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भरत प्रसाद का आलेख 'कविता के प्राण पर भाषा की प्रभुसत्ता'

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  विनोद कुमार शुक्ल  विनोद कुमार शुक्ल ने लिखने की जो अलग शैली इजाद की, उसके साथ इस बात का खतरा लगातार बना रहा कि पाठकों में इसे स्वीकृति मिल पाएगी अथवा नहीं। विनोद जी की कविताएं पढ़ते हुए प्रथमदृष्टया पाठक यह अंदाजा नहीं लगा पाते, कि आखिरकार कवि कहना क्या चाहता है। लेकिन एक बार जब इस शैली के अन्दर से हो कर हम गुजरते हैं तो विषय की परतदार गूढता से दो चार होने लगते हैं। विनोद कुमार शुक्ल अपनी तरह की ऐसी अलग फैंटेसी गढ़ते हैं जो ऊब पैदा नहीं करती बल्कि कथ्य को नया आयाम प्रदान करती है। कवि भरत प्रसाद ने कवि के इन शिल्पगत प्रयोगों की तहकीकात की है। विनोद जी पर हम पहले ही प्रियदर्शन और पीयूष कुमार के आलेख प्रकाशित कर चुके हैं। इस कड़ी में यह तीसरा और अंतिम आलेख है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं भरत प्रसाद का आलेख। ' कविता के प्राण पर भाषा की प्रभुसत्ता'         (विनोद कुमार शुक्ल पर केंद्रित) भरत प्रसाद  बड़ी रचना में जितनी अहम् भूमिका प्रतिभा की होती है, उससे कुछ कम महत्वपूर्ण भूमिका दृष्टि-साधना या व्यक्तित्व-साधना की नहीं होती। जब तक दोनों का सं...

पीयूष कुमार का आलेख 'साधारण के असाधारण लेखक'

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  विनोद कुमार शुक्ल  रचनाकारों के लिए प्रचलित भाषा से अलग हट कर अपनी अलग तरह की भाषा इजाद करना आसान नहीं होता। खासकर कविता, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में यह एक चुनौती की तरह होता है। विनोद कुमार शुक्ल ऐसे रचनाकार हैं जिन्हें गद्य और पद्य दोनों में उनकी अलग तरह की भाषा के तौर पर पहचाना जा सकता है। विनोद जी की यह भाषा रचना को पढ़ने में कहीं पर भी व्यवधान नहीं करती बल्कि विषय के अंतरजगत में प्रवेश कर उसकी बन्द पड़ी गिरहों को खोलने की कोशिश करती है। इस तरह उनकी भाषा असाधारण है जो साधारण यानी आम की बात कुछ खास अंदाज में करती है। विनोद जी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया है। उन्हें बधाई देते हुए कल हमने प्रियदर्शन का एक आलेख प्रस्तुत किया था। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है यह दूसरा आलेख। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  पीयूष कुमार  का आलेख 'साधारण के असाधारण लेखक'। 'साधारण के असाधारण लेखक' पीयूष कुमार  विनोद कुमार शुक्ल का जन्म एक जनवरी को हुआ था। लगता है हिंदी में सत्तासी साल पहले शुरु हुए नए साल के पहले ही दिन को एक दृश्य में दो दृश्य देखने की, शब्दों ...

प्रियदर्शन का आलेख 'नहीं होने को टकटकी बांध कर देखती कविता'।

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  विनोद कुमार शुक्ल  इस वर्ष का ज्ञानपीठ सम्मान जो विनोद कुमार शुक्ल को दिए जाने की घोषणा की गई है।  पिछली बार का ज्ञानपीठ पुरस्कार जिस तरह दिया गया उसने बहुत निराश किया था। मुझे लगा कि अब यहां भी भविष्य के लिए संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। लेकिन विनोद कुमार शुक्ल को सम्मानित कर ज्ञानपीठ ने अपनी पिछली गलती सुधारने की कोशिश की है। विनोद जी ऐसे रचनाकार हैं जिनके नाम पर न कोई खेमेबंदी है, न ही कोई अन्य विवाद। विनोद जी अपने लेखन, वह चाहें गद्य हो या पद्य, में ऐसी भाषा अपनाते हैं जो सहज लगते हुए भी सहज नहीं है और जो कठिन होते हुए भी कठिन नहीं है। विनोद जी के उपन्यास 'नौकर की कमीज', 'खिलेगा तो देखेंगे' और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' ऐसी रचनाएं हैं, जिन्हें दुनिया भर में सराहा गया। इन उपन्यासों के कई भाषाओं में इनके अनुवाद हुए। उनके कहानी संग्रह 'पेड़ पर कमरा', 'आदमी की औरत' और 'महाविद्यालय' भी बहुचर्चित रहे हैं। वे पिछले 50 सालों से भी अधिक समय से लिख रहे हैं। उनका पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद प्रकाशित ...

कमलजीत चौधरी से प्रचण्ड प्रवीर की बातचीत

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  कमलजीत चौधरी  संक्षिप्त परिचय: कमल जीत चौधरी हिन्दी कवि-लेखक व अनुवादक हैं। अब तक लगभग साठ साहित्यिक पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ, आलेख, अनुवाद और लघु कथाएँ छप चुकी हैं। इनके दो कविता संग्रह- हिन्दी का नमक (2016), दुनिया का अंतिम घोषणापत्र (2023) प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा इन्होंने जम्मू-कश्मीर की कविताई को रेखांकित करते हुए; 'मुझे आई डी कार्ड दिलाओ' (2018) शीर्षक से एक कविता-संग्रह संपादित किया है। दस साझे संकलनों में इनकी कविताएँ संकलित की गई हैं। इसके अलावा चयनित कविताओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है। इनकी कविताएँ मराठी, उड़िया, बंगला, पंजाबी और अँग्रेज़ी में अनूदित व प्रकाशित हुई हैं। किसी भी रचनाकार से बातचीत का यही उद्देश्य होता है कि उसके व्यक्तित्व और कृतित्व के उन पहलुओं को सामने लाया जाए जिससे पाठक आम तौर पर परिचित नहीं होता है। बातचीत से  रचनाकार की प्रतिबद्धता और सरोकारों के बारे में भी पता चलता है। प्रचण्ड प्रवीर ने लिखित प्रश्नोत्तरी के जरिए संवाद करने की पहल शुरू की है। इस क्रम में उन्होंने पहली बातचीत कवि कमलजीत चौधरी से की है। आइए आज पहली बार...