हीरा लाल पर स्मृति सभा : एक रपट
हीरा लाल |
मनई और माटी के कवि हीरा लाल की स्मृति सभा
प्रस्तुति : केतन यादव
29 सितंबर 2024 की शाम इलाहाबाद बहुत ही स्तब्धता और भीगी आँखों के साथ अपने शहर के एक बहुत जरूरी जनकवि की स्मृति सभा में अंजुमन-रूह-ए-अदब सभागार में इकट्ठा हुआ। कार्यक्रम का संयोजन धर्मेंद्र जी और बसंत त्रिपाठी जी ने तीनों लेखक संगठन क्रमशः प्रलेस, जलेस और जसम के संयुक्त आयोजन के रूप में किया। मंच पर अध्यक्षता कवि हरीश चंद्र पांडेय कर रहे थे। उनके साथ अनीता गोपेश, प्रणय कृष्ण, अजामिल जी और हीरा लाल जी की पत्नी उमा जी मौजूद थे। कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संचालन प्रकर्ष मालवीय ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शमशेर जन्मशती पर केदार नाथ सिंह जी के साथ हीरा लाल जी ने काव्य पाठ किया था तब पहली बार उन्होंने देखा था। उसके बाद दूधनाथ सिंह जी ने कविताएं चुन कर प्रकाशित कराया। संगम लाल ने उनकी कविताओं को संग्रह के लिए कंपोज किया।
सबसे पहले कवि शिवानंद मिश्र ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा मंचों पर आने में, खुद को अभिव्यक्त करने, रेखांकित करने के मामले में वे बड़े संकोची व्यक्ति थे। इतने संकोची कि खुद इस दुनिया से चले भी गये और हमें पता भी नहीं चला एक लंबे समय तक। वे ज्यादा पढ़ते थे कम लिखते थे। इलाहाबाद के सभी गोष्ठियों में मौजूद रहते। वे हाशिए की आवाज़ थे; जीवटता से भरे हुए। धर्मेंद्र जी ने हीरालाल जी के घर से उनके विषय में जानकारी इकट्ठा की और कार्यक्रम के संयोजन में मदद किया।
अजामिल ने बहुत भावुक ढंग से अपने कवि को याद करते हुए कहा हीरा लाल जी से मेरी मुलाकात तब हुई जब मैं समकालीन राजनीति का संपादन करता था। उनकी तीन प्रगतिशील कविताएं उसमें मैंने प्रकाशित की। वे अपनी दुकान पर आने वाले को मिठाई जरूर खिलाते थे। वे अपनी साधरणता में असाधारण थे। वे मिलते थे तो बच्चों की तरह खिलखिला कर हँसते थे। भारती भवन में उनसे मुलाकात होती थी। उन्होंने जो कुछ लिखा परिवार से अनुरोध है कि वह उसे उपलब्ध कराएँ प्रकाशित हो सके वह।
स्मृति सभा में बोलते हुए अजामिल |
प्रोफेसर प्रणय कृष्ण ने हीरा लाल को याद करते हुए कहा कि साहित्य का एक महत्वपूर्ण काम है सही तरह की स्मृतियों का पुनर्वास करना। जो कि अपने आप में रचना है। अपनी संवेदशीलता को इस घटना के बाद कटघरे में खड़ा लाज़मी है लेकिन समय समय पर अपने साहित्यिक पुरखों को याद करना भी एक साहित्यिक कर्म था। विनम्रता के साथ उनके भीतर मेहनतकशों का स्वाभिमान था। हो सकता हो साहित्यिक समाज की असंवेदनशीलता के कारण उनका कटना हुआ हो। साहित्य का समाज बहुत छोटा है इसमें बहुत सारी दलबंदी है राजनीति है। हीरा लाल जी कबीर के साथ मुक्तिबोध के भी गोती थे। वर्णाश्रम को तोड़ने के मामले में निसंदेह कबीर से जुड़ते हैं। हीरा लाल को अपने साथी रमाशंकर यादव विद्रोही की कविता परंपरा के रूम में भी याद करता हूँ। कुदाल फावड़ा आदि कविता के उपकरण को वैसे ही अपनी कविता का विषय बनाते जैसे भक्तिकाल के कवि। वे कविता खड़ी बोली में लिखते हुए भी अपने टोले मुहल्ले और स्थानीय भाषा में कविता रचते थे। उनके रचनाकर्म पर भी एक आयोजन केंद्रित किया जाना चाहिए।
प्रणय कृष्ण कवि हीरा लाल को याद करते हुए |
अपने वक्तव्य में मोहन लाल यादव ने कहा कि हीरा लाल ने अपने संग्रह के आत्मकथ्य में खुद को हीरा डोम से जोड़ा। वे अपनी कविता में टेंपोचालक और भैंस को कविता का कथ्य बना लेते थे। वे माटी के कवि थे। पुत्र अगम लाल यादव ने उनकी स्मृतियों को बहुत भावुकता से याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे पिता हीरा लाल जी ने सदैव सच्चाई, ईमानदारी और परोपकार के मार्ग पर चलना सिखाया।
कवि अशरफ अली बेग ने हीरा लाल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे जब मुझसे मिले तो बोले मैं गजल लिखता हूँ। बाद में उन्होंने मुझे अपनी कविताएं दिखाई। वे बहुत मार्मिक कविताओं के कवि थे। उनकी कविता के विषय बहुत साधारण जीवन के थे।
अशरफ अली बेग |
प्रोफेसर बसंत त्रिपाठी ने कहा कि इतनी सघन और मार्मिक कविताओं के बाद एक साइलेंट जोन में चला जाता है। एक बोलने वाला कवि जब अपना बोलना स्थगित कर देता है तो किसी भी स्वस्थ समाज के लिए यह सबसे ज्यादा सोचने का विषय है। हमें हीरा लाल जी के बहाने अपने समय और समाज को समझना होगा कि कैसे उछलता हुआ व्यक्ति सबके सामने आ जाता है पर एक परिदृश्य से ओझल दूर शांति से काम करता व्यक्ति चर्चा के बाहर रहता।
प्रियदर्शन मालवीय |
प्रियदर्शन मालवीय ने हीरा लाल को याद करते हुए कहा कि मैंने सबसे पहले उनकी कविताएं नया ज्ञानोदय में पढ़ी। हीरा लाल जी कुलीन नहीं थे। यदि वे कुलीन होते तो शायद अधिक चर्चा होती। प्रो अनीता गोपेश जी ने कहा जिस तरह वे अपनी बच्चियों की सफलता की खुशी देते थे मुझे उनमें अपनी पिता की छवि देखी। वे अपनी बात सीधे सीधे तरह से बिना लाग लपेट के बात कहते थे। मुझे अफ़सोस है कि आज अपना ऐसा कवि चला गया जिस समय में उसे सबसे अधिक जरूरत है। वे संघर्षशील व्यक्ति थे। इस घटना ने हमें झकझोर दिया अपने समय पर हमपर कुठाराघात किया कि उनके जाने की बात हम तक इतनी देर में पहुंची।
अविनाश मिश्रा |
अविनाश मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वास्तव में हीरा लाल जी जनमतीय कवि थे। सच्चे अर्थों में जातीय कवि थे। वे वर्ण व्यवस्था और आभिजात्य को ठेंगा दिखाते हुए अपनी कविताओं में तीखा व्यंग्य करते थे।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए हरीश चन्द्र पाण्डे |
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि हरीश चंद्र पांडेय जी ने कहा मुझे उनके न रहने की खबर कवि संतोष चतुर्वेदी से मिली। बच्चे कैसे पढ़ेंगे व्यवसाय कैसे चलेगा उस समय ये कविताएं सबके सामने आईं और जब उनके जीवन में निश्चिंतता का समय आया तब वे परिदृश्य से दूर हो गये। वे घर भी खूब बदले और व्यवसाय भी साथ साथ बदल रहे थे। जैसे कि कोई कविता में प्रयोग करता है। वे किस तरह जीवन संघर्ष से जूझ रहे थे। यह अपने समाज और आलोचकीय दरिद्रता भी है कि ऐसे लोग साहित्य के परिदृश्य से दूर रहते हैं।
कार्यक्रम में आनंद मालवीय, संगम लाल, अनीता त्रिपाठी, मोहन लाल यादव, प्रेम शंकर सिंह, शिवानी, मारुति मानव, अंशु मालवीय, अवनीश यादव, केतन यादव, शशिभूषण, श्वेतांक तथा हीरा लाल जी के परिजन पत्नी उमा जी, बेटे अयान, उनकी मां और परिवार के अन्य सदस्य उपस्थित हो कर उनको याद करते हुए माल्यार्पण किया तथा अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रस्तुति : केतन यादव
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अच्छी रिपोर्ट। केतन भाई का शुक्रिया। पहली बार ने उनका बार सहेज दिया है।
जवाब देंहटाएंअच्छी रपट।लगे हाथ उनकी कविताओं पर एक गोष्ठी आयोजित किया जाय।
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