गोविन्द निषाद का संस्मरण 'साधू'
गोविन्द निषाद पिता पुत्र का सम्बन्ध निरापद होता है। पिता अपने पुत्र को दुनिया की सारी खुशियां दे देना चाहता है। इसके लिए वह दिन रात एक भी कर देता है। दूसरी तरफ पुत्र के लिए पिता हमेशा एक आश्वस्ति की तरह होता है। पीठ पर पिता का हाथ वह सम्बल देता है, जो हमें कहीं और से मिल ही नहीं सकता। लेकिन समय के प्रवाह को कौन रोक पाया है भला। समय ऐसा भी आता है जब पिता अचानक अतीत हो जाते हैं और पुत्र सहसा खुद को निराश्रित महसूस करने लगता है। युवा रचनाकार गोविन्द निषाद के पिता का हाल ही में निधन हो गया। पिता की स्मृति पर गोविन्द ने एक संस्मरण लिखा है। इस संस्मरण इसलिए भी उम्दा है कि गोविन्द ने बेबाकी से इसे लिखा है। कहा जा सकता है कि किसी भी बनावट से दूर खांटी अंदाज में लिखा है। ईमानदारी और सादगी ही इस संस्मरण को और संस्मरणों से अलग और बेजोड़ बना देती है। इस संस्मरण में वह पिता सहज ही दिख जाते हैं जो प्रायः हमारे बचपन के बादशाह हुआ करते हैं। पिता की स्मृतियों को नमन करते हुए आज हम आपको गोविन्द का एक तरोताजा संस्मरण पढ़वाते हैं। 'साधू' गोविन्द निषाद पिता जी को गुजरे महीने हो गये। इस बीच वह बा