भरत प्रसाद का उपन्यास अंश 'आधा डूबा आधा उठा हुआ द्वीप : जे.एन.यू.'
एक रचनाकार एक साथ कई विधाओं में सिद्धहस्त ढंग से लेखन कर सकता है। विधाओं की यह विविधता लेखक की उस दृष्टि से ही सम्भव हो पाती है जिसमें वह विस्तृत परिप्रेक्ष्य में चीजों या परिस्थितियों को अवलोकित कर पाता है। एक साथ कई विधाओं में लेखन की समृद्ध परम्परा हिन्दी साहित्य में भी दिखाई पड़ती है। हमारे समय के सक्रिय रचनाकार भरत प्रसाद उन रचनाकारों में से एक हैं। आलोचना, कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, समीक्षा के अतिरिक्त भरत जी 'देशधारा' नामक एक पत्रिका के सम्पादक भी हैं। हाल ही में सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली से भरत प्रसाद का उपन्यास 'काकुलम' प्रकाशित हुआ है। उपन्यासकार को बधाई देते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं इसी उपन्यास का एक रोचक अंश 'आधा डूबा आधा उठा हुआ द्वीप : जे.एन.यू.' 'आधा डूबा आधा उठा हुआ द्वीप : जे.एन.यू.' भरत प्रसाद ऐन 2021 की दहलीज पर धवल की जवानी। कहिए कि आकांक्षाओं की उत्तुंग लहरों में उछलती हुई एक नाव, स्वप्नों के क्षितिज में सुदूर खोई कोई मंजिल, अनजाने, दिशाहीन तीरों के बीच छटपटाता एक पक्षी या ऊँ