संदेश

सुनील कुमार शर्मा का आलेख 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'

चित्र
  केशव तिवारी नब्बे के दशक के जिन कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से पाठकों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है उनमें केशव तिवारी का नाम प्रमुख है। केशव ने कविता की अपनी खुद की भाषा गढ़ी है। यह भाषा लोक की भाषा है। इसमें लोक धुन का समावेश है। इसमें उस लोक की चिंताएं और दुख दर्द दर्ज हैं जो प्रायः उपेक्षित रह जाया करते हैं। हाल ही में केशव तिवारी का एक कविता संग्रह 'नदी का मर्सिया तो पानी ही गाएगा'   हिन्द युग्म से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह को केन्द्र में रख कर कवि-विचारक सुनील कुमार शर्मा ने एक आलेख लिखा है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुनील कुमार शर्मा का आलेख 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'। 'परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सार्थक संवाद'   सुनील कुमार शर्मा “यह वक़्त ही एक अजीब अजनबीपन में जीने  पहचान खोने का है  पर ऐसा भी तो हुआ है  जब-जब अपनी पहचान को खड़ी हुई हैं कौमें  दुनिया को बदलना पड़ा है  अपना खेल” केशव तिवारी की कविताएँ मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ का ऐसा ताना-बाना बुनती हैं, जो गहन वैचारिकता और संवेदनशीलता को अभिव...

बलभद्र की मां पर केन्द्रित कविताएं

चित्र
  मां और उसकी सन्तान का रिश्ता दुनिया में सबसे अनन्य होता है। दुनिया की कोई भी मां अपने सन्तान का जीवन संवारने निखारने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझती है। इस क्रम में वह खुद का अस्तित्व भी मिटा डालती है। खुद को घर की चारदीवारी में आजीवन के लिए सीमित कर वह अपने परिवार के लिए असीम आसमान उपलब्ध कराती है। मां पर कवियों ने तमाम कविताएं लिखी हैं और आज भी लगातार लिखी जा रही है।  बलभद्र हिन्दी और भोजपुरी के समादृत कवि एवम आलोचक हैं। मां पर उन्होंने  मूल भोजपुरी में कुछ महत्त्वपूर्ण कविताएं लिखी हैं। इन कविताओं का हिन्दी अनुवाद खुद कर कवि ने पहली बार को उपलब्ध कराया है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  बलभद्र की मां पर केन्द्रित कविताएं। मां पर केन्द्रित कविताएं बलभद्र अपनेपन को जीने की तरह कभी बेटे की तरफ कभी पतोह की तरफ कभी बेटी कभी दमाद की तरफ बोलती हो तुम बेटा-पतोह की तरफ जितना उससे तनिक भी कम नहीं बेटी-दमाद की तरफ पिता जिस दिन उतरे-उतरे दिखाई देते हैं थके-थहराये अथवा कम जिस दिन खाते हैं हिर-फिर उनसे पूछती हो तुम लेकिन बोलना जब होता है तो बहुत ही कम बोलती हो उनकी ...

शर्मिला जालान का संस्मरण 'गगन गिल : आत्मबल की आभा'

चित्र
  गगन गिल  वर्ष 2024 का हिन्दी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार चर्चित कवयित्री गगन गिल को उनके कविता संग्रह  'मैं जब तक आयी बाहर' के लिए प्रदान किया गया है।  गगन गिल की  कविताओं में वह स्त्री मन मिलता है जो स्वयं ही अपने लिए एक अनुशासन बना लेता है। यह अनुशासन उस दु:खबोध से निर्मित होता है, जो स्त्री जीवन की कथा व्यथा ही रही है। उनकी कविताओं में उदासी की एक परत दिखाई पड़ती है जो उनकी कविता की मुख्य आवाज बन जाती है। इस रूप में वे महादेवी वर्मा की परम्परा को आगे बढ़ाती नजर आती हैं।  गगन गिल के अब तक पांच कविता संग्रह- 'एक दिन लौटेगी लड़की' (1989), 'अँधेरे में बुद्ध' (1996), 'यह आकांक्षा समय नहीं' (1998), 'थपक थपक दिल थपक थपक' (2003), 'मैं जब तक आयी बाहर' (2018) प्रकाशित हो चुके हैं ।उनकी चार गद्य पुस्तकें भी हैं - 'दिल्ली में उनींदे' (2000), 'अवाक्' (2008), 'देह की मुँडेर पर' (2018) और 'इत्यादि'।  कथाकार और उपन्यासकार  शर्मिला जालान ने बड़ी आत्मीयता से गगन गिल को अपने एक संस्मरण में याद किया है। पहली बार की तरफ ...

रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं

चित्र
  रुचि बहुगुणा उनियाल रात का जिक्र आते ही खुद ब खुद हमारे मन मस्तिष्क में एक अमूर्त से भय का संचार होने लगता है। यह रात अंधेरा लाती है। अंधेरे को ले कर दुनिया भर के कवियों ने तमाम यादगार कविताएं लिखी हैं। अंधेरे के साथ जुड़ कर रात उस बुराई का प्रतिनिधित्व करने लगती है जिससे हम बचना चाहते हैं। रात को देखने की यह रूढ़ दृष्टि है। रात प्राकृतिक है। और इस प्रकृति में कुछ भी अतिरिक्त या दोषपूर्ण नहीं। इसे तो हम गढ़ लेते हैं। रुचि बहुगुणा उनियाल दृष्टिसम्पन्न कवयित्री हैं। रात को देखने का उनका नजरिया अलग ही है। रात का जिक्र करते हुए वे लिखती हैं - 'रातों ने दिया समय/ बंद फूलों को/ ताकि भर सकें मकरंद/ और जीवन फल-फूल सके।' रात अगले दिन की सम्भावना से भरी होती है। रात हमें नींद के रूप में वह सुकून देती है, जो अब जिन्दगी से गायब हो चला है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  रुचि बहुगुणा उनियाल की कुछ नई कविताएं। रुचि बहुगुणा उनियाल की कविताएं काश---- अगर जीवन में काश शब्द न होता तो जीवन कितना सुन्दर होता  हर पल प्यार शब्द अगर लोग रेवड़ी की तरह न बांटते तो इस शब्द क...