आशीष तिवारी की कविताएं
 
    आशीष तिवारी            किसी भी समय के कवि की प्रतिबद्धता अपने समय और समाज के प्रति होती है।  हिन्दी कविता के तमाम ऐसे युवा स्वर हैं जो अपनी प्रतिबद्धता से हमें  आश्वस्त करते हैं। आशीष में एक परिपक्व इतिहास बोध भी दिखायी पडता है। अपनी कविता  ' इतिहास का भूत ' में आशीष लिखते हैं : ' इतिहास आईना है/ जितना धूमिल करोगे/  उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर। ' आशीष तिवारी ऐसे ही एक कवि हैं  जिनकी कविताओं में पक्षधरता स्पष्ट है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है युवा  कवि आशीष तिवारी की कविताएँ।      आशीष तिवारी की कविताएं          इतिहास का भूत         इतिहास के प्रति घृणा फैलाने वाला ,   उसे नकारने वाला ,   तब भयभीत हो जाता है ,   जब उसके सजाये रंगीन मंचों पर   इतिहास मुंह चिढ़ाने लगता है     इतिहास के आख्यान गम्भीर और चिंतनपरक होते हैं   इनका मज़ाक उड़ाने वाला   मदारी जैसा दिखने लगता है   कभी-कभी उसका हाथ     अपने से बड़े मदारी के हाथ में जाता है     तो वह खुद को मदारी के बंदर जैसा उछलता भी पाता है     इतिहास आईना है   जितना धूमिल करोगे   उतने भटके हुए लगोगे वैश्विक मंचों पर     ...