यादवेन्द्र का आलेख 'लोहे का स्वाद घोड़ा जानता है'
महक जमाल पहाड़ दूर से देखने में भले ही आकर्षक लगें, वहां का जीवन काफी दुष्कर होता है। खासकर कश्मीर का जीवन, जो एक तरफ तो लम्बे अरसे से आतंकवाद का गढ़ रहा है, दूसरी तरफ सरकारों की प्रयोगशाला बना रहा है। फिल्मकार महक जमाल के कहानियों की किताब आई है "लोल कश्मीर"। यादवेन्द्र पाण्डेय इस किताब की तहकीकात करते हुए बताते हैं : 'किताब की भूमिका में महक लिखती हैं कि मैंने अपनी युवावस्था में कश्मीर में रहते हुए अशांति और हिंसा के लंबे दौर देखे। अनगिनत हड़तालें, एनकाउंटर देखे, बम धमाके देखे और हत्यायें देखीं। इन बवालों के चलते इम्तिहान और बर्थडे पार्टी को बीच में रोक दिया जाना देखा। हमारे इर्द-गिर्द पैरा मिलिट्री बलों का हमेशा इतना भारी जमावड़ा लगा रहता था कि हमें यह सब अपने जीवन का हिस्सा लगने लगा था - हमारे लिए जो एक आम बात थी वह राज्य से बाहरी किसी के लिए बेहद चौंकाने वाली और डराने वाली बात थी।... "कश्मीर में रह कर बड़ी होती हुई मैं हमेशा सोचती थी कि क्या बाहर का कोई भी इंसान कभी यह जान सकेगा कि अपने घरों के अंदर लंबे समय तक कैद कर के रखे जाते हुए हमारे दिल-दिमाग के अंदर क्या...