रजीउद्दीन अकील का आलेख 'उर्दू शायरी में दीवाली का जश्न'
रजीउद्दीन अकील तीज त्यौहार हमारे रोजमर्रा के जीवन की एकरसता को न केवल तोड़ते हैं बल्कि हमें हमारी सामाजिकता से भी जोड़ते हैं। ये त्यौहार किसी खास खांचे में नहीं रखे जा सकते। हमारे यहां जो सामाजिक समरसता शताब्दियों से चलती आ रही है उसमें ये त्यौहार सबके बन जाते हैं। होली, दशहरा, दीपावली केवल हिंदुओं के त्यौहार नहीं रह जाते जबकि ईद, बकरीद खालिस मुसलमानों के नहीं रह जाते। त्यौहारों में दीपावली का अपना खास महत्त्व है। पूरे कायनात को रोशनी से भर देने का पर्व है यह। शायर नजीर अकबराबादी ने इन पर्वों पर तफ़्सील से अपनी कलम चलाई है और शायरी लिखी है। नजीर अकबराबादी की शायरी को केन्द्र में रख कर इतिहासकार रजीउद्दीन अकील ने दीप पर्व की पड़ताल करने की कोशिश की है। यह आलेख दैनिक जागरण के रांची संस्करण के दीपावली विशेषांक अभ्युदय में प्रकाशित हुआ है, जिसका सम्पादन संजय कृष्ण ने किया है। दीप पर्व पर सभी को ढेर सारी बधाई एवम शुभकामनाएं। तो आइए इस मौके पर पढ़ते हैं रजीउद्दीन अकील का आलेख 'उर्दू शायरी में दीवाली का जश्न'। 'उर्दू शायरी में दीवाली का जश्न' रजीउद्दीन अकील हर एक मकाँ मे