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नीलाभ की कविताएं

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नीलाभ नीलाभ की कविताएं गढ़ी सराय की औरतें साँप की तरह लहरदार और ज़हरीली थी वह सड़क जिससे हो कर हम पहुँचते थे बीच शहर के एक बड़े चौक से दूसरे बड़े चौक तक जहाँ एक भीमकाय घण्टाघर था जो समय बताना भूल गया था आने-जाने वालों को 1947 के बाद से गो इसके इर्द-गिर्द अब भी वक़्तन-फ़-वक़्तन सभाएँ होतीं नारे बुलन्द करने वालों की जुलूस सजते और कचहरी तक जाते अपने ही जैसे एक आदमी को अर्ज़ी देने जो बैठ गया था गोरे साहब की कुर्सी पर अँधेरी थी यह सड़क जिस पर कुछ ख़स्ताहाल मुस्लिम होटल थे और उनसे भी ख़स्ताहाल कोठरियों की क़तारें जिन पर टाट के पर्दे पड़े होते जिनके पीछे से झलक उठती थीं रह-रह कर कुछ रहस्यमय आकृतियाँ राहगीरों को लुभाने की कोशिश में ये नहीं थीं उस चमकते तिलिस्मी लोक की अप्सराएँ जो सर्राफ़े के ऊपर मीरगंज में महफ़िलें सजाती थीं, थिरकती थीं, पाज़ेब झनकारतीं ये तो एक ख़स्ताहाल सराय की ख़स्ताहाल कोठरियों की साँवली छायाएँ थीं जाने अपने से भी ज़ियादा ख़स्ताहाल कैसे-कैसे जिस्मों को जाने कैसी-कैसी लज़्ज़तें बख़्शतीं बचपन में ’बड़े’ की बिरयानी या सालन और रोटियाँ खा...

अरुण आशीष

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अरुण आशीष अरुण आशीष का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चिलिकहर नामक गाँव में १ जुलाई १९८४ में हुआ. बचपन की पढ़ाई जवाहर नवोदय विद्यालय मऊ में पूरी करने के बाद आजकल कानपुर मेडिकल कालेज से एम बी बी एस (अं तिम वर्ष ) की पढ़ाई कर रहे हैं. बचपन से ही कविताएँ लिखने का शौक. इनकी कविताएँ पहली बार कहीं प्रकाशित हो रही हैं. समय निरंतर प्रवाहमान है. हर बदलाव में एक ताजगी होती है जो अपने समय को बयां करती है. अक्सर यह बदलाव अटपटा लगता है और इसीलिए सहज ग्राह्य नहीं होता. बदलावों की इस बयार से प्यार और रिश्ते भी अछूते नहीं हैं. हाथों की रेखा यानी वक्र भी बदल जाता है. हमारे इस बिलकुल नवोदित कवि अरुण आशीष की इन बदलावों पर पैनी नजर है. वह हर तरह के बदलावो को देखता महसूस करता है और इसे अपनी कविता में बेबाकी से दर्ज करता है.   बदलाव का यह कवि उतनी ही बेबाकी से अपने बचपन की गलियों में घूम आता है. जिसमें तमाम स्मृतियाँ टकी हुई हैं. ये वे स्मृतियाँ हैं जो दो भिन्न समयों और दो भिन्न हृदयों को जोड़ने का काम करती हैं. ये स्मृतियाँ अतीत की गलतियों से सीख लेने और अपने आप को समय के मुताबिक ...

आरसी चौहान की कविताएं

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आरसी चौहान का जन्म 08 मार्च 1979 को उ0 प्र0 के बलिया  जिले के एक  गाँव  चरौवॉं में हुआ. भूगोल एवं हिन्दी साहित्य में परास्नातक करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता में पी0 जी0 डिप्लोमा किया. इनकी कविताए देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.  इनकी कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी इलाहाबाद, गोरखपुर एवं नजीबाबाद से समय समय पर होता रहा है.  इसके अतिरिक्त इन्होने उत्तराखण्ड के विद्यालयी पाठ्य पुस्तकों की कक्षा-सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान में लेखन कार्य  साथ ही ड्राप आउट बच्चों के लिए ब्रिज कोर्स का लेखन व संपादन भी किया है. इन दिनों 'पुरवाई' पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। 'आधुनिकता' आज का सबसे विवादास्पद 'टर्म' है. प्रगतिशील मूल्यों को प्रायः पुरातनता का विरोधी समझ लिया जाता है. एक कवि यहीं पर विशिष्ट दिखाई पड़ने लगता है जब वह अपने अतीत में पैठ कर मानवीय मूल्यों को आधुनिक संवेदनाओं से जोड़ देता है. लेकिन यह जोड़ने का काम वही कवि बखूबी कर पाते हैं जिनका उस अतीत से सीधा जुडाव होता है. आरसी ...

प्रतुल जोशी

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  प्रतुल जोशी का जन्म  इलाहाबाद में २२ मार्च १९६२ को हुआ. पिता शेखर जोशी ए वम    माँ   चन्द्रकला जी  के सानिध्य में प्रतुल को बचपन से  ही  साहित्यिक   परिवेश   मिला.   इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९८४ में अर्थशास्त्र से परास्नातक.पिछले २३ वर्षों से आकाशवाणी से जुड़ाव.वर्त्तमान में आकाशवाणी लखनऊ में कार्यकम अधिशाषी.रेडियो के लिए बहुत से नाटकों का लेखन.वहीं बहुत सारे रेडियो फीचर्स का निर्माण.समय समय पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में संस्मरण,व्यंग्य,यात्रा-वृतांत,कविता के रूप में योगदान. एक यात्रा पोनुंग के नाम मै पासी घाट (अरुणाचल प्रदेश) जा रहा हूँ. यह कल्पना ही मुझे रोमांचित कर रही है. रोमांच का दूसरा कारण था यह सोचना कि इस बार पासी घाट, ब्रह्मपुत्र को स्टीमर द्वारा पार कर पहुँचा जायेगा. पहले भी दो बार पासी घाट गया हूँ.  लेकिन दोनों बार दो अलग-अलग रास्तों...