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विष्णु खरे की कविताएं

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  यह संसार इतना बड़ा है कि तमाम चीजें, बातें, गतिविधियां अलक्षित रह जाती हैं। कवि उन तमाम अलक्षित को दुनिया के समक्ष लक्षित करने का काम करता है। विष्णु खरे ऐसे ही कवि थे जिनके पास तमाम ऐसी कविताएं हैं जिनको पढ़ कर हम चकित रह जाते हैं। रेल या सड़क से आते जाते हमने उन खंडहर टाइप की इमारतों को जरूर देखा होगा जिस पर मोटे अक्षरों में A B A N D O N E D लिखा होता है। इन इमारतों का भी निश्चित रूप से अपना इतिहास रहा होगा। कभी ये इमारतें लोगों की हंसी ठट्ठे से गुलजार रहा करती थीं। कभी इसमें जीवन का फूल खिला करता था। लेकिन समय आया कि ये इमारतें परित्यक्त घोषित कर दी गईं। इस A B A N D O N E D पर विष्णु खरे की नजर जाति है और वे इस पर कविता लिख डालते हैं। इस तरह की तमाम कविताएं विष्णु जी के पास हैं। इन मामलों में वे दुर्लभ कवि हैं। आज विष्णु खरे की पुण्य तिथि है। उनकी स्मृति को हम नमन करते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  विष्णु खरे की कविताएं।   विष्णु खरे की कविताएं   आलैन तुर्की के पास डूबे सीरियाई बच्चे ‘आलैन’ की तस्वीर ने पूरी दुनिया को विचलित कर दिया था। इस दुर्घटना में उसका भाई ग़ालिब और

हीरा लाल की कविताएं

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  हीरा लाल  व्यक्ति है तो उसके साथ उसकी चिंताएं भी हैं। लेकिन यह चिंताएं अलग अलग मनुष्यों में अलग अलग समय में अलग अलग चेहरे वाली होती हैं। एक आम आदमी की चिन्ता सामान्य तौर पर रोटी, कपड़ा, मकान ही होता है। किसी भी संवेदनशील कवि का सरोकार सामान्य तौर पर आम जनता की चिंताओं से जुड़ा होता है। हीरा लाल ऐसे ही कवि थे जिनका सरोकार आम लोगों से था। खुद हीरा लाल भी छल छद्म से दूर थे। तीन पांच की प्रवृत्ति से दूर थे। जीवन भर अपने जीवन के साथ ही प्रयोग करते रहे। अलग बात है अधिकांश में असफल रहे। कविता के साथ भी उन्होंने कई प्रयोग किए। यह जानते हुए कि कवि कर्म कठिन कर्म है, अपने रोजगार के समय में से कुछ समय काट कर कविता को देते रहे जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। आखिरकार जनवरी 2024 में वे बिल्कुल चुपके से प्रयाण कर गए। विडंबना देखिए कि उनके मौत की खबर लगभग साढ़े सात महीने बाद इलाहाबाद के साहित्यिक समाज को पता चल पाई। प्यारे कवि को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आज हम पहली बार पर उनकी कुछ कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं हीरा लाल की कविताएं जो उनके एकमात्र कविता संग्रह '

सुरेन्द्र प्रजापति की कहानी 'एक और सुबह'

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  सुरेन्द्र प्रजापति पारिवारिकता की भावना ने मनुष्य को सही मायनों में मनुष्य बनाया। समाज की इस सबसे छोटी इकाई के जरिए मनुष्य अपने विभिन्न पारिवारिक सदस्यों के साथ अपना व्यवहार सुनिश्चित करता है। यह पारिवारिकता उसमें जीवन का उल्लास जगाती है। मनुष्य जब हताशा के क्षणों का सामना कर रहा होता है तब भी वह इस पारिवारिकता के सहारे ही निराशा के समुद्र पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करता है और प्रायः सफलता भी प्राप्त करता है। पारिवारिकता की भावना मनुष्य की कल्पनात्मकता को भी एक नई दिशा प्रदान करती है। सुरेन्द्र प्रजापति ने अपनी कहानी एक और सुबह इसी वितान पर रची है। जेल में बंद एक सामान्य व्यक्ति अपने घर परिवार के बारे में सोचता हुआ समय गुजार देता है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं सुरेन्द्र प्रजापति की कहानी 'एक और सुबह'। 'एक और सुबह'                             सुरेन्द्र प्रजापति  मैं राष्ट्रीय कारागार में विचाराधीन बंदी हूँ। अभी कुछ ही दिन पहले एक फौजदारी मुकदमे में आया हूँ। एक जमीन के विवाद में अपने  ही बिरादरी के लोगों से मारपीट हुई और मैं गिरफ्तार कर लिया गया। दो चार दिन ह