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अंकित नरवाल का आलेख 'विश्वनाथ त्रिपाठी : सामाजिक दायित्व निर्वहन का आलोचक'

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  विश्वनाथ त्रिपाठी  विश्वनाथ त्रिपाठी हमारे समय के शीर्ष आलोचक हैं। वे उन आलोचकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी एक अलहदा आलोचना पद्धति न केवल ईजाद की बल्कि उसे आलोचना की दुनिया में स्थापित भी किया।  त्रिपाठी जी का मानना है कि आलोचना का एक सामाजिक दायित्व भी होता है और उसे इस दायित्व का निर्वहन करना पड़ता है। सामाजिकता के बिना आलोचना जैसे आत्महीन सी हो जाती है। उनकी आलोचना उस तार्किकता की पक्षधर है जिसका विकास वैज्ञानिक चेतना से होता है। युवा आलोचक अंकित नरवाल त्रिपाठी जी के आलोचना की तहकीकात करते हुए लिखते हैं "त्रिपाठी जी विचारधारा के बड़े होने को उतना महत्त्वपूर्ण नहीं मानते, जितना महत्त्वपूर्ण यह है कि वह किसी व्यक्ति को भी बड़ा बना रही है या नहीं। वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के क़ायल हैं। ‘हिन्दी’ भाषा के संबंध में पनपने वाली विभिन्न बहसों पर की गई उनकी टिप्पणियाँ यह सिद्ध कर देती हैं कि उनके लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण किस हद तक महत्त्वपूर्ण है और भाषा के संबंध में उसको प्रयुक्त करने वाले व्यक्ति की नीयत भी।" पाखी का हालिया अंक विश्वनाथ त्रिपाठी पर ही केन्द्रित है। अंकित नरवा...

यतीश कुमार की कहानी 'आतिशबाजी'

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यतीश कुमार  कोई भी जीवन बहुआयामी होता है। इसके कई शेड्स होते हैं। सुख दुःख, हर्ष विषाद, आरम्भ अन्त इसके अविभाज्य हिस्से होते हैं जिनसे हो कर इसका वह रंग रूप बनता है जो इसे कुदरत की सबसे नायाब चीज बना देता है। लम्बी कहानी को आमतौर पर साध पाना आसान नहीं होता। वह भी तब जब हम अति उत्साही शॉर्ट कट के जमाने में जी रहे हों। वह भी तब जब महज एक मिनट के रील्स में ही सब कुछ पा जाना चाहते हों। तारतम्यता लम्बी कहानी के लिए जरूरी होती है वरना पाठक जल्द ही इससे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कवि यतीश कुमार सहज सरल और तारतम्यता से भरे हुए गद्य के भी उस्ताद हैं। उन्होंने कई लम्बी कहानियां लिखी हैं जिनसे हो कर गुजरना ऐसे सघन जीवनानुभवों से हो कर गुजरना होता है जिसे किसी रचनाकार की आंख ही देख सकती है और लेखनी ही तराश सकती है। उनकी कहानी 'आतिशबाजी' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। कहानी पढ़ कर पाठक खुद ही इसे महसूस कर सकेंगे। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं यतीश कुमार की कहानी 'आतिशबाजी'। यह कहानी हमने तद्भव के पचासवें अंक से साभार लिया है।  कहानी आतिशबाजी यतीश कुमार ज्वार की उफनती धार में लिपट कर रेत...