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विजेन्द्र जी के कुछ पत्र, प्रस्तुति : विनोद दास

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वरिष्ठ और नए रचनाकारों के बीच सम्पर्क के सिलसिले हिन्दी साहित्य में बहुतायत हैं। सम्पर्क के इस क्रम से दोनों समृद्ध होते रहे हैं। विजेंद्र जी का नाम ऐसे वरिष्ठ  रचनाकारों में शुमार है जो बड़ी सहजता से नई पीढ़ी के साथ न केवल जुड़ जाते थे, बल्कि प्रोत्साहित भी करते रहते थे। वे नए  रचनाकारों को बराबर पत्र भी लिखते रहते थे। इन पत्रों से हमें न केवल साहित्य बल्कि साहित्येत्तर जानकारियां भी मिलती हैं। शायद ही कोई नया रचनाकार हो, जिसके पास विजेन्द्र जी के कुछ पत्र न हों। कवि विनोद दास के साथ विजेन्द्र जी का लम्बा पत्र व्यवहार चला। इनमें से कुछ पत्रों को विनोद जी ने आज भी सहेज कर रखा है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं विजेन्द्र जी के वे पत्र जो उन्होंने विनोद दास को लिखे थे। विजेन्द्र जी के कुछ पत्र  प्रस्तुति : विनोद दास  विजेन्द्र जी की कविता से परिचय उनका काव्य संग्रह “चैत की लाल टहनी” पढ़ने के बाद हुआ था। विजेन्द्र जी की कविताएँ प्रचलित, स्वीकृत और तयशुदा मुहावरों से  अलग लगी थीं। उनकी कविताएं शहरी दृष्टि से विपरीत लोकजीवन का प्रति संसार रच रही थीं। उन दिनों मैं पटना में था और वह राजस्थ

सबिता एकांशी की कविताएं

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  सबिता एकांशी विकास के दौर में हम साधन सुविधाओं के मामले में भले ही समृद्ध हुए हों, लेकिन जैविक रूप से हम लगातार विपन्न होते जा रहे हैं। गिद्ध, कौवे, गौरैया हो या फिर जुगनू इनकी उपस्थिति अब दुर्लभ से दुर्लभतम होती जा रही है। ये महज जीव भर नहीं हैं, बल्कि इन्होंने मनुष्य के जीवन में रंग भरे हैं। ये कहीं न कहीं हमारे पर्यावरण से जुड़ कर जीवन को समृद्ध करते रहे हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश जैसे ग्रंथों में तो ये जीव जीवन्त पात्रों की तरह आ कर हमें जीवन की सीख तक देते हैं। कवि  सबिता एकांशी ने इन जीवों को न केवल जिया है, बल्कि महसूस भी किया है। सबिता ने बेतकल्लुफी से अपनी कविता में इन्हें याद किया है और उस प्रतीक के रूप में चिन्हित किया है जिससे मनुष्य सही मायनों में मनुष्य बनता है। 'वाचन पुनर्वाचन' शृंखला की तीसरी कड़ी में नासिर अहमद सिकन्दर ने  सबिता एकांशी की कविताओं को रेखांकित किया है। इस कड़ी में हम प्रज्वल चतुर्वेदी और पूजा कुमारी की  कविताएं पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं। 'वाचन पुनर्वाचन' शृंखला के संयोजक हैं प्रदीप्त प्रीत। कवि बसन्त त्रिपाठी की इस शृंखला को प्रस्तुत

हरिशंकर परसाई की व्यंग्य कथा 'भोला राम का जीव'

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  हरिशंकर परसाई  नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार से कौन होगा जो परिचित नहीं होगा। हम भारतीय और किसी मामले में विश्व गुरु हों न हों, भ्रष्टाचार के मामले में हम यह दावा जरूर कर सकते हैं। भ्रष्टाचार के नाम पर सरकारें बदल गईं, लेकिन भ्रष्टाचार न रुका न ही बदला। यह प्राण वायु की तरह हमेशा संचरित होता रहा। हरिशंकर परसाई अपने समय के उम्दा व्यंग्यकार थे। उनके व्यंग्य पैने और मारक इसीलिए होते थे क्योंकि वे जन जीवन से जुड़े हुए होते थे। उनकी एक चर्चित व्यंग्य कहानी है 'भोलाराम का जीव'। यह वर्ष हरिशंकर परसाई का जन्मशताब्दी वर्ष भी है। हम इस अवसर पर कुछ विशेष प्रस्तुतियां कर रहे हैं। इसी क्रम में आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  हरिशंकर परसाई का व्यंग्य आलेख 'भोला राम का जीव' 'भोला राम का जीव' हरिशंकर परसाई  ऐसा कभी नहीं हुआ था...  धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।  सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख

निशान्त का आलेख 'रचनाकार का आलोचक होना'

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  रचनाकार और आलोचक के सम्बन्धों पर तमाम बातें पहले भी हो चुकी हैं और आज भी ये बातें निरन्तर जारी हैं। इन दोनों के बीच का सम्बन्ध किसी दुश्मन जैसा नहीं होता बल्कि ये दोनों एक सिक्के के ही दोनों पहलू की तरह होते हैं। हर रचना खुद के लिए आलोचक का बाट जोहती है जबकि हर आलोचना किसी न किसी रचना को केन्द्र बना कर ही आगे बढ़ती है। यानी यह सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है। इसी क्रम में कवि निशांत की एक आलोचना पुस्तक 'कविता पाठक आलोचना' हाल ही में सेतु प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है। इसी कृति को 29वां देवी शंकर अवस्थी सम्मान प्रदान किया गया है। आलोचना की दुनिया में यह प्रतिष्ठित सम्मान है। पहली बार की तरफ से निशांत को बधाई एवम शुभकामनाएं। आज हम इसी पुस्तक का एक अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। सरस आलोचनात्मक आलेखों को विस्तार से पढ़ने के लिए आप इस पुस्तक को मंगवा सकते हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  निशान्त का आलेख 'रचनाकार का आलोचक होना'। 'रचनाकार का आलोचक होना'       निशान्त एक किताब (भावन) पढ़ते-पढ़ते मन में प्रश्न उठा कि रचनाकार, आलोचक कब बनता है? कब उसके अंदर आलोचना क