अंकित नरवाल का आलेख 'विश्वनाथ त्रिपाठी : सामाजिक दायित्व निर्वहन का आलोचक'
विश्वनाथ त्रिपाठी विश्वनाथ त्रिपाठी हमारे समय के शीर्ष आलोचक हैं। वे उन आलोचकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी एक अलहदा आलोचना पद्धति न केवल ईजाद की बल्कि उसे आलोचना की दुनिया में स्थापित भी किया। त्रिपाठी जी का मानना है कि आलोचना का एक सामाजिक दायित्व भी होता है और उसे इस दायित्व का निर्वहन करना पड़ता है। सामाजिकता के बिना आलोचना जैसे आत्महीन सी हो जाती है। उनकी आलोचना उस तार्किकता की पक्षधर है जिसका विकास वैज्ञानिक चेतना से होता है। युवा आलोचक अंकित नरवाल त्रिपाठी जी के आलोचना की तहकीकात करते हुए लिखते हैं "त्रिपाठी जी विचारधारा के बड़े होने को उतना महत्त्वपूर्ण नहीं मानते, जितना महत्त्वपूर्ण यह है कि वह किसी व्यक्ति को भी बड़ा बना रही है या नहीं। वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के क़ायल हैं। ‘हिन्दी’ भाषा के संबंध में पनपने वाली विभिन्न बहसों पर की गई उनकी टिप्पणियाँ यह सिद्ध कर देती हैं कि उनके लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण किस हद तक महत्त्वपूर्ण है और भाषा के संबंध में उसको प्रयुक्त करने वाले व्यक्ति की नीयत भी।" पाखी का हालिया अंक विश्वनाथ त्रिपाठी पर ही केन्द्रित है। अंकित नरवा...