सुशांत सुप्रिय की कहानी 'धोबी पाट'
 
          सुशान्त सुप्रिय     अगर आदमी के अन्दर जूनून हो तो वह असंभव लगने वाले काम को भी संभव कर दिखाता है । 'हार न मानने' की इसी फितरत ने मनुष्य को आज पृथिवी के सर्वश्रेष्ठ प्राणी के रूप में ला खड़ा किया है । कवि-कहानीकार सुशांत सुप्रिय ने पहलवान हरपाल के रूप में ऐसे ही एक चरित्र को गढ़ा है जो उनकी 'धोबीपाट'  कहानी का नायक है । तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं सुशान्त सुप्रिय की हालिया लिखी यह कहानी 'धोबीपाट' ।              धोबीपाट                           सुशांत सुप्रिय       हरपाल अब बूढ़ा हो चला था। कुश्ती के खेल में पैंतालीस साल के  आदमी को बूढ़ा ही कहा जाएगा। हालाँकि उसकी देह पर ढलती उम्र का असर हुआ था ,  पर खंडहर बताते थे कि यह इमारत कभी बुलंद रही होगी। अपनी पूरी जवानी  उसने कुश्ती के नाम कर दी। पटियाला से अम्बाला तक , अमृतसर से जम्मू तक और  रोहतक से सिरसा तक क्षेत्रीय स्तर की ऐसी कोई कुश्ती प्रतियोगिता नहीं थी  जिस में उसने विरोधियों को धूल नहीं चटाई। पूरे उत्तर भारत में उसने अपनी पह...
