इसाबेले एलेंदे की कहानी 'आखिर हम सब मिट्टी के ही बने हैं।' अनुवाद और प्रस्तुति यादवेन्द्र
 
        इसाबेले एलेंदे         इंसानियत  से बढ़ कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है। यह इंसानियत ही है जब किसी अजनबी  में  हम अपनापन महसूस करने लगते हैं। कीचड़ के दलदल में फंसी आसूसेनु के घटना  की रिपोर्टिंग करने गया रोल्फ अन्ततः वेदना भरे उसके मासूम चेहरे से इस  कदर द्रवित होता है कि अपना काम भूल कर उसे बचाने में लग जाता है। आज पहली  बार पर प्रस्तुत है इसाबेले एलेंदे की कहानी ' आखिर हम सब मिट्टी के ही बने  हैं। ' अनुवाद और प्रस्तुति यादवेन्द्र जी की है। यह कहानी भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनके संकलन "तंग गलियों से भी दिखता है आकाश" से साभार ली गयी है।           आखिर हम सब मिट्टी के ही बने हैं                             इसाबेले एलेंदे         उन  लोगों को   लड़की का सिर मिट्टी के गड्ढे से थोड़ा सा बाहर निकला हुआ दिखाई  पड़ा। आँखें चौड़ी खुली हुई चारों ओर ख़ामोशी से देखती हुईं। उसका नाम था :  आसूसेनू (स्थानीय   भाषा में जिसका अर्थ हुआ लिली का फूल)। लिली... इस  विशालकाय कब्रगाह में जिस से उठती हुई मौत की बदबू दूर से ही गिद्धों को  न...