संदेश

सदानंद शाही की कविताएं

चित्र
  सदानंद शाही प्रेम की जरूरत इस दुनिया को आज जितनी ज्यादा है उतनी पहले कभी नहीं थी। बात-बात को लेकर रिश्तो तक में खटास आम बात है। रचनाकार आम तौर पर उस प्रेम और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहते हैं जो अब दूभर होता जा रहा है। हिंदी में प्रतीक चिन्हों का अपना एक खास मतलब होता है। कवि की नजरों से यह प्रतीक चिन्ह नहीं बचते और वह इन्हें रूपक की तरह इस्तेमाल करते हुए अपनी कविता का विषय बना लेता है। सदानंद शाही की एक उम्दा कविता है 'हाइफन'। यह 'हाइफन' सामान्यतया दो शब्दों को जोड़ने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। कविता में कवि लिखते हैं : 'मेरा मन होता है/ कि हर जगह हाइफन लगा दूँ/ और/ सब कुछ को/ सब कुछ से जोड़ दूँ...।' आज सदानंद शाही का जन्मदिन है। पहली बार की तरफ से उन्हें जन्मदिन की बधाई एवम शुभकामनाएं देते हुए आज हम उनकी कुछ कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। आज ही वाणी प्रकाशन से उनका चौथा कविता संग्रह 'संगतराश' जारी हो रहा है। इसी संग्रह का ब्लर्ब लिखा है उदय प्रकाश ने। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं उदय प्रकाश की टिप्पणी के साथ सदानंद शाही की कुछ कविताए...

योसा बुसोन के हाइकु, हिन्दी अनुवाद : देवेश पथ सारिया

चित्र
  योसा बुसोन हाइकु मूलतः जापानी कविता की एक विधा है। यह मात्र तीन पंक्तियों में ही लिखी जाती है। इसका भी अपना मात्रात्मक पदबंध होता है। हाइकु में आमतौर पर पहली पंक्ति में पाँच अक्षर, दूसरी में सात और तीसरी में पाँच अक्षर होते हैं। हाइकु में प्रकृति या किसी क्षणिक अनुभव को संक्षिप्त और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया जाता है। कहा जा सकता है कि यह अनुभूति के चरम क्षण का पद्यांकन है। "हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति, परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं यह पुष्पित पल्लवित हुआ है। हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं- जैसे बौद्ध-धर्म चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति। हाइकु को काव्य विधा के रूप में बाशो (1644-1694) ने प्रतिष्ठा प्रदान की। हाइकु मात्सुओ बाशो के हाथों संवर कर 17वीं शताब्दी में जीवन दर्शन से जुड़ कर जापानी कविता की युगधारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज के समय में हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघ कर विश्व साहित्य की निधि बन चुका है। योसा बुसोन (1716-1784) एदो युग के कवि-चित्रकार थे। उनका जन्म ओसाका के क़रीब हुआ। उन्हें अपने युग के सर्वश्र...

रंजीता सिंह 'फलक' की कविताएं

चित्र
  रंजीता सिंह 'फलक' पितृसत्तात्मक समाज की यह त्रासदी है कि वह स्त्रियों को वह सम्मान नहीं दे पाता जिसकी वे अधिकारी होती हैं। इसकी वजह वह पुरुषवादी मानसिकता है जिसमें स्त्रियों को दोयम दर्जे का मान लिया जाता है। लेकिन सच तो यही है कि इस समाज के संचालन में स्त्रियों की भूमिका उतनी ही अहम है, जितनी कि पुरुषों की। रंजीता सिंह फलक अपनी एक कविता में उचित ही लिखती हैं 'किसी ऐसे शहर में मैंने/ बेधड़क चलना शुरू किया था/ जहाँ स्त्री को स्त्री की तरह देख पाने की भी/ सलाहियत नहीं रख पाए थे वहाँ के पुरुष'। ऐसे बंद समाज में स्त्रियों से ही सारे शील, संकोच, मर्यादा, नैतिकता की उम्मीद की जाती है। उन स्त्रियों को जो लीक से अलग हट कर अपनी राह चुनती हैं उन्हें तमाम किस्म के फिकरे सुनने पड़ते हैं। लेकिन यह दुनिया एकांगी नहीं है। यहां दुष्ट हैं तो सज्जन लोग भी दिख जाते है। रंजीता लिखती हैं  'किसी पुरुष के वात्सल्य भरे/ हाथ ने ही मुझे सँभाला/ हर आघात में/ उन चंद पुरुषों ने ही मुझे सिखाया/ कि दुनिया सिर्फ भीड़ नहीं/ और स्त्री होना कोई अपराध नहीं'। कवयित्री के हृदय में वह प्रेम है जो अ...