कुमार मंगलम का आलेख 'कविता के घर में गद्य की सेंध'
 
  विष्णु खरे   हर कवि कविता को अपनी तरह से कुछ न कुछ समृद्ध जरुर करता है। भाषा , शिल्प ,  कथ्य ,  बिम्बों का प्रयोग ,  शब्द खासकर देशज शब्दों का प्रवाहपूर्ण प्रयोग  वे तमाम आयाम हैं जिससे कविता सुरुचिसम्पन्न बनती है। मुक्त छन्द की कविता  ने हिन्दी कविता को वह अनन्त आसमान प्रदान किया है जिसमें वह मुक्त भाव से  उड़ान भर रही है। विष्णु खरे अपनी ढब के अनूठे कवि हैं। अपनी कविता में  उन्होंने गद्य का इस्तेमाल कुछ इस तरह किया है कि वह एक नए शिल्प को रचती  हुई दिखाई पड़ती है। ऐसा नहीं कि यह करते हुए विष्णु खरे को आलोचनाएं न  झेलनी पड़ी हों ,  बल्कि वे तो आलोचनाओं के केन्द्र में ही रहे। फिर भी विष्णु  जी अपनी राह चलते रहे। युवा कवि कुमार मंगलम ने विष्णु खरे की कविताओं की  पड़ताल करते हुए एक आलोचनात्मक आलेख लिखा है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है  कुमार मंगलम का आलेख ' कविता के घर में गद्य की सेंध ' ।         कविता के घर में गद्य की सेंध    कुमार मंगलम   समकालीन काव्य परिदृश्य में विष्णु खरे एक ऐसे कवि हैं ,   पाठक  प्यार और नफरत के परिधि पर पढ़ता है। विष्णु खरे के प्रशं...