सलाख रौंद नहीं पाई 
चिकित्सकों के चाकू काट कर अलग नही कर पाये।
 साहस जिसे इन्फेक्शन नही हुआ 

मैं मर भी जाऊं तो मुझे याद रखना 
क्योंकि 
मैं बीते जन्म में किया हुआ कोई वायदा नही हूँ 
जिसकी गहराई सिर्फ सपनो में मापी जा सकती है 
मैं वो स्वप्न हूँ 
जो आँख खुलते ही  टूट जाएगा 
 बेशक !
धुल पुंछ जायेंगे  उसके दृश्य 
फिर भी छोड़ जाएगा   एक सुर आत्मा की खिड़की पर 
जिसे तुम गुनगुनाते रहोगे 
जो तुम्हारी ख़ामोशी को तोड़ डालेगा 



 रामसिंह  

मेरी चीख की धार से धरती दो टुकड़ों में बंट गई
धरती के मेरे टुकड़े पर 
तुम्हारे लिए कोई जगह नही है रामसिंह,


रामसिंह   

 शुक्र है   रामसिंह 
तुम मेरे पड़ौस में नहीं रहते 
जहाँ सौंपती हूँ मैं अपने विश्वास  की चाबी 




संपर्क-
 

Website: http://lee-mainekaha.blogspot.com/
E-mail: leena3malhotra@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. लीना जी की कवितायेँ मन को बेचैन कर देने वाली हैं ,बहुत सुन्दर कवितायेँ .

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  2. तीव्र तल्खी का बेचैन स्वर आत्मा की खिड़की को झझकोरता हुआ . उदारवादी खुलेपन का उपभोक्तावादी खेल जिसमे अधिक से अधिक पैसा कमाने की विकृति से लेकर यौन विकृति के बीच बदलते परिवेश ने स्त्री के जीवन को 'अतीत की तकली से लेकर भविष्य में घूमते चक्र के बीच ' और अधिक पीड़ित कर दिया है ' जहां हर लड़की के अँधेरे में उतरता भय' गहरा गया है. कवित्री इसकी जांच पड़ताल करती हैं .. भारतीय समाज में स्त्री की निम्म स्थिति को बनाए रखने वाली रुढियों पर प्रहार करते हुए, युग पुरुष गांधी जी को भी कटघरे में ले आती हैं. व्यंग्य में कहती है 'लक्ष्मी' की 'लावरिस लाश तुम्हारे नाम के ठीक नीचे दबी पडी है' और उस पर स्वतंत्र भारत के 'लोकतंत्र की कुर्सी बिछी है' इस विद्रोही स्वर का स्वागत है ... स्त्री समाज के प्रति होने वाले अत्याचार के विरोध में लीना जी के इस बुलंद स्वर के लिए उनको बधाई ... संतोष भाई का आभार

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  3. लीना जी की कविताऐं मन को झकझोरती हैं। बापू की गोद ली संतानें तथा किसी को दिए गए उनके अपने कुल नाम को लेकर लीना ने गजब का व्यंग्य किया है। देश में जो भयानक वर्ग अंतराल व राजशाही जैसी खानदानी विरासत चलायी जा रही है उस पर गॉधी जैसे व्यक्ति के परोक्ष अपरोक्ष सहयोग पर यह करारा तमाचा है।

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  4. Leena jee mujhe aapkee sabhee kavitain bahut acchee lagi. Is vidrohee svar ke liye aapko haardik badhai. Abhaar Santosh jee.

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  5. Tiwari Keshav

    Awsad me tha. In kawiton ne aur gahre awsad me dal diya. Ham kaun si aaswasti de sakte han. Sath sath sanghers k alawa. Kafi dino bad padha aap ko. Aap ki peeda me sath bus itna hi.

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  6. लीना जी का संग्रह ',मेंरी यात्रा का जरुरी सामान ' मैंने पढ़ा है | उनके पास न सिर्फ अपने समय और समाज की समझ है , वरन उसे कविता में व्यक्त करने का हुनर भी है | भाषा में उतनी ही तल्खी , जितने में इस समाज को समझाया जा सके , और उतनी ही मुलायमियत जितने में अपनी सवेद्नाओं को ठीक-ठीक तरीके से संप्रेषित किया जा सके | ख़ुशी हुई ..उन्हें 'पहली बार' ब्लाग पर पढ़कर | और साथ में यह भी , कि सिताब दियारा भी आपका इन्तजार कर रहा है |

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  7. लीना की कवितायेँ प्रचलित फार्मूले से हटकर मार्मिक और एक बेचैनी से भर देने वाली हैं
    ----रतीनाथ योगेश्वर

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  8. अद्भुत कवितायेँ। विरोध और अंतर्नाद का स्वर।

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