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कैलाश बनवासी की कहानी 'काका के जीवन की एक घटना'

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  कैलाश बनवासी अभी तक धैर्य, अनुशासन, सहनशीलता और दूसरों का सम्मान जीवन के मूल्य माने जाते थे। समाज में लोगों से इसकी अपेक्षा की जाती थी और प्रायः इसके इर्द गिर्द ही समाज चलता रहता था। लेकिन समय बदला। सोच बदली। और इसके साथ जीवन के प्रतिमान भी बदल गए। अब किसी के पास धैर्य नहीं है। अनुशासन को ताक पर रख दिया गया है। सहनशीलता अतीत की बात हो गई और इसकी जगह हिंसा प्रतिहिंसा ने ले ली है। और सम्मान की तो पूछिए ही मत। साहित्य प्रायः अपने समय को प्रतिबिंबित करता है। कैलाश बनवासी की कहानी  'काका के जीवन की एक घटना' हमारे समय और समाज की सोच को बारीकी से उद्घाटित करती है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं  कैलाश बनवासी की कहानी 'काका के जीवन की एक घटना'।       'काका के जीवन की एक घटना'                                               कैलाश बनवासी       खोली का माहौल अतिशय गंभीर था। उस खोली में, जहां मैं पिछले तीन साल से कॉलेज की अपनी पढाई पूर...

हेमन्त शर्मा का आलेख 'भए प्रगट कृपाला'

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  वो हेमन्त शर्मा भारतीय संस्कृति में राम की व्याप्ति जन जन तक है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। शासक होने के बावजूद वे जन का ख्याल रखते हैं। पिता के वचन की मर्यादा बनाए रखने के लिए वे राजगद्दी का परित्याग कर वन चले जाते हैं। भारत ही नहीं कई अन्य भाषाओं में भी राम कथा मिलती है। राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था। आज राम नवमी यानी कि राम का जन्मदिन है। पहली बार के पाठकों को राम नवमी की बधाई देते हुए हम पहली बार पर आज प्रस्तुत कर रहे हैं  हेमन्त शर्मा का आलेख 'भए प्रगट कृपाला'। 'भए प्रगट कृपाला' हेमन्त शर्मा  ‘भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी’ यह राम के जन्म पर बाबा तुलसीदास लिखते हैं। सब हर्षित हैं। पुलकित हैं। मगन हैं। चकाचौंध हैं। पर बालक राम की लीला और तेजस्विता कौशल्या को रास नहीं आ रही है। वे कहती हैं,  “तजहु तात यह रूपा। कीजै सिसु लीला अति प्रियसीला  यह सुख परम अनूपा”। हे पुत्र! यह रूप छोड़ कर मेरे लिए प्रिय बाल-लीला करो। यह सुख परम अनुपम है। यह सुन कर देवताओं के स्वामी सुजान राम ने बालक हो कर रोना शुरू किया। वे मनुष्य शरीर में आए. उ...

यादवेन्द्र का आलेख 'सारी बकरियाँ एकदम से कहाँ चली गईं?'

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  यादवेन्द्र  समूचे ब्रह्मांड में हमारी यह पृथिवी जीवन से पूरी तरह आप्लावित है। यहां तरह तरह का चित्र विचित्र जीवन भरा पड़ा है। जीवन का यह वैविध्य इतना व्यापक है कि कुछ से तो हम आज भी अपरिचित हैं। जीवन की यही खूबसूरती है। हम इसे जैव विविधता के नाम से जानते पहचानते हैं। लेकिन विकास की अंधी दौड़ में हम कुछ इस तरह शामिल हुए कि अरसे से साथी रहे पशु पक्षियों को खोते चले गए। मारीशस का डोडो पक्षी इसका उदाहरण है। गिद्ध हमारे देखते देखते लुप्तप्राय हो गए। गौरैया जिनसे हमारी हर सुबह कभी गुलजार हुआ करती थी, दूभर होने लगी है। बैल अब बीते दिनों की बात हो गए। जो भेड़ बकरियां हमारे गांवों के दृश्य को अलग रंग प्रदान करते थे, अब कम दिखने लगे हैं। चिन्ता की बात तो यह है कि केवल जीवन से ही नहीं हमारे साहित्य और संस्कृति से भी अब ये गुम होने लगे हैं। मोबाइल के रील्स कल्चर ने हमें इस कदर व्यस्त कर दिया है कि हम अपने आस पास को ही जान समझ नहीं पाते। आजकल पहली बार पर हम प्रत्येक महीने के पहले रविवार को यादवेन्द्र का कॉलम 'जिन्दगी एक कहानी है' प्रस्तुत कर रहे हैं जिसके अन्तर्गत वे किसी महत्त्वपूर्ण रच...

स्वप्निल श्रीवास्तव का आलेख 'कहाँ रहती है कवि की कविता'

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  विनोद कुमार शुक्ल  एक सवाल अक्सर उठता है कि कविता रहती कहां है जिसे कवि उठा कर अपनी कविताओं में दर्ज कर लेता है। किसी कवि के लिए यह सवाल जितना आसान होता है उतना ही परेशान करने वाला भी होता है। गंभीरता से देखा जाए तो यह समूची सृष्टि ही कविता की तरह है। सृष्टि में अपनी यह पृथिवी एक भाषा की तरह है तो पृथिवी पर जीवन एक शिल्प की तरह। यानी कि हमारे चारो तरफ कविता ही कविता है। बस जरूरत होती है उस सूक्ष्म दृष्टि की जो उसे महसूस कर कविता में दर्ज करे। विनोद कुमार शुक्ल ऐसे ही कवि हैं जिनकी कविता में उनके आस पास की आहटें करीने से दर्ज हैं। जहां तक आरोपों की बात है दुनिया का कोई भी कवि इससे मुक्त नहीं। आरोपमुक्त होना एक ऐसा छद्म है जिसे तमाम लोग ओढ़े रहते हैं। हमें यह तो मानना ही होगा कि यह दुनिया, यह जीवन बहुत बड़ा है। और हर कवि की अपनी सीमाएं होती हैं। विनोद कुमार शुक्ल के पुरस्कार मिलने पर तमाम बातें कुछ लोगों द्वारा उठाई गई हैं। ऐसे लोगों को उनकी कविताएं गौर से देखनी चाहिए जिसमें छत्तीसगढ़ का जीवन भरा पड़ा है। कविताओं की पंक्तियों और उनकी पंक्तियों के बीच दर्ज उस संघर्ष को पढ़ना चा...